Friday, December 25, 2009

मेरी अठखेलियाँ

मेरी अठखेलियाँ मेरा स्वभाव था
उतावलेपन में नहीं ठहराव था
मेरी लौ में जलते नेत्र नहीं हैं अब
मेरा रिक्त हो जाना ही तो सही है अब
जब मेरे मोम के शरीर को गंगा में तिराना तुम
तनिक अफ़सोस नहीं करना, आंसू न बहाना तुम
खुशबुओं से तृप्त मोम के टुकड़े और मिलेंगे
मेरी जर्जरता से रिक्त सूर्यांश और मिलेंगे
चलती हूँ मुसाफिर हूँ बड़ी दूर है जाना
एक बुझती लौ अपने नाम किए जाती हूँ
कभी वक्त मिले ग़र , मेरे देस भी आना
तेरे देस की यादें मैं साथ लिए जाती हूँ.
.
.
.
.
.
.
.
Meri athkheliyan mera svabhav tha
Utavlepan men nahin thahrav tha
Meri lou men jalte netra nahin hain ab
Mera rikt ho jana hi to sahi hai ab
Jab mere mom ke sharir ko ganga men tirana tum
Tanik afsos nahin karna, ansu na bahana tum
Khushbuon se tript mom ke tukde aur milenge
Meri jarjarta se rikt suryansh aur milenge
Chalti hun musafir hun badi dur hai jana
Ek bujhti lou apne nam kiye jati hun
Kabhi vakt mile gar , mere des bhi ana
Tere des ki yaden main sath liye jati hun....

No comments:

Post a Comment

1