गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार1 चले
चले भी आओ कि गुलशन2 का कारोबार चले
क़फ़स3 उदास है यारो सबा4 से कुछ तो कहो
कहीं तो बहरे-ख़ुदा5 आज ज़िक्रे-यार चले
कभी तो सुबह तेरे कुंजे-लब6 से हो आग़ाज7
कभी तो शब सरे-काकुल से मुश्कबार8 चले
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़मगुसार9 चले
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शबे-हिज्राँ10
हमारे अश्क तेरी आक़बत11 सँवार चले
हुज़ूरे-यार हुई दफ़्तरे-जुनूँ की तलब
गिरह में लेके गिरेबाँ का तार-तार चले
मुक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कू-ए-यार12 से निकले तो सू-ए-यार13 चले
2-तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
हदीसे-यार1 के उन्वाँ2 निखरने लगते हैं
तो हर हरीम3 में गेसू सँवरने लगते हैं
हर अजनबी हमें मजरम4 दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं
सबा से करते हैं ग़ुरबत-नसीब5 ज़िक्रे-वतन
वो चश्मे-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ो-लब6 की बख़ियागरी7
फ़िज़ा में और भी नग़मे बिखरने लगते हैं
दरे-क़फ़स8 पे अँधेरे की मुहर लगती है
तो ‘फ़ैज़’ दिल में सितारे उतरने लगते हैं
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