Tuesday, March 25, 2008

ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त

ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ

सुबह पे जिस तरह, शाम का हो खुमार - (2)
ज़ुल्फों में एक चेहरा, कुछ ज़ाहिर कुछ निहार

धड़कनों ने सुनी, एक सदा पाँव की - (2)
और दिल पे लहराई, आँचल की छाँव सी

मिल ही जाती हो तुम, मुझको हर मोड़ पे - (2)
चल देती हो कितने, अफसाने छोड़ के

फिर पुकारो मुझे, फिर मेरा नाम लो - (2)
गिरता हूँ फिर अपनी, बाँहों में थाम लो।

तुम रहे साथ मेरे..
तुम रहे साथ मेरे, जब मैं खो गई।

तुम रहे साथ मेरे, जब हर शै पराई हो गई

तुम रहे साथ मेरे, घनघोर बारिश में

तुम रहे साथ मेरे, दर्द की खलिश में

तुम रहे साथ मेरे, जख्मों पर मरहम की तरह

तुम रहे साथ मेरे, मेरे हमदम की तरह

तुम रहे साथ मेरे, एक देवदूत की तरह

तुम रहे साथ मेरे, प्रेम के वजूद की तरह...।

किसी ने उसको समझाया तो होता
किसी ने उसको समझाया तो होता,
कोई याँ तक उसे लाया तो होता।

मज़ा रखता है ज़ख्मे-ख़ंजरे-इश्क,
कभी ऐ बुल-हवस खाया तो होता।

यह नख़्ले-आह, होता बेद ही काश,
न होता तो समर, साया तो होता।

जो कुछ होता सो होता तूने तक़दीर,
वहाँ तक मुझको पहुँचाया तो होता।

किया किस जुर्म में तूने मुझे क़त्ल,
ज़रा तू दिल में शर्माया तो होता।

दिल उसकी जुल्फ़ में उलझा है कब से,
'ज़फ़र' इक रोज़ सुलझाया तो होता।

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए,
जोशे-क़दह से बज़्म, चिराग़ाँ किए हुए।

फिर बज़्म-ए-एहतियात के रुकने लगा है दम,
बरसों हुए हैं, चाक गरेबाँ किए हुए।

दिल फिर तबाफ़े-कूए-मलामत को जाए है,
पिन्दार का सनम-कदा वीराँ किए हुए।

माँगे है फिर किसी को लबे-बाम पर हवस,
जुल्फ़ें-नियाह रुख पे परेशाँ किए हुए।

इक नौ-बहारे-नाज़ को ताके है फिर निगाह,
चेहरा फ़रोग़े मय से गुलिस्तां किए हुए।

फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें,
सर ज़ेरे-बारे-मिन्नतें-दरबाँ किए हुए।

जी ढ़ूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात-दिन,
बैठे रहें तसव्‍वुर-ए-जानाँ किए हुए।

'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि हम जोशे-अश्क से,
बैठे हैं फिर तहैया-ए-तूफाँ किए हुए।

हम परेशाँ होते गए
तेरा गाफिल अदा से देखना,
मिज्शगाँ झुका के देखना,
क्या-क्या नियाज-ए-इश्क के हाय,
गुमाँ होते गए।

दिल-ओ-जान तुमको किया,
हमजबां तुमको किया एजाज लगता था,
जो तुम संग-ए-आश्ताँ होते गए।

शिरीन तेरा हर लब्ज है,
दिल्सिताँ कर लब्ज है,
पैमान-ए-वफा तेरें हैं,
ऐसे हम सरगिराँ होते गए।

हर लालाकारी खो गई दिल की,
खुमारी खो गई,
बस तू ही तू है हर तलक,
दर सब निहाँ होते गए।

तू परीरूख हम कहाँ,
तू रंग-ओ-गुल और हम कहाँ,
बरू तेरे आए जो,
हम बस पशेमाँ होते गए।

तगाफुल वो करना देखकर,
होश गुल वो करना देखकर
राज-ए-इश्क की परदादारी
हम परेशाँ होते गए।

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