तेरे इश्क़ में पार्ट--3 Hindi Love Story
गतान्क से आगे.................
"ओफहो. मौका मिलते ही फिल्मी हीरो की तरह डाइलॉग मारना शुरू कर देते हो. अर्रे फस गयी मैं ऑलरेडी तुमसे, हो चुकी इंप्रेस, पटा लिया तुमने मुझे ऑलरेडी, तुम्ही से करूँगी मैं शादी, अब तो चैन से जीने दो. मेरे कहने का मतलब के कोई ऐसा ख्वाब जो तुमने बचपन से देखा हो. जैसे मेरा ख्वाब है के कहीं समुंदर के किनारे मेरा अपना एक बड़ा सा घर हो जहाँ से मैं रोज़ शाम सूरज को समुंदर में डूबते हुए देखूं"
"वाउ... बीच हाउस हाँ?" आदित्य ने कहा
"हां. मैं चाहती हूँ के रोज़ शाम को मैं बाल्कनी में तुम्हारी बाहों में बैठू और सामने सूरज धीरे धीरे समुंदर में समा रहा हो. मेरा ख्वाब है के मेरा अपना एक घर हो, बड़ा सा, सुंदर सा. मैं हमेशा एक किराए के मकान में रही हूँ. समुंदर किनारे एक बड़ा सा घर और हमारा अपना प्राइवेट बीच, बचपन से हर रात
मैं यही सोचती हुई सोई हूँ"
"प्राइवेट बीच भी?" आदित्या बोला तो तहज़ीब ने खुश होते हुए हां में सर हिला दिया.
"सर?" अचानक रिसेप्षन पर खड़ी लड़की ने आदित्य को पुकारा
"वाउ. अब तो ये भी तुम्हें बुला रही है. शायद इंप्रेस हो गयी" तहज़ीब चहकते हुए बोली
"शट अप" आदित्य ने घूर कर उसकी तरफ देखा और रिसेप्षन पर पहुँचा
"ये आपकी रिश्ते दार हैं?" रिसेप्षन पर खड़ी लड़की ने पुछा
आदित्य ने एक पल के लिए पलट कर तहज़ीब को देखा. वो अपने बालों से खेलती किसी बच्ची की तरह जाने क्या सोच रही थी.
"मेरी बीवी है" पलटकर आदित्य ने जवाब दिया
"ओके तो आप प्लीज़ अंदर जाकर डॉक्टर से मिल लीजिए. उन्होने कहा है के आप अकेले आएँ, मेडम को साथ अंदर ना ले जाएँ. बल्कि डॉक्टर साहब चाहते हैं के आप कोई बहाना बनाकर अंदर जाएँ, बिना आपकी वाइफ को ये बताया के आप
डॉक्टर से मिलने अंदर जा रहे हैं"
"क्यूँ?" आदित्य ने पुछा
"आइ डोंट नो" उस लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा.
आदित्य फिर तहज़ीब के पास आया.
"क्या कह रही है? शादी करना चाहती तुमसे?" तहज़ीब फिर चहकी.
"शट अप. कह रही है के डॉक्टर को 15-20 मिन्स और लगेंगे. तुम बैठो मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हूँ"
कुच्छ देर बाद वो डॉक्टर के साथ अंदर अकेला बैठा था.
"ये कैसे हो सकता है? इट्स इंपॉसिबल"
"आप चाहें सिर तो किसी और डॉक्टर से कन्सल्ट कर सकते हैं पर मुझे यकीन है के सबका जवाब यही होगा. आपकी बीवी के सर पर कुच्छ अरसा पहले चोट लगी थी जिसकी तरफ इन्होने ध्यान नही दिया. धीरे धीरे उनके दिमाग़ में उस जगह एक ब्लड क्लॉट जमा हो गया है जो अब इलाज की हद के बाहर जा चुका है. यही वजह है के उनके सर में दर्द रहता है, चक्कर आते हैं, बेहोश हो जाती हैं" डॉक्टर ने कहा.
"उस रात एक आदमी ने मेरे सर पर किसी चीज़ से वार किया था जिसके बाद मैं बेहोश हो गयी थी. होश आया तो मेरा घर और मेरे माँ बाप भाई, सबको जला दिया गया था. तभी से मेरे सर में हल्की हल्की सी चुभन रहती थी" आदित्य को तहज़ीब की कही बात भी याद आ रही थी.
"कितना वक़्त?" उसने डॉक्टर से पुछा
"ऐसे केसस में शर्तिया तौर कुच्छ कहा नही जा सकता. होने को आज कुच्छ हो जाए पर ज़्यादा से ज़्यादा 6 महीने"
"क्या आप सब मेरी बात से सहमति रखते हैं?" देवराज चतुर्वेदी ने हॉल में मौजूद तकरीबन 100 लोगों से पुछा.
"हाँ हम सब सहमत हैं" जवाब में आवाज़ आई
"क्या तू भी अपने बाप की बात से सहमत है आदित्य?" हॉल में खड़े निखिल ने अपने साथ खड़े आदित्य से पुछा आदित्य ने कोई जवाब नही दिया.
"सालों तक, सालों तक हमने इनका बोझ सहा है, इनके साथ कंधे से कंधा मिलाने की कोशिश की है पर अब और नही. अब हद हो चुकी है" देवराज की आवाज़ फिर गूँजी
"हद हो चुकी है" पीछे पिछे सामने खड़े लोगों ने दोहराया
"ये सब हज़ार साल पहले हमारे देश में आए, हमने दिल से इनका स्वागत किया. अपने यहाँ रहने की जगह दी, खाना दिया, जल दिया, अपनी धरती दी पर बदले में हमें क्या मिला? धोखा?"
"हां हां धोखा" लोगों ने एक जुट कहा
"हां धोखा ही है ये. इन लोगों को क्या हक बनता था के हमारी भूमि के दो टुकड़े करते? उस भूमि पर जो इनके पूर्वजों की थी ही नही? जहाँ ये सब अतिथि के रूप में आए थे? धोखा है ये का इन्होने जिस थाली में खाया
उसी में छेद किया. जिस भूमि पर रहे उसी के 2 टुकड़े कर डाले. एक देश को 2 हिस्सो में बाँट दिया"
"धोखा है ये" भीड़ फिर चिल्लाई
"पर हमने इनकी बात का सम्मान रखा. इन्होने अलग देश चाहा तो हमने खुले दिल से वो भी दिया पर फिर उसके बाद क्या? जो दिया उसमें संतुष्ट ना होकर और की उम्मीद? बार बार हमारे देश पर हमला?"
"धोखा" फिर से आवाज़ गूँजी
"हमने फिर भी बार बार इन लोगों को माफ़ किया. फिर खुले दिल से भाई-चारे की बात की पर फिर भी नही मानते ये? जानते हैं क्यूँ?"
"क्यूँ?" फिर आवाज़ गूँजी
"क्यूंकी धोखा इनकी जात में शामिल है. पर अब और नही. अब हिन्दुस्तान वो बनेगा जो कि उसका नाम है. एक हिंदू राष्ट्र"
"भारत माता की जै" भीड़ एकजुट चिल्लाई
"अगर यहाँ रहना है तो हिंदू बनकर रहना होगा वरना कोई हक नही बनता उन्हें यहाँ रहने का. हम फिर से इस देश को उसका गौरव लौटा कर देंगे. अब वक़्त आ गया है बदले का. हर उस आदमी को इस देश से निकाल देना का जो हिंदुत्व का पालन नही करता. हर उस चीज़ को मिटा देने का जो हिंदू धरम के खिलाफ है. क्या आप सहमत हैं?"
"हां" भीड़ चिल्लाई
"नही" लोगों के बीच से एक और आवाज़ उठी. लोगों ने हैरानी से आवाज़ की तरफ देखना शुरू कर दिया.
"कौन बोला" देवराज ज़ोर से चिल्लाया.
"मैं. आदित्य चतुर्वेदी" भीड़ के बीच से आवाज़ आई. लोग एक तरफ होने लगे और देवराज और आदित्य के बीच से हट गये.
"तुम कुच्छ कहना चाहते हो आदित्य?"
"एक सवाल पुच्छना चाहता हूँ" साथ खड़ा निखिल आदित्य को चुप करने की कोशिश कर रहा था.
"पूछो"
"आप इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. यहाँ रहने वाले सबको हिंदू बनाना चाहते हैं. तो ये बताइए चतुर्वेदी साहब के अगर एक ख़ान अपना धरम छ्चोड़कर हिंदू बनता है तो जात क्या देंगे आप उसको? शर्मा, पांडे या दूबे बनाएँगे या कोई हरिजन बनाएँगे?" आदित्य ने सवाल किया
"कहना क्या चाह रहे हो? कैसा वाहियात सवाल है ये?"
"नही बिल्कुल वाहियात नही है" आदित्य अपनी बात पर डटा रहा "अगर कोई दूसरे धरम का आदमी अपना धरम छ्चोड़ कर हिन्दुत्व में आता है तो जात तो उसको देनी पड़ेगी ना. अब अगर किसी दूसरे धरम के ऊँची जात के आदमी को आपं हिंदू में नीची जात वाला बनाते हैं तो उसके साथ ना-इंसाफी होगी. और अगर आप उसको कोई ऊँची जात देते हैं तो हमारे हरिजन भाइयों के साथ ना-इंसाफी होगी क्यूंकी ऊँची जात पर पहले हक इनका बनता है जो सारी ज़िंदगी से हिंदू रहे हैं. ना कि उसका जो अभी अभी हिंदू बना है"
"चुप हो जाओ" देवराज ज़ोर से गरजा
"क्यूँ चुप हो जाऊं? क्यूंकी आपके पास जवाब नही है इसलिए?"
"आदित्याआआअ"
"आप हिन्दुत्व की बातें कर रहे हैं? एक वेद शास्त्र उठाकर दिखा दीजिए मुझे जो हिंसा का समर्थन करता हो. नही मिलेगा क्यूंकी हिंदू होना भाई-चारे को बढ़ावा देना है. ना की मासूम लोगों की जान लेना, उन्हें मजबूर
करना."
"आदित्याआआअ"
"और हमला तो हम पर चाइना ने भी किया था? क्या करेंगे? चाइना से बदला क्यूँ नही लेते आप? क्यूँ सारे बुद्धिस्त्स को हमारे देश से नही निकाल देते? या क्यूँ उनको भी हिंदू नही बना देते? ख़ास तौर से तब जबके महात्मा बुध तो थे भी हमारे देश से ही"
"चुप हो जाओ आदित्य" देवराज का गुस्सा बढ़ता जा रहा था.
"आदित्य चुप हो जा प्लीज़. मरवाएगा क्या?" निखिल भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था के उसका मुँह बंद कर दे.
"एक पड़ोसी देश के कारनामो का बदला हम अपने उन भाई-बहनो से नही ले सकते जो हमारे अपने हैं. इस देश का एक हिस्सा हैं. इस देश की प्रगती में बराबर के हकदार हैं. इस देश का गौरव जितना हमसे है उतना उनसे भी है"
कहकर आदित्य कमरे से बाहर निकल गया.
"सच?" बिस्तर पर लेटी तहज़ीब ने कमज़ोर आवाज़ में कहा
"हां. मैं सच तुमसे शादी करना चाहता हूँ. करोगी मुझसे शादी?"
"हां" तहज़ीब की आँख से आँसू बह चले "बस ज़रा मेरी तबीयत ठीक हो जाए, फिर हम निकाह कर लेंगे"
"नही" आदित्य फ़ौरन उसका हाथ पकड़कर उसके करीब बिस्तर पर बैठ गया "तुमसे शादी के लिए मैं अब एक पल भी नही रुक सकता. डॉक्टर से मेरी बात हो गयी है. कुच्छ नही हुआ है तुम्हें, बस यूँ ही थोड़ा विराल है. जल्दी
ठीक हो जाओगी पर मैं सोच रहा था के हम शादी कल ही कर लें"
"कल?"
"हां कल. एक काम करते हैं. कल निकाह नही करते. ना मस्जिद, ना मंदिर, ना कोर्ट. कल चर्च में शादी करते हैं"
"चर्च में?" तहज़ीब मुश्किल से बिस्तर पर उठकर बैठ गयी
क्रमशः........................ ...............
TERE ISHQ MEIN paart--3
gataank se aage.................
"Ofho. Mauka milte hi filmi hero ki tarah dialogue marna shuru kar dete ho. Arrey phas gayi main already tumse, ho chuki impress, pata liya tumne mujhe already, tumhi se karungi main shaadi, ab toh chain se jeene do. Mere kehne ka matlab ke koi aisa khwaab jo tumne bachpan se dekha ho. Jaise mera khwaab hai ke kahin samundar ke kinare mera apna ek bada sa ghar ho jahan se main roz shaam sooraj ko samundar mein doobte hue dekhun"
"Wow... beach house haan?" Aditya ne kaha
"Haan. Main chahti hoon ke roz shaam ko main balcony mein tumhari baahon mein bethun aur saamne sooraj dheere dheere samundar mein sama raha hoon. Mera khwaab hai ke mera apna ek ghar ho, bada sa, sundar sa. Main hamesha ek kiraye ke makaan mein rahi hoon. Samundar kinare ek bada sa ghar aur hamara apna private beach, bachpan se har raat
main yahi sochti hui soyi hoon"
"Private beach bhi?" Aditya bola toh Tehzeeb ne khush hote hue haan mein sar hila diya.
"Sir?" Achanak reception par khadi ladki ne Aditya ko pukara
"wOW. Ab toh ye bhi tumhein bula rahi hai. Shayad impress ho gayi" Tehzeeb chehakte hue boli
"Shut up" Aditya ne ghoor kar uski taraf dekha aur Reception par pahuncha
"Ye aapki rishte daar hain?" Reception par khadi ladki ne puchha
Aditya ne ek pal ke liye palat kar Tehzeeb ko dekha. Vo apne baalon se khelti kisi bachchi ki tarah jaane kya soch rahi thi.
"Meri biwi hai" Palatkar Aditya ne jawab diya
"Ok toh aap please andar jakar doctor se mil lijiye. Unhone kaha hai ke aap akele aayen, madam ko saath andar na le jaayen. Balki doctor sahab chahate hain ke aap koi bahana banakar andar jaayen, bina aapki wife ko ye bataya ke aap
doctor se milne andar ja rahe hain"
"Kyun?" Aditya ne puchha
"I dont know" Us ladki ne muskurate hue kaha.
Aditya phir Tehzeeb ke paas aaya.
"Kya keh rahi hai? Shaadi karna chahti tumse?" Tehzeeb phir chehki.
"Shut up. Keh rahi hai ke Doctor ko 15-20 mins aur lagenge. Tum betho main zara bathroom hokar aata hoon"
Kuchh der baad vo Doctor ke saath andar akela betha tha.
"Ye kaise ho sakta hai? Its impossible"
"Aap chahen sir toh kisi aur doctor se consult kar sakte hain par mujhe yakeen hai ke sabka jawab yahi hoga. Aapki biwi ke sar par kuchh arsa pehle chot lagi thi jiski taraf inhone dhyaan nahi diya. Dheere dheere unke dimag mein us jagah ek blood clot jama ho gaya hai jo ab ilaaj ki hadh ke bahar ja chuka hai. Yahi vajah hai ke unke sar mein dard rehta hai, chakkar aate hain, behosh ho jaati hain" Doctor ne kaha.
"Us raat ek aadmi ne mere sar par kisi cheez se vaar kiya tha jiske baad main behosh ho gayi thi. Hosh aaya toh mera ghar aur mere maan baap bhai, sabko jala diya gaya tha. Tabhi se mere sar mein halki halki si chubhan rehti thi" Aditya ko Tehzeeb ki kahi baat bhi yaad aa rahi thi.
"Kitna waqt?" Usne doctor se puchha
"Aise cases mein shartiya taur kuchh kaha nahi ja sakta. Hone ko aaj kuchh ho jaaye par zyada se zyada 6 mahine"
"Kya aap sab meri baat se sehmati rakhte hain?" Devraj Chaturvedi ne hall mein maujood takreeban 100 logon se puchha.
"Haan ham sab sehmat hain" Jawab mein aawaz aayi
"Kya tu bhi apne baap ki baat se sehmat hai Aditya?" Hall mein khade Nikhil ne apne saath khade Aditya se puchhaAditya ne koi jawab nahi diya.
"Saalon tak, saalon tak hamne inka bojh saha hai, inke saath kandhe se kandha milane ki koshish ki hai par ab aur nahi. Ab hadh ho chuki hai" Devraj ki aawaz phir goonji
"Hadh ho chuki hai" Pichhe pichhe saamne khade logon ne dohraya
"Ye sab hazar saal pehle hamare desh mein aaye, hamne dil se inka swagat kiya. Apne yahan rehne ki jagah di, khana diya, jal diya, apni dharti di par badle mein hamen kya mila? Dhokha?"
"Haan haan dhokha" Logon ne ek jut kaha
"Haan dhokha hi hai ye. In logon ko kya hak banta tha ke hamari bhoomi ke do tukde karte? Us bhoomi par jo inke poorvajon ki thi hi nahi? Jahan ye sab atithi ke roop mein aaye the? Dhokha hai ye ka inhone jis thaali mein khaya
usi mein chhed kiya. Jis bhoomi par rahe usi ke 2 tukde kar daale. Ek desh ko 2 hisso mein baant diya"
"Dhokha hai ye" Bheed phir chillayi
"Par hamne inki baat ka samman rakha. Inhone alag desh chaha toh hamne khule dil se vo bhi diya par phir uske baad kya? Jo diya usmein santusht na hokar aur ki ummeed? Baar baar hamare desh par hamla?"
"Dhokha" Phir se aawaz goonji
"Hamne phir bhi baar baar in logon ko maaf kiya. Phir khule dil se bhai-chaare ki baat ki par phir bhi nahi maante ye? Jaante hain kyun?"
"Kyun?" Phir aawaz goonji
"Kyunki Dhokha inki jaat mein shaamil hai. Par ab aur nahi. Ab Hindustan vo banega jo ki uska naam hai. Ek hindu rashtra"
"Bharat mata ki jai" Bheed ekjut chillayi
"Agar yahan rehna hai toh Hindu bankar rehna hoga varna koi hak nahi banta unhen yahan rehne ka. Ham phir se is desh ko uska gaurav lauta kar denge. Ab waqt aa gaya hai badle ka. Har us aadmi ko is desh se nikal dena ka jo Hindutva ka palan nahi karta. Har us cheez ko mita dene ka jo Hindu dharam ke khilaff hai. Kya aap sehmat hain?"
"Haan" Bheed chillayi
"Nahi" Logon ke beech se ek aur aawaz uthi. Logon ne hairani se aawaz ki taraf dekhna shuru kar diya.
"Kaun bola" Devraj zor se chillaya.
"Main. Aditya Chaturvedi" Bheed ke beech se aawaz aayi. Log ek taraf hone lage aur Devraj aur Aditya ke beech se hat gaye.
"Tum kuchh kehna chahte ho Aditya?"
"Ek sawal puchhna chahta hoon" Saath khada Nikhil Aditya ko chup karane ki koshish kar raha tha.
"Puchho"
"Aap is desh ko hindu rashtra banana chahte hain. Yahan rehne wale sabko hindu banana chahte hain. Toh ye bataiye Chaturvedi sahab ke agar ek Khan apna dharam chhodkar hindu banta hai toh jaat kya denge aap usko? Sharma, Pandey ya Dube banayenge ya koi harijan banayenge?" Aditya ne sawal kiya
"Kehna kya chah rahe ho? Kaisa vaahiyat sawal hai ye?"
"Nahi bilkul vaahiyat nahi hai" Aditya apni baat par data raha "Agar koi doosre dharam ka aadmi apna dharam chhod kar hindutva mein aata hai toh jaat toh usko deni padegi na. Ab agar kisi doosre dharam ke oonchi jaat ke aadmi ko aapn hindu mein neechi jaat wala banate hain toh uske saath na-insafi hogi. Aur agar aap usko koi oonchi jaat dete hain toh hamare harijan bhaiyon ke saath na-insafi hogi kyunki oonchi jaat par pehle hak inka banta hai jo saari zindagi se hindu rahe hain. Na ki uska jo abhi abhi Hindu bana hai"
"Chup ho jao" Devraj zor se garja
"Kyun chup ho jaoon? Kyunki aapke paas jawab nahi hai isliye?"
"Adityaaaaaaa"
"aap hindutva ki baaten kar rahe hain? Ek ved shastra uthakar dikha dijiye mujhe jo hinsa ka samarthan karta ho. Nahi milega kyunki Hindu hona bhai-chaare ko badhava dena hai. Na ki masoom logon ki jaan lena, unhen majboor
karna."
"Adityaaaaaaa"
"Aur hamla toh ham par China ne bhi kiya tha? Kya karenge? China se badla kyun nahi lete aap? Kyun saare buddhists ko hamare desh se nahi nikal dete? Ya kyun unko bhi Hindu nahi bana dete? Khaas taur se tab jabke Mahatma Budh toh the bhi hamare desh se hi"
"Chup ho jao Aditya" Devraj ka gussa badhta ja raha tha.
"Aditya chup ho ja please. Marvayega kya?" Nikhil bhi apni taraf se poori koshish kar raha tha ke uska munh band kar de.
"Ek padosi desh ke kaarnamo ka badla ham apne un bhai-behno se nahi le sakte jo hamare apne hain. Is desh ka ek hissa hain. Is desh ki pragati mein barabar ke hakdaar hain. Is desh ka gaurav jitna hamse hai utna unse bhi hai"
Kehkar Aditya kamre se bahar nikal gaya.
"Sach?" Bistar par leti Tehzeeb ne kamzor aawaz mein kaha
"Haan. Main sach tumse shaadi karna chahta hoon. Karogi mujhse shaadi?"
"Haan" Tehzeeb ki aankh se aansu beh chale "Bas zara meri tabiat theek ho jaaye, phir ham nikah kar lenge"
"Nahi" Aditya fauran uska haath pakadkar uske kareeb bistar par beth gaya "Tumse shaadi ke liye main ab ek pal bhi nahi ruk sakta. Doctor se meri baat ho gayi hai. Kuchh nahi hua hai tumhein, bas yun hi thoda viral hai. Jaldi
theek ho jaogi par main soch raha tha ke ham shaadi kal hi kar len"
"Kal?"
"Haan kal. Ek kaam karte hain. Kal nikah nahi karte. Na masjid, na mandir, na court. Kal church mein shaadi karte hain"
"Church mein?" Tehzeeb mushkil se bistar par uthkar beth gayi
kramashah.....................
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"ओफहो. मौका मिलते ही फिल्मी हीरो की तरह डाइलॉग मारना शुरू कर देते हो. अर्रे फस गयी मैं ऑलरेडी तुमसे, हो चुकी इंप्रेस, पटा लिया तुमने मुझे ऑलरेडी, तुम्ही से करूँगी मैं शादी, अब तो चैन से जीने दो. मेरे कहने का मतलब के कोई ऐसा ख्वाब जो तुमने बचपन से देखा हो. जैसे मेरा ख्वाब है के कहीं समुंदर के किनारे मेरा अपना एक बड़ा सा घर हो जहाँ से मैं रोज़ शाम सूरज को समुंदर में डूबते हुए देखूं"
"वाउ... बीच हाउस हाँ?" आदित्य ने कहा
"हां. मैं चाहती हूँ के रोज़ शाम को मैं बाल्कनी में तुम्हारी बाहों में बैठू और सामने सूरज धीरे धीरे समुंदर में समा रहा हो. मेरा ख्वाब है के मेरा अपना एक घर हो, बड़ा सा, सुंदर सा. मैं हमेशा एक किराए के मकान में रही हूँ. समुंदर किनारे एक बड़ा सा घर और हमारा अपना प्राइवेट बीच, बचपन से हर रात
मैं यही सोचती हुई सोई हूँ"
"प्राइवेट बीच भी?" आदित्या बोला तो तहज़ीब ने खुश होते हुए हां में सर हिला दिया.
"सर?" अचानक रिसेप्षन पर खड़ी लड़की ने आदित्य को पुकारा
"वाउ. अब तो ये भी तुम्हें बुला रही है. शायद इंप्रेस हो गयी" तहज़ीब चहकते हुए बोली
"शट अप" आदित्य ने घूर कर उसकी तरफ देखा और रिसेप्षन पर पहुँचा
"ये आपकी रिश्ते दार हैं?" रिसेप्षन पर खड़ी लड़की ने पुछा
आदित्य ने एक पल के लिए पलट कर तहज़ीब को देखा. वो अपने बालों से खेलती किसी बच्ची की तरह जाने क्या सोच रही थी.
"मेरी बीवी है" पलटकर आदित्य ने जवाब दिया
"ओके तो आप प्लीज़ अंदर जाकर डॉक्टर से मिल लीजिए. उन्होने कहा है के आप अकेले आएँ, मेडम को साथ अंदर ना ले जाएँ. बल्कि डॉक्टर साहब चाहते हैं के आप कोई बहाना बनाकर अंदर जाएँ, बिना आपकी वाइफ को ये बताया के आप
डॉक्टर से मिलने अंदर जा रहे हैं"
"क्यूँ?" आदित्य ने पुछा
"आइ डोंट नो" उस लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा.
आदित्य फिर तहज़ीब के पास आया.
"क्या कह रही है? शादी करना चाहती तुमसे?" तहज़ीब फिर चहकी.
"शट अप. कह रही है के डॉक्टर को 15-20 मिन्स और लगेंगे. तुम बैठो मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हूँ"
कुच्छ देर बाद वो डॉक्टर के साथ अंदर अकेला बैठा था.
"ये कैसे हो सकता है? इट्स इंपॉसिबल"
"आप चाहें सिर तो किसी और डॉक्टर से कन्सल्ट कर सकते हैं पर मुझे यकीन है के सबका जवाब यही होगा. आपकी बीवी के सर पर कुच्छ अरसा पहले चोट लगी थी जिसकी तरफ इन्होने ध्यान नही दिया. धीरे धीरे उनके दिमाग़ में उस जगह एक ब्लड क्लॉट जमा हो गया है जो अब इलाज की हद के बाहर जा चुका है. यही वजह है के उनके सर में दर्द रहता है, चक्कर आते हैं, बेहोश हो जाती हैं" डॉक्टर ने कहा.
"उस रात एक आदमी ने मेरे सर पर किसी चीज़ से वार किया था जिसके बाद मैं बेहोश हो गयी थी. होश आया तो मेरा घर और मेरे माँ बाप भाई, सबको जला दिया गया था. तभी से मेरे सर में हल्की हल्की सी चुभन रहती थी" आदित्य को तहज़ीब की कही बात भी याद आ रही थी.
"कितना वक़्त?" उसने डॉक्टर से पुछा
"ऐसे केसस में शर्तिया तौर कुच्छ कहा नही जा सकता. होने को आज कुच्छ हो जाए पर ज़्यादा से ज़्यादा 6 महीने"
"क्या आप सब मेरी बात से सहमति रखते हैं?" देवराज चतुर्वेदी ने हॉल में मौजूद तकरीबन 100 लोगों से पुछा.
"हाँ हम सब सहमत हैं" जवाब में आवाज़ आई
"क्या तू भी अपने बाप की बात से सहमत है आदित्य?" हॉल में खड़े निखिल ने अपने साथ खड़े आदित्य से पुछा आदित्य ने कोई जवाब नही दिया.
"सालों तक, सालों तक हमने इनका बोझ सहा है, इनके साथ कंधे से कंधा मिलाने की कोशिश की है पर अब और नही. अब हद हो चुकी है" देवराज की आवाज़ फिर गूँजी
"हद हो चुकी है" पीछे पिछे सामने खड़े लोगों ने दोहराया
"ये सब हज़ार साल पहले हमारे देश में आए, हमने दिल से इनका स्वागत किया. अपने यहाँ रहने की जगह दी, खाना दिया, जल दिया, अपनी धरती दी पर बदले में हमें क्या मिला? धोखा?"
"हां हां धोखा" लोगों ने एक जुट कहा
"हां धोखा ही है ये. इन लोगों को क्या हक बनता था के हमारी भूमि के दो टुकड़े करते? उस भूमि पर जो इनके पूर्वजों की थी ही नही? जहाँ ये सब अतिथि के रूप में आए थे? धोखा है ये का इन्होने जिस थाली में खाया
उसी में छेद किया. जिस भूमि पर रहे उसी के 2 टुकड़े कर डाले. एक देश को 2 हिस्सो में बाँट दिया"
"धोखा है ये" भीड़ फिर चिल्लाई
"पर हमने इनकी बात का सम्मान रखा. इन्होने अलग देश चाहा तो हमने खुले दिल से वो भी दिया पर फिर उसके बाद क्या? जो दिया उसमें संतुष्ट ना होकर और की उम्मीद? बार बार हमारे देश पर हमला?"
"धोखा" फिर से आवाज़ गूँजी
"हमने फिर भी बार बार इन लोगों को माफ़ किया. फिर खुले दिल से भाई-चारे की बात की पर फिर भी नही मानते ये? जानते हैं क्यूँ?"
"क्यूँ?" फिर आवाज़ गूँजी
"क्यूंकी धोखा इनकी जात में शामिल है. पर अब और नही. अब हिन्दुस्तान वो बनेगा जो कि उसका नाम है. एक हिंदू राष्ट्र"
"भारत माता की जै" भीड़ एकजुट चिल्लाई
"अगर यहाँ रहना है तो हिंदू बनकर रहना होगा वरना कोई हक नही बनता उन्हें यहाँ रहने का. हम फिर से इस देश को उसका गौरव लौटा कर देंगे. अब वक़्त आ गया है बदले का. हर उस आदमी को इस देश से निकाल देना का जो हिंदुत्व का पालन नही करता. हर उस चीज़ को मिटा देने का जो हिंदू धरम के खिलाफ है. क्या आप सहमत हैं?"
"हां" भीड़ चिल्लाई
"नही" लोगों के बीच से एक और आवाज़ उठी. लोगों ने हैरानी से आवाज़ की तरफ देखना शुरू कर दिया.
"कौन बोला" देवराज ज़ोर से चिल्लाया.
"मैं. आदित्य चतुर्वेदी" भीड़ के बीच से आवाज़ आई. लोग एक तरफ होने लगे और देवराज और आदित्य के बीच से हट गये.
"तुम कुच्छ कहना चाहते हो आदित्य?"
"एक सवाल पुच्छना चाहता हूँ" साथ खड़ा निखिल आदित्य को चुप करने की कोशिश कर रहा था.
"पूछो"
"आप इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. यहाँ रहने वाले सबको हिंदू बनाना चाहते हैं. तो ये बताइए चतुर्वेदी साहब के अगर एक ख़ान अपना धरम छ्चोड़कर हिंदू बनता है तो जात क्या देंगे आप उसको? शर्मा, पांडे या दूबे बनाएँगे या कोई हरिजन बनाएँगे?" आदित्य ने सवाल किया
"कहना क्या चाह रहे हो? कैसा वाहियात सवाल है ये?"
"नही बिल्कुल वाहियात नही है" आदित्य अपनी बात पर डटा रहा "अगर कोई दूसरे धरम का आदमी अपना धरम छ्चोड़ कर हिन्दुत्व में आता है तो जात तो उसको देनी पड़ेगी ना. अब अगर किसी दूसरे धरम के ऊँची जात के आदमी को आपं हिंदू में नीची जात वाला बनाते हैं तो उसके साथ ना-इंसाफी होगी. और अगर आप उसको कोई ऊँची जात देते हैं तो हमारे हरिजन भाइयों के साथ ना-इंसाफी होगी क्यूंकी ऊँची जात पर पहले हक इनका बनता है जो सारी ज़िंदगी से हिंदू रहे हैं. ना कि उसका जो अभी अभी हिंदू बना है"
"चुप हो जाओ" देवराज ज़ोर से गरजा
"क्यूँ चुप हो जाऊं? क्यूंकी आपके पास जवाब नही है इसलिए?"
"आदित्याआआअ"
"आप हिन्दुत्व की बातें कर रहे हैं? एक वेद शास्त्र उठाकर दिखा दीजिए मुझे जो हिंसा का समर्थन करता हो. नही मिलेगा क्यूंकी हिंदू होना भाई-चारे को बढ़ावा देना है. ना की मासूम लोगों की जान लेना, उन्हें मजबूर
करना."
"आदित्याआआअ"
"और हमला तो हम पर चाइना ने भी किया था? क्या करेंगे? चाइना से बदला क्यूँ नही लेते आप? क्यूँ सारे बुद्धिस्त्स को हमारे देश से नही निकाल देते? या क्यूँ उनको भी हिंदू नही बना देते? ख़ास तौर से तब जबके महात्मा बुध तो थे भी हमारे देश से ही"
"चुप हो जाओ आदित्य" देवराज का गुस्सा बढ़ता जा रहा था.
"आदित्य चुप हो जा प्लीज़. मरवाएगा क्या?" निखिल भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था के उसका मुँह बंद कर दे.
"एक पड़ोसी देश के कारनामो का बदला हम अपने उन भाई-बहनो से नही ले सकते जो हमारे अपने हैं. इस देश का एक हिस्सा हैं. इस देश की प्रगती में बराबर के हकदार हैं. इस देश का गौरव जितना हमसे है उतना उनसे भी है"
कहकर आदित्य कमरे से बाहर निकल गया.
"सच?" बिस्तर पर लेटी तहज़ीब ने कमज़ोर आवाज़ में कहा
"हां. मैं सच तुमसे शादी करना चाहता हूँ. करोगी मुझसे शादी?"
"हां" तहज़ीब की आँख से आँसू बह चले "बस ज़रा मेरी तबीयत ठीक हो जाए, फिर हम निकाह कर लेंगे"
"नही" आदित्य फ़ौरन उसका हाथ पकड़कर उसके करीब बिस्तर पर बैठ गया "तुमसे शादी के लिए मैं अब एक पल भी नही रुक सकता. डॉक्टर से मेरी बात हो गयी है. कुच्छ नही हुआ है तुम्हें, बस यूँ ही थोड़ा विराल है. जल्दी
ठीक हो जाओगी पर मैं सोच रहा था के हम शादी कल ही कर लें"
"कल?"
"हां कल. एक काम करते हैं. कल निकाह नही करते. ना मस्जिद, ना मंदिर, ना कोर्ट. कल चर्च में शादी करते हैं"
"चर्च में?" तहज़ीब मुश्किल से बिस्तर पर उठकर बैठ गयी
क्रमशः........................
TERE ISHQ MEIN paart--3
gataank se aage.................
"Ofho. Mauka milte hi filmi hero ki tarah dialogue marna shuru kar dete ho. Arrey phas gayi main already tumse, ho chuki impress, pata liya tumne mujhe already, tumhi se karungi main shaadi, ab toh chain se jeene do. Mere kehne ka matlab ke koi aisa khwaab jo tumne bachpan se dekha ho. Jaise mera khwaab hai ke kahin samundar ke kinare mera apna ek bada sa ghar ho jahan se main roz shaam sooraj ko samundar mein doobte hue dekhun"
"Wow... beach house haan?" Aditya ne kaha
"Haan. Main chahti hoon ke roz shaam ko main balcony mein tumhari baahon mein bethun aur saamne sooraj dheere dheere samundar mein sama raha hoon. Mera khwaab hai ke mera apna ek ghar ho, bada sa, sundar sa. Main hamesha ek kiraye ke makaan mein rahi hoon. Samundar kinare ek bada sa ghar aur hamara apna private beach, bachpan se har raat
main yahi sochti hui soyi hoon"
"Private beach bhi?" Aditya bola toh Tehzeeb ne khush hote hue haan mein sar hila diya.
"Sir?" Achanak reception par khadi ladki ne Aditya ko pukara
"wOW. Ab toh ye bhi tumhein bula rahi hai. Shayad impress ho gayi" Tehzeeb chehakte hue boli
"Shut up" Aditya ne ghoor kar uski taraf dekha aur Reception par pahuncha
"Ye aapki rishte daar hain?" Reception par khadi ladki ne puchha
Aditya ne ek pal ke liye palat kar Tehzeeb ko dekha. Vo apne baalon se khelti kisi bachchi ki tarah jaane kya soch rahi thi.
"Meri biwi hai" Palatkar Aditya ne jawab diya
"Ok toh aap please andar jakar doctor se mil lijiye. Unhone kaha hai ke aap akele aayen, madam ko saath andar na le jaayen. Balki doctor sahab chahate hain ke aap koi bahana banakar andar jaayen, bina aapki wife ko ye bataya ke aap
doctor se milne andar ja rahe hain"
"Kyun?" Aditya ne puchha
"I dont know" Us ladki ne muskurate hue kaha.
Aditya phir Tehzeeb ke paas aaya.
"Kya keh rahi hai? Shaadi karna chahti tumse?" Tehzeeb phir chehki.
"Shut up. Keh rahi hai ke Doctor ko 15-20 mins aur lagenge. Tum betho main zara bathroom hokar aata hoon"
Kuchh der baad vo Doctor ke saath andar akela betha tha.
"Ye kaise ho sakta hai? Its impossible"
"Aap chahen sir toh kisi aur doctor se consult kar sakte hain par mujhe yakeen hai ke sabka jawab yahi hoga. Aapki biwi ke sar par kuchh arsa pehle chot lagi thi jiski taraf inhone dhyaan nahi diya. Dheere dheere unke dimag mein us jagah ek blood clot jama ho gaya hai jo ab ilaaj ki hadh ke bahar ja chuka hai. Yahi vajah hai ke unke sar mein dard rehta hai, chakkar aate hain, behosh ho jaati hain" Doctor ne kaha.
"Us raat ek aadmi ne mere sar par kisi cheez se vaar kiya tha jiske baad main behosh ho gayi thi. Hosh aaya toh mera ghar aur mere maan baap bhai, sabko jala diya gaya tha. Tabhi se mere sar mein halki halki si chubhan rehti thi" Aditya ko Tehzeeb ki kahi baat bhi yaad aa rahi thi.
"Kitna waqt?" Usne doctor se puchha
"Aise cases mein shartiya taur kuchh kaha nahi ja sakta. Hone ko aaj kuchh ho jaaye par zyada se zyada 6 mahine"
"Kya aap sab meri baat se sehmati rakhte hain?" Devraj Chaturvedi ne hall mein maujood takreeban 100 logon se puchha.
"Haan ham sab sehmat hain" Jawab mein aawaz aayi
"Kya tu bhi apne baap ki baat se sehmat hai Aditya?" Hall mein khade Nikhil ne apne saath khade Aditya se puchhaAditya ne koi jawab nahi diya.
"Saalon tak, saalon tak hamne inka bojh saha hai, inke saath kandhe se kandha milane ki koshish ki hai par ab aur nahi. Ab hadh ho chuki hai" Devraj ki aawaz phir goonji
"Hadh ho chuki hai" Pichhe pichhe saamne khade logon ne dohraya
"Ye sab hazar saal pehle hamare desh mein aaye, hamne dil se inka swagat kiya. Apne yahan rehne ki jagah di, khana diya, jal diya, apni dharti di par badle mein hamen kya mila? Dhokha?"
"Haan haan dhokha" Logon ne ek jut kaha
"Haan dhokha hi hai ye. In logon ko kya hak banta tha ke hamari bhoomi ke do tukde karte? Us bhoomi par jo inke poorvajon ki thi hi nahi? Jahan ye sab atithi ke roop mein aaye the? Dhokha hai ye ka inhone jis thaali mein khaya
usi mein chhed kiya. Jis bhoomi par rahe usi ke 2 tukde kar daale. Ek desh ko 2 hisso mein baant diya"
"Dhokha hai ye" Bheed phir chillayi
"Par hamne inki baat ka samman rakha. Inhone alag desh chaha toh hamne khule dil se vo bhi diya par phir uske baad kya? Jo diya usmein santusht na hokar aur ki ummeed? Baar baar hamare desh par hamla?"
"Dhokha" Phir se aawaz goonji
"Hamne phir bhi baar baar in logon ko maaf kiya. Phir khule dil se bhai-chaare ki baat ki par phir bhi nahi maante ye? Jaante hain kyun?"
"Kyun?" Phir aawaz goonji
"Kyunki Dhokha inki jaat mein shaamil hai. Par ab aur nahi. Ab Hindustan vo banega jo ki uska naam hai. Ek hindu rashtra"
"Bharat mata ki jai" Bheed ekjut chillayi
"Agar yahan rehna hai toh Hindu bankar rehna hoga varna koi hak nahi banta unhen yahan rehne ka. Ham phir se is desh ko uska gaurav lauta kar denge. Ab waqt aa gaya hai badle ka. Har us aadmi ko is desh se nikal dena ka jo Hindutva ka palan nahi karta. Har us cheez ko mita dene ka jo Hindu dharam ke khilaff hai. Kya aap sehmat hain?"
"Haan" Bheed chillayi
"Nahi" Logon ke beech se ek aur aawaz uthi. Logon ne hairani se aawaz ki taraf dekhna shuru kar diya.
"Kaun bola" Devraj zor se chillaya.
"Main. Aditya Chaturvedi" Bheed ke beech se aawaz aayi. Log ek taraf hone lage aur Devraj aur Aditya ke beech se hat gaye.
"Tum kuchh kehna chahte ho Aditya?"
"Ek sawal puchhna chahta hoon" Saath khada Nikhil Aditya ko chup karane ki koshish kar raha tha.
"Puchho"
"Aap is desh ko hindu rashtra banana chahte hain. Yahan rehne wale sabko hindu banana chahte hain. Toh ye bataiye Chaturvedi sahab ke agar ek Khan apna dharam chhodkar hindu banta hai toh jaat kya denge aap usko? Sharma, Pandey ya Dube banayenge ya koi harijan banayenge?" Aditya ne sawal kiya
"Kehna kya chah rahe ho? Kaisa vaahiyat sawal hai ye?"
"Nahi bilkul vaahiyat nahi hai" Aditya apni baat par data raha "Agar koi doosre dharam ka aadmi apna dharam chhod kar hindutva mein aata hai toh jaat toh usko deni padegi na. Ab agar kisi doosre dharam ke oonchi jaat ke aadmi ko aapn hindu mein neechi jaat wala banate hain toh uske saath na-insafi hogi. Aur agar aap usko koi oonchi jaat dete hain toh hamare harijan bhaiyon ke saath na-insafi hogi kyunki oonchi jaat par pehle hak inka banta hai jo saari zindagi se hindu rahe hain. Na ki uska jo abhi abhi Hindu bana hai"
"Chup ho jao" Devraj zor se garja
"Kyun chup ho jaoon? Kyunki aapke paas jawab nahi hai isliye?"
"Adityaaaaaaa"
"aap hindutva ki baaten kar rahe hain? Ek ved shastra uthakar dikha dijiye mujhe jo hinsa ka samarthan karta ho. Nahi milega kyunki Hindu hona bhai-chaare ko badhava dena hai. Na ki masoom logon ki jaan lena, unhen majboor
karna."
"Adityaaaaaaa"
"Aur hamla toh ham par China ne bhi kiya tha? Kya karenge? China se badla kyun nahi lete aap? Kyun saare buddhists ko hamare desh se nahi nikal dete? Ya kyun unko bhi Hindu nahi bana dete? Khaas taur se tab jabke Mahatma Budh toh the bhi hamare desh se hi"
"Chup ho jao Aditya" Devraj ka gussa badhta ja raha tha.
"Aditya chup ho ja please. Marvayega kya?" Nikhil bhi apni taraf se poori koshish kar raha tha ke uska munh band kar de.
"Ek padosi desh ke kaarnamo ka badla ham apne un bhai-behno se nahi le sakte jo hamare apne hain. Is desh ka ek hissa hain. Is desh ki pragati mein barabar ke hakdaar hain. Is desh ka gaurav jitna hamse hai utna unse bhi hai"
Kehkar Aditya kamre se bahar nikal gaya.
"Sach?" Bistar par leti Tehzeeb ne kamzor aawaz mein kaha
"Haan. Main sach tumse shaadi karna chahta hoon. Karogi mujhse shaadi?"
"Haan" Tehzeeb ki aankh se aansu beh chale "Bas zara meri tabiat theek ho jaaye, phir ham nikah kar lenge"
"Nahi" Aditya fauran uska haath pakadkar uske kareeb bistar par beth gaya "Tumse shaadi ke liye main ab ek pal bhi nahi ruk sakta. Doctor se meri baat ho gayi hai. Kuchh nahi hua hai tumhein, bas yun hi thoda viral hai. Jaldi
theek ho jaogi par main soch raha tha ke ham shaadi kal hi kar len"
"Kal?"
"Haan kal. Ek kaam karte hain. Kal nikah nahi karte. Na masjid, na mandir, na court. Kal church mein shaadi karte hain"
"Church mein?" Tehzeeb mushkil se bistar par uthkar beth gayi
kramashah.....................
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