क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।
तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?
अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।
उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।
तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।
बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।
कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।
थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,
क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।
अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।
अब ख़ेर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।
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