Tuesday, December 21, 2010

हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है

शरमा के इस तरह मेरी बाहों में आने की अदा ख़ूब है  
बेताब धडकनों को जुल्फोंतले मिलाने की अदा ख़ूब है
थर-थराते लबो से कुछ कहने की वो ना-काम कोशीशे
और गर्म सासों से हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है 


तेरी बाहों के दायरे,अब मेरी जिंदगी के है
इन से आगे अब मेरी,कोई दुनिया नहीं
तेरी जुल्फों  के साये,मुहाफ़िज है ख्वाबो के 
इन के सिवा  अब मेरा,कोई आशियाँ नहीं  

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