हम यूँ महदूद हो लिये घर में
हँस लिये घर में, रो लिये घर में
जाने किस फूल की तमन्ना थी
ख़ार ही ख़ार बो लिये घर में
जिससे हासिल सबक़ करें बच्चे
इस सलीक़े से बोलिए घर में
वो समझते हैं दिन अमन के हैं
एक मुद्दत जो सो लिये घर में
चारागर पूछता सबब जिनके
हमने वो ज़ख़्म धो लिये घर में
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