वो चंचल हवाएं,
वो काली घटाएं,
वो नीला आसमान,
वो सतरंगी जहाँ,
वो काली घटाएं,
वो नीला आसमान,
वो सतरंगी जहाँ,
हर्षाता है मेरे मन को,
जब कभी खो जाता है मेरा मन,
वो वापस बुलाता है मुझको,
वो महकी बगिया,
वो महका चमन,
वो खिली कलियाँ,
वो खिला बदन,
वो महका चमन,
वो खिली कलियाँ,
वो खिला बदन,
जब भी निराश होती हूँ,
समझाते हैं मुझको,
समझाते हैं मुझको,
कि खोकर अपना सब कुछ हम देते हैं खुशियाँ जहाँ को,
बिना कुछ लिए,
तब फिर तू इतनी निराश है क्यूँ,
जबकि तू पा चुकी है सब कुछ,
अपनी चंचलता में जियो,
न हो उदास, न किसी को होने दो,
बिना कुछ लिए,
तब फिर तू इतनी निराश है क्यूँ,
जबकि तू पा चुकी है सब कुछ,
अपनी चंचलता में जियो,
न हो उदास, न किसी को होने दो,
मेरे मन की चंचलता............
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Wo chanchal havayen,
Wo kali ghatayen,
Wo nila asman,
Wo satrangi jahan,
Harshata hai mere man ko,
Jab kabhi kho jata hai mera man,
Wo vapas bulata hai mujhko,
Wo vapas bulata hai mujhko,
Wo mehki bagiya,
Wo mehka chaman,
Wo khili kaliyan,
Wo khila badan,
Wo mehka chaman,
Wo khili kaliyan,
Wo khila badan,
Jab bhi nirash hoti hun,
Samjhate hain mujhko,
Samjhate hain mujhko,
Ki khokar apna sab kuchh ham dete hain khushiyan jahan ko,
Bina kuchh liye,
Tab phir tu itni nirash hai kyun,
Jabki tu pa chuki hai sab kuchh,
Apni chanchalta men jiyo,
Na ho udas, na kisi ko hone do,
Bina kuchh liye,
Tab phir tu itni nirash hai kyun,
Jabki tu pa chuki hai sab kuchh,
Apni chanchalta men jiyo,
Na ho udas, na kisi ko hone do,
Mere man ki chanchalta.. ......... .
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