Monday, March 8, 2010

काश मिला होता ये रंग उनकी महकती मेहँदी के साथ

है जो गम मिला शायद है मिला ज़िन्दगी के साथ
वरना ऐसी कोई अनबन न थी कभी ख़ुशी के साथ

रो पड़ा है दर्द भी देखकर ज़ख्मी सीना मेरा ए खुदा
मिला यूं था कोई हमसे गले कभी दोस्ती के साथ

गुलाब से सुर्ख होंठों पर बाबुल से तेज़ हर्फ़ तौबा
बातें करना उनका रह गया मुझसे बेरुखी के साथ

न कोई रहनुमा न मंजिल न रास्ता ही था क्या कहें
तय किया उम्र का तन्हा सफ़र हमने आवारगी के साथ

हालात वो नहीं थे के दवा से होता इलाजे गम दोस्तों
तो बीतने लगीं हैं शामे साकी और मैक़शी के साथ

है चाँद अब भी मुझसे सुना है नाराज़ बहुत इनदिनों
पहले कभी रही थी जो रगबत हमे चांदनी के साथ

टूटे हुए ख्वाब लिए बैठे हैं देहलीज़ पर ज़िन्दगी की
क्या करता है ज़ुल्म इश्क यही हर किसी के साथ

बहा भी लहू आँखों से तो बेमकसद ही बहा शकील
काश मिला होता ये रंग उनकी महकती मेहँदी के साथ

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