जीवन के इस मोड़ पर ,
सपनो की एक डोर हैं.
पर हर सपने की राह
प्रिया मिलन को और हैं.
पता नहीं ये प्यार हैं,
पर जीवन में अब सार हैं.
उसकी उम्मीदों के बिना ,
लगता सब कुछ निस्सार हैं.
योवन की इस चंचलता में ,
दी को बहती हर मादकता हैं.
विरह की इस अकुलाहट में,
बढ़ती प्रिय -मिलनकी चाहत हैं.
उसकी चुलबुली बातो के संग ,
आता हैं तन्हा रातो में रंग.
रंगों के इस मोहक संगम पर ,
जीवन में हर पल उमंग हैं.
उसकी मंद-मंद मुस्काहट में,
नई उम्मीदों की आहत हैं.
और होंठो के कम्पन में,
मेरे हृदय के स्पंदन हैं.
दिवस -रजनी में हर पल,
ख्वाब सजत रहत हूँ.
उसकी पलकों के तल में ही ,
जीवन का सुख पाता हूँ.
ये भूख नहीं, कोई प्यास नहीं.
हृदय की कोई मांग नहीं,
नयनो के इस मेल में,
इंतज़ार अब मंजूर नहीं.
ये प्रीत महज़ विचार नहीं,
मन का कोई वीकार नहीं,
भावों के इस संगम में
हृदय पर मेरा कोई अधिकार नहीं.
प्रीत की ये राह आसान नहीं.
उम्मीदों का कोई पार नहीं.
प्रिय -मिलन की इस चाहत में.
कुछ भी अब अस्वीकार नहीं.
प्रीत का येही दस्तूर हैं.
लगता इंतज़ार अब नासूर हैं.
प्रिय-मिलन की खातिर ,
" आतीश " को अब भुजना भी मंजूर हैं.
--द्वारा
अरुण सुमंत " आतीश "
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