Thursday, September 29, 2011

मां दुर्गा की आराधना से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

मां दुर्गा की आराधना से पूरी होती हैं मनोकामनाएं
बुधवार से नवरात्रि शुरु हो चुकी है. इन नौ दिनों में माता दुर्गा की उपासना विधि-विधान से करने पर माता अपने भक्तों को हर सुख प्रदान करती हैं. मार्कण्डेय पुराण में इसका उल्लेख मिलता है.
नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है. इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है.
पहले तीन दिन माता पार्वती के तीन स्वरुपों, अगले तीन दिन माता लक्ष्मी स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है.
प्रथम दुर्गा: श्री शैलपुत्री
आदिशक्ति श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं. पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं. नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है. इनके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है जिससे साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां मिलती हैं.

द्वितीय दुर्गा: श्री ब्रह्मचारिणी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं. यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है. इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी. अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं. नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है. इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्धि होती है तथा मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता.

तृतीय दुर्गा: श्री चंद्रघंटा
आदिशक्ति श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है. इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है. इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. नवरात्रि के तृतीय दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है. इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.

चतुर्थ दुर्गा: श्री कूष्मांडा
आदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं. अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है. नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है.
श्री कूष्मांडा के पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है.

पंचम दुर्गा: श्री स्कंदमाता
आदिशक्ति श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं. श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है. नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है. इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा मृत्युलोक में ही साधक को परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वंयमेव सुलभ हो जाता है.

षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं. नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है. श्री कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं.

सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रि
आदिशक्ति श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं. ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं. नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है.
इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए. श्री कालरात्रि की साधना से साधक को भानुचक्र जाग्रति की सिद्धियां स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं.

अष्टम दुर्गा : श्री महागौरी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं. इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं. नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन और अर्चन किया जाता है. इन दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र (उर्ध्व ललाट) में स्थिर करके साधना करनी चाहिए. श्री महागौरी की आराधना से सोम चक्र जाग्रति की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं.

नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री
आदिशक्ति श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं. ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं. नवरात्रि के नवम् दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है. इस दिन साधक को अपना चित्त निर्वाण चक्र (मध्य कपाल) में स्थिर कर अपनी साधना करनी चाहिए. श्री सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता.

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