सुबह की कालिमा
अंकिता आज थोड़ा उलझन में है। वो जल्द से जल्द अपने रूम पर पहुँच जाना
चाहती है। न जाने क्यूँ उसे लग रहा है, ऑटो काफी धीमे चल रहा है। वो ऑटो
ड्राइवर को तेज़ चलाने के लिए बोलना चाहती है, पर कुछ सोच कर चुप रह जाती
है। आज उसे निर्णय लेना है। जिसके लिए उसे शांति चाहिए, शांत जगह। इस समय
उसे अपने कमरे से ज्यादा कोई और जगह मुनासिब नहीं लग रही है। पर आज न जाने
क्यूँ यह रास्ता उसे कुछ ज्यादा ही लम्बा लग रहा है। वैसे तो वो रोज़ ही इन
रास्तों से गुजरती है। यूनिवर्सिटी से उसके घर का रास्ता।
चाय का एक कप लेकर वो विंडो का पर्दा खिसका कर खड़ी हो जाती है। चाय का एक
घूंट ले कर वो विंडो से नीचे नज़र दौड़ाती है। इस विंडो से वो एक पतली काली
कोल तार की सड़क देख सकती है। रोज़ ही देखती है। इसमें अधिकतर पैदल राहगीर
ही गुजरते है। कुछ दुपहिया वाहन भी। कभी कभार इक्का दुक्का लाइट मोटर
व्हीकल भी। बड़े वहां गुजर नहीं सकते। सड़क के दोनों मुहाने पर जड़े वाहनों
का प्रवेश निषेध का साइन बोर्ड भी लगा है।
वो चाय का वापस घूंट लेती है। इस वक़्त सड़क लगभग सून-सान है। इक्का-दुक्का
लोग गुजर रहे है। तभी उसकी नज़र आ रहे तीन लोगों पर पड़ती है। एक लड़की,
दो लड़के। अंकिता उन्हें तब तक देखती रहती है, जब तक वे उसकी खिड़की के
नीचे से गुजर कर सड़क के दूसरे मुहाने से टर्न लेकर दिखना बंद नहीं हो
पाते।
अंकिता उन तीनों को आखिरी बिंदु तक देखती है। उनकी परछाई के छिप जाने तक।
उसके होठों पर मुस्कान तैर जाती है, कप चाय से खली हो चूका है, अंकिता किचन
में जा कर खली कप वाशबेसिन में रखती है। वापस आ कर बीएड पर लेट जाती है।
सर के नीचे तकिया रख कर आँखे मीच लेती है।
- आज उसे निर्णय लेना है।
- किसी और के लिए नहीं, खुद के लिए।
उसकी आँखों में एक के बाद एक, दो आते है।
- पहला चित्र है, समीर का। जो इसी गली के मुहाने पर बसे एक घर में किराये
पर रहता है। पिछले छह-सात महीने से वो उसे जानती है। समीर, स्थानीय स्तर पर
नाट्य संस्था से जुड़ा है। नुक्कड़ नाटक का मंचन करता है। खुद ही लिखता भी
है और निर्देशित भी। पर अब तक उसको कोई विशेष सफलता नहीं मिली है।
अंकिता एक नुक्कड़ नाटक देखने के समय समीर से मिली थी।
- पहली मुलाकात
- पहली मुलाक़ात में ही समीर, अंकिता को अलमस्त और खिल्दुंड नज़र आता है।
हमेशा हँसता चेहरा, हमेशा मजाक के मूड में। पहली मुलाकात में ही समीर
अंकिता से यू मिलता है ज्यों पहले कई बार मिल चूका हो।
उसका बेझिझक अंकिता को यार कह कर बुलाना, टाइम जानने के लिए बिना उसको
पूछे, उसकी कलाई पकड़ कर घड़ी से टाइम देख लेना।सब कुछ इतनी आसानी से समीर
ने किया मानो वो काफी पुराने दोस्त हो।
उसी दिन समीर उसे बाइक पर उसके काम तक छोड़ता है। अंकिता जब बाइक से उतर कर
जब उसे थैंक्स बोलना चाहती है। तो वह हंसने लगता है दीवानावार, काफी देर
बाद वो खुद को संयत करके ऊँगली से इशारा करके गली के दूसरे छोर को दिखा कर
बोलता है, वहां है मेरा रूम। इतना करीब रह कर भी इतनी देर से मुलाकात,
अंकिता भी हंस पड़ती है।
फिर वो अक्सर मिलने लगते है। दोस्ती प्रगाढ़ हो जाती है। पर उनके बीच प्यार जैसा कुछ नहीं। अंकिता ने कभी उसकी अनुमति भी नहीं दी।
आज सुबह समीर उसे प्रपोज करता है। जब वो यूनिवर्सिटी के लिए निकलती है, तो
गली के दूसरे छोर पर समीर अपनी बाइक पर बैठा हुआ है, अंकिता को देख कर
मुस्कराता है।
अंकिता उसकी बाइक पर बैठ जाती है। लगभग रोज़ का नियम है। समीर, अंकिता को
चौराहे तक छोड़ता है, जहाँ से उसे यूनिवर्सिटी जाने के लिए ऑटो मिल जाता
है। और समीर वहां से नाट्य मंडली की तरफ चला जाता है।
आज अंकिता जब बाइक से उतर कर बाय करके जाने लगी, तो दो मिनट प्लीज बोल कर
समीर उसे रोक लेता है। अंकिता उस के पास आकर खड़ी हो जाती है।
बाइक से उतर कर समीर, अंकिता के करीब आता है और होंठो पर मुस्कान लाकर
बिखेर कर कहता है- यार रोज़ खाना-नास्ता बनाने में और बर्तन धुलने में काफी
टाइम निकल जाता है। इस वजह से मेरा काम में पूरा ध्यान नहीं लगता है।
- अंकिता चुप रहती है, उसे समीर की बात का कोई जवाब नहीं सूझता है।
- समीर आगे कहता है- मैं सोचता हूँ, ये काम तुम्हारे हवाले कर दूँ।
- अंकिता चौक पड़ती है- 'व्हाट' मैं लखनऊ में क्या आयागिरी करने आई हूँ,
अरे मैं यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म की स्टूडेंट हूँ। आप ने ये कैसे सोच
लिया।
खिलखिला कर हंस पड़ता है समीर, कई पलों तक निश्छल हंसी। फिर सांसे संयत
करके कहता है- अरे समझी नहीं आप- अरे मैं ये काम आपको आया समझकर नहीं बल्कि
अपनी बीवी की हैसियत से देना चाहता हूँ।
''मुझसे शादी करोगी'' - अंकिता जी।
- अचम्भित रह गयी थी अंकिता, समीर के प्रपोज के इस अंदाज पर। प्यार के
रस्ते को पार करके सीधे शादी। चुप रह गयी वो। आँखे नीचे करके वहां से जाने
लगी तो पीछे से समीर बोला- जवाब नहीं दिया अपने।
- वो रुकी नहीं चलते-चलते बोली इस टॉपिक पर फिर कभी बात करेंगे, अभी क्लास को देर हो रही है।
- अंकिता क्लास रूम में आ के बैठ गयी। उसने कभी समीर को इस नज़र से नहीं
देखा, न कभी सोचा। पर उसके प्रपोज का ये अंदाज उसे गुदगुदा गया।
अंकिता उठती है, वापस अपने लिए चाय बनाती है। चाय के हल्के-हल्के सिप लेते हुए उसकी आँखों में दूसरा चित्र आता है।
यूनिवर्सिटी में उसका एक साल सीनियर- 'अतुल' उसके गीतों और कविताओं की साडी
यूनिवर्सिटी दीवानी है। सांवले और सौम्य अतुल को इस वर्ष उभरते हुए युवा
कवि के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
उसके लेखन से अंकिता भी प्रभावित है और शायद उसकी तरफ आकर्षित भी है। कई
बात उन दोनों की मुलाकात यूनिवर्सिटी के एकांत में होती है, और उस वक़्त
अतुल, अंकिता को अपनी प्रेम कवितायें सुनाता है। जो अंकिता के दिल में
गुदगुदी पैदा करती है।
आज लंच टाइम के बाद जब वो लाइब्रेरी में बैठी थी, तभी वहां अतुल आ जाता है।
और कई कवितायें सुनाने के बाद झिझकते-शर्माते अंकिता को प्रपोज करता है।
- एक ही दिन में अंकिता को दो लोग प्रपोज करते है, जिन्हें वो आजतक अपना
मित्र मानती आई है। पर उनमें से न जाने क्यूँ उसे अतुल ज्यादा भाता है।
सौम्य और शांत। देश का सबसे ज्यादा उभरता हुआ कवि। जब वो बिस्तर पर लेट कर
अतुल और समीर की तुलना करती है, तो खुद को अतुल के ज्यादा करीब पाती है।
उसका भविष्य यकीनन अतुल के साथ सुरक्षित है, क्यूँ की वो एक स्थापित
साहित्यकार हो चूका है। जबकि समीर एक स्ट्रगलर है और उसके खुद के भविष्य का
ठिकाना नहीं है। सो वो फैसला करती है,अतुल के प्रपोज को स्वीकार करने का।
अंकिता बिस्तर पर करवट लेती है वैसे ही उसके दीमाग में विचार भी करवट लेते
है।
अंकिता एक बार उन दोनों को करीब से जानना चाहती है, कोई अंतिम फैसला करने
से पहले। परसों उसका बर्थडे है। उस दिन वो अपने दोनों प्रेमियों में से
किसी एक से मिलने का प्लान करती है।
पर इस बार वो समीर को प्राथमिकता देती है। क्यूँ की उसने उसे पहले प्रपोज
किया है। अंकिता फ़ोन उठती है और कांपते हाथों से समीर का नंबर डायल करती
है।
- हैल्लो ! समीर बोलता है, अरे इतनी रात को अंकिता क्या कुछ प्रोब्लम तो नहीं हुई।
- नहीं-नहीं समीर सब ठीक है, बस मैंने आपको इनवाइट् करने के लिए फ़ोन किया
था। और फिर अंकिता उसे अपने बर्थ डे के लिए आमंत्रित करती है। जिसे समीर
हँसते हुए कबूल कर लेता है।
- अंकिता मोबाइल डिसकनेक्ट करने से पहले बोलिती है तो फिर ठीक शार्प ग्यारह बजे आप पहुँच रहे है।
- रात के ग्यारह बजे न, समीर कन्फर्म करता है।
- हाँ यार क्यूँ की मैं रात ग्यारह बजे ही पैदा हुई थी, अंकिता थोड़ी शोखी से बोलती है।
उस दिन समीर, अंकिता को फ़ोन करता है दोपहर को, पूछता है- बर्थडे की सब तैयारी हो गयी और क्या सब लोग इनवाइट् हो गए है।
- हाँ सब तैयारी हो गयी है- अंकिता बोलती है पर मेरे इस बर्थडे पर सिर्फ आप इनवाइट् है।
- सिर्फ मैं - समीर थोडा चौकता है।
- हाँ, अंकिता इतना ही बोल पाती है, की नेटवर्क प्रोब्लम की वजह से फ़ोन कट
जाता है। थोड़ी देर ट्राई करने के बाद अंकिता अन्य कामों में व्यस्त हो
जाती है।
आज अंकिता ने टी-शर्ट और स्कर्ट पहनी है, घुटने के उपर स्कर्ट। उसने एक दिन
नाटक में समीर की नायिका को ऐसी ही ड्रेस में देखा था। वह आज समीर को
अच्छी तरह से समझना चाहती है। टेबल पर उसने केक सजा दिया है, वहां सिर्फ दो
चेहरे है। अंकिता की गोरी कलाई में बंधी घडी की सुइयां अब ग्यारह बजाना
चाहती है।
अंकिता, समीर को याद दिलाने की गर्ज से उसे फ़ोन करती है, उधर से समीर कहता है, बस डियर पहुँच रहा हूँ, थोडा ट्राफिक में हूँ।
घडी की सुइयां ग्यारह क्रॉस कर चुकी है। समीर का फ़ोन नॉट रिचेबल है। अंकिता बेचैनी से टहलती है फिर बैठ जाती है।
अंकिता की आँख खुलती है, वो टेबल पर ही सर रख कर सो गयी थी। घडी पर नज़र
डालती है तो तीन बज चुका है। समीर का फ़ोन अब भी नॉट रिचेबल है। अंकिता के
चेहरे पर गुस्सा झलक पड़ता है। वो पैर पटक कर उठती है। और तेज़ क़दमों से
टहलने लगती है। उसे समीर की इस अदा पर नफरत होने लगती है, और वो गुस्से में
अतुल का नंबर डायल करती है।
केक खिलने के वक़्त अतुल के हाथ से केक फिसल कर अंकिता की शर्ट पर गिर जाता
है। अंकिता अभी आती हूँ, कह कर वाश रूम की तरफ चली जाती है।
टी-शर्ट उतार कर वो उस पर लगे केक को साफ़ कर रही है, तभी वहां अतुल आ जाता
है। सी एफ एल की रौशनी में अंकिता की नंगी पीठ और कंधे दूध की तरह चमक रहे
है।
अतुल आगे बढ़ कर अपने होंठ अंकिता के कंधे पर रख देता है। अंकिता चिहुंक कर
पलटती है तो बेलिबास उरोज अतुल के सीने में दुबक जाते है। अतुल उसे भींचते
हुए आई लव यू अंकिता कहता है।
- आई लव यू टू - अंकिता के होंठो से सिसकारी के साथ निकलता है।
अतुल, अंकिता को गोद में उठा कर उसे बिस्तर पर लाकर लिटा देता है। इस वक़्त
उसकी आखें बंद है और सांसे तेज़ है। वो अतुल को अपने बगल में महसूस करती
है। कोई विरोध नहीं। अतुल के हाथों की हरकतों के आगे वह समर्पित हो जाती
है। और अपने कौमार्य को उसके हवाले कर देती है।
किसी कवि सम्मलेन में जाने के लिए अतुल सवेरे छ: बजे अंकिता के रूम से
निकलता है, दरवाज़े पर वो पानी नयी-नवेली प्रियतमा के होंठो को आधुनिक किस
करता है।
अतुल को विदा करके, अंकिता वापस निढाल शरीर के साथ बिस्तर पर सो जाती है।
कई बार डोर बेल बजने के बाद उसकी आँख खुलती है। कोई बदस्तूर डोर बेल बजा
रहा है। अंकिता झुंझुला कर उठती है। डोर खोलती है तो सामने समीर है। हाथ
में फूलोंके गुलदस्ते के साथ।
अंकिता तंज लहजे में कहती है, अब क्या लेने आये हो, मेरा बर्थडे रात के
ग्यारह बजे था, दिन के नहीं। इतना बोल कर वो वापस दरवाज़ा बंद करने को होती
है पर समीर उसे के तरफ करके अन्दर आ जाता है।
टेबल पर रखे केक को समीर ऊँगली में लेके चखता है। फिर अंकिता के सामने घुटनों पर बैठ जाता है।
हाथ का गुलदस्ता उसकी तरफ बढ़ा के समीर कहता है- हैप्पी बर्थडे डियर।
- 'डोन्ट काल मी डियर '- इतना कह कर अंकिता घूम कर खड़ी हो जाती है।
उसके पीछे खड़े होकर समीर कहता है- मैं जनता हूँ आप नाराज़ है, मेरी वजह से आपका बर्थडे सेलिब्रेट न हो पाया।
पर मैं क्या करूँ अंकिता रात बहुत काली होती है। इतनी की इसमें जिंदगियां
काली हो जाती है। जरा सोचो जब लोगों को मालूम पड़ता सारी रात हम साथ थे बंद
कमरे में तो लोग न जाने क्या-क्या तुम्हारी पवित्रता के बारे में अफवाहें
फैलाते। मैं कैसे सुन पाता ये सब तुम्हारे बारे में जिसे मैं प्यार करता
हूँ।
- कुछ पलों बाद वो बोली - समीर तुम तो रात में चमकते सूरज की तरह, मैं
तुम्हें जान ही न पाई। अब मैं तुम्हारे लायक नहीं क्यूँ की मैं रात में
नहीं सुबह लुटी हूँ। सुबह की कालिमा में। इतना कह कर वो वहीं ज़मीन पर
रोते-रोते गिर पड़ी। उसने एक महान इंसान को पहचानने में गलती कर दी थी।
कुछ लम्हों बाद समीर ने उसे उठा कर चेयर पर बैठाया और बोल- मैं अब भी अपने प्रपोज का जवाब मांगता हूँ, क्या मुझसे शादी करोगी तुम ?
कुछ बोल न सकी वो। उसे चुप देख समीर बोला- ठीक है तुम आराम से सोच के बताना
कल या फिर ओर कभी, अभी मैं चलता हूँ। और वो पलट कर चल दिया।
अंकिता जाते हुए देवता को देख रही थी और फिर भाग कर वो समीर की पीठ से चिपट गयी और उसके होठ बार-बार यही दोहरा रहे थे-
'' हाँ मैं तुमसे शादी करुँगी’’,’’ हाँ मैं तुमसे शादी करुँगी ''
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