Friday, March 13, 2009
अष्टम महागौरी
अष्टम महागौरी
ॐनमोभगवती महागौरीवृषारूढेश्रींहीं क्लींहूं फट् स्वाहा।
भगवती महागौरीवृषभ के पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है। मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, जिनके कानों में रत्नजडितकुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती महागौरीहैं।
ध्यान:-वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
स्तोत्र:-सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥
कवच:-ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
भगवती महागौरीका ध्यान स्तोत्र और कवच का पाठ करने से सोमचक्र जाग्रत होता है, जिससे चले आ रहे संकट से मुक्ति होती है, पारिवारिक दायित्व की पूíत होती है वह आíथक समृद्धि होती है।
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