Friday, May 22, 2009
माँ मेरी लोरी की पोटली,
माँ मेरी लोरी की पोटली,
गुड़ जैसी!!
मिट्टी पे दूब-सी,
कुहे में धूप-सी,
माँ की जाँ है,
रातों में रोशनी,
ख्वाबों में चाशनी,
माँ तो माँ है,
ममता माँ की, नैया की नोंक-सी,
छलके दिल से, पत्तों में झोंक-सी।
माँ मेरी पूजा की आरती,
घी तुलसी!!
आँखों की नींद-सी,
हिंदी-सी , हिंद-सी,
माँ की जाँ है,
चक्की की कील है,
मांझा है, ढील है,
माँ तो माँ है।
चढती संझा, चुल्हे की धाह है,
उठती सुबह,फूर्त्ति की थाह है।
माँ मेरी भादो की दुपहरी,
सौंधी-सी!
चाँदी के चाँद-सी,
माथे पे माँग-सी,
माँ की जाँ है,
बेटों की जिद्द है,
बेटी की रीढ है,
माँ तो माँ है।
भटका दर-दर, शहरों मे जब कभी,
छत से तकती, माँ की दुआ दिखी।
माँ मेरी भोली सी मालिनी
आँगन की!
अपनों की जीत में,
बरसों की रीत में,
माँ की जाँ है,
प्यारी-सी ओट दे,
थामे है चोट से,
माँ तो माँ है,
चंपई दिन में,छाया-सी साथ है,
मन की मटकी, मैया के हाथ है।
माँ मेरी थोड़ी-सी बावली,
रूत जैसी!
मेरी हीं साँस में,
सुरमई फाँस में,
माँ की जाँ है,
रिश्तों की डोर है,
हल्की-सी भोर है,
माँ तो माँ है,
रब की रब है, काबा है,धाम है,
झुकता रब भी, माँ ऎसा नाम है।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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