कहने को तो वो मुझे अपनी निशानी दे गया
मुझ से लेकर मुझको ही मेरी कहानी दे गया
जिसको अपना मान कर रोएँ कोई पहलू नहीं
कहने को सारा जहां दामन ज़ुबानी दे गया
घर में मेरे उस बुढ़ापे के लिए कमरा नहीं
वो जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया
आदमी को आदमी से जब भी लड़ना था कभी
वो ख़ुदा के नाम का क़िस्सा बयानी दे गया
उस के जाने पर भला रोएँ कभी क्यों जो मुझे
ज़िंदगी भर के लिए यादें सुहानी दे गया
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