Tuesday, December 22, 2009

ये माना कुछ खता हुयी है हमसे,

ये माना कुछ खता हुयी है हमसे,
गलतफहमी में, कुछ गलतिया हुयी है हमसे,
पर दोष नहीं हमारा इतना, जितना तुम्हारा था,
प्यार में हमने भी, खाई है ठोकरे,
याद आता है वो, सुनहरा पल,
साथ जब हमारे, तुम होती थी हरपल,
वो तेरा शरमाकर, पलट जाना खिडकियों से,
वो अखियों से, इशारों में इकरार करना तेरा,
जिन्दगी की खिली धुप में, छाव थी तुम,
रात की चांदनी में, मेरा सुकून थी तुम,
साये की तरह, हरपल साथ थी तुम,
मैं शरीर, मेरी आत्मा थी तुम,
क्यों ये दूरियां हुयी, क्यों ये फासले हुए,
क्यों अब उन खिडकियों पर, सुनी मेरी नजरें टिकी है,
आस में तेरे, क्यों ये दिल रोता रहता है,
शायद आज भी इसे, तेरी पलटने का इरादा है,
बस इतना कहना है आज, तुझसे मेरे मीत,
की आज भी, उन खिडकियों पर, इंतज़ार मेरा है,
प्यार के उन पलों में, एहसास तेरा है,
इस दिल में, आज भी इंतज़ार तेरा है ....
वो बिसरी यादें रुला जाती है .....
अब इस दिल में, बची हर सांस,
तेरे लौटने के इंतज़ार में, बचा रखी है ............

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