एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-2
ख़ौफ़--2
गतान्क से आगे...........
और बातरूम के दरवाज़े के बाहर मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी. कहीं कुच्छ ज़मीन पर गिरने की आवाज़. आवाज़ बहुत धीमी सी थी पर सॉफ थी. मैने अपनी आँखें पूरी खोली और बाथरूम के दरवाज़े पर एक पल के लिए रुका.
तभी आवाज़ फिर से आई. इस बार आवाज़ गिरने की नही थी. एक अजीब सी आवाज़ थी. यूँ लगा जैसे किसी तेज़ धार वाली चीज़ से कहीं कोई कुच्छ खुरछ रहा हूँ. जैसे किसी चाकू या कील को अगर शीशे पर घिसा जाए वैसी आवाज़.
आवाज़ मेरे मोम डॅड के कमरे की तरफ से आई थी जो की बहुत अजीब बात थी. मेरे मोम और डॅड दोनो की ही आदत थी के जल्दी सो जाया करते थे और जल्दी उठकर पार्क में वॉक के लिए जाते थे. मुझे टीवी की आवाज़ कम रखने की हिदायत देते हुए रात के 10 बजे तक उनके रूम की लाइट्स ऑफ हो जाया करती जिसका मतलब था के रात के 1 बजे तक वो दोनो ही बहुत गहरी नींद में होते थे.
पर उस रात ऐसा नही था. उनके कमरे की लाइट जली हुई थी और अंदर से वो अजीब आवाज़ें आ रही थी. एक पल के लिए मैं बाथरूम का दरवाज़ा छ्चोड़ कर उनके कमरे की तरफ बढ़ा और काश के मैने ऐसा किया भी होता.
काश मैं उनके कमरे में जाता, देखता के अंदर क्या हो रहा है. उसके बाद जो कुच्छ भी होता वो मेरी फिलहाल की सिचुयेशन से तो बेहतर ही होता. पर मैने ऐसा किया नही.
उनके कमरे में जाकर देखने के बजाय मैने पहला बाथरूम जाना ज़रूरी समझा. ये सोचकर के पहले बाथरूम हो आता हूँ उसके बाद देख लूँगा, मैं उनके कमरे की तरफ जाता जाता फिर से पलटा और बाथरूम में दाखिल हो गया.
और एक बार मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी. इस बार भी वही कुच्छ खुरचने जैसी आवाज़ पर उसके बाद एक और आवाज़ आई जिसने मेरा ध्यान सबसे ज़्यादा अपनी और खींचा. किसी के मुँह को हाथ रख कर बंद कर दिया जाए तो कैसी गून गून की आवाज़ निकलती है, वैसी ही आवाज़. मैं जल्दी से अपना काम निपटाया और बाथरूम से बाहर निकल कर अपने पेरेंट्स के रूम की तरफ बढ़ा.
उनके कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था पर अंदर का कुच्छ नज़र नही आ रहा था. मैं अभी दरवाज़े से ज़रा दूर ही था के मुझे वाइट मार्बल फ्लोर पर लाल रंग नज़र आया. लाल रंग जो बहता हुआ धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ रहा था.
बहुत पहले एक कहानी सुनी थी. अकबर के दरबार में किसी ने कहा के माँ बाप को अपने बच्चे की जान ज़्यादा प्यारी होती है. सब लोग इस बात से सहमत हो गये सिवाय बीरबल के. उसका कहना था के हर किसी को अपनी जान सबसे ज़्यादा प्यारी होती है और उसके बाद किसी और की. लंबी चौड़ी बहस के बाद बादशाह अकबर ने बीरबल को अपनी बात साबित करने को कहा.
बीरबल ने सिपाहियों को एक ऐसी बंदरिया पकड़ कर लाने को कहा जिसके पास छ्होटा सा बच्चा हो. जब सिपाही बंदरिया पकड़ लाए तो बंदरिया को एक पानी के सूखे टॅंक में उसके बच्चे के साथ बाँध दिया गया. फिर बीरबल ने सिपाहियों को टॅंक में पानी भरने को कहा.
जैसा के होना था, बंदरिया घबरा गयी पर उसके उसके पावं ज़ंजीर से बँधे हुए थे इसलिए भाग नही सकती थी. पानी धीरे धीरे टॅंक में भरने लगा और बंदरिया ने अपने बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया. पानी जब और उपेर आया तो उसने अपने बच्चे को अपने सर पर बैठा लिया. सिपाही पानी डालते रहे और बहुत जल्द पानी बंदरिया के सर के उपेर चला गया.
थोड़ी देर तक तो वो अपने बच्चे को अपने हाथों में सर के उपेर उठाए खड़ी रही ताकि बच्चा पानी से बाहर रहे. पर कुच्छ पल बाद जब उसका दम घुता तो उसने फ़ौरन बच्चे को एक तरफ फेंका और हाथ पावं मारते हुए अपने आपको पानी के उपेर रखने की कोशिश करने लगी. उस वक़्त अपने बच्चे का जो की पानी में डूब रहा था उसे कोई ख्याल नही था.
ठीक वही हाल मेरा भी हुआ. अपने माँ बाप के कमरे की तरफ बढ़ता बढ़ता मैं अचानक रुक गया और उनके कमरे से ज़मीन पर बहता हुआ दरवाज़े से बाहर आता खून देखने लगा. मुझे समझ नही आया के क्या करूँ. मैं जानता था के कमरे में सिर्फ़ मेरे माँ बाप तो ये खून भी सिर्फ़ उन्ही का हो सकता है. वहाँ खड़ा मैं सिर्फ़ नीचे खून की तरफ देख रहा था.
मेरे पावं जैसे एक जगह पर जम गये थे, साँस उपेर की उपेर नीचे की नीचे रह गयी थी और दिल की धड़कन तेज़ हो चली थी.
इससे पहले के मैं कुच्छ सोच या समझ पाता, पूरे घर में मेरी माँ की चीख गूँज उठी. एक दर्द भरी चीख जिसको सुनकर ही अंदाज़ा हो गया के चीख मारने वाली बहुत तकलीफ़ में है और मदद के लिए पुकार रही है.
और उस चीख ने मेरी सोच को एक दिशा दे दी. वहाँ खड़ा जो मैं पहले समझ नही पा रहा था के क्या करूँ अब जानता था के क्या करना है. ख़ौफ़ मेरे पूरे शरीर में दौड़ गया, दिल की धड़कन तेज़ हो गयी, शरीर के बॉल खड़े हो गये और अंदर का जानवर बाहर आ गया.
मैं उस वक़्त भी आधी नींद में था. कॉफ सरप का नशा अब तक मेरे ज़हन पर सवार था.
मैं पलट कर अपने कमरे की तरफ भागा और अंदर आकर सीधा अपने बिस्तर में जा घुसा. किसी छ्होटे बच्चे की तरह मैने चादर अपने उपेर खींची और दीवार की तरफ करवट लेकर लेट गया. आँखें मैने कस कर बंद कर ली थी.
आप सोचेंगे ये ऐसा तो कोई 10 साल का छ्होटा बच्चा करेगा. इसमें आपका कसूर नही है. आप ऐसा इसलिए सोच रहे हैं क्यूंकी कभी आप की जान पर बनी नही. कभी आपके साथ ऐसा हुआ नही जबके आपके माँ बाप के कमरे से खून बह कर बाहर आ रहा हो, जब आपकी माँ की चीख घर में गूँजी हो, जबके आप जानते हों के ये जिस किसी ने भी किया है वो अभी घर में ही है और जब के आप जानते हो के आपकी एक हल्की सी ग़लती, एक हल्की सी आहट आपकी जान ले सकती है.
और यकीन मानिए, आप ये सुनकर हसेन्गे पर यकीन मानिए ऐसा हुआ के बिस्तर पर लेट कर मैने अपनी आँखें बंद की और अपने आपको ये समझाने लगा के मैने अभी अभी कोई सपना देखा है. के मैं अभी अभी नींद से जागा हूँ और ऐसा कुच्छ नही हुआ है.
और इससे ज़्यादा हसी की बात ये है के जो अभी अभी देखा था, उससे झटका खाए मेरे दिमाग़ ने मेरी बात मान भी ली. मैने खुद अपने आपको बहलाया और मैं ये जानते हुए के मैं ही अपने आपको बहला रहा हूँ, बहल भी गया.
है ना कमाल की बात? पर ऐसा होता है. जब इंसान गहरे सदमे में हो, बहुत बड़ा झटका खाया हो, जब कुच्छ ऐसा हुआ हो जो कभी पहले नही हुआ था, जब अपनी जान पर बन आई हो तो क्या देखा था, क्या सुना था, क्या सही था और क्या ग़लत था, इसका फ़ैसला करना बहुत मुश्किल हो जाता है.
और शायद मेरी आँख लग भी जाती, शायद मैं हर बात से अंजान होकर सो भी जाता अगर मेरी दरवाज़े पर आहट ना हुई होती.
मेरे कमरे में पूरी तरह अंधेरा था और बाहर ड्रॉयिंग रूम में जल रहे नाइट बल्ब की हल्की सी लाइट आ रही थी. आहट पर मैने अपनी आँखें खोली तो मुझे 4 बातों का एहसास एक साथ हुआ.
पहली तो ये केरे मेरे कमरे के दरवाज़े पर कोई खड़ा था जिसको मैं अंधेरा होने की वजह से देख नही पाया. बस अंधेरे में एक साया नज़र आ रहा था.
दूसरी बात ये के जो कुच्छ भी मैं अपने आपको एक सपना, एक ख्वाब, एक ख्याल बता रहा था, सब सच था. मैं सच में खून देखा था और बहुत मुमकिन था के दूसरे कमरे में अब तक मेरे माँ बाप मर चुके हों.
तीसरी बात ये के मैं आया तो दीवार की तरफ करवट लेकर लेटा था पर अब मेरी करवट दरवाज़े की तरफ थी. ये कब हुआ था मुझे याद नही था मतलब के मैं सच में अपने आपको सपने का बहाना देकर सो गया था. शायद इसकी वजह कॉफ सरप था जिसे पीने के बाद मैं बिन पिए शराबी हो जाता था और नींद में टूलता रहता था.
और चौथी सबसे ज़रूरी बात ये के शायद अब मेरी जान भी ख़तरे में थी.
वो जो कोई भी था अब मेरे कमरे में था. उसके कदमों के चलने की आवाज़ से मैं अंदाज़ा लगा रहा था के वो मेरे कमरे में इधर उधर चल रहा था. मैं ज़ेह्नी तौर पर अपने आपको इस बात के लिए तैय्यार कर रहा था के किसी भी पल मुझे बिस्तर से नीचे खींच कर गिरा दिया जाएगा, मारा पिता जाएगा या आवाज़ देकर जगाया जाएगा.
दिमाग़ ने एक बार फिर कबड्डी खेलनी शुरू कर दी थी. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. क्या उठकर एकदम से बाहर दरवाज़े के तरफ दौड़ लगा दूँ या उठकर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दूँ.
चिल्लाना, चीख और तभी मुझे ध्यान आया के मेरी माँ ने भी तो ज़ोर से चीख मारी थी. वो काफ़ी ज़ोर से चिल्लाई थी तो अब तक कोई सुन कर आया क्यूँ नही था? मुझे एक एक करके अपने पड़ोसियों के नाम याद आ रहे थे. अपने घर के बगल में रहने वालो को याद कर रहा था और उम्मीद कर रहा था के कोई तो उठेगा, कोई तो आएगा.
मुझे चीख पर इतना ध्यान इसलिए भी था क्यूंकी इस पर मेरी जान टिकी हुई थी. मुझे बहुत उम्मीद थी के कोई सुनेगा और आएगा. और मुझे बचाएगा.
पर मेरी सोच ग़लत साबित हो रही थी. ना तो किसी के आने की आवाज़ सुनाई दे रही थी और ना ही मुझे आवाज़ देकर उठाया गया या बिस्तर से नीचे खींचा गया. बस उसकी आहत की आवाज़ आ रही थी. मैं जानता था के वो मेरे कमरे में है, कुच्छ कर रहा है पर क्या, ये समझ नही आ रहा था.
क्रमशः....................................................
KHAUFF--2
gataank se aage...........
Aur bathroom ke darwaze ke bahar mujhe phir vahi aawaz sunai di. Kahin kuchh zameen par girne ki aawaz. Aawaz bahut dheemi si thi par saaf thi. Maine apni aankhen poori kholi aur bathroom ke darwaze par ek pal ke liye ruka.
Tabhi aawaz phir se aayi. Is baar aawaz girne ki nahi thi. Ek ajeeb si aawaz tha. Yun laga jaise kisi tez dhaar wali cheez se kahin koi kuchh khurach raha hoon. Jaise kisi chaaku ya keel ko agar sheeshe par ghisa jaaye vaisi aawaz.
Aawaz mere mom dad ke kamre ki taraf se aayi thi jo ki bahut ajeeb baat thi. Mere mom aur dad dono ki hi aadat thi ke jaldi so jaaya karte the aur jaldi uthkar park mein walk ke liye jaate the. Mujhe TV ki aawaz kam rakhne ki hidayat dete hue Raat ke 10 baje tak unke room ki lights off ho jaaya karti jiska matlab tha ke raat ke 1 baje tak vo dono hi bahut gehri neend mein hote the.
Par us raat aisa nahi tha. Unke kamre ki light jali hui thi aur andar se vo ajeeb aawazen aa rahi thi. Ek pal ke liye main bathroom ka darwaza chhod kar unke kamre ki taraf badha aur kaash ke maine aisa kiya bhi hota.
Kaash main unke kamre mein jata, dekhta ke andar kya ho raha hai. Uske baad jo kuchh bhi hota vo meri filhal ki situation se toh behtar hi hota. Par maine aisa kiya nahi.
Unke kamre mein jakar dekhne ke bajay maine pehla bathroom jana zaroori samjha. Ye sochkar ke pehle bathroom ho aata hoon uske baad dekh loonga, main unke kamre ki taraf jata jata phir se palta aur bathroom mein daakhil ho gaya.
Aur ek baar mujhe phir vahi aawaz sunai di. Is baar bhi vahi kuchh khurachne jaisi aawaz par uske baad ek aur aawaz aayi jisne mera dhyaan sabse zyada apni aur khincha. Kisi ke munh ko haath rakh kar band kar diya jaaye toh kaisi goon goon ki aawaz nikalti hai, vaisi hi aawaz. Main jaldi se apna kaam niptaya aur bathroom se bahar nikal kar apne parents ke room ki taraf badha.
Unke kamre ka darwaza aadha khula hua tha par andar ka kuchh nazar nahi aa raha tha. Main abhi darwaze se zara door hi tha ke mujhe white marble floor par laal rang nazar aaya. Laal rang jo behta hua dheere dheere darwaze ki taraf badh raha tha.
Bahut pehle ek kahani suni thi. Akbar ke darbar mein kisi ne kaha ke maan baap ko apne bachche ki jaan zyada pyaari hoti hai. Sab log is baat se sehmat ho gaye sivaay Birbal ke. Uska kehna tha ke har kisi ko apne jaan sabse zyada pyaari hoti hai aur uske baad kisi aur ki. Lambi chaudi behar ke baad Baadshah akbar ne Birbal ko apni baat saabit karne ko kaha.
Birbal ne sipahiyon ko ek aisi bandariya pakad kar laane ko kaha jiske paas chhota sa bachcha ho. Jab sipahi bandariya pakad laaye toh bandariya ko ek pani ke sookhe tank mein uske bachche ke saath baandh diya gaya. Phir Birbal ne sipahiyon ko tank mein pani bharne ko kaha.
Jaisa ke hona tha, bandariya ghabra gayi par uske uske paon zanjeer se bandhe hue the isliye bhaag nahi sakti thi. Pani dheere dheere tank mein bharne laga aur bandariya ne apne bachche ko apne haathon mein utha liya. Pani jab aur uper aaya toh usne apne bachche ko apne sar par betha liya. Sipahi pani daalte rahe aur bahut jald pani bandariya ke sar ke uper chala gaya.
Thodi der tak toh vo apne bachche ko apne haathon mein sar ke uper uthaye khadi rahi taaki bachcha pani se bahar rahe. Par kuchh pal baad jab uska dam ghuta toh usne fauran bachce ko ek taraf phenka aur haath paon maarte hue apne aapko Pani ke uper rakhne ki koshish karne lagi. Us waqt apne bachche ka jo ki pani mein doob raha tha use koi khyaal nahi tha.
Theek vahi haal mera bhi hua. Apne maan baap ke kamre ki taraf badhta badhta main achanak ruk gaya aur unke kamre se zameen par behta hua darwaze se bahar aata khoon dekhne laga. Mujhe samajh nahi aaya ke kya karun. Main janta tha ke kamre mein sirf mere maan baap toh ye khoon bhi sirf unhi ka ho sakta hai. Vahan khada main sirf neeche khoon ki taraf dekh raha tha.
Mere paon jaise ek jagah par jam gaye the, saans uper ki uper neeche ki neeche reh gayi thi aur dil ki dhadkan tez ho chali thi.
Isse pehle ke main kuchh soch ya samajh pata, poore ghar mein meri maan ki cheekh goonj uthi. Ek dard bhari cheekh jisko sunkar hi andaza ho gaye ke cheekh maarne wali bahut takleef mein hai aur madad ke liye pukaar rahi hai.
Aur us cheekh ne meri soch ko ek disha de di. Vahan khada jo main pehle samajh nahi pa raha tha ke kya karun ab janta tha ke kya karna hai. Khauff mere poore shareer mein daud gaya, dil ki dhadkan tez ho gayi, shareer ke baal khade ho gaye aur andar ka janwar bahar aa gaya.
Main us waqt bhi aadhi neend mein tha. Cough Syrup ka nasha ab tak mere zehan par sawar tha.
Main palat kar apne kamre ki taraf bhaga aur andar aakar sidha apne bistar mein ja ghusa. Kisi chhote bachche ki tarah maine chadar apne uper khinchi aur deewar ki taraf karwat lekar let gaya. Aankhen maine kas kar band kar li thi.
Aap sochenge ye aisa toh koi 10 saal ka chhota bachcha karega. Ismein aapka kasoor nahi hai. Aap aisa isliye soch rahe hain kyunki kabhi aap ki jaan par bani nahi. Kabhi aapke saath aisa hua nahi jabke aapke maan baap ke kamre se khoon beh kar bahar aa raha ho, jab aapki maan ki cheekh ghar mein goonji ho, jabke aap jaante hon ke ye jis kisi ne bhi kiya hai vo abhi ghar mein hi hai aur jab ke aap jaante ho ke aapki ek halki si galti, ek halki si aahat aapki jaan le sakti hai.
Aur yakeen maniye, aap ye sunkar hasenge par yakeen maniye aisa hua ke bistar par let kar maine apni aankhen band ki aur apne aapko ye samjhane laga ke maine abhi abhi koi sapna dekha hai. Ke main abhi abhi neend se jaga hoon aur aisa kuchh nahi hua hai.
Aur isse zyada hasi ki baat ye hai ke jo abhi abhi dekha tha, usse jhatka khaye mere dimag ne meri baat maan bhi li. Maine khud apne aapko behlaya aur main ye jaante hue ke main hi apne aapko behla raha hoon, behal bhi gaya.
Hai na kamal ki baat? Par aisa hota hai. Jab insaan gehre sadme mein ho, bahut bada jhatka khaya ho, jab kuchh aisa hua ho jo kabhi pehle nahi hua tha, jab apni jaan par ban aayi ho toh kya dekha tha, kya suna tha, kya sahi tha aur kya galat tha, iska faisla karna bahut mushkil ho jata hai.
Aur shayad meri aankh lag bhi jaati, shayad main har baat se anjaan hokar so bhi jata agar meri darwaze par aahat na hui hoti.
Mere kamre mein poori tarah andhera tha aur bahar drawing room mein jal rahe night bulb ki halki si light aa rahi thi. Aahar par maine apni aankhen kholi toh mujhe 4 baaton ka ehsaas ek saath hua.
Pehli toh ye kere mere kamre ke darwaze par koi khada tha jisko main andhera hone ki vajah se dekh nahi paya. Bas andhere mein ek saya nazar aa raha tha.
Doosri baat ye ke jo kuchh bhi main apne aapko ek sapna, ek khwaab, ek khyaal bata raha tha, sab sach tha. Main sach mein khoon dekha tha aur bahut mumkin tha ke doosre kamre mein ab tak mere maan baap mar chuke hon.
Teesri baat ye ke main aaya toh deewar ki taraf karwat lekar leta tha par ab meri karwat darwaze ki taraf thi. Ye kab hua tha mujhe yaad nahi tha matlab ke main sach mein apne aapko sapne ka bahana dekar so gaya tha. Shayad iski vajah cough syrup tha jise pine ke baad main bin piye sharabi ho jata tha aur neend mein toolta rehta tha.
Aur chauthi sabse zaroori baat ye ke shayad ab meri jaan bhi khatre mein thi.
Vo jo koi bhi tha ab mere kamre mein tha. Uske kadmon ke chalne ki aawaz se main andaza laga raha tha ke vo mere kamre mein idhar udhar chal raha tha. Main zehni taur par apne aapko is baat ke liye taiyyar kar raha tha ke kisi bhi pal mujhe bistar se neeche khinch kar gira diya jaayega, mara pita jaayega ya aawaz dekar jagaya jaayega.
Dimag ne ek baar phir kabaddi khelni shuru kar di thi. Mujhe samajh nahi aa raha tha ke kya karun. Kya uthkar ekdam se bahar darwaze ke taraf daud laga doon ya uthkar zor zor se chillana shuru kar doon.
Chillana, cheekh aur tabhi mujhe dhyaan aaya ke meri maan ne bhi toh zor se cheekh maari thi. Vo kaafi zor se chillayi thi toh ab tak koi sun kar aaya kyun nahi tha? Mujhe ek ek karke apne padosiyon ke naam yaad aa rahe the. Apne ghar ke bagal mein rehne walo ko yaad kar raha tha aur ummeed kar raha tha ke koi toh uthega, koi toh aayega.
Mujhe cheekh par itna dhyaan isliye bhi tha kyunki is par meri jaan tiki hui thi. Mujhe bahut ummeed thi ke koi sunega aur aayega. Aur mujhe bachayega.
Par meri soch galat saabit ho rahi thi. Na toh kisi ke aane ki aawaz sunai de rahi thi aur na hi mujhe aawaz dekar uthaya gaya ya bistar se neeche khincha gaya. Bas uski aahat ki aawaz aa rahi thi. Main janta tha ke vo mere kamre mein hai, kuchh kar raha hai par kya, ye samajh nahi aa raha tha.
kramashah....................................................
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ख़ौफ़--2
गतान्क से आगे...........
और बातरूम के दरवाज़े के बाहर मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी. कहीं कुच्छ ज़मीन पर गिरने की आवाज़. आवाज़ बहुत धीमी सी थी पर सॉफ थी. मैने अपनी आँखें पूरी खोली और बाथरूम के दरवाज़े पर एक पल के लिए रुका.
तभी आवाज़ फिर से आई. इस बार आवाज़ गिरने की नही थी. एक अजीब सी आवाज़ थी. यूँ लगा जैसे किसी तेज़ धार वाली चीज़ से कहीं कोई कुच्छ खुरछ रहा हूँ. जैसे किसी चाकू या कील को अगर शीशे पर घिसा जाए वैसी आवाज़.
आवाज़ मेरे मोम डॅड के कमरे की तरफ से आई थी जो की बहुत अजीब बात थी. मेरे मोम और डॅड दोनो की ही आदत थी के जल्दी सो जाया करते थे और जल्दी उठकर पार्क में वॉक के लिए जाते थे. मुझे टीवी की आवाज़ कम रखने की हिदायत देते हुए रात के 10 बजे तक उनके रूम की लाइट्स ऑफ हो जाया करती जिसका मतलब था के रात के 1 बजे तक वो दोनो ही बहुत गहरी नींद में होते थे.
पर उस रात ऐसा नही था. उनके कमरे की लाइट जली हुई थी और अंदर से वो अजीब आवाज़ें आ रही थी. एक पल के लिए मैं बाथरूम का दरवाज़ा छ्चोड़ कर उनके कमरे की तरफ बढ़ा और काश के मैने ऐसा किया भी होता.
काश मैं उनके कमरे में जाता, देखता के अंदर क्या हो रहा है. उसके बाद जो कुच्छ भी होता वो मेरी फिलहाल की सिचुयेशन से तो बेहतर ही होता. पर मैने ऐसा किया नही.
उनके कमरे में जाकर देखने के बजाय मैने पहला बाथरूम जाना ज़रूरी समझा. ये सोचकर के पहले बाथरूम हो आता हूँ उसके बाद देख लूँगा, मैं उनके कमरे की तरफ जाता जाता फिर से पलटा और बाथरूम में दाखिल हो गया.
और एक बार मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी. इस बार भी वही कुच्छ खुरचने जैसी आवाज़ पर उसके बाद एक और आवाज़ आई जिसने मेरा ध्यान सबसे ज़्यादा अपनी और खींचा. किसी के मुँह को हाथ रख कर बंद कर दिया जाए तो कैसी गून गून की आवाज़ निकलती है, वैसी ही आवाज़. मैं जल्दी से अपना काम निपटाया और बाथरूम से बाहर निकल कर अपने पेरेंट्स के रूम की तरफ बढ़ा.
उनके कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था पर अंदर का कुच्छ नज़र नही आ रहा था. मैं अभी दरवाज़े से ज़रा दूर ही था के मुझे वाइट मार्बल फ्लोर पर लाल रंग नज़र आया. लाल रंग जो बहता हुआ धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ रहा था.
बहुत पहले एक कहानी सुनी थी. अकबर के दरबार में किसी ने कहा के माँ बाप को अपने बच्चे की जान ज़्यादा प्यारी होती है. सब लोग इस बात से सहमत हो गये सिवाय बीरबल के. उसका कहना था के हर किसी को अपनी जान सबसे ज़्यादा प्यारी होती है और उसके बाद किसी और की. लंबी चौड़ी बहस के बाद बादशाह अकबर ने बीरबल को अपनी बात साबित करने को कहा.
बीरबल ने सिपाहियों को एक ऐसी बंदरिया पकड़ कर लाने को कहा जिसके पास छ्होटा सा बच्चा हो. जब सिपाही बंदरिया पकड़ लाए तो बंदरिया को एक पानी के सूखे टॅंक में उसके बच्चे के साथ बाँध दिया गया. फिर बीरबल ने सिपाहियों को टॅंक में पानी भरने को कहा.
जैसा के होना था, बंदरिया घबरा गयी पर उसके उसके पावं ज़ंजीर से बँधे हुए थे इसलिए भाग नही सकती थी. पानी धीरे धीरे टॅंक में भरने लगा और बंदरिया ने अपने बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया. पानी जब और उपेर आया तो उसने अपने बच्चे को अपने सर पर बैठा लिया. सिपाही पानी डालते रहे और बहुत जल्द पानी बंदरिया के सर के उपेर चला गया.
थोड़ी देर तक तो वो अपने बच्चे को अपने हाथों में सर के उपेर उठाए खड़ी रही ताकि बच्चा पानी से बाहर रहे. पर कुच्छ पल बाद जब उसका दम घुता तो उसने फ़ौरन बच्चे को एक तरफ फेंका और हाथ पावं मारते हुए अपने आपको पानी के उपेर रखने की कोशिश करने लगी. उस वक़्त अपने बच्चे का जो की पानी में डूब रहा था उसे कोई ख्याल नही था.
ठीक वही हाल मेरा भी हुआ. अपने माँ बाप के कमरे की तरफ बढ़ता बढ़ता मैं अचानक रुक गया और उनके कमरे से ज़मीन पर बहता हुआ दरवाज़े से बाहर आता खून देखने लगा. मुझे समझ नही आया के क्या करूँ. मैं जानता था के कमरे में सिर्फ़ मेरे माँ बाप तो ये खून भी सिर्फ़ उन्ही का हो सकता है. वहाँ खड़ा मैं सिर्फ़ नीचे खून की तरफ देख रहा था.
मेरे पावं जैसे एक जगह पर जम गये थे, साँस उपेर की उपेर नीचे की नीचे रह गयी थी और दिल की धड़कन तेज़ हो चली थी.
इससे पहले के मैं कुच्छ सोच या समझ पाता, पूरे घर में मेरी माँ की चीख गूँज उठी. एक दर्द भरी चीख जिसको सुनकर ही अंदाज़ा हो गया के चीख मारने वाली बहुत तकलीफ़ में है और मदद के लिए पुकार रही है.
और उस चीख ने मेरी सोच को एक दिशा दे दी. वहाँ खड़ा जो मैं पहले समझ नही पा रहा था के क्या करूँ अब जानता था के क्या करना है. ख़ौफ़ मेरे पूरे शरीर में दौड़ गया, दिल की धड़कन तेज़ हो गयी, शरीर के बॉल खड़े हो गये और अंदर का जानवर बाहर आ गया.
मैं उस वक़्त भी आधी नींद में था. कॉफ सरप का नशा अब तक मेरे ज़हन पर सवार था.
मैं पलट कर अपने कमरे की तरफ भागा और अंदर आकर सीधा अपने बिस्तर में जा घुसा. किसी छ्होटे बच्चे की तरह मैने चादर अपने उपेर खींची और दीवार की तरफ करवट लेकर लेट गया. आँखें मैने कस कर बंद कर ली थी.
आप सोचेंगे ये ऐसा तो कोई 10 साल का छ्होटा बच्चा करेगा. इसमें आपका कसूर नही है. आप ऐसा इसलिए सोच रहे हैं क्यूंकी कभी आप की जान पर बनी नही. कभी आपके साथ ऐसा हुआ नही जबके आपके माँ बाप के कमरे से खून बह कर बाहर आ रहा हो, जब आपकी माँ की चीख घर में गूँजी हो, जबके आप जानते हों के ये जिस किसी ने भी किया है वो अभी घर में ही है और जब के आप जानते हो के आपकी एक हल्की सी ग़लती, एक हल्की सी आहट आपकी जान ले सकती है.
और यकीन मानिए, आप ये सुनकर हसेन्गे पर यकीन मानिए ऐसा हुआ के बिस्तर पर लेट कर मैने अपनी आँखें बंद की और अपने आपको ये समझाने लगा के मैने अभी अभी कोई सपना देखा है. के मैं अभी अभी नींद से जागा हूँ और ऐसा कुच्छ नही हुआ है.
और इससे ज़्यादा हसी की बात ये है के जो अभी अभी देखा था, उससे झटका खाए मेरे दिमाग़ ने मेरी बात मान भी ली. मैने खुद अपने आपको बहलाया और मैं ये जानते हुए के मैं ही अपने आपको बहला रहा हूँ, बहल भी गया.
है ना कमाल की बात? पर ऐसा होता है. जब इंसान गहरे सदमे में हो, बहुत बड़ा झटका खाया हो, जब कुच्छ ऐसा हुआ हो जो कभी पहले नही हुआ था, जब अपनी जान पर बन आई हो तो क्या देखा था, क्या सुना था, क्या सही था और क्या ग़लत था, इसका फ़ैसला करना बहुत मुश्किल हो जाता है.
और शायद मेरी आँख लग भी जाती, शायद मैं हर बात से अंजान होकर सो भी जाता अगर मेरी दरवाज़े पर आहट ना हुई होती.
मेरे कमरे में पूरी तरह अंधेरा था और बाहर ड्रॉयिंग रूम में जल रहे नाइट बल्ब की हल्की सी लाइट आ रही थी. आहट पर मैने अपनी आँखें खोली तो मुझे 4 बातों का एहसास एक साथ हुआ.
पहली तो ये केरे मेरे कमरे के दरवाज़े पर कोई खड़ा था जिसको मैं अंधेरा होने की वजह से देख नही पाया. बस अंधेरे में एक साया नज़र आ रहा था.
दूसरी बात ये के जो कुच्छ भी मैं अपने आपको एक सपना, एक ख्वाब, एक ख्याल बता रहा था, सब सच था. मैं सच में खून देखा था और बहुत मुमकिन था के दूसरे कमरे में अब तक मेरे माँ बाप मर चुके हों.
तीसरी बात ये के मैं आया तो दीवार की तरफ करवट लेकर लेटा था पर अब मेरी करवट दरवाज़े की तरफ थी. ये कब हुआ था मुझे याद नही था मतलब के मैं सच में अपने आपको सपने का बहाना देकर सो गया था. शायद इसकी वजह कॉफ सरप था जिसे पीने के बाद मैं बिन पिए शराबी हो जाता था और नींद में टूलता रहता था.
और चौथी सबसे ज़रूरी बात ये के शायद अब मेरी जान भी ख़तरे में थी.
वो जो कोई भी था अब मेरे कमरे में था. उसके कदमों के चलने की आवाज़ से मैं अंदाज़ा लगा रहा था के वो मेरे कमरे में इधर उधर चल रहा था. मैं ज़ेह्नी तौर पर अपने आपको इस बात के लिए तैय्यार कर रहा था के किसी भी पल मुझे बिस्तर से नीचे खींच कर गिरा दिया जाएगा, मारा पिता जाएगा या आवाज़ देकर जगाया जाएगा.
दिमाग़ ने एक बार फिर कबड्डी खेलनी शुरू कर दी थी. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. क्या उठकर एकदम से बाहर दरवाज़े के तरफ दौड़ लगा दूँ या उठकर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दूँ.
चिल्लाना, चीख और तभी मुझे ध्यान आया के मेरी माँ ने भी तो ज़ोर से चीख मारी थी. वो काफ़ी ज़ोर से चिल्लाई थी तो अब तक कोई सुन कर आया क्यूँ नही था? मुझे एक एक करके अपने पड़ोसियों के नाम याद आ रहे थे. अपने घर के बगल में रहने वालो को याद कर रहा था और उम्मीद कर रहा था के कोई तो उठेगा, कोई तो आएगा.
मुझे चीख पर इतना ध्यान इसलिए भी था क्यूंकी इस पर मेरी जान टिकी हुई थी. मुझे बहुत उम्मीद थी के कोई सुनेगा और आएगा. और मुझे बचाएगा.
पर मेरी सोच ग़लत साबित हो रही थी. ना तो किसी के आने की आवाज़ सुनाई दे रही थी और ना ही मुझे आवाज़ देकर उठाया गया या बिस्तर से नीचे खींचा गया. बस उसकी आहत की आवाज़ आ रही थी. मैं जानता था के वो मेरे कमरे में है, कुच्छ कर रहा है पर क्या, ये समझ नही आ रहा था.
क्रमशः....................................................
KHAUFF--2
gataank se aage...........
Aur bathroom ke darwaze ke bahar mujhe phir vahi aawaz sunai di. Kahin kuchh zameen par girne ki aawaz. Aawaz bahut dheemi si thi par saaf thi. Maine apni aankhen poori kholi aur bathroom ke darwaze par ek pal ke liye ruka.
Tabhi aawaz phir se aayi. Is baar aawaz girne ki nahi thi. Ek ajeeb si aawaz tha. Yun laga jaise kisi tez dhaar wali cheez se kahin koi kuchh khurach raha hoon. Jaise kisi chaaku ya keel ko agar sheeshe par ghisa jaaye vaisi aawaz.
Aawaz mere mom dad ke kamre ki taraf se aayi thi jo ki bahut ajeeb baat thi. Mere mom aur dad dono ki hi aadat thi ke jaldi so jaaya karte the aur jaldi uthkar park mein walk ke liye jaate the. Mujhe TV ki aawaz kam rakhne ki hidayat dete hue Raat ke 10 baje tak unke room ki lights off ho jaaya karti jiska matlab tha ke raat ke 1 baje tak vo dono hi bahut gehri neend mein hote the.
Par us raat aisa nahi tha. Unke kamre ki light jali hui thi aur andar se vo ajeeb aawazen aa rahi thi. Ek pal ke liye main bathroom ka darwaza chhod kar unke kamre ki taraf badha aur kaash ke maine aisa kiya bhi hota.
Kaash main unke kamre mein jata, dekhta ke andar kya ho raha hai. Uske baad jo kuchh bhi hota vo meri filhal ki situation se toh behtar hi hota. Par maine aisa kiya nahi.
Unke kamre mein jakar dekhne ke bajay maine pehla bathroom jana zaroori samjha. Ye sochkar ke pehle bathroom ho aata hoon uske baad dekh loonga, main unke kamre ki taraf jata jata phir se palta aur bathroom mein daakhil ho gaya.
Aur ek baar mujhe phir vahi aawaz sunai di. Is baar bhi vahi kuchh khurachne jaisi aawaz par uske baad ek aur aawaz aayi jisne mera dhyaan sabse zyada apni aur khincha. Kisi ke munh ko haath rakh kar band kar diya jaaye toh kaisi goon goon ki aawaz nikalti hai, vaisi hi aawaz. Main jaldi se apna kaam niptaya aur bathroom se bahar nikal kar apne parents ke room ki taraf badha.
Unke kamre ka darwaza aadha khula hua tha par andar ka kuchh nazar nahi aa raha tha. Main abhi darwaze se zara door hi tha ke mujhe white marble floor par laal rang nazar aaya. Laal rang jo behta hua dheere dheere darwaze ki taraf badh raha tha.
Bahut pehle ek kahani suni thi. Akbar ke darbar mein kisi ne kaha ke maan baap ko apne bachche ki jaan zyada pyaari hoti hai. Sab log is baat se sehmat ho gaye sivaay Birbal ke. Uska kehna tha ke har kisi ko apne jaan sabse zyada pyaari hoti hai aur uske baad kisi aur ki. Lambi chaudi behar ke baad Baadshah akbar ne Birbal ko apni baat saabit karne ko kaha.
Birbal ne sipahiyon ko ek aisi bandariya pakad kar laane ko kaha jiske paas chhota sa bachcha ho. Jab sipahi bandariya pakad laaye toh bandariya ko ek pani ke sookhe tank mein uske bachche ke saath baandh diya gaya. Phir Birbal ne sipahiyon ko tank mein pani bharne ko kaha.
Jaisa ke hona tha, bandariya ghabra gayi par uske uske paon zanjeer se bandhe hue the isliye bhaag nahi sakti thi. Pani dheere dheere tank mein bharne laga aur bandariya ne apne bachche ko apne haathon mein utha liya. Pani jab aur uper aaya toh usne apne bachche ko apne sar par betha liya. Sipahi pani daalte rahe aur bahut jald pani bandariya ke sar ke uper chala gaya.
Thodi der tak toh vo apne bachche ko apne haathon mein sar ke uper uthaye khadi rahi taaki bachcha pani se bahar rahe. Par kuchh pal baad jab uska dam ghuta toh usne fauran bachce ko ek taraf phenka aur haath paon maarte hue apne aapko Pani ke uper rakhne ki koshish karne lagi. Us waqt apne bachche ka jo ki pani mein doob raha tha use koi khyaal nahi tha.
Theek vahi haal mera bhi hua. Apne maan baap ke kamre ki taraf badhta badhta main achanak ruk gaya aur unke kamre se zameen par behta hua darwaze se bahar aata khoon dekhne laga. Mujhe samajh nahi aaya ke kya karun. Main janta tha ke kamre mein sirf mere maan baap toh ye khoon bhi sirf unhi ka ho sakta hai. Vahan khada main sirf neeche khoon ki taraf dekh raha tha.
Mere paon jaise ek jagah par jam gaye the, saans uper ki uper neeche ki neeche reh gayi thi aur dil ki dhadkan tez ho chali thi.
Isse pehle ke main kuchh soch ya samajh pata, poore ghar mein meri maan ki cheekh goonj uthi. Ek dard bhari cheekh jisko sunkar hi andaza ho gaye ke cheekh maarne wali bahut takleef mein hai aur madad ke liye pukaar rahi hai.
Aur us cheekh ne meri soch ko ek disha de di. Vahan khada jo main pehle samajh nahi pa raha tha ke kya karun ab janta tha ke kya karna hai. Khauff mere poore shareer mein daud gaya, dil ki dhadkan tez ho gayi, shareer ke baal khade ho gaye aur andar ka janwar bahar aa gaya.
Main us waqt bhi aadhi neend mein tha. Cough Syrup ka nasha ab tak mere zehan par sawar tha.
Main palat kar apne kamre ki taraf bhaga aur andar aakar sidha apne bistar mein ja ghusa. Kisi chhote bachche ki tarah maine chadar apne uper khinchi aur deewar ki taraf karwat lekar let gaya. Aankhen maine kas kar band kar li thi.
Aap sochenge ye aisa toh koi 10 saal ka chhota bachcha karega. Ismein aapka kasoor nahi hai. Aap aisa isliye soch rahe hain kyunki kabhi aap ki jaan par bani nahi. Kabhi aapke saath aisa hua nahi jabke aapke maan baap ke kamre se khoon beh kar bahar aa raha ho, jab aapki maan ki cheekh ghar mein goonji ho, jabke aap jaante hon ke ye jis kisi ne bhi kiya hai vo abhi ghar mein hi hai aur jab ke aap jaante ho ke aapki ek halki si galti, ek halki si aahat aapki jaan le sakti hai.
Aur yakeen maniye, aap ye sunkar hasenge par yakeen maniye aisa hua ke bistar par let kar maine apni aankhen band ki aur apne aapko ye samjhane laga ke maine abhi abhi koi sapna dekha hai. Ke main abhi abhi neend se jaga hoon aur aisa kuchh nahi hua hai.
Aur isse zyada hasi ki baat ye hai ke jo abhi abhi dekha tha, usse jhatka khaye mere dimag ne meri baat maan bhi li. Maine khud apne aapko behlaya aur main ye jaante hue ke main hi apne aapko behla raha hoon, behal bhi gaya.
Hai na kamal ki baat? Par aisa hota hai. Jab insaan gehre sadme mein ho, bahut bada jhatka khaya ho, jab kuchh aisa hua ho jo kabhi pehle nahi hua tha, jab apni jaan par ban aayi ho toh kya dekha tha, kya suna tha, kya sahi tha aur kya galat tha, iska faisla karna bahut mushkil ho jata hai.
Aur shayad meri aankh lag bhi jaati, shayad main har baat se anjaan hokar so bhi jata agar meri darwaze par aahat na hui hoti.
Mere kamre mein poori tarah andhera tha aur bahar drawing room mein jal rahe night bulb ki halki si light aa rahi thi. Aahar par maine apni aankhen kholi toh mujhe 4 baaton ka ehsaas ek saath hua.
Pehli toh ye kere mere kamre ke darwaze par koi khada tha jisko main andhera hone ki vajah se dekh nahi paya. Bas andhere mein ek saya nazar aa raha tha.
Doosri baat ye ke jo kuchh bhi main apne aapko ek sapna, ek khwaab, ek khyaal bata raha tha, sab sach tha. Main sach mein khoon dekha tha aur bahut mumkin tha ke doosre kamre mein ab tak mere maan baap mar chuke hon.
Teesri baat ye ke main aaya toh deewar ki taraf karwat lekar leta tha par ab meri karwat darwaze ki taraf thi. Ye kab hua tha mujhe yaad nahi tha matlab ke main sach mein apne aapko sapne ka bahana dekar so gaya tha. Shayad iski vajah cough syrup tha jise pine ke baad main bin piye sharabi ho jata tha aur neend mein toolta rehta tha.
Aur chauthi sabse zaroori baat ye ke shayad ab meri jaan bhi khatre mein thi.
Vo jo koi bhi tha ab mere kamre mein tha. Uske kadmon ke chalne ki aawaz se main andaza laga raha tha ke vo mere kamre mein idhar udhar chal raha tha. Main zehni taur par apne aapko is baat ke liye taiyyar kar raha tha ke kisi bhi pal mujhe bistar se neeche khinch kar gira diya jaayega, mara pita jaayega ya aawaz dekar jagaya jaayega.
Dimag ne ek baar phir kabaddi khelni shuru kar di thi. Mujhe samajh nahi aa raha tha ke kya karun. Kya uthkar ekdam se bahar darwaze ke taraf daud laga doon ya uthkar zor zor se chillana shuru kar doon.
Chillana, cheekh aur tabhi mujhe dhyaan aaya ke meri maan ne bhi toh zor se cheekh maari thi. Vo kaafi zor se chillayi thi toh ab tak koi sun kar aaya kyun nahi tha? Mujhe ek ek karke apne padosiyon ke naam yaad aa rahe the. Apne ghar ke bagal mein rehne walo ko yaad kar raha tha aur ummeed kar raha tha ke koi toh uthega, koi toh aayega.
Mujhe cheekh par itna dhyaan isliye bhi tha kyunki is par meri jaan tiki hui thi. Mujhe bahut ummeed thi ke koi sunega aur aayega. Aur mujhe bachayega.
Par meri soch galat saabit ho rahi thi. Na toh kisi ke aane ki aawaz sunai de rahi thi aur na hi mujhe aawaz dekar uthaya gaya ya bistar se neeche khincha gaya. Bas uski aahat ki aawaz aa rahi thi. Main janta tha ke vo mere kamre mein hai, kuchh kar raha hai par kya, ye samajh nahi aa raha tha.
kramashah....................................................
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