Sunday, October 31, 2010

यह किसका लहू है

यह किसका लहू है
(जााज़यों के विद्रोह 1946 ई.)
ऐ रहबर देश और जनता जराआँखें तो उठा नज़रें तो मिला
कुछ हम भी सुनें, हमको भी बतायह किसका लहू है कौन मरा
धरती की स्लगती छाती के बेचैन शरारती पूछते हैंतुम लोग जिन्हें अपना न सके वे खून के धारा पूछते हैं
सड़कों की ज़बां चलाती है, वािगर्के किनारे पूछते हैं
यह किसका लहू है कौन मराऐ रहबर देश और कौम बतायह किसका लहू है कौन मरा
वह कौन सा भावना था जिससे फ़र्सोदोह प्रणाली आभत मिलाझुलस गए वीरां गुलशन में इक आस उम्मीद फूल खिलाजनता का लहू सेना से मिला, सेना का ख़ूँ जनता से मिला
ऐ रहबर देश और कौम बतायह किसका लहू है कौन मराऐ रहबर देश और कौम बता
क्या जनता देश की जय है गिर मरते हुए राही ग़िंडे थे
जो देश का ध्वज ले के उठे वह शोख सिपाही ग़िंडे थेजो बार गुलामी सहर न सके, वह अपराधी शाही ग़िंडे थे
यह किसका लहू है कौन मराऐ रहबर देश और कौम बता!
यह किसका लहू है कौन मरा
ए संकल्प फ़ना करने वालो! संदेश बक़ा करने वालो!अब आग से क्यों कतरा हो? आग की लपटों को हवा देने वालो
तूफान से अब डरते क्यों हो? मूजूो की सदा देने वालो!
क्या भूल गए अपना नाराऐ रहबर देश और कौम बता!यह किसका लहू है कौन मरा
समझौते की उम्मीद सही, सरकार के वादे ठीक सहीहां अभ्यास सितम कहानी सही, हाँ प्यार के वादे ठीक सहीअपनों के कलएजे मत छेद ागीारि के वादे ठीक सही
लोकतांत्रिक से यूँ दामन न छुड़ाऐ रहबर मिल व राष्ट्र बतायह किसका लहू है कौन मरा
हम ठान चुके हैं अब जी में हर ज़ालिम से ंकराएँ हैं
तुम समझौते का पहला रखो, हम आगे बढ़ते जाएंगेहर मंजिल स्वतंत्रता प्रकार, हर मंजिल पर दोहराएँ हैं
यह किसका लहू है कौन मराऐ रहबर देश और कौम बता!
यह किसका लहू है कौन मरा

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