क्या कहें उन निगाहों की बात,
चुपके एक पल उन्होंने देखा था जो,
वो शरारत उन आंखों की कहानी,
जुबां खुदके शब्द खोज रहा था जो
वो पलकों का नीचे झुकाना,
वो शर्मा के मंद मुस्काना,
उठती पल भर वो पलकें देखी,
दिल में बस गया खिलता उनका रूप सुहाना
दो निगाहों में गहराई कितनी,
इन्तीहाँ डूबता जा रहा हूँ,
वो मस्ती आंखों में देखी,
अब तो दुनिया जहान सब भूल गया हूँ जो
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