Saturday, January 14, 2012

एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-3 Hindi Love Story

  एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-3



गतान्क से आगे..............

पर नही. ऐसा कुच्छ नही होगा. लॉक्स अब भी वही हैं और चाभी भी. तुम चाभी घूमाओगी और दरवाज़ा खुल जाएगा.


तुम घर के बड़े से भारी दरवाज़े को खोल कर अंदर आओगी. पुशिंग ओपन दा डोर. बड़ा भारी सा दरवाज़ा जिस पर काले रंग का पैंट है और तुम्हारे पंजे का निशान छपा हुआ है.

अंदर आते हुए तुम यही उम्मीद करोगी के घर के अंदर वैसी ही स्मेल होगी जैसे तब होती थी जब ये घर तुम्हारा था. तुम उम्मीद कर रही होगी के अंदर ए.सी. ऑन होगा और एक ठंडी हवा तुम्हारे चेहरे पर लगेगी जो तुम्हें बाहर की गर्मी से बचाएगी. पर नही. ना तो ठंडी हवा होगी और ना ही वो खुश्बू जो इस घर
में तुम्हारे होने से होती थी.


घर के अंदर की हवा गरम होगी वैसी ही जैसी के बाहर की हवा है. बल्कि उससे भी बुरी क्यूंकी अंदर की बंद हवा में एक अजीब सी बदबू होगी हो घर में घुसते ही तुम्हारे चेहरे पर थप्पड़ की तरह लगेगी.


घबरा कर तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकरोगी.


तुम्हारी आवाज़ खुद तुम्हारे ही कानो को कितनी कमज़ोर और परेशान सी लगेगी. और तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल की वजह से फिर एक बार अपनी नाक सिकोड लॉगी. ठीक उसी तरह जो मुझे बहुत पसंद आया करता था.


परेशान होकर तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल से बचने के लिए लिविंग रूम की खिड़की खोलने की कोशिश करोगी.


मुझे माफ़ कर दो प्लीज़.

मैं अब एक घंटे से ज़्यादा के लिए वापिस नही आ सकती. कभी नहीं.

ये शायद मेरी ही ग़लती थी. मुझे तुमसे शादी नही करनी चाहिए थी

मुझे पता होना चाहिए था के हम दोनो ग़लती कर रहे हैं.

हां मैने अपने घरवालो के कहने पर तुमसे शादी की थी.

उनके दबाव में आकर.

वो कहते थे के तुम एक बहुत बड़े प्रोफेसर हो और तुम्हारे साथ मेरा फ्यूचर सेफ आंड सेक्यूर होगा.

मैने तुम्हें प्यार करने की बहुत कोशिश की. बहुत चाहा के तुम्हारी बीवी बन सकूँ, सिर्फ़ जिस्म से नही बल्कि दिल से भी.

मैं सिर्फ़ अपना समान लेने आऊँगी. और जो मैं नही ले जा सकती वो तो किसी को दे देना या फेंक देना.

तुम मेरी ज़िंदगी में पहले लड़के थे. तुमसे पहले मैं किसी लड़के को नही जानती थी. अगर जानती होती तो शायद .....

नही मैने तुमसे कभी प्यार नही किया, कभी कर ही नही पाई. अपना जिस्म तो तुम्हें दे दिया पर दिल नही दे पाई और कभी दे भी नही पाऊँगी.


तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकरोगी. पूछोगी के क्या मैं उपेर के कमरे में हूँ? तुम्हारा दिल तुम्हें फ़ौरन पलट जाने को कह रहा होगा. भाग जाने को कह रहा होगा.


फिर भी तुम अपने दिल की बात ना सुनते हुए सीढ़ियाँ चढ़ती उपेर के कमरे की तरफ आओगी.



तेरी यादों के जो आखरी थे निशान,
दिल तड़प्ता रहा, हम मिटाते रहे.

खत लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,
उनको पढ़ते रहे और जलाते रहे.....

धड़कते दिल के साथ तुम सीढ़ियाँ चढ़ती उपेर आओगी. सीढ़ियों पर अब भी वही कार्पेट होगा जो तुम पसंद करके लाई थी. जिसके रंग को लेकर हम दोनो में काफ़ी बहस हुई थी. सीढ़ियों के साथ बनी रेलिंग का सहर लिए तुम उपेर को चढ़ती आओगी, जैसे कोई नीद में चल रहा हो.


उपेर आते हुए पता नही तुम्हारे दिल में कौन सी फीलिंग होगी? गिल्ट? अफ़सोस? दुख? डर? आज़ादी?

या तुम सिर्फ़ ये सोच रही होगी के उपेर तुम्हें क्या मिलने वाला है? या ये के क्यूंकी तुम अब तक मेरी बीवी हो तो तुम्हारा फ़र्ज़ बनता है के एक बार उपेर आकर देखो?
तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी वो क्यूट सी स्माइल होगी इस बात का मुझे पूरा यकीन है. वही स्माइल जिसका मैं आज भी दीवाना हूँ पर फ़र्क सिर्फ़ इतना होगा के तब वो स्माइल नकली होगी, ये सोचकर के अगर मैं तुम्हें उपेर मिला तो तुम मुस्कुरा कर मुझे देखो.


तुम घबरा रही होंगी. शायद तुम्हें हल्के से चक्कर भी आ रहे हों. दिल ज़ोर से धड़क रहा होगा और खून का बहाव दिमाग़ की तरफ ज़्यादा बढ़ जाएगा. जैसे जैसे डरते हुए तुम सीढ़ियाँ चढ़ोगी वैसे वैसे कभी तुम्हारी आँखों के आगे रोशनी होगी तो कभी अंधेरा सा.


सीढ़ियाँ चढ़ कर तुम एक पल के लिए रुकोगी और एक गहरी साँस लॉगी. पर साँस ज़्यादा लंबी और गहरी ले नही पओगि. क्यूँ घर में नीचे आ रही स्मेल यहाँ और भी ज़्यादा तेज़ होगी. गर्मी की घुटन से भरी एक अजीब से तेज़ स्मेल. तुम्हारा दम घुटने लगेगा और शायद तुम्हें उल्टी भी आने को हो पर तुम पलट नही सकती. वापिस नही जा सकती. तुम्हें बेडरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर देखना ही पड़ेगा.



इश्क़ को दर्द-ए-सर कहने वालो सुनो,
कुच्छ भी हो हमने ये दर्द-ए-सर ले लिया,
वो निगाहों से बचकर कहाँ जाएँगे,
अब तो उनके मोहल्ले में घर ले लिया.

आए बन ठनके शहर-ए-खामोशी में वो,
कब्र देखी जो मेरी तो कहने लगे,
अर्रे आज इतनी तो इसकी तरक्की हुई,
एक बेघर ने अच्छा सा घर ले लिया.



और हमारे बेडरूम तक आने से पहले तुम्हें उस छ्होटे से कमरे के आगे से गुज़रना होगा, वो कमरा जो तुमने हमारे बच्चे के लिए बनवाया था. वो बच्चा जो कभी हुआ ही नही.


बेडरूम का दरवाज़ा बंद होगा. तुम अपना हाथ दरवाज़े पर रख कर धकेलना चाहोगी और तुम्हें दरवाज़े की गर्मी महसूस होगी. और अब भी तुम्हारे दिमाग़ में ये चल रहा होगा के तुम दरवाज़ा खोल कर अंदर नही देखना चाहती पर फिर भी तुम ऐसा कर रही हो. तुम दरवाज़े के बाहर बने नॉब को अपने हाथ से पकड़ कर घूमाओगी और हिम्मत करते हुए धीरे से दरवाज़ा खॉलॉगी.


भिन-भीनाहट के आवाज़ कितनी तेज़ होगी. इस क़दर तेज़ जैसे कहीं आग लगी हो. और उसके उपेर से कमरे में उठ रही बदबू जैसे कहीं कुच्छ सड़ रहा हो. भिंन-भीनाहट और बदबू दोनो मिलकर ऐसा आलम बना रही होंगी जिसका तुम यूँ अचानक सामना नही कर पावगी.


कोई चीज़ तुम्हारे चेहरे को च्छुकर गुज़र जाएगी, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को. घबरा कर तुम 2 कदम पिछे हो जाओगी और फिर मेरे नाम लेकर पुकरोगी.


कमरे में कोई हलचल नही होगी. पर्दे गिरे हुए होंगे और लाइट्स ऑफ होंगी. उस हल्की सी रोशनी में तुम्हारी आँखों को अड्जस्ट होने में थोड़ा वक़्त लगेगा. और जब दिखाई देना शुरू होगा तब तुम्हें कमरे में भरी मक्खियों का एहसास होगा.

वो भिंन-भिनाने की आवाज़ इन्ही मक्खियो की होगी.


हज़ारों? लाखों? छत से लेकर दीवारों तक, हर चीज़ पर मक्खियाँ.

और नीचे कार्पेट पर भी. उसी कार्पेट पर जिसपे की चीज़ का गाढ़ा सा दाग है.

और बिस्तर पर भी मक्खियाँ. हां वही महेंगा सा बेड जो हम दोनो अपने लिए पसंद करके लाए थे. जिसपर मैने जाने कितनी बार तुमसे मोहब्बत की. जिसपर तुम हर रात मेरी बीवी बनकर मेरे साथ सोई.

क्या ये? कौन है ये?

ये चेहरा या जो कुच्छ भी चेहरे का बचा है अब पहचान में नही आ रहा.
चमड़ी सूज कर इस हद तक पहुँच चुकी है के अब तो बुलबुले से उठ रहे हैं जैसे चूल्‍हे पर रखा कुच्छ गाढ़ा सा पक रहा हो.


चमड़ी अब चमड़ी बची नही. ये तो अब एक कुच्छ काली सी चीज़ बन चुकी है जो धीरे धीरे गल कर जैसे नीचे बिस्तर पर बह रही है, जैसे नीचे ज़मीन पर बह रही है. चमड़ी जो अब धीरे धीरे उस जिस्म से अलग हो रही है जिस जिस्म को ढकना उसका काम था.


जिस्म भी इस तरह से फूल सा गया है जैसे अंदर हवा भर दी गयी हो. धीरे धीरे सड़ रहा जिस्म जिसपर मक्खियाँ जैसे दावत मनाने आई हों.


और यहाँ वहाँ टुकड़ो में है जो कभी मुँह था, जो कभी नाक थी, जो कभी कान थे.


उस इंसान शरीर जैसी चीज़ की कलाईयों पर काटने का निशान है. खून से सना चाकू अब भी वहीं पड़ा होगा जहाँ वो हाथ से छूट कर गिरा था


दोनो हाथ और बाहें जो मक्खियों से पूरी तरह ढके हुए होंगे इस तरह फैले हैं जैसे किसी को गले लगा लेना चाहते हों.


हर तरफ और हर जगह गाढ़े काले पड़ चुके खून के धब्बे हैं. लाश के कपड़ो, चादर और नीचे कार्पेट पर.

बदबू बहुत ज़्यादा है. सड़ने की बदबू जो कमरे की हवा को पूरी तरह गंदा कर चुकी है पर फिर भी तुम पलट नही पओगि. जिस चीज़ ने तुम्हें पकड़ कर कमरे में थाम रखा होगा वो तुम्हें इतनी आसानी से छ्चोड़ेगी नही.


पूरा कमरा उस वक़्त जैसे एक खुला पड़ा ज़ख़्म होगा. तुम्हारा पति मरा नही है बस एक दूसरी दुनिया में चला गया है जहाँ से वो हमेशा तुम्हें देख सकेगा, अपनी बीवी की तरह. क्यूंकी वो अपनी ज़िंदगी में तुमसे कभी अलग हुआ ही नही, उसने कभी तुमसे अपना रिश्ता तोड़ा ही नही. वो तो जिया भी तुम्हारे इश्क़ में, तुम्हारा पति बनकर और मरा भी तुम्हारे इश्क़ में तुम्हारा पति कहलाते हुए.


हवा में उड़ रही हज़ारों लाखों आँखें तुम्हारे पति की ही हैं जो तुम्हें देख रही है, ये हवा में फेली अजीब सी भिन्न भिन्न की आवाज़ तुम्हारे पति की ही है जो तुमसे बात करना चाह रही है, कुच्छ गिला कोई शिकवा करना चाह रही है.


मक्खियाँ तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को च्छुकर गुज़र रही है जैसे आखरी बार तुम्हारा पति तुम्हें छुना चाह रहा हो. तुम हाथ हिलाती उन्हें अपने सामने से हटाओगी और धीमे कदमों से बिस्तर पर पड़ी लाश की तरफ बढ़ोगी. लाश के पास बिस्तर पर एक काग़ज़ का टुकड़ा पड़ा होगा जो तुम उठाकर पढ़ोगी.



गम मौत का नही है,
गम ये है के आखरी वक़्त भी,
तू मेरे घर नही है....

निचोड़ अपनी आँखों को,
के दो आँसू टपकें,
और कुच्छ तो मेरी लाश को हुस्न मिले,

डाल दे अपने आँचल का टुकड़ा,
के मेरी मय्यत पर चादर नही है .......
दोस्तो कैसी लगी एक प्यार करने वाले पति की कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त





AATH DIN--3

gataank se aage..............

Par nahi. Aisa kuchh nahi hoga. Locks ab bhi vahi hain aur chaabhi bhi. Tum chaabhi ghumaogi aur darwaza khul jaayega.


Tum ghar ke bade se bhaari darwaze ko khol kar andar aaogi. Pushing open the door. Bada bhaari sa darwaza jis par kaale rang ka paint hai aur tumhare panje ka nishan chhapa hua hai.

Andar aate hue tum yahi ummeed karogi ke ghar ke andar vaisi hi smell hogi jaise tab hoti thi jab ye ghar tumhara tha. Tum ummeed kar rahi hogi ke andar A.C. on hoga aur ek thandi hawa tumhare chehre par lagegi jo tumhein bahar ki garmi se bachayegi. Par nahi. Na toh thandi hawa hogi aur na hi vo khushbu jo is ghar
mein tumhare hone se hoti thi.


Ghar ke andar ki hawal garam hogi vaisi hi jaisi ke bahar ki hawa hai. Balki usse bhi buri kyunki andar ki band hawa mein ek ajeeb si badbu hogi ho ghar mein ghuste hi tumhare chehre par thappad ki tarah lagegi.


Ghabra kar tum ek baar phir mera naam pukarogi.


Tumhari aawaz khud tumhare hi kaano ko kitni kamzor aur pareshan si lagegi. Aur tum ghar ke andar se uth rahi smell ki vajah se phir ek baar apni naak sikod logi. Theek usi tarah jo mujhe bahut pasand aaya karta tha.


Pareshan hokar tum ghar ke andar se uth rahi smell se bachne ke liye living room ki khidki kholne ki koshish karogi.


Mujhe maaf kar do please.

Main ab ek ghante se zyada ke liye vaapis nahi aa sakti. Kabhi nahin.

Ye shayad meri hi galti thi. Mujhe tumse shaadi nahi karni chahiye thi

Mujhe pata hona chahiye tha ke ham dono galti kar rahe hain.

Haan maine apne gharwalo ke kehne par tumse shaadi ki thi.

Unke dabav mein aakar.

Vo kehte the ke tum ek bahut bade professor ho aur tumhare saath mera future safe and secure hoga.

Maine tumhein pyaar karne ki bahut koshish ki. Bahut chaha ke tumhari biwi ban sakun, sirf jism se nahi balki dil se bhi.

Main sirf apna saman lene aaoongi. Aur jo main nahi le ja sakti vo toh kisi ko de dena ya phenk dena.

Tum meri zindagi mein pehle ladke the. Tumse pehle main kisi ladke ko nahi jaanti thi. Agar jaanti hoti toh shayad .....

Nahi maine tumse kabhi pyaar nahi kiya, kabhi kar hi nahi paayi. Apna jism toh tumhein de diya par dil nahi de paayi aur kabhi de bhi nahi paoongi.


Tum ek baar phir mera naam pukarogi. Puchhogi ke kya main uper ke kamre mein hoon? Tumhara dil tumhein fauran palat jaane ko keh raha hoga. Bhaag jaane ko keh raha hoga.


Phir bhi tum apne dil ki baat na sunte hue sidhiyan chadhti uper ke kamre ki taraf aaogi.



Teri yaadon ke jo aakhri the nishan,
Dil tadapta raha, ham mitate rahe.

Khat likhe the jo tumne kabhi pyaar mein,
Unko padhte rahe aur jalate rahe.....

Dhadakte dil ke saath tum sidhiyan chadhti uper aaogi. Sidhiyon par ab bhi vahi carpet hoga jo tum pasand karke laayi thi. Jiske rang ko lekar ham dono mein kaafi behas hui thi. Sidhiyon ke saath bani railing ka sahar liye tum uper ko chadhti aaogi, jaise koi need mein chal raha ho.


Uper aate hue pata nahi tumhare dil mein kaun si feeling hogi? Guilt? Afsos? Dukh? Darr? Aazadi?

Ya tum sirf ye soch rahi hogi ke uper tumhein kya milne wala hai? Ya ye ke kyunki tum ab tak meri biwi ho toh tumhara farz banta hai ke ek baar uper aakar dekho?
Tumhare chehre par tumhari vo cute si smile hogi is baat ka mujhe poora yakeen hai. Vahi smile jiska main aaj bhi deewana hoon par fark sirf itna hoga ke tab vo smile nakli hogi, ye sochkar ke agar main tumhein uper mila toh tum muskura kar mujhe dekho.


Tum ghabra rahi hongi. Shayad tumhein halke se chakkar bhi aa rahe hon. Dil zor se dhadak raha hoga aur khoon ka bahav dimaag ki taraf zyada badh jaayega. Jaise jaise darte hue tum seedhiyan chadhogi vaise vaise kabhi tumhari aankhon ke aage roshni hogi toh kabhi andhera sa.


Sidhiyan chadkar tum ek pal ke liye rukogi aur ek gehri saans logi. Par saans zyada lambi aur gehri le nahi paogi. Kyun ghar mein neeche aa rahi smell yahan aur bhi zyada tez hogi. Garmi ki ghutan se bhari ek ajeeb se tez smell. Tumhara dam ghutne lagega aur shayad tumhein ulti bhi aane ko ho par tum palat nahi sakti. Vaapis nahi ja sakti. Tumhein bedroom ka darwaza khol kar andar dekhna hi padega.



Ishq ko dard-e-sar kehne walo suno,
Kuchh bhi ho hamne ye dard-e-sar le liya,
Vo nigahon se bachkar kahan jaayenge,
Ab toh unke mohalle mein ghar le liya.

Aaye ban thanke shehar-e-khamoshi mein vo,
Kabr dekhi jo meri toh kehne lage,
Arrey aaj itni toh iski tarakki hui,
Ek beghar ne achha sa ghar le liya.



Aur hamare bedroom tak aane se pehle tumhein us chhote se kamre ke aage se guzarne hoga, vo kamra jo tumne hamare bachche ke liye banvaya tha. Vo bachcha jo kabhi hua hi nahi.


Bedroom ka darwaza band hoga. Tum apna haath darwaze par rakh kar dhakelna chahogi aur tumhein darwaze ki garmi mehsoos hogi. Aur ab bhi tumhare dimag mein ye chal raha hoga ke tum darwaza khol kar andar nahi dekhna chahti par phir bhi tum aisa kar rahi ho. Tum darwaze ke bahar bane knob ko apne haath se pakad kar ghumaogi aur himmat karte hue dheere se darwaza khologi.


Bhin-bhinahat ke aawaz kitni tez hogi. Is qadar tez jaise kahin aag lagi ho. Aur uske uper se kamre mein uth rahi badbu jaise kahin kuchh sad raha ho. Bhin-bhinahat aur badbu dono milkar aisa aalam bana rahi hongi jiska tum yun achanak samna nahi kar paogi.


Koi cheez tumhare chehre ko chhukar guzar jaayegi, tumhari aankhon ko, tumhare honthon ko. Ghabra kar tum 2 kadam pichhe ho jaogi aur phir mere naam lekar pukarogi.


Kamre mein koi halchal nahi hogi. Parde gire hue honge aur lights off hongi. Us halki si roshni mein tumhari aankhon ko adjust hone mein thoda waqt lagega. Aur jal dikhai dena shuru hoga tab tumhein kamre mein bhari makkhiyon ka ehsaas hoga.

Vo bhin-bhinane ki aawaz inhi makkhiyn ki hogi.


Hazaron? Lakhon? Chhat se lekar deewaron tak, har cheez par makkhiyan.

Aur neeche carpet par bhi. Usi carpet par jispe ki cheez ka gadha sa daagh hai.

Aur bistar par bhi makkhiyan. Haan vahi mehenga sa bed jo ham dono apne liye pasand karke laaye the. Jispar maine jaane kitni baar tumse mohabbat ki. Jispar tum har raat meri biwi bankar mere saath soyi.

Kya ye? Kaun hai ye?

Ye chehra ya jo kuchh bhi chehre ka bacha hai ab pehchan mein nahi aa raha.
Chamdi sooj kar is hadh tak pahunch chuki hai ke ab toh bulbule se uth rahe hain jaise chulhe par rakha kuchh gaadha sa pak raha ho.


Chamdi ab chamdi bachi nahi. Ye toh ab ek kuchh kaali si cheez ban chuki hai jo dheere dheere gal kar jaise neeche bistar par beh rahi hai, jaise neeche zameen par beh rahi hai. Chamdi jo ab dheere dheere us jism se alag ho rahi hai jis jism ko dhaka uska kaam tha.


Jism bhi is tarah se phool sa gaya hai jaise andar hawa bhar di gayi ho. Dheere dheere sad raha jism jispar makkhiyan jaise dawat manane aayi hon.


Aur yahan vahan tukdo mein hai jo kabhi munh tha, jo kabhi naak thi, jo kabhi kaan the.


Us insaan shareer jaisi cheez ki kalaiyon par katne ka nishan hai. Khoon se sana chaaku ab bhi vahin pada hoga jahan vo haath se chhut kar gira tha


Dono haath aur baahen jo makkhiyon se poori tarah dhake hue honge is tarah phele hain jaise kisi ko gale laga lena chahte hon.


Har taraf aur har jagah gaadhe kaale pad chuke khoon ke dhabbe hain. Laash ke kapdo, chadar aur neeche carpet par.

Badbu bahut zyada hai. Sadne ki badbu jo kamre ki hawa ko poori tarah ganda kar chuki hai par phir bhi tum palat nahi paogi. Jis cheez ne tumhein pakad kar kamre mein thaam rakha hoga vo tumhein itni aasani se chhodegi nahi.


Poora kamra us waqt jaise ek khula pada zakhm hoga. Tumhara pati mara nahi hai bas ek doosri duniya mein chala gaya hai jahan se vo hamesha tumhein dekh sakega, apni biwi ki tarah. Kyunki vo apni zindagi mein tumse kabhi alag hua hi nahi, usne kabhi tumse apna rishta toda hi nahi. Vo toh jiya bhi tumhare ishq mein, tumara pati bankar aur mara bhi tumhara ishq mein tumhara pati kehlate hue.


Hawa mein ud rahi hazaron lakhon aankhen tumhare pati ki hi hain jo tumhein dekh rahi hai, ye hawa mein pheli ajeeb si bhinn bhinn ki aawaz tumhare pati ki hi hai jo tumse baat karna chah rahi hai, kuchh gila koi shikva karna chah rahi hai.


Makkhiyan tumhare chehre ko, tumhari aankhon ko, tumhare honthon ko chhukar guzar rahi hai jaise aakhri baar tumhara pati tumhein chhuna chah raha ho. Tum haath hilati unhein apne saamne se hataogi aur dheeme kadmon se bistar par padi laash ki taraf badhogi. Laash ke paas bistar par ek kagaz ka tukda pada hoga jo tum uthakar padhogi.



Gham maut ka nahi hai,
Gham ye hai ke aakhri waqt bhi,
Tu mere ghar nahi hai....

Nichod apni aankhon ko,
Ke do aansoo tapken,
Aur kuchh toh meri laash ko husn mile,

Daal de apne aanchal ka tukda,
Ke meri mayyat par chadar nahi hai .......

samaapt




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