अँधेरों में उजाले चाहते हैं
पेट भूखे निवाले चाहते हैं।
प्यास से छटपटाती रूह तन्हा
साथ के पीने वाले चाहते हैं।
सर्द रातों के झेलते नश्तर
गर्म मोटे दुशाले चाहते हैं।
बहुत भारी हैं दर्द के किस्से
हल्के-फुल्के रिसाले चाहते हैं।
झुठ के रंग में रंगी दुनिया
सच्चाई की मिसालें चाहते हैं।
बड़ी कमजोर नस्ल आई है
मौत वाले जियाले चाहते हैं।
यह तरक्की पसंद महफिल है
दिल की जुबाँ पे ताले चाहते हैं।
बेजुबान
सोचता था कर नहीं पाया।
चैन से वह मर नहीं पाया।
जेब खाली उधारी बेइन्तेहा
देनदारी भर नहीं पाया।
महीनों से कुछ उदास उदास था
कुछ दिलासा पर नहीं पाया।
सालोंसाल भटकती उसकी ख्वाहिशें
एक का भी घर नहीं पाया।
पसीने से खून से जिसको गढ़ा
उस सड़क गुजर नहीं पाया।
भूख से रोते हुए कमजोर को
मेहनती नौकर नहीं पाया।
उम्रभर कपड़े फटे पहना रहा
मौत पर चादर नहीं पाया।
तोहमतें झूठी लगाते रहे सब
बेजुबान मुकर नहीं पाया।
सोने का हिरन
सोने का हिरन लुभाया है
बेचारा दौड़ लगाया है।
हर बार निशाना चूक गया
उसने फिर तीर चलाया है।
शहरी आवारागर्दी को
देहाती मन ललचाया है।
एड़ी चोटी का जोर लगा
भूखे को पसीना आया है।
दो रोटी रोज जुटाने तक
वह क्या क्या स्वांग रचाया है।
यह आग नहीं बुझ पाएगी
कुदरत ने इसे जलाया है।
खोते खोते खो डालोगे
पाते पाते जो पाया है।
वह ढूँढ़ रहा कब से उसको
जो उसका ही हमसाया है।
देखो देखो सच्चाई को
सच में ही झूठ समाया है।
नई आग
आग लगी है पानी लाओ
कुसमय घोर नहीं चिल्लाओ।
चिड़िया चारा चुगने बैठी
छत से उसको नहीं उड़ाओ।
आने जाने वाले दर्शक
मत इनसे उम्मीद लगाओ।
जिसका दर्द वही जाने है
खुद का घाव स्वयं सहलाओ।
हवा बदल जाती है अक्सर
जैसी राग उसी में गाओ ।
लोग दोमुँहे साँप हो गए
ठोंक बजा कर बात उठाओ
खलनायक नायक बन बैठे
कोई नया मसीहा लाओ।
अँधियारे की आदत डालो
या फिर नई आग धधकाओ।
खजाने
जब जब भी नाव डूबी थे सामने किनारे।
वक्त की ये गर्दिश, कि तुमने तीर मारे।
खूबियाँ उसी को उसको ही क्या गिनाना
मसीहा को अक्सर मिलते नहीं सहारे।
इर्द-गिर्द के कुछ हैं क्षण दगा दिया करते
बदनाम हुआ करते हैं मुफ्त में सितारे।
असलियत को हमने इस नजर कहाँ देखा
मीठी छुरी से हँसकर वह खाल भी उतारे।
दुनिया की बादशाहत मजूर नहीं हमको
गलियों की खाक जन्नत के कुदरती नजारे।
रातदिन बराबर दौलत की गुलामी में
है फलसफा पुराना जहरों को जहर मारे।
जिसकी सदाएँ सुनकर आता है मस्त मौसम
उसके लिए उतरती हैं मौसमी बहारें।
उस रास्ते पर चलकर देखो जो जिंदगानी
लाती है क्या खजाने करती है क्या इशारे।
झमेले
खत्म ही होते नहीं हैं झमेले संसार के
रोज कोई नई आफत झेलते मन मार के।
चाहते तो थे हँसती खिलखिलाती हर नजर
पर झुलसने लग पड़े हैं हाथ-पैर बहार के।
दाँत काटी रोटियों का एक सपना और था
क्या पता था और ही दस्तूर हैं व्यापार के
ढह गए हैं ख्वाब ऊँचे जख्म गहरा लाजिमी
वक्त लगता है सुधरने में गिरी मीनार के
चंद बातें काम की बकवास है बाकी अदब
आपसी रंजिश जगाते फलसफे बेकार के।
कोई सिर मुंडवा रहा है कोई रखता है जटा
रास्ते सबके अलग उस एक दर-दरबार के।
एक अंधा और बहरा खुद है तो सामने़
दरिन्दों की हिफाजत में फैसले सरकार के।
लुट रही कलियों की अस्मत बागवाँ के सामने
कमीनो ने कर लिए सौदे गुलो-गुलजार के।
माहौल
होश में दुनिया नहीं काबिल है रहने के।
दो घूँट पिला कुछ तो बहाने बनें सहने के।
हर आदमी अच्छा, तो बुरा कैसे जमाना है
बेदर्दियों के किस्से लाखों तो हैं कहने के।
इंसानियत की बातें लगने लगीं पुरानी
माकूल हैं मौसम भी ईमान के ढहने के।
धुआँ उगल रहा है नदियों का पानी पीकर
माहौल ना रहे अब दरियाओं के बहने के।
बिकने लगी मोहब्बत जलने लगीं दुलहिनें
करने लगे इशारे अब ठूँठ भी गहने के।
मक्कारियाँ हमारी हम फिर न मानेंगे
है वक़्त अभी बाकी इंसानों के ठहने के।
करतबों का पुलिंदा चमका तो दिया सब कुछ
कुछ ख़्वाब अधूरे रहे इस सदी के चहने के।
साकी
साकी ने जाम भर दिया और मैंने पी लिया
खुशहाल था, उसका करम कुछ और जी लिया।
गुलशन सजा दिए मेरे आने की खुशी में
जश्नेबहार करके मेरा नाम ही लिया।।
मनमानियों के दौर से बेकार हुई किस्मत
राहेसुकून भी किया इलजाम भी लिया।
दरवेश मौसमों के इखलाक में खड़े हैं
होम की खुशबू लिए जंगल की तीलियाँ।
जर्रे को चमन करने का हुनर आसमानी
सन्नाटे बना डाले और होंठ सी लिया।
परबत की चोटियों से लहराते समुन्दर तक
रंगीन रोशनियाँ कमाल की लिया।
फुटे बदन के जादू जब हुस्न कसमसाया
गुज़री थीं निगाहों के कमसिन छबीलियाँ।
जारी है
फर्जी सेना नकली सैनिक और लड़ाई जारी है
चोरी सीनाजोरी की बेशर्म ढिठाई है।
देखो-देखो कितनी मोहक नीति बनाई राजा ने
भोगविलास और अय्याशी की अगुआई जारी है।
विद्वानों की सभा सजी है मोटे ग्रंथ विचारों के
सच का कुछ अनुमान नहीं है कलम घिसाई जारी है।
मानवहित पर बहस चल रही संसद पखवाड़े से
और सदन में मारामारी-हाथापाई जारी है।
मंत्र नहीं जाने बिच्छू का हाँथ साँप के बिल में दे
जहर उगलती राजनीति की क्या कुटिलाई जारी है।
लड्डू खाकर जनता खुश है राजा खुश है सत्ता से
घूँस दलाली वाली रबड़ी और मलाई जारी है।
चोर फैसला लिखने वाले डाकू की निगरानी में
मौत किसी की भी लिखवा लो सुलह सफाई जारी है।
गधा पंजीरी खाए जमकर बैलों के दरबार सजे
भूखी लड़पे गाय बेचारी घास चराई जारी है।
कुर्सी नहीं बपौती लेकिन कितनी अच्छी लगती है
छँटे हुए मक्कारों वाली टाँग खिंचाई जारी है।
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