काँटों पर चलने वाली हूँ फूलो की सय्या क्या जानू
जब अपनों को ही भूल गई मैं भूल भुलायिया क्या जानू
ये धरती मेरा बिस्तर है और अम्बर मेरी चादर है
मैं खेल रही तूफानों से मेरा अपना जीवन पतझड़ है
टुकड़ों पर पलने वाली हूँ मैं दुध मलाई क्या जानू............ ..
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