Tuesday, December 21, 2010

यदि किम्मै उंच नीच हो जाती तो

परसों रात की बात
अकस्मात
एक क्युट सी छोरी ने ताऊ को रोका
हम समझे पहचानने मे हो गया धोखा !
हम ताऊ-सुलभ लज्जा से
नजर झुकाए गुजर गये
छोरी के केश मारे गुस्से के बिखर गये
जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी-
गांव के जवान लोगो, आवो
इस शरीफ़जादे ताऊ से मुझको बचाओ
मैं पलको मे अवध की शाम
होठों पर बनारस की सुबह
बालों मे शबे-मालवा
और चेहरे पर बंगाल का जादू रखती हूं
फ़िर भी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?
ताऊ बोल्यो अरे छोरी बात तो तू सांची कहवै सै
पर मन्नै या बतादे
यदि किम्मै उंच नीच हो जाती
तो ताई लठ्ठ लेकै
के थारै बाप के पास जाती ?

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