तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की
नींद खुली जो ख्वाब से,तो हालात ऐसे थे बदले हुवे
नफरत की गर्मी से,उम्मीदों के बरफ थे पिघले हुवे
कब लगी आग,कब उठा धुवां,इल्म ये भी ना हुवा
बस मिल गये जो राख में,वो अरमा थे मेरे जले हुवे
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