Wednesday, July 22, 2009

वही शाम वही रात और वही चांदनी,





वही शाम वही रात और वही चांदनी,

कुछ अलग है तो बस, ये बहती आँखें,

इनमे तन्हाई और चाहत का बसेरा …

कितने गुज़रे पर आज भी एक सावन बसा रखा है.....





Wahi sham wahi raat aur wahi chandni,


Kuchh alag hai to bas, ye behti ankhein,


Inmein tanhai aur chahat ka basera...


Kitne guzre par aaj bhi ek Saawan basa rakha hai...











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