Tuesday, August 9, 2011

जाने कैसा ये बंधन है?

जाने कैसा ये बंधन है?
उजला तन और मैला मन है।
एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से कंइ जानें लेता।
रहता बन के दोस्त सभी का।
पर ये तो उनका दुश्मन है।
इन्सानो के भेष में रहता।
शैतानों से काम वो करता।
बन के रहता देव सभी का।
पर ना ये दानव से कम है।
चाहे कितने भेष बनाये।
चाहे कितने भेद छुपाये।
राज़ उसके चेहरे में क्या है?
देखो सच कहता दर्पण है।

ये शहर अब वों शहर नहीं

ये शहर अब वों शहर नहीं,
 न जाने किसकी नज़र लगी?(2)
      
यहॉ झिलमिलाते चिराग थे,
यहॉ टिमटिमाते सितारे थे।
यहॉ रोज़ दिन में ईद थी,
यहॉ रात एक दीवाली थी।
अब यहॉ अमास का आसमॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

यहॉ ऊंचे मकान थे,
कभी इस में भी इन्सान थे।
यहॉ महेफिलॉ में थी रोशनी,
यहॉ बज़ती थी हर रागिनी।
अब यहॉ है खंडहर के नशॉ।…. न जाने किसकी नज़र लगी?(2)

यहॉ बागों में तो बहार थी।
यहॉ तितलीयॉ भी हज़ार थी।
ये सँवरता था दुल्हन तरहॉ,
ये महकता था गुलशन तरहॉ।
अब यहॉ लगा उज़डा समॉ।…. न ज़ाने किसकी नज़र लगी?(2)

गुज़रा वो ज़माना याद आया।

पीछे मुड के हमने जब देख़ा ,गुज़रा वो ज़माना याद आया।
बीती एक कहानी याद आइ, बीता एक फ़साना याद आया।…..पीछे.
सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)
जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।…..पीछे.
शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)
पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।…..पीछे.
दौलत ही नहीं ज़ीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते है।(2)
दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।…..पीछे.
शहरॉ की ज़गमग-ज़गमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)
सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।…..पीछे.
चलते ही रहे चलते ही रहे, मंजिल का पता मालूम न था।(2)
वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।…..पीछे.
अपनॉ ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)
कमज़ोर वो ऑखॉ से उन को वो अपना रुलाना याद आया।…..पीछे.
अय “राज़” कलम तुं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)
तेरी ये गज़ल में हमको भी कोइ वक़्त पुराना याद आया।…..पीछे.

ख़ुदा के घर से है ये ख़त, मेरे नाम आया


           



देख़ो लोगों मेरे जाने का है पैग़ाम आया..(2)
ख़ुदा के घर से है ये  ख़त, मेरे नाम आया….देख़ो लोगो…

जिसकी ख़वाहिश में ता-जिन्दगी तरसते रहे।
वो तो ना आये मगर मौत का ये जाम आया। ख़ुदा के घर…..

ज़िंदगी में हम चमकते रहे तारॉ की तरहॉ ।
रात जब ढल गइ, छुपने का ये मक़ाम आया। ख़ुदा के घर…..

राह तकते रहे-ता जिन्दगी दिदार में हम |
ना ख़बर आइ ना उनका कोइ सलाम आया । ख़ुदा के घर…..

चल चुके दूर तलक मंज़िलॉ की खोज में हम।
अब बहोत थक गये रुकने का ये मक़ाम आया। ख़ुदा के घर…..

हम मुहब्बत् में ज़माने को कुछ युं भूल गये ।
हम है दिवाने, ज़माने का ये इल्ज़ाम आया। ख़ुदा के घर…..

जिसने छोडा था ज़माने में युं तन्हा राज
क़ब्र तक छोड़ने वो क़ाफ़िला तमाम आया। ख़ुदा के घर….

नादान भोला ये बचपन।

बचपन हॉ हॉ ये बचपन।
नादान भोला ये बचपन।
कहीं ऑसु से भीगा ये बचपन।
कहीं पैसों में भीगा ये बचपन।
धूल-मिट्टी में खोया ये बचपन।
फ़ुटपाथसडक पर संजोया ये बचपन।
रेंकडी पर जुतों की पोलिश पर चमकता ये बचपन।
कहीं कुडेदान में खेलता ये बचपन।
कहीं गरम सुट में घुमता ये बचपन।
कहीं फ़टे कपडों में नंगा घुमता ये बचपन।
 कहीं मर्सीडीज़ कारों में घुमता ये बचपन।
कहीं कारो  केशीशे पोंछता  ये बचपन।
कहीं मेगेज़ीन बेचता ये बचपन।
कही  महेलों में   ज़ुलता ये बचपन।
कहीं फ़टी साडी में ज़ुलता ये बचपन।
कहीं केडबरीज़ के  रेपर में खोया ये बचपन।
कहीं सुख़ी रोटी की पोलीथीन में खोया ये बचपन।
कहीं एरोड्राम पर टहलता ये बचपन।
कहीं नट बनकर दोरी पर चलता ये बचपन।
पर……
कहीं बाई के हाथों में पलता ये बचपन।
तो कहीं ममता की छाया में संभलता ये बचपन।
बचपन हॉ हॉ ये बचपन।

हाय मेरा तड़पना मुझे याद है।

वक़्त ने साथ छोड़ा हमारा जो था,
हाय तेरा, तड़पना मुझे याद है।
मुंह छिपाकर तेरा मेरी आगोश में,
हाय कैसा बिलख़ना मुझे याद है।…हॉ मुझे याद है।

 प्यार की वादीओ में गुज़ारे जो पल,
कैसे दिल से ओ साथी भूला पायेंगे?
जिन लकीरों पे कस्मे जो खाइ थीं कल,
आज हम वो लकीरें मिटा पायेंगे?
 उन रक़ीबों के ज़ुल्मों को मेरे सनम,
हाय तेरा वो सहेना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है।

 ख्वाब हमने सज़ाये थे मिलकर सनम।
एक घरौंदा सुनहरा बनायेंगे हम।
साथ तेरा रहे, साथ मेरा रहे।
हमने ख़ाईं थीं इक-दूसरे की कसम|
 उन वफ़ाओं की राहों में मेरे सनम,
आज भी सर ज़ुकाना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है.

 क्या करें मेरे महबूब अय जानेमन!
हम भी वक़तों के हाथों से मजबूर हैं।
ना नसीबा ही अपना हमें साथ दे।
ईसलीये  ही तो हम आज यूं दूर है।
 हिज्र के वक़्त में ओ मेरे हमसुख़न।
आज तेरा सिसकना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है.

हाय चलती हवाओं उसे थाम लो।
ठंडी-ठंडी फ़िज़ाओ मेरा नाम लो।
सर से उस के जो पल्लू बिख़र जायेगा,
आहें भर के ये माशुक़ मर जायेगा।
याद जब जब करेंगे हमें राज़ तब।
हाय मेरा तड़पना मुझे याद है।

वही कारवॉ की तलाश है।

मेरे पंख मुज़से न छीनलो,
 मुझे आसमॉ की तलाश है।
मैं हवा हूँ मुझको न बॉधलो ,
मुझे ये समॉ की तलाश है।


मुझे मालोज़र की ज़रुर क्या?
मुझे तख़्तो-ताज न चाहिये !
जो जगह पे मुज़को सुक़ुं मिले,
मुझे वो जहाँ की तलाश है।


मैं तो फ़ुल हूं एक बाग़ का।
मुझे शाख़ पे बस छोड दो।
में खिला अभी-अभी तो हूं।
मुझे ग़ुलसीतॉ की तलाश है।


न हो भेद भाषा या धर्म के।
न हो ऊंच-नीच या करम के।
जो समझ सके मेरे शब्द को।
वही हम-ज़बॉ की तलाश है।

जो अमन का हो, जो हो चैन का।
जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा न हो।
पैगाम दे हमें प्यार का ।
वही कारवॉ की तलाश है।

ज़िंदगी तूने बसाया अपनी ये आग़ोश में।

ज़िंदगी तूने बसाया अपनी ये आग़ोश में।
ज़िंदगी तूने समाया अपनी ये आग़ोश में।

मरसिये ग़म के कभी तो खुशीयों के गाने यहां।
वाह क्या क्या है सूनाया, अपनी ये आग़ोश में।

तूने जो चाहा, सराहा, अपनी मरज़ी से यहां।
झांसा देकर यूँ हंसाया अपनी ये आग़ोश में।

फ़ल्क़ पर ले जा बिठाया, या गिराया रेत पर।
तूने जी चाहा उठाया, अपनी ये आग़ोश में।

तेरी ही मरज़ी यहां चलती रही है ज़िंदगी।
तूने ही सब कुछ दिलाया, अपनी ये आग़ोश में।

हम बने माटी से है, हम पे हमारा जोर क्या?
 तूने हमको है बनाया, अपनी ये आग़ोश में।

ज़िंदगी तू भी न जाने क्या लकीरें दे गई?
है बनाया और मिटाया, अपनी ही आग़ोश में।

 राज़ अब तो क्या शिकायत ज़िंदगी से  है तुम्हें?
तुम ये गिनलो क्या है पाया, अपनी ये आग़ोश में?

आया मौसम बड़ा ही सुहाना

आया मौसम बड़ा ही सुहाना।(2)
ले के आया है कोई ख़ज़ाना।…आया मौसम…

आसमॉं पे है बदरी जो छाई,
जैसे काली-सी चादर बिछाई।
डूबा मस्ती में सारा ज़माना।हो…(2)
 ले के आया है कोई ख़जाना।…आया मौसम…

 आज बादल से बरख़ा गीरि है।
 सुख़ी धरती को ठंडक मिली है।
 कैसे निकला है धरती से दाना हो..(2)
ले के आया है कोई ख़जाना।…आया मौसम…
आज बरख़ा ने सब को भिगोया।
धूल-मिट्टी को पेड़ों से धोया।
कहे के भूलो हुवा ये पुराना हो..(2)
ले के आया है कोई ख़जाना।…आया मौसम…
सारे पंछी भी गाने लगे है।               
सारे प्राणी नहाने लगे है।
मोर-पपीहा हुवा है दीवाना हो…(2)
                 ले के आया है कोई ख़जाना।…आया मौसम…
नन्हें बच्चों ने कश्ती बनाई।
बहते पानी में उसको चलाइ।
और छेड़ा है कोई तराना हो..(2)
                 ले के आया है कोई ख़जाना।…आया मौसम…
आओ हम भी ये मस्ती में झुमे।
गिरती बारिश की बुंदों को चुमें।
‘राज़’ तुम भी करो कुछ बहाना हो..(2)
                 ले के आया है कोई ख़जाना।…आया मौसम…

कानों में गुनगुनातीं हैं वो माँ की लोरियाँ।

कानों में गुनगुनातीं हैं वो माँ की लोरियाँ।
बचपन में ले के जाती हैं वो माँ की लोरियाँ।
लग जाये जो कभी किसी अनजान सी नज़र,
नजरें उतार जाती हैं वो माँ की लोरियाँ।
भटकें जो राह हमारा कभी अपनों के साथ से,
आके हमें मिलाती हैं वो माँ की लोरियाँ।
हो ग़मज़दा जो दिल कभी करता है याद जब,
हमको बड़ा हँसाती हैं वो माँ की लोरियाँ।
अफ़्सुर्दगी कभी हो या तनहाई हो कभी,
अहसास कुछ दिलाती है वो माँ की लोरियाँ।
पलकों पे हाथ फ़ेरके ख़्वाबों में ले गइ,
मीठा-मधुर गाती हैं वो माँ की लोरियाँ।
दुनिया के ग़म को पी के जो हम आज थक गये,
अमृत हमें पिलाती हैं वो माँ की लोरियाँ।
माँ ही हमारी राहगीर ज़िंदगी की है,
जीना वही सिखाती है वो माँ की लोरियाँ।
अय “राज़” माँ ही एक है दुनिया में ऐसा नाम,
धड़कन में जो समाती हैं वो माँ की लोरियाँ।

गीत कोइ प्यार के बस गुनगुनाता तू चलाजा।

आदमी है, आदमी से मिल मिलाता तू चलाजा।
गीत कोइ प्यार के बस गुनगुनाता तू चलाजा।


गर तुझे अँधियारा राहों में मिले तो याद रख़,
हर जगह दीपक उजाले के जलाता तू चलाजा।


जो तुझे चूभ जायें काँटे, राह में हो बेखबर,
अपने हाथों से हटा कर, गुल बिछाता तू चलाजा।


सामने तेरे ख़डी है जिंदगानी देख ले,
बीती यादों को सदा दिल से मिटाता तू चलाजा।

राज़ हम आये हैं दुनिया में ही ज़ीने के लिये।
हँस के जी ले प्यार से और मुस्कुराता  तू चलाजा।

क्यों दौड रहा है किसी परछाइ के पीछे?

                               क्यों दौड रहा है किसी परछाइ के पीछे?
आगे तो ज़रा देख वो छाया तो नहीं है?

           इतना तो न बन अँध, ओ नादान मुसाफिर !
        क्या है ये हक़िकत या कि माया तो नहि है?

             जिसको तु समज़ता है हमेंशा से ही अपना।
     तेरा ही है या और-पराया तो नहिं है?

               जुगनु की चमक देख के खिंचता चला है तु,
                ये तुज़को दिखाने को सजाया तो नहिं है?

                       सहेरा में कहीं बहता है पानी अरे “राज ” !
                   धोख़ा है समज़ ये तो बहाया ही नहिं है?

ज़ाम जब पी ही लिया है तो सँभलना कैसा?

ज़ाम जब पी ही लिया है तो सँभलना कैसा?
समंदर सामने है फ़िर अपना  तरसना कैसा?


ख़ुलके जी लेते है वों फ़ुल भी कुछ पल के लिये।
हम भी जी लें ये बहारों में सिमटना कैसा?


ख़ुदको चट्टान की मजबूती से तोला था कभी !
तो क्यों ये मोम बने तेरा पिघलना कैसा?


सामने राह खुली है तो चलो मंजिल तक।
कारवाँ बनके बया बाँ में भटकना कैसा?


न कोइ भूल ना गुनाह हुवा है तुज़से,
देखकर आईना तेरा ये लरजना कैसा?


दस्तखत कोइ नहिं जिंदगी के पन्नों पर।
राज़ दिल ये तो बता तेरा धड़कना कैसा?

मेरी ख़ामोशीओं की गुंज सदा देती है।

मेरी ख़ामोशीओं की गुंज सदा देती है।
तू सुने या ना सुने तुज़को दुआ देती है।
 मैंने पलकों में छुपा रख्खे थे आँसू अपने।(2)
रोकना चाहा मगर फ़िर भी बहा देती है।
 मैंने पाला था बड़े नाज़-मुहब्बत से तुझे(2)
क्या ख़बर जिंदगी ये उसकी सज़ा देती है।
 तूँ ज़माने की फ़िज़ाओं में कहीं गुम हो चला(2)
तेरे अहसास की खुशबू ये हवा देती है।
 तूँ कहीं भी रहेअय लाल मेरे दूरी पर(2)
दिल की आहट ही मुझे तेरा पता देती है।

फ़िर आज़ तिरंगा छाया है।

देख़ो भारतवालो देख़ो, फ़िर आज़ तिरंगा छाया है।
है पर्व देश का आज यहाँ, ये याद दिलाने आया है।
रंग है केसरीया क्रांति का, और सफ़ेद है जो शांति का।
हरियाला रंग है हराभरा, पैग़ाम देशकी उन्नति का।
अशोकचक्र ने भारत को प्रगति करना जो सिखाया है।
देख़ो भारतवालो देख़ो ।
वो वीर सिपाही होते हैं,सरहद पे शहीदी पाते है।
वो भारत के शुरवीर शहीद सम्मान राष्ट्र का पाते है।
वो बडे नसीबोंवाले है, मरने पर जिन्हें उढाया है।
 देख़ो भारतवालो देख़ो।
हम वादा करते है हरदम, सम्मान करेंगे इसका हम।
चाहे जो जान चली जाये, पीछे ना हटेंगे अपने क़दम।
जन-गण-मन गीत सभी ने फ़िर एक ऊंचे सुर में गाया है।
 देख़ो भारतवालो देख़ो।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, बंगाल से कच्छ की ख़ाडी तक।
उत्तर से दक्षिण, पष्चीम से पूरब की हर हरियाली तक।
हर और तिरंगा छाया है, और भारत में लहराया है।
 देख़ो भारतवालो देख़ो।

क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?


क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।
तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?
अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।
                      उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।
                      तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।
                      बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।
                      कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।
                      थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,
                      क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।
                      अय राज़ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।
                      अब ख़ेर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।

मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।

अंधेरे हैं भागे प्रहर हो चली है।
परिंदों को उसकी ख़बर हो चली है।

सुहाना समाँ है हँसी है ये मंज़र।
ये मीठी सुहानी सहर हो चली है।

कटी रात के कुछ ख़यालों में अब ये।
जो इठलाती कैसी लहर हो चली है।

जो नदिया से मिलने की चाहत है उसकी।
उछलती मचलती नहर हो चली है।

सुहानी-सी रंगत को अपनों में बाँधे।
ये तितली जो खोले हुए पर चली है।

है क़ुदरत के पहलू में जन्नत की खुशबू।
बिख़र के जगत में असर हो चली है।

मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।
चलो राज़ अब तो उमर हो चली है।

सहारे छूट जाते हैं।


बूरा जब वक़्त आता है, सहारे छूट जाते हैं।
जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
जो चंदा को ग्रहण लग जाये, सूरज साथ छोडे तो,
वो ज़गमग आसमाँ के भी सितारे छूट जाते है।
जिन्हें पैदा किया, पाला, बडे ही चाव से हमने।
जवानी की उडानों में, दूलारे छूट जाते है।
जो दिल में दर्द हो ग़र्दीश में जीवन आ गया हो तब,
कभी लगते थे वो सुंदर, नज़ारे छूट जाते है।
जो दौलत हाथ में हो तब, पतंगा बन के वो घूमे,
चली जाये जो दौलत तो वो प्यारे छूट जाते है।
मुसीबत में ही तेरे काम कोइ आये ना ‘राज ”
यकीनन दिल से अपने ही हमारे छूट जाते है।
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