एक छोटी सी कहानी--
नौ-लक्खा--2
गतान्क से आगे...........................
अगले दिन ही वो पल्लवी से मिलने पहुँच गयी और अपना दुखड़ा उसके सामने रोया.
उसकी बात सुनकर पल्लवी उसको अपने कमरे में ले गयी और अपने सारे गहने उसके सामने रख दिए.
"तुझे जो पसंद हो उठा ले"
पहले उसने कुच्छ ब्रेस्लेट्स देखे, फिर कुच्छ सोने की चेन्स, फिर कुच्छ एअर रिंग्स. बारी बारी वो सब कुच्छ पहेन कर अपने आपको शीशे में देखती और हर बार उसका दिल यही करता के जो उसने पहेन रखा है उसे ना उतारे. पर फिर भारी दिल से वो उतार कर पल्लवी को वापिस दे देती और कुच्छ और पहेन कर देखती.
अचानक उसकी नज़र एक काले रंग के ज्यूयलरी केस पर पड़ी. खोलकर देखा तो अंदर एक हीरों का हार था. उस हार पर एक नज़र पड़ते ही उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. डिब्बे से उसने हार निकाल कर अपने गले की तरफ बढ़ाया तो उसके हाथ काँप रहे थे. उसने हार पहेन कर देखा तो वो उसकी ड्रेस के साथ बिल्कुल मॅच कर गया. उस हार और ड्रेस में अपने आप को देख कर वो खुद ही इठलाने लगी.
"मैं ये ले लूँ?"
"हां हां ले जा" पल्लवी ने फ़ौरन जवाब दिया.
वो खुशी के मारे आगे बढ़कर पल्लवी से लिपट गयी और थोड़ी देर बाद हार लेकर अपने घर आ गयी.
पार्टी वाले दिन वो जैसे महफ़िल की जान थी. वो वहाँ मौजूद सब औरतों में सबसे ज़्यादा खूबसूरत थी. उसका रंग रूप, उसके अंदाज़, उसकी हसी वहाँ हर किसी से अलग था. पार्टी में मौजूद हर मर्द की नज़र उसपर थी.
हर कोई उससे बात करना चाहता था, उसका नाम पुच्छना चाहता था, उसके साथ डॅन्स करना चाहता था. हर किसी की ज़ुबान पर उस शाम बस उसी का नाम था.
उस रात वो बहुत देर तक नाचती रही. कुच्छ पार्टी में मौजूद लोग बार बार उसे डॅन्स के लिए पूछते रहे और कुच्छ खुद उसका भी रुकने का दिल नही किया. उस शाम वो एक अलग ही दुनिया में थी जहाँ उसकी ग़रीबी और उसकी मजबूरी उससे कोसों दूर थी.
सुबह के 3 बजे वो लोग पार्टी से निकले. पूरी पार्टी में उसका पति अपने बॉस के साथ शराब पीता रहा और वो नाचती रही थी इसलिए दोनो ही काफ़ी थके हुए थे. बाहर से उन्होने एक टॅक्सी की जिसने थोड़ी देर बाद उन्हें उनके घर के आगे लाकर छ्चोड़ दिया.
घर पहुँच कर उसने लाइट्स ऑन की और सीधी अपने कमरे में लगे फुल साइज़ मिरर के आगे आ खड़ी हुई ताकि अपने आपको निहार सके. सामने जो नज़र आया वो देख कर उसके मुँह से चीख निकल गयी.
हीरों का वो हार जो पूरी रात उसके गले की शान बना हुआ था अब उसके गले से गायब था.
"चिल्ला क्यूँ रही हो?" नशे में उसका पति बड़बड़ाया.
वो अपने मुँह पर हाथ रखे उसकी तरफ पलटी.
"हार खो गया"
"क्या?"
"पल्लवी का हीरों वाला हार" वो हकलाते हुए बोली "खो गया"
एक झटके में उसके पति का सार नशा गुल हो गया.
"खो गया मतलब?? ऐसे कैसे खो गया?"
उन्हें मिलकर अपना पूरा घर छान मारा. उसकी ड्रेस को उतार कर झाड़ा, कोट में चेक किया, उसके बॅग को उलट कर देखा पर हार का कहीं कोई निशान नही था.
"तुम्हें यकीन है के जब तुम पार्टी में से निकली थी तो हार गले में था?"
"हां मुझे पता है के हार था. म्र्स. मल्होत्रा ने बाहर जाते जाते भी हार को देख कर उसकी तारीफ की थी"
"पर अगर बाहर कहीं सड़क पर गिरा होता तो तुम्हें आवाज़ तो आती"
"हां बात तो सही है. एक मिनट, वो टॅक्सी. उसका नंबर याद है?" वो अचानक बोली
"नही मैने ध्यान नही दिया. तुमने देखा?"
"नही" उसने भी इनकार में गर्दन हिला दी.
कुच्छ देर तक वो दोनो ऐसे ही बैठे एक दूसरे को देखते रहे. कुच्छ देर बाद उसके पति ने उठ कर फिर से कपड़े पहने.
"मैं देख कर आता हूँ. शायद कहीं गिरा मिल जाए"
पर ऐसा हुआ नही. वो जाकर हर उस जगह पर देख आया जहाँ वो दोनो एक सेकेंड के लिए भी खड़े हुए थे पर हार नही मिला.
"अब मैं पल्लवी को क्या जवाब दूँगी?" वो रोते हुए बोली
"उसे फोन करके बोलो के हार को हुक टूट गया है और तुम ठीक करवा के वापिस दोगि. थोड़ा सोचने का टाइम मिल जाएगा"
और अपने पति के कहने पर उसने ऐसा ही किया.
अगले कुच्छ दिन तक वो दोनो करी बार पार्टी वाली जगह पर गये, पार्टी में आए लोगों से पुछा पर हार का कुच्छ पता नही चला.
"नया लेकर देना पड़ेगा, वैसा ही जैसा के वो हार था" उसके पति ने थक हार कर कहा.
अगले दिन वो हार के डिब्बे पर लिखा अड्रेस देख कर ज्यूयलरी शोरुम पहुँचे.
"जी हां हमारे यहाँ से ही बिका है" शोरुम में डिब्बा देख कर ज़ोहरी ने कहा "ये नौ-लक्खा हमारी स्पेशॅलिटी है"
"ऐसा ही एक बनवाना है"
"जी बन जाएगा. 9 लाख में से आधे आपको अड्वान्स देने होंगे और बाकी आधे डेलिवरी पर"
कीमत सुन कर दोनो की आँखें हैरत से खुली की खुली रह गयी पर और कोई रास्ता था भी नही. उनके अगले कुच्छ दिन यही सोचने में निकले के 9 लाख का इंटेज़ाम कहाँ से करें. उसकी शादी के गहने, पति का प्रोविडेंट फंड, मोटरसाइकल सब चीज़ों को जोड़कर देखा गया पर फिर आख़िर में उन्हें अपना घर ही गिरवी
रखा पड़ा.
4.5 लाख अड्वान्स देते वक़्त उसने हार में लगने वाले हीरों और बाकी चीज़ों को खुद देख कर ये तसल्ल्ली की थी के हार बिल्कुल वैसा ही दिखे जैसा की पल्लवी के पास था.
एक महीने बाद जब वो हार लौटने गयी तो पहली बार पल्लवी ने उसे देख कर मुँह बनाया.
"मुझे बीच में ज़रूरत पड़ी थी हार की. टाइम पे वापिस करती यार"
पर पल्लवी ने डिब्बा खोल कर हार देखा नही जिसका उसे बहुत डर था. हार हूबहू पल्लवी के हार जैसा ही दिखता था पर वो कहते हैं ना का चोर की दाढ़ी में तिनका. उसे लग रहा था के पल्लवी डिब्बा खोल कर देखेगी और पहचान जाएगी के ये हार उसका नही है पर ऐसा हुआ नही.
और फिर ज़िंदगी ने एक अजीब सा मोड़ ले लिए. जिस चीज़ से उसको सख़्त नफ़रत थी वो अब और ज़्यादा बढ़ गयी थी यानी के मजबूरी.
घर में काम करने वाली लड़की को हटा दिया गया, उसके शादी के गहने बेच दिए गये, पातिदेव मोटरसाइकल बेच कर बस में सफ़र करने लगे. दोनो के दिमाग़ में बस एक ही ख्याल था के सर से किसी भी तरह क़र्ज़ उतार कर अपना घर छुड़ा लें इससे पहले के सड़क पर आने की नौबत आए.
और फिर उसने भी अपनी ख्याली दुनिया छ्चोड़ कर घर संभालना सीख लिया. बर्तन धोना, झाड़ू पोछा लगाना, कपड़े धोना, खाना पकाना ये सारे वो काम थे जो एक ग़रीब घर में पैदा होने की वजह से उसे बहुत पहले कर लेने चाहिए थे पर उसने अब किए. इन सबसे अलग उसने भी एक ऑफीस में सेक्रेटरी की नौकरी कर ली.
ज़्यादा पढ़ी लिखी वो थी नही इसलिए उस छ्होटी सी नौकरी से जो भी पैसे मिलते, सब बॅंक का क़र्ज़ चुकाने में चले जाते.
उसके पति ने ओवरटाइम करना शुरू कर दिया था. रात को देर से घर आना और सुबह होते ही ऑफीस चले जाना अब एक आदत सी बन गयी थी. अक्सर कमिशन लेकर वो कुच्छ बड़े बड़े अकाउंट्स का काम घर ले आता और पूरा सनडे उसी में गुज़ार देता.
और अगले 10 साल तक उनका यही लाइफस्टाइल रहा.
क्रमशः....................
NAU-LAKKHA--2
gataank se aage..........................
Agle din hi vo pallavi se milne pahunch gayi aur apna dukhda uske saamne roya.
Uski baat sunkar Pallavi usko apne kamre mein le gayi aur apne saare gehne uske saamne rakh diye.
"Tujhe jo pasand ho utha le"
Pehle usne kuchh bracelets dekhe, phir kuchh sone ki chains, phir kuchh ear rings. Baari baari vo sab kuchh pehen kar apne aapko sheeshe mein dekhti aur har baar uska dil yahi karta ke jo usne pehen rakaha hai use na utaare. Par phir bhari dil se vo utaar kar Pallavi ko vaapis de deti aur kuchh aur pehen kar dekhti.
Achanak uski nazar ek kaale rang ke jewellery case par padi. Kholkar dekha toh andar ek heeron ka haar tha. Us haar par ek nazar padte hi uske dil ki dhadkan tez ho gayi. Dibbe se usne haar nikal kar apne gale ki taraf badhaya toh uske haath kaanp rahe the. Usne haar pehen kar dekha toh vo uski dress ke saath bilkul match kar gaya. Us haar aur dress mein apne aap ko dekh kar vo khud hi ithlane lagi.
"Main ye le loon?"
"Haan haan le ja" Pallavi ne fauran jawab diya.
Vo khushi ke maare aage badhkar Pallavi se lipat gayi aur thodi der baad haar lekar apne ghar aa gayi.
Party wale din vo jaise mehfil ki jaan thi. Vo vahan maujood sab auraton mein sabse zyada khoobsurat thi. Uska rang roop, uske andaaz, uski hasi vahan har kisi se alag tha. Party mein maujood har mard ki nazar uspar thi.
Har koi usse baat karna chahta tha, uska naam puchhna chahta tha, uske saath dance karna chahta tha. Har kisi ki zubaan par us shaam bas usi ka naam tha.
Us raat vo bahut der tak naachti rahi. Kuchh party mein maujood log baar baar use dance ke liye puchhte rahe aur kuchh khud uska bhi rukne ka dil nahi kiya. Us shaam vo ek alag hi duniya mein thi jahan uski gareebi aur uski majboori usse koson door thi.
Subah ke 3 baje vo log party se nikle. Poori party mein uska pati apne boss ke saath sharab peeta raha aur vo naachti rahi thi isliye dono hi kaafi thake hue the. Bahar se unhone ek taxi ki jisne thodi der baad unhen unke ghar ke aage lakar chhod diya.
Ghar pahunch kar usne lights on ki aur sidhi apne kamre mein lage full size mirror ke aage aa khadi hui taaki apne aapko nihaar sake. Saamne jo nazar aaya vo dekh kar uske munh se cheekh nikal gayi.
Heeron ka vo haar jo poori raat uske gale ki shaan bana hua tha ab uske gale se gayab tha.
"Chilla kyun rahi ho?" Nashe mein uska pati badbadaya.
Vo apne munh par haath rakhe uski taraf palti.
"Haar kho gaya"
"Kya?"
"Pallavi ka heeron wala haar" Vo haklate hue boli "Kho gaya"
Ek jhatke mein uske pati ka saar nasha gul ho gaya.
"Kho gaya matlab?? Aise kaise kho gaya?"
Unhen milkar apna poora ghan chhan mara. Uski dress ko utaar kar jhaada, coat mein check kiya, uske bag ko ulat kar dekha par haar ka kahin koi nishan nahi tha.
"Tumhein yakeen hai ke jab tum party mein se nikli thi toh haar gale mein tha?"
"Haan mujhe pata hai ke haar tha. Mrs. Malhotra ne bahar jaate jaate bhi haar ko dekh kar uski tareef ki thi"
"Par agar bahar kahin sadak par gira hota toh tumhein aawaz toh aati"
"Haan baat toh sahi hai. Ek min, vo taxi. Uska number yaad hai?" Vo achanak boli
"Nahi maine dhyaan nahi diya. Tumne dekha?"
"Nahi" Usne bhi inkaar mein gardan hila di.
Kuchh der tak vo dono aise hi bethe ek doosre ko dekhte rahe. Kuchh der baad uske pati ne uth kar phir se kapde pehne.
"Main dekh kar aata hoon. Shayad kahin gira mil jaaye"
Par aisa hua nahi. Vo jaakar har us jagah par dekh aaya jahan vo dono ek second ke liye bhi khade hue the par haar nahi mila.
"Ab main Pallavi ko kya jawab doongi?" Vo rote hue boli
"Use phone karke bolo ke haar ko hook tooh gaya hai aur tum theek karvake vaapis dogi. Thoda sochne ka time mil jaayega"
Aur apne pati ke kehne par usne aisa hi kiya.
Agle kuchh din tak vo dono kari baar party wali jagah par gaye, party mein aaye logon se puchha par haar ka kuchh pata nahi chala.
"Naya lekar dena padega, vaisa hi jaisa ke vo haar tha" Uske pati ne thak haar kar kaha.
Agle din vo haar ke dibbe par likha address dekh kar jewellery showroom pahunche.
"Ji haan hamare yahan se hi bika hai" Showroom mein dibba dekh kar johri ne kaha "Ye Nau-lakkha hamari speciality hai"
"Aisa hi ek banvana hai"
"Ji ban jaayega. 9 lakh mein se aadhe aapko advance dene honge aur baaki aadhe delivery par"
Keemat sun kar dono ki aankhen hairat se khuli ki khuli reh gayi par aur koi rasta tha bhi nahi. Unke agle kuchh din yahi sochne mein nikle ke 9 lakh ka intezaam kahan se karen. Uski shaadi ke gehne, pati ka provident fund, motorcycle sab cheezon ko jodkar dekha gaya par phir aakhir mein unhen apna ghar hi girvi
rakha pada.
4.5 lakh advance dete waqt usne haar mein lagne wale heeron aur baaki cheezon ko khud dekh kar ye tasallli ki thi ke haar bilkul vaisa hi dikhe jaisa ki Pallavi ke paas tha.
Ek mahine baad jab vo haar lautane gayi toh pehli baar Pallavi ne use dekh kar munh banaya.
"Mujhe beech mein zaroorat padi thi haar ki. Time pe vaapis karti yaar"
Par Pallavi ne dibba khol kar haar dekha nahi jiska use bahut dar tha. Haar hubahu Pallavi ke haar jaisa hi dikhta tha par vo kehte hain na ka chor ki daadhi mein tinka. Use lag raha tha ke Pallavi dibba khol kar dekhegi aur pehchan jaayegi ke ye haar uska nahi hai par aisa hua nahi.
Aur phir zindagi ne ek ajeeb sa mod le liye. Jis cheez se usko sakht nafrat thi vo ab aur zyada badh gayi thi yaani ke majboori.
Ghar mein kaam karne wali ladki ko hata diya gaya, uske shaadi ke gehne bech diye gaye, Patidev motorcycle bech kar bus mein safar karne lage. Dono ke dimag mein bas ek hi khyaal tha ke sar se kisi bhi tarah karz utaar kar apna ghar chhuda len isse pehle ke sadak par aane ki naubat aaye.
Aur phir usne bhi apni khyaali duniya chhod kar ghar sambhalna seekh liya. Bartan dhona, jhaadu pocha lagana, kapde dhona, khana pakana ye saare vo kaam the jo ek gareeb ghar mein paida hone ki vajah se use bahut pehle kar lene chahiye the par usne ab kiye. In sabse alag usne bhi ek office mein secretary ki naukri kar li.
Zyada padhi likhi vo thi nahi isliye us chhoti si naukri se jo bhi paise milte, sab bank ka karz chukane mein chale jaate.
Uske pati ne overtime karna shuru kar diya tha. Raat ko der se ghar aana aur subah hote hi office chale jana ab ek aadat si ban gayi thi. Aksar commission lekar vo kuchh bade bade accounts ka kaam ghar le aata aur poora Sunday usi mein guzaar deta.
Aur agle 10 saal tak unka yahi lifestyle raha.
kramashah....................
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