Friday, December 25, 2009

काँटों पर चलने वाली हूँ

काँटों पर चलने वाली हूँ फूलो की सय्या क्या जानू

जब अपनों को ही भूल गई मैं भूल भुलायिया क्या जानू

ये धरती मेरा बिस्तर है और अम्बर मेरी चादर है

मैं खेल रही तूफानों से मेरा अपना जीवन पतझड़ है

टुकड़ों पर पलने वाली हूँ मैं दुध मलाई क्या जानू............ ..

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