Monday, December 29, 2008

कहने को तो वो

कहने को तो वो मुझे अपनी निशानी दे गया
मुझ से लेकर मुझको ही मेरी कहानी दे गया

जिसको अपना मान कर रोएँ कोई पहलू नहीं
कहने को सारा जहां दामन ज़ुबानी दे गया

घर में मेरे उस बुढ़ापे के लिए कमरा नहीं
वो जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया

आदमी को आदमी से जब भी लड़ना था कभी
वो ख़ुदा के नाम का क़िस्सा बयानी दे गया

उस के जाने पर भला रोएँ कभी क्यों जो मुझे
ज़िंदगी भर के लिए यादें सुहानी दे गया


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