ये शबे फिराक ये बेबसी, हैं कदम-कदम पे उदासियां |
हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया |
हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे |
अय मौत, उन्हें भुलाए जमाने गुजर गए |
Friday, December 25, 2009
शेरो-शायरी
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