Sunday, March 21, 2010

अजब तेरी अदा देखी.

करम देखे ,वफ़ा देखी, सितम देखे , जफ़ा देखी
अजब अंदाज़ थे तेरे अजब तेरी अदा देखी.

न जाने कब तुझे पाया न जाने कब तुझे खोया
न हमने इब्तिदा देखी न हमने इंतिहा देखी.

तुम्हारी बज़्म मे जब हम न थे तो क्या कहें तुम से
अजब सूना समां देखा अजब सू्नी फ़ज़ा देखी.

इधर हम सर-ब-सिजदा थे तुम्हारी राह मे जानां
उधर गै़रों की आँखों मे हवस देखी हवा देखी.

अजब बुत है कि हर जानिब हज़ारों चाँद रौशन हैं
ख़ुदा शाहिद है हम ने आज तनवीरे-ख़दा देखी

फ़ना का वक्त था फिर भी बका़ के गीत गाता था
तुम्हारे कै़स कि कल शब अनोखी ही अदा देखी.

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