Sunday, January 15, 2012

हम भी बिकने गए थे बाज़ार-ऐ-इश्क में,


 हम भी बिकने गए थे बाज़ार-ऐ-इश्क में,
क्या पता था वफ़ा करने वालो को लोग ख़रीदा नहीं करर्ते!

 वो खुद पर गरूर करते है, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं!
जिन्हें हम चाहते है, वो आम हो ही नहीं सकते!




 यादो की शमा जब बुझती दिखाई देगी;
तेरी हर साँस मेरे वजूद की गवाई देगी;
तुम अपने अन्दर का शोर कम करो;
मेरी हर आहट तुम्हे सुनाई देगी!



 आँखें नीची है तो हया बन गई,
आँखें ऊँची है तो दुआ बन गई,
आँखें उठ कर झुकी तो अड़ा बन गई,
आँखें झुक कर उठी तो कदा बन गई!



 जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है;
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी है;
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने;
अभी तो सारा आसमान बाकी है! 












हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

Saturday, January 14, 2012

एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-3

  एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-3



गतान्क से आगे...........

वो मुझे क्यूँ नही कुच्छ कह या कर रहा था, ये समझ नही आ रहा था.


और फिर जैसे एक एक पल भारी पड़ने लगा. हर लम्हा जैसे एक सदी के समान हो गया. शदीद डर, असीमित ख़ौफ्फ, इनटेन्स फियर का ये मेरा पहला मौका था और जैसे मेरा दिमाग़ शॉर्ट सर्क्यूट सा कर गया था. कोई भी सोच, कोई भी विचार, कोई भी थॉट प्रोसेस सॉफ नही था. जैसे मेरा दिमाग़ अचानक एक साथ हर दिशा में भागने की कोशिश कर रहा था.


गला सूखने लगा था और मुझे फिर पेशाब आने लगा था.


ओह नो !!!! आइ नीड टू गो टू दा बाथरूम, अगेन .......

ये ख्याल आते ही मैने अपने पेट को अंदर की तरफ खींचा और अपने टांगे सिकोड कर अपने आप पर काबू पाया.


और फिर आई कुच्छ घिसटने की आवाज़. बाहर ड्रॉयिंग रूम में किसी चीज़ को घसीटा जा रहा था. मेरी आँखें अब भी बंद थी और मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. क्या आँखें खोल कर देखूं? पर अगर उसने देख लिया तो?


दिल ही दिल में मैं कहीं जानता था के देर सवेर वो लम्हा आएगा जब मुझे उस अंजान का सामना करना पड़ेगा. जब मेरा सोने का नाटक ख़तम होता और मेरा साथ जो होना है वो होगा. पर यूँ सोने का नाटक करते हुए शायद मैं उस पल को टाल रहा था. या ये उम्मीद कर रहा था के क्यूंकी मैं सो रहा हूँ तो मुझे छ्चोड़ दिया जाएगा.

क्यूंकी मैं तो सो रहा था, मैने तो कुच्छ देखा ही नही.


ठीक उस चिड़िया की तरह जो नीचे मिट्टी में अपना सर च्छूपा कर ये उम्मीद करती है के कोई उसे नही देख रहा.


मैं भी यूँ आँखें बंद किए उस अंधेरे में पड़ा पड़ा ये उम्मीद कर रहा था के मुझे अनदेखा कर दिया जाएगा.


अंधेरा.


और फिर मुझे ख्याल आया के कमरे में जिस जगह मेरा बिस्तर है वहाँ तो बिल्कुल अंधेरा है. तो अगर मैं अपनी आँखें ज़रा सी खोल लूँ तो बाहर से किसी को दिखाई नही देगा के मैं जाग रहा हूँ. और अपने दिल को ऐसी ही हज़ारों दिलसाएँ देते हुए मैने ज़रा सी अपनी आँख खोली.


वो दरवाज़े पर सामने ही खड़ा था. नाइट बल्ब की हल्की हल्की रोशनी उस पर पड़ रही थी और एक पल के लिए तो मुझे समझ ही नही आया के मैं देख क्या रहा हूँ. सही में कुच्छ देख रहा हूँ या मेरा दिमाग़ मुझे धोखा दे रहा है.


वो इंसान नही था. हां इंसान जैसा था पर इंसान नही था, हो ही नही सकता था. सबसे पहली चीज़ जिसपर मेरा ध्यान गया वो ये थी के उसके जिस्म पर कोई कपड़ा नही था. वो सर से पावं तक पूरा नंगा था. गंजा था.


नही असल में उसके पूरे शरीर पर ही बॉल नही थे. सर से पावं तक कहीं कोई बाल नही. सिर्फ़ चमड़ी जो लाल रंग की रोशनी में लाल ही लग रही थी. वो कद में मेरे से काफ़ी लंबा था पर बहुत झुक कर चल रहा था जिसकी वजह से मेरे बराबर ही चल रहा था.


और फिर मुझे उसके झुके होने की वजह दिखाई दी. वो कुबड़ा था. वो कमर से थोड़ा मुड़ा हुआ था और किसी ऊँट, कॅमल, की तरह उसकी कंधो के नीचे कमर कर एक गुंबद जैसा कुच्छ उठा हुआ था.


और एक ख़ास बात. उसकी हाथ काफ़ी बड़े बड़े थे जिनमें पकड़े वो कुच्छ घसीट कर मेरे कमरे में ला रहा था.


वो कुच्छ मेरे माँ बाप थे जिनके हाथ अपने हाथों में पकड़ कर वो घसीट रहा था. मेरे मोम डॅड दोनो ही उमर के हिसाब से काफ़ी मोटे थे, ख़ास तौर पर मेरी मम्मी, पर फिर भी वो बिना किसी तकलीफ़ के बड़े आराम से दोनो के हाथों को पकड़ कर ऐसे घसीट रहा था जैसे वो रबड़ के गुड्डे हों.


उन दोनो को धीरे धीरे घसीट कर वो मेरे कमरे में ले आया, मैं अब भी अपनी आँखें हल्की सी खोले हुए पड़ा था. मेरी आँखें अब अंधेरे की आदि हो गयी थी इसलिए कमरे की हल्की रोशनी में मुझे थोड़ा बेहतर दिखाई देना लगा था.


मैं अब भी समझ नही पा रहा था के वो इंसान था या नही या वो क्या करना चाह रहा था.

मेरी माँ को उसने कमरे के बीच लाकर वहीं छ्चोड़ दिया. उन दोनो के शरीर से अब भी खून बह रहा था और घसीटने के लाल रंग के निशान दरवाज़े पर सॉफ बने हुए थे. मेरी माँ को कमरे के बीच छ्चोड़ उसने मेरे डॅड को दोनो हाथों से पकड़ कर उठाया और मेरे बेड के नज़दीक घसीटा.


मैं इस कदर डर चुका था के मेरी इतनी भी हिम्मत नही पड़ी के अपनी आँखें बंद कर लूँ. किसी पुतले की तरह अपनी जगह पड़ा मैं बस चुप चाप देख रहा था.


मैं समझ नही पा रहा था के मेरे पापा ज़िंदा हैं या मर गये. उनके आँखें पूरी तरह खुली हुई थी पर क्या उन आँखों में ज़िंदगी बाकी थी या नही, ये एक बहुत बड़ा सवाल था.


वो मेरे पापा को खींच कर मेरे बिस्तर के करीब मेरे पैरों के पास लाया और उनको मेरे बेड के सहारे बैठा दिया.


वो कुच्छ इस तरह से बैठे थे के उनकी थोड़ी, चिन, मेरे बिस्तर के उपेर टिकी हुई थी और पूरा शरीर नीचे. एक पल को देख कर ऐसा लगता था जैसे वो थोड़ी बिस्तर पर टिकाए मुझे देखते हुए मुझसे बहुत ज़रूरी बात कर रहे हों.


फिर वो मेरी माँ के करीब गया और उनको उठाकर मेरे कमरे में रखी कुर्सी पर बैठा दिया. कुर्सी का रुख़ भी मेरी तरफ था और ऐसा लगता था जैसे माँ कुर्सी पर दोनो पावं उपेर किए बैठी मेरी तरफ देख रही हो, मुझसे बहुत ज़रूरी बात कर रही हो. उनकी भी दोनो आँखें खुली हुई थी पर ज़िंदा या मुर्दा, ये कह पाना मुश्किल था.


कमरे की सेट्टिंग ऐसी थी जैसे मैं बिस्तर पर लेटा हूँ, बिस्तर के पास नीचे पापा बैठे मेरी तरफ देख रहे हो और माँ कुर्सी पर बैठी हम दोनो की तरफ देख रही हो.जैसे एक फॅमिली साथ बैठी कुच्छ बात कर रही हो.


वो कमरे की दीवार के पास खड़ा था जैसे कमरे की सेट्टिंग का जायज़ा ले रहा हो. जैसे कोई पेंटर अपनी पैंटिंग बनाने के बाद कुच्छ दूर खड़ा ये सोच रहा हो के पैंटिंग कैसी बनी. ठीक बनी या ग़लत? अच्छी बनी या बुरी?


कहीं कुच्छ कमी तो नही रह गयी?


वो भी ऐसे ही खड़ा हमें देख रहा था. अपनी पैंटिंग को देख रहा था. उस
पैंटिंग को जिसमें एक बेटा अपने कमरे में बेड पर लेटा था, बाप नीचे बैठा था और माँ कुर्सी पर.


मैं अब भी कमरे के कोने में अंधेरे की तरफ था और क्यूंकी उसने ऐसी कोई हरकत नही की थी, मैं सिर्फ़ अंदाज़ा लगा रहा था के वो ये सोच रहा है के मैं अब भी सो रहा हूँ. साँस थामे मैं चुप चाप हल्की सी आँख खोले पड़ा रहा.


मेरे माँ बाप दोनो के ही शरीर से खून बह कर नीचे ज़मीन पर गिर रहा था. वो कुच्छ पल वैसे ही खड़े रहने के बाद आगे बढ़ा और उनके खून को अपने हाथों में उठाया. नही उठाया नही, बल्कि अपने हाथों को उनके खून में इस तरह डुबॉया जैसे कोई पेंटर अपने ब्रश को कलर में डालता है.


लाल रंग का खून ने उसके हाथों को ब्रश बना दिया जिन्हें आगे बढ़कर वो दीवार पर घिसटने लगा. मैं समझ नही पा रहा था के वो क्या कर रहा है पर कर उसी अंदाज़ में रहा था जैसे कोई पैंटिंग बना रहा हो.


उसका मास्टर पीस. उसकी इस कमरे की पैंटिंग की आखरी कड़ी.

तभी मेरी छाती में एक तेज़ तकलीफ़ उठी. मेरी खाँसी जो अब तक सामने नही आई थी अब फिर से उठ रही थी.


और खाँसी के साथ साथ मेरे पेट में फिर से उठी तकलीफ़ ने मुझे फिर याद दिलाया के मुझे बाथरूम में जाना है. मैने डर के मारे अपनी आँखें फिर बंद कर ली क्यूंकी मैं जानता था के खाँसने का मतलब है उसका ध्यान अपनी तरफ खींचना.


वो समझ जाएगा के मैं जाग रहा हूँ और फिर उसके बाद जो करेगा, उसके डर से मैने अपनी खाँसी को दबाया और अपनी आँखें बंद कर ली.


कमरे में बड़ी देर तक दीवार पर घिसटने की आवाज़ें आती रही पर मेरी फिर आँखें खोलने की हिम्मत नही हुई.


मैं बस चुप पड़ा इंतेज़ार करता रहा. किस चीज़ का, ये मैं खुद भी नही जानता था.


ऐसे ही लेटे लेटे मुझे 2 घंटे से ज़्यादा हो गये थे. ड्रॉयिंग रूम के आंटीक घंटे ने सुबह के 3 बजा दिए थे. कमरे में अब बस उसकी साँस लेने की आवाज़ सुनाई दे रही थी जिससे मुझे पता चल रहा था के वो अब भी कमरे में है. क्या कर रहा है, ये मैं नही जानता था.


मेरी तरह जैसे वो भी किसी बात का इंतेज़ार कर रहा था.


मुझे अब भी समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. कमरे में खून की गंध फेली हुई थी और मुझे तो जैसे डर के मारे लकवा मार गया था. खाँसी और पेशाब, दोनो को मैने बड़ी मुश्किल से रोक राका था क्यूंकी मैं जानता था के जिस पल मैने ये जताया के मैं सो नही रहा हूँ, मैं उसी पल ख़तम हो जाऊँगा.


मैं यहीं मरूँगा और आस पास मुझे बचाने वाला कोई नही है.


इतनी देर सोचने के बाद भी मुझे बचाव का कोई रास्ता समझ नही आ रहा था. सिर्फ़ एक ही रास्ता था. उठकर अचानक बाहर दरवाज़े की तरफ भागु और ज़ोर ज़ोर से शोर मचाऊं. इस उम्मीद पर के पड़ोसी इस बार मेरी चीख सुन कर तो आ ही जाएँगे.


ख़तरा है पर बस यही एक रास्ता है मेरे पास. मैं उठकर अचानक भगा तो वो
मुझे पकड़ नही पाएगा क्यूंकी सोते हुए इंसान अचानक उठकर भाग नही लेते.


अगर यहाँ लेटा रहा तो पक्का मारा जाऊँगा क्यूंकी ये जो कुच्छ भी है, मेरे जागने का ही इंतेज़ार कर रहा है. इंतेज़ार कर रहा है के मैं जागूं, और इसकी पैंटिंग देखूं. खून से सना ये कमरा देखूं जिसके बाद ये मुझे मार कर अपनी पैंटिंग पूरी कर सके.


डरते डरते मैने अपनी फिर हल्की सी अपनी आँखें खोली. कमरे में अंधेरा था इसलिए एक पल के लिए तो कुच्छ नज़र ही नही आया पर फिर धीरे धीरे आँखें अंधेरे की आदि होने लगी और मुझे दिखाई देने लगा.


उसकी साँस की आवाज़ आ रही थी. मैं जानता था के वो कमरे में है पर नज़र नही आ रहा था. मैं कमरे में नज़र फिराने लगा इस उम्मीद के साथ के शायद वो अंधेरे में कहीं किसी कोने में दिख जाए तो मुझे पता हो के वो कहाँ हो.


तभी मेरी नज़र दीवार पर पड़ी जहाँ वो मेरे माँ बाप के खून से कुच्छ बना रहा था.


मुझे अब अंधेरे में दिखाई देने लगा था. वो उस वक़्त कुच्छ बना नही रहा था, लिख रहा था जिसे पढ़ने से पहले ही मैने अपनी आँखें बंद कर ली थी. लाल खून से सफेद दीवार पर बड़ा बड़ा लिखा हुआ था .....

"कब तक सोने का नाटक करेगा?"

समाप्त

KHAUFF--3

gataank se aage...........

Vo mujhe kyun nahi kuchh keh ya kar raha tha, ye samajh nahi aa raha tha.


Aur phir jaise ek ek pal bhaari padne laga. Har lamha jaise ek sadi ke saman ho gaya. Shadeed Darr, Aseemit Khauff, Intense fear ka ye mera pehla mauka tha aur jaise mera dimag short circuit sa kar gaya tha. Koi bhi soch, koi bhi vichar, koi bhi thought process saaf nahi tha. Jaise mera dimag achanak ek saath har disha mein bhaagne ki koshish kar raha tha.


Gala sookhne laga tha aur mujhe phir peshab aane laga tha.


OH NO !!!! I NEED TO GO TO THE BATHROOM, AGAIN .......

Ye khyaal aate hi maine apne pet ko andar ki taraf khincha aur apne taange sikod kar apne aap par kaabu paya.


Aur phir aayi kuchh ghisatne ki aawaz. Bahar drawing room mein kisi cheez ko ghasita ja raha tha. Meri aankhen ab bhi band thi aur mujhe samajh nahi aa raha tha ke kya karun. Kya aankhen khol kar dekhun? Par agar usne dekh liya toh?


Dil hi dil mein main kahin janta tha ke der sawer vo lamha aayega jab mujhe us anjaan ka samna karna padega. Jab mera sone ka natak khatam hota aur mera saath jo hona hai vo hoga. Par yun sone ka natak karte hue shayad main us pal ko taal raha tha. Ya ye ummeed kar raha tha ke kyunki main so raha hoon toh mujhe chhod diya jaayega.

Kyunki main toh so raha tha, maine toh kuchh dekha hi nahi.


Theek us chidiya ki tarah jo neeche mitti mein apna sar chhupa kar ye ummeed karti hai ke koi use nahi dekh raha.


Main bhi yun aankhen band kiye us andhere mein pada pada ye ummeed kar raha tha ke mujhe andekha kar diya jaayega.


Andhera.


Aur phir mujhe khyaal aaya ke kamre mein jis jagah mera bistar hai vahan toh bilkul andhera hai. Toh agar main apni aankhen zara si khol loon toh bahar se kisi ko dikhayi nahi dega ke main jaag raha hoon. Aur apne dil ko aisi hi hazaron dilasayen dete hue maine zara si apni aankh kholi.


Vo darwaze par saamne hi khada tha. Night bulb ki halki halki roshni us par pad rahi thi aur ek pal ke liye toh mujhe samajh hi nahi aaya ke main dekh kya raha hoon. Sahi mein kuchh dekh raha hoon ya mera dimag mujhe dhokha de raha hai.


Vo insaan nahi tha. Haan insaan jaisa tha par insaan nahi tha, ho hi nahi sakta tha. Sabse pehli cheez jispar mera dhyaan gaya vo ye thi ke uske jism par koi kapda nahi tha. Vo sar se paon tak poora nanga tha. Ganja tha.


Nahi asal mein uske poore shareer par hi baal nahi the. Sar se paon tak kahin koi baal nahi. Sirf chamdi jo laal rang ki roshni mein laal hi lag rahi thi. Vo kad mein mere se kaafi lamba tha par bahut jhuk kar chal raha tha jiski vajah se mere barabar hi chal raha tha.


Aur phir mujhe uske jhuke hone ki vajah dikhai di. Vo kubda tha. Vo kamar se thoda muda hua tha aur kisi oont, camel, ki tarah uski kandho ke neeche kamar kar ek gumbad jaisa kuchh utha hua tha.


Aur ek khaas baat. Uski haath kaafi bade bade the jinmein pakde vo kuchh ghasit kar mere kamre mein la raha tha.


Vo kuchh mere maan baap the jinke haath apne haathon mein pakad kar vo ghasit raha tha. Mere mom dad dono hi umar ke hisaab se kaafi mote the, khaas taur par meri mummy, par phir bhi vo bina kisi takleef ke bade aaram se dono ke haathon ko pakad kar aise ghaseet raha tha jaise vo rabad ke gudde hon.


Un dono ko dheere dheere ghasit kar vo mere kamre mein le aaya, Main ab bhi apni aankhen halki si khole hue pada tha. Meri aankhen ab andhere ki aadi ho gayi thi isliye kamre ki halki roshni mein mujhe thoda behtar dikhai dena laga tha.


Main ab bhi samajh nahi pa raha tha ke vo insaan tha ya nahi ya vo kya karna chah raha tha.

Meri maan ko usne kamre ke beech lakar vahin chhod diya. Un dono ke shareer se ab bhi khoon beh raha tha aur ghasitne ke laal rang ke nishan darwaze par saaf bane hue the. Meri maan ko kamre ke beech chhod usne mere dad ko dono haathon se pakad kar uthaya aur mere bed ke nazdeek ghasita.


Main is kadar dar chuka tha ke meri itni bhi himmat nahi padi ke apni aankhen band kar loon. Kisi putle ki tarah apni jagah pada main bas chup chap dekh raha tha.


Main samajh nahi pa raha tha ke mere papa zinda hain ya mar gaye. Unke aankhen poori tarah khuli hui thi par kya un aankhon mein zindagi baaki thi ya nahi, ye ek bahut bada sawal tha.


Vo mere papa ko khinch kar mere bistar ke kareeb mere pairon ke paas laya aur unko mere bed ke sahare betha diya.


Vo kuchh is tarah se bethe the ke unki thodi, chin, mere bistar ke uper tiki hui thi aur poora shareer neeche. Ek pal ko dekh kar aisa lagta tha jaise vo thodi bistar par tikaye mujhe dekhte hue mujhse bahut zaroori baat kar rahe hon.


Phir vo meri maan ke kareeb gaya aur unko uthakar mere kamre mein rakhi chair par betha diya. Kursi ka rukh bhi meri taraf tha aur aisa lagta tha jaise maan kursi par dono paon uper kiye bethi meri taraf dekh rahi ho, mujhse bahut zaroori baat kar rahi ho. Unki bhi dono aankhen khuli hui thi par zinda ya murda, ye keh pana mushkil tha.


Kamre ki setting aisi thi jaise main bistar par leta hoon, bistar ke paas neeche papa bethe meri taraf dekh rahe ho aur maan kursi par bethi ham dono ki taraf dekh rahi ho.Jaise ek family saath bethi kuchh baat kar rahi ho.


Vo kamre ki deewar ke paas khada tha jaise kamre ki setting ka jaayza le raha ho. Jaise koi painter apni painting banane ke baad kuchh door khada ye soch raha ho ke painting kaisi bani. Theek bani ya galat? Achhi bani ya buri?


Kahin kuchh kami toh nahi reh gayi?


Vo bhi aise hi khada hamen dekh raha tha. Apni painting ko dekh raha tha. Us
painting ko jismein ek beta apne kamre mein bed par leta tha, baap neeche betha tha aur maan kursi par.


Main ab bhi kamre ke kone mein andhere ki taraf tha aur kyunki usne aisi koi harkat nahi ki thi, main sirf andaza laga raha tha ke vo ye soch raha hai ke main ab bhi so raha hoon. Saans thaame main chup chap halki si aankh khole pada raha.


Mere maan baap dono ke hi shareer se khoon beh kar neeche zameen par gir raha tha. Vo kuchh pal vaise hi khade rehne ke baad aage badha aur unke khoon ko apne haathon mein uthaya. Nahi uthaya nahi, balki apne haathon ko unke khoon mein is tarah dubaya jaise koi painter apne brush ko color mein dalta hai.


Laal rang ka khoon ne uske haathon ko brush bana diya jinhen aage badhkar vo deewar par ghisatne laga. Main samajh nahi pa raha tha ke vo kya kar raha hai par kar usi andaz mein raha tha jaise koi painting bana raha ho.


Uska master piece. Uski is kamre ki painting ki aakhri kadi.

Tabhi meri chhati mein ek tez takleef uthi. Meri khaansi jo ab tak saamne nahi aayi thi ab phir se uth rahi thi.


Aur khaansi ke saath saath mere pet mein phir se uthi takleef ne mujhe phir yaad dilaya ke mujhe bathroom mein jana hai. Maine darr ke maare apni aankhen phir band kar li kyunki main janta tha ke khaansne ka matlab hai uska dhyaan apni taraf khinchna.


Vo samajh jaayega ke main jaag raha hoon aur phir uske baad jo karega, uske darr se maine apni khaansi ko dabaya aur apni aankhen band kar li.


Kamre mein badi der tak deewar par ghisatne ki aawazen aati rahi par meri phir aankhen kholne ki himmat nahi hui.


Main bas chup pada intezaar karta raha. Kis cheez ka, ye main khud bhi nahi janta tha.


Aise hi lete lete mujhe 2 ghante se zyada ho gaye the. Drawing room ke antique ghante ne subah ke 3 baja diye the. Kamre mein ab bas uski saans lene ki aawaz sunai de rahi thi jisse mujhe pata chal raha tha ke vo ab bhi kamre mein hai. Kya kar raha hai, ye main nahi janta tha.


Meri tarah jaise vo bhi kisi baat ka intezaar kar raha tha.


Mujhe ab bhi samajh nahi aa raha tha ke kya karun. Kamre mein khoon ki gandh pheli hui thi aur mujhe toh jaise darr ke maare lakwa maar gaya tha. Khaansi aur peshab, dono ko maine badi mushkil se rok raka tha kyunki main janta tha ke jis pal maine ye jataya ke main so nahi raha hoon, main usi pal khatam ho jaoonga.


Main yahin maroonga aur aas paas mujhe bachane wala koi nahi hai.


Itni der sochne ke baad bhi mujhe bachav ka koi rasta samajh nahi aa raha tha. Sirf ek hi rasta tha. Uthkar achanak bahar darwaze ki taraf bhaagun aur zor zor se shor machaoon. Is ummeed par ke padosi is baar meri cheekh sun kar toh aa hi Jaayenge.


Khatra hai par bas yahi ek rasta hai mere paas. Main uthkar achanak bhaga toh vo
mujhe pakad nahi paayega kyunki sote hue insaan achanak uthkar bhaag nahi lete.


Agar yahan leta raha toh pakka mara jaoonga kyunki ye jo kuchh bhi hai, mere jaagne ka hi intezaar kar raha hai. Intezaar kar raha hai ke main jaagun, aur iski painting dekhun. Khoon se sana ye kamra dekhun jiske baad ye mujhe maar kar apni painting poori kar sake.


Darte darte maine apni phir halki si apni aankhen kholi. Kamre mein andhera tha isliye ek pal ke liye toh kuchh nazar hi nahi aaya par phir dheere dheere aankhen andhere ki aadi hone lagi aur mujhe dikhai dene laga.


Uski saans ki aawaz aa rahi thi. Main janta tha ke vo kamre mein hai par nazar nahi aa raha tha. Main kamre mein nazar phirane laga is ummeed ke saath ke shayad vo andhere mein kahin kisi kone mein dikh jaaye toh mujhe pata ho ke vo kahan ho.


Tabhi meri nazar deewar par padi jahan vo mere maan baap ke khoon se kuchh bana raha tha.


Mujhe ab andhere mein dikhai dene laga tha. Vo us waqt kuchh bana nahi raha tha, likh raha tha jise padhne se pehle hi maine apni aankhen band kar li thi. Laal khoon se safed deewar par bada bada likha hua tha .....

"Kab tak sone ka natak karega?"

samaapt






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एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-2

 एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-2


ख़ौफ़--2

गतान्क से आगे...........
और बातरूम के दरवाज़े के बाहर मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी. कहीं कुच्छ ज़मीन पर गिरने की आवाज़. आवाज़ बहुत धीमी सी थी पर सॉफ थी. मैने अपनी आँखें पूरी खोली और बाथरूम के दरवाज़े पर एक पल के लिए रुका.


तभी आवाज़ फिर से आई. इस बार आवाज़ गिरने की नही थी. एक अजीब सी आवाज़ थी. यूँ लगा जैसे किसी तेज़ धार वाली चीज़ से कहीं कोई कुच्छ खुरछ रहा हूँ. जैसे किसी चाकू या कील को अगर शीशे पर घिसा जाए वैसी आवाज़.


आवाज़ मेरे मोम डॅड के कमरे की तरफ से आई थी जो की बहुत अजीब बात थी. मेरे मोम और डॅड दोनो की ही आदत थी के जल्दी सो जाया करते थे और जल्दी उठकर पार्क में वॉक के लिए जाते थे. मुझे टीवी की आवाज़ कम रखने की हिदायत देते हुए रात के 10 बजे तक उनके रूम की लाइट्स ऑफ हो जाया करती जिसका मतलब था के रात के 1 बजे तक वो दोनो ही बहुत गहरी नींद में होते थे.


पर उस रात ऐसा नही था. उनके कमरे की लाइट जली हुई थी और अंदर से वो अजीब आवाज़ें आ रही थी. एक पल के लिए मैं बाथरूम का दरवाज़ा छ्चोड़ कर उनके कमरे की तरफ बढ़ा और काश के मैने ऐसा किया भी होता.


काश मैं उनके कमरे में जाता, देखता के अंदर क्या हो रहा है. उसके बाद जो कुच्छ भी होता वो मेरी फिलहाल की सिचुयेशन से तो बेहतर ही होता. पर मैने ऐसा किया नही.


उनके कमरे में जाकर देखने के बजाय मैने पहला बाथरूम जाना ज़रूरी समझा. ये सोचकर के पहले बाथरूम हो आता हूँ उसके बाद देख लूँगा, मैं उनके कमरे की तरफ जाता जाता फिर से पलटा और बाथरूम में दाखिल हो गया.


और एक बार मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी. इस बार भी वही कुच्छ खुरचने जैसी आवाज़ पर उसके बाद एक और आवाज़ आई जिसने मेरा ध्यान सबसे ज़्यादा अपनी और खींचा. किसी के मुँह को हाथ रख कर बंद कर दिया जाए तो कैसी गून गून की आवाज़ निकलती है, वैसी ही आवाज़. मैं जल्दी से अपना काम निपटाया और बाथरूम से बाहर निकल कर अपने पेरेंट्स के रूम की तरफ बढ़ा.


उनके कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था पर अंदर का कुच्छ नज़र नही आ रहा था. मैं अभी दरवाज़े से ज़रा दूर ही था के मुझे वाइट मार्बल फ्लोर पर लाल रंग नज़र आया. लाल रंग जो बहता हुआ धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ रहा था.


बहुत पहले एक कहानी सुनी थी. अकबर के दरबार में किसी ने कहा के माँ बाप को अपने बच्चे की जान ज़्यादा प्यारी होती है. सब लोग इस बात से सहमत हो गये सिवाय बीरबल के. उसका कहना था के हर किसी को अपनी जान सबसे ज़्यादा प्यारी होती है और उसके बाद किसी और की. लंबी चौड़ी बहस के बाद बादशाह अकबर ने बीरबल को अपनी बात साबित करने को कहा.


बीरबल ने सिपाहियों को एक ऐसी बंदरिया पकड़ कर लाने को कहा जिसके पास छ्होटा सा बच्चा हो. जब सिपाही बंदरिया पकड़ लाए तो बंदरिया को एक पानी के सूखे टॅंक में उसके बच्चे के साथ बाँध दिया गया. फिर बीरबल ने सिपाहियों को टॅंक में पानी भरने को कहा.

जैसा के होना था, बंदरिया घबरा गयी पर उसके उसके पावं ज़ंजीर से बँधे हुए थे इसलिए भाग नही सकती थी. पानी धीरे धीरे टॅंक में भरने लगा और बंदरिया ने अपने बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया. पानी जब और उपेर आया तो उसने अपने बच्चे को अपने सर पर बैठा लिया. सिपाही पानी डालते रहे और बहुत जल्द पानी बंदरिया के सर के उपेर चला गया.


थोड़ी देर तक तो वो अपने बच्चे को अपने हाथों में सर के उपेर उठाए खड़ी रही ताकि बच्चा पानी से बाहर रहे. पर कुच्छ पल बाद जब उसका दम घुता तो उसने फ़ौरन बच्चे को एक तरफ फेंका और हाथ पावं मारते हुए अपने आपको पानी के उपेर रखने की कोशिश करने लगी. उस वक़्त अपने बच्चे का जो की पानी में डूब रहा था उसे कोई ख्याल नही था.


ठीक वही हाल मेरा भी हुआ. अपने माँ बाप के कमरे की तरफ बढ़ता बढ़ता मैं अचानक रुक गया और उनके कमरे से ज़मीन पर बहता हुआ दरवाज़े से बाहर आता खून देखने लगा. मुझे समझ नही आया के क्या करूँ. मैं जानता था के कमरे में सिर्फ़ मेरे माँ बाप तो ये खून भी सिर्फ़ उन्ही का हो सकता है. वहाँ खड़ा मैं सिर्फ़ नीचे खून की तरफ देख रहा था.


मेरे पावं जैसे एक जगह पर जम गये थे, साँस उपेर की उपेर नीचे की नीचे रह गयी थी और दिल की धड़कन तेज़ हो चली थी.


इससे पहले के मैं कुच्छ सोच या समझ पाता, पूरे घर में मेरी माँ की चीख गूँज उठी. एक दर्द भरी चीख जिसको सुनकर ही अंदाज़ा हो गया के चीख मारने वाली बहुत तकलीफ़ में है और मदद के लिए पुकार रही है.


और उस चीख ने मेरी सोच को एक दिशा दे दी. वहाँ खड़ा जो मैं पहले समझ नही पा रहा था के क्या करूँ अब जानता था के क्या करना है. ख़ौफ़ मेरे पूरे शरीर में दौड़ गया, दिल की धड़कन तेज़ हो गयी, शरीर के बॉल खड़े हो गये और अंदर का जानवर बाहर आ गया.


मैं उस वक़्त भी आधी नींद में था. कॉफ सरप का नशा अब तक मेरे ज़हन पर सवार था.


मैं पलट कर अपने कमरे की तरफ भागा और अंदर आकर सीधा अपने बिस्तर में जा घुसा. किसी छ्होटे बच्चे की तरह मैने चादर अपने उपेर खींची और दीवार की तरफ करवट लेकर लेट गया. आँखें मैने कस कर बंद कर ली थी.


आप सोचेंगे ये ऐसा तो कोई 10 साल का छ्होटा बच्चा करेगा. इसमें आपका कसूर नही है. आप ऐसा इसलिए सोच रहे हैं क्यूंकी कभी आप की जान पर बनी नही. कभी आपके साथ ऐसा हुआ नही जबके आपके माँ बाप के कमरे से खून बह कर बाहर आ रहा हो, जब आपकी माँ की चीख घर में गूँजी हो, जबके आप जानते हों के ये जिस किसी ने भी किया है वो अभी घर में ही है और जब के आप जानते हो के आपकी एक हल्की सी ग़लती, एक हल्की सी आहट आपकी जान ले सकती है.


और यकीन मानिए, आप ये सुनकर हसेन्गे पर यकीन मानिए ऐसा हुआ के बिस्तर पर लेट कर मैने अपनी आँखें बंद की और अपने आपको ये समझाने लगा के मैने अभी अभी कोई सपना देखा है. के मैं अभी अभी नींद से जागा हूँ और ऐसा कुच्छ नही हुआ है.


और इससे ज़्यादा हसी की बात ये है के जो अभी अभी देखा था, उससे झटका खाए मेरे दिमाग़ ने मेरी बात मान भी ली. मैने खुद अपने आपको बहलाया और मैं ये जानते हुए के मैं ही अपने आपको बहला रहा हूँ, बहल भी गया.


है ना कमाल की बात? पर ऐसा होता है. जब इंसान गहरे सदमे में हो, बहुत बड़ा झटका खाया हो, जब कुच्छ ऐसा हुआ हो जो कभी पहले नही हुआ था, जब अपनी जान पर बन आई हो तो क्या देखा था, क्या सुना था, क्या सही था और क्या ग़लत था, इसका फ़ैसला करना बहुत मुश्किल हो जाता है.

और शायद मेरी आँख लग भी जाती, शायद मैं हर बात से अंजान होकर सो भी जाता अगर मेरी दरवाज़े पर आहट ना हुई होती.


मेरे कमरे में पूरी तरह अंधेरा था और बाहर ड्रॉयिंग रूम में जल रहे नाइट बल्ब की हल्की सी लाइट आ रही थी. आहट पर मैने अपनी आँखें खोली तो मुझे 4 बातों का एहसास एक साथ हुआ.


पहली तो ये केरे मेरे कमरे के दरवाज़े पर कोई खड़ा था जिसको मैं अंधेरा होने की वजह से देख नही पाया. बस अंधेरे में एक साया नज़र आ रहा था.


दूसरी बात ये के जो कुच्छ भी मैं अपने आपको एक सपना, एक ख्वाब, एक ख्याल बता रहा था, सब सच था. मैं सच में खून देखा था और बहुत मुमकिन था के दूसरे कमरे में अब तक मेरे माँ बाप मर चुके हों.


तीसरी बात ये के मैं आया तो दीवार की तरफ करवट लेकर लेटा था पर अब मेरी करवट दरवाज़े की तरफ थी. ये कब हुआ था मुझे याद नही था मतलब के मैं सच में अपने आपको सपने का बहाना देकर सो गया था. शायद इसकी वजह कॉफ सरप था जिसे पीने के बाद मैं बिन पिए शराबी हो जाता था और नींद में टूलता रहता था.


और चौथी सबसे ज़रूरी बात ये के शायद अब मेरी जान भी ख़तरे में थी.
वो जो कोई भी था अब मेरे कमरे में था. उसके कदमों के चलने की आवाज़ से मैं अंदाज़ा लगा रहा था के वो मेरे कमरे में इधर उधर चल रहा था. मैं ज़ेह्नी तौर पर अपने आपको इस बात के लिए तैय्यार कर रहा था के किसी भी पल मुझे बिस्तर से नीचे खींच कर गिरा दिया जाएगा, मारा पिता जाएगा या आवाज़ देकर जगाया जाएगा.


दिमाग़ ने एक बार फिर कबड्डी खेलनी शुरू कर दी थी. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. क्या उठकर एकदम से बाहर दरवाज़े के तरफ दौड़ लगा दूँ या उठकर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दूँ.


चिल्लाना, चीख और तभी मुझे ध्यान आया के मेरी माँ ने भी तो ज़ोर से चीख मारी थी. वो काफ़ी ज़ोर से चिल्लाई थी तो अब तक कोई सुन कर आया क्यूँ नही था? मुझे एक एक करके अपने पड़ोसियों के नाम याद आ रहे थे. अपने घर के बगल में रहने वालो को याद कर रहा था और उम्मीद कर रहा था के कोई तो उठेगा, कोई तो आएगा.


मुझे चीख पर इतना ध्यान इसलिए भी था क्यूंकी इस पर मेरी जान टिकी हुई थी. मुझे बहुत उम्मीद थी के कोई सुनेगा और आएगा. और मुझे बचाएगा.


पर मेरी सोच ग़लत साबित हो रही थी. ना तो किसी के आने की आवाज़ सुनाई दे रही थी और ना ही मुझे आवाज़ देकर उठाया गया या बिस्तर से नीचे खींचा गया. बस उसकी आहत की आवाज़ आ रही थी. मैं जानता था के वो मेरे कमरे में है, कुच्छ कर रहा है पर क्या, ये समझ नही आ रहा था.
क्रमशः....................................................


KHAUFF--2

gataank se aage...........
Aur bathroom ke darwaze ke bahar mujhe phir vahi aawaz sunai di. Kahin kuchh zameen par girne ki aawaz. Aawaz bahut dheemi si thi par saaf thi. Maine apni aankhen poori kholi aur bathroom ke darwaze par ek pal ke liye ruka.


Tabhi aawaz phir se aayi. Is baar aawaz girne ki nahi thi. Ek ajeeb si aawaz tha. Yun laga jaise kisi tez dhaar wali cheez se kahin koi kuchh khurach raha hoon. Jaise kisi chaaku ya keel ko agar sheeshe par ghisa jaaye vaisi aawaz.


Aawaz mere mom dad ke kamre ki taraf se aayi thi jo ki bahut ajeeb baat thi. Mere mom aur dad dono ki hi aadat thi ke jaldi so jaaya karte the aur jaldi uthkar park mein walk ke liye jaate the. Mujhe TV ki aawaz kam rakhne ki hidayat dete hue Raat ke 10 baje tak unke room ki lights off ho jaaya karti jiska matlab tha ke raat ke 1 baje tak vo dono hi bahut gehri neend mein hote the.


Par us raat aisa nahi tha. Unke kamre ki light jali hui thi aur andar se vo ajeeb aawazen aa rahi thi. Ek pal ke liye main bathroom ka darwaza chhod kar unke kamre ki taraf badha aur kaash ke maine aisa kiya bhi hota.


Kaash main unke kamre mein jata, dekhta ke andar kya ho raha hai. Uske baad jo kuchh bhi hota vo meri filhal ki situation se toh behtar hi hota. Par maine aisa kiya nahi.


Unke kamre mein jakar dekhne ke bajay maine pehla bathroom jana zaroori samjha. Ye sochkar ke pehle bathroom ho aata hoon uske baad dekh loonga, main unke kamre ki taraf jata jata phir se palta aur bathroom mein daakhil ho gaya.


Aur ek baar mujhe phir vahi aawaz sunai di. Is baar bhi vahi kuchh khurachne jaisi aawaz par uske baad ek aur aawaz aayi jisne mera dhyaan sabse zyada apni aur khincha. Kisi ke munh ko haath rakh kar band kar diya jaaye toh kaisi goon goon ki aawaz nikalti hai, vaisi hi aawaz. Main jaldi se apna kaam niptaya aur bathroom se bahar nikal kar apne parents ke room ki taraf badha.


Unke kamre ka darwaza aadha khula hua tha par andar ka kuchh nazar nahi aa raha tha. Main abhi darwaze se zara door hi tha ke mujhe white marble floor par laal rang nazar aaya. Laal rang jo behta hua dheere dheere darwaze ki taraf badh raha tha.


Bahut pehle ek kahani suni thi. Akbar ke darbar mein kisi ne kaha ke maan baap ko apne bachche ki jaan zyada pyaari hoti hai. Sab log is baat se sehmat ho gaye sivaay Birbal ke. Uska kehna tha ke har kisi ko apne jaan sabse zyada pyaari hoti hai aur uske baad kisi aur ki. Lambi chaudi behar ke baad Baadshah akbar ne Birbal ko apni baat saabit karne ko kaha.


Birbal ne sipahiyon ko ek aisi bandariya pakad kar laane ko kaha jiske paas chhota sa bachcha ho. Jab sipahi bandariya pakad laaye toh bandariya ko ek pani ke sookhe tank mein uske bachche ke saath baandh diya gaya. Phir Birbal ne sipahiyon ko tank mein pani bharne ko kaha.

Jaisa ke hona tha, bandariya ghabra gayi par uske uske paon zanjeer se bandhe hue the isliye bhaag nahi sakti thi. Pani dheere dheere tank mein bharne laga aur bandariya ne apne bachche ko apne haathon mein utha liya. Pani jab aur uper aaya toh usne apne bachche ko apne sar par betha liya. Sipahi pani daalte rahe aur bahut jald pani bandariya ke sar ke uper chala gaya.


Thodi der tak toh vo apne bachche ko apne haathon mein sar ke uper uthaye khadi rahi taaki bachcha pani se bahar rahe. Par kuchh pal baad jab uska dam ghuta toh usne fauran bachce ko ek taraf phenka aur haath paon maarte hue apne aapko Pani ke uper rakhne ki koshish karne lagi. Us waqt apne bachche ka jo ki pani mein doob raha tha use koi khyaal nahi tha.


Theek vahi haal mera bhi hua. Apne maan baap ke kamre ki taraf badhta badhta main achanak ruk gaya aur unke kamre se zameen par behta hua darwaze se bahar aata khoon dekhne laga. Mujhe samajh nahi aaya ke kya karun. Main janta tha ke kamre mein sirf mere maan baap toh ye khoon bhi sirf unhi ka ho sakta hai. Vahan khada main sirf neeche khoon ki taraf dekh raha tha.


Mere paon jaise ek jagah par jam gaye the, saans uper ki uper neeche ki neeche reh gayi thi aur dil ki dhadkan tez ho chali thi.


Isse pehle ke main kuchh soch ya samajh pata, poore ghar mein meri maan ki cheekh goonj uthi. Ek dard bhari cheekh jisko sunkar hi andaza ho gaye ke cheekh maarne wali bahut takleef mein hai aur madad ke liye pukaar rahi hai.


Aur us cheekh ne meri soch ko ek disha de di. Vahan khada jo main pehle samajh nahi pa raha tha ke kya karun ab janta tha ke kya karna hai. Khauff mere poore shareer mein daud gaya, dil ki dhadkan tez ho gayi, shareer ke baal khade ho gaye aur andar ka janwar bahar aa gaya.


Main us waqt bhi aadhi neend mein tha. Cough Syrup ka nasha ab tak mere zehan par sawar tha.


Main palat kar apne kamre ki taraf bhaga aur andar aakar sidha apne bistar mein ja ghusa. Kisi chhote bachche ki tarah maine chadar apne uper khinchi aur deewar ki taraf karwat lekar let gaya. Aankhen maine kas kar band kar li thi.


Aap sochenge ye aisa toh koi 10 saal ka chhota bachcha karega. Ismein aapka kasoor nahi hai. Aap aisa isliye soch rahe hain kyunki kabhi aap ki jaan par bani nahi. Kabhi aapke saath aisa hua nahi jabke aapke maan baap ke kamre se khoon beh kar bahar aa raha ho, jab aapki maan ki cheekh ghar mein goonji ho, jabke aap jaante hon ke ye jis kisi ne bhi kiya hai vo abhi ghar mein hi hai aur jab ke aap jaante ho ke aapki ek halki si galti, ek halki si aahat aapki jaan le sakti hai.


Aur yakeen maniye, aap ye sunkar hasenge par yakeen maniye aisa hua ke bistar par let kar maine apni aankhen band ki aur apne aapko ye samjhane laga ke maine abhi abhi koi sapna dekha hai. Ke main abhi abhi neend se jaga hoon aur aisa kuchh nahi hua hai.


Aur isse zyada hasi ki baat ye hai ke jo abhi abhi dekha tha, usse jhatka khaye mere dimag ne meri baat maan bhi li. Maine khud apne aapko behlaya aur main ye jaante hue ke main hi apne aapko behla raha hoon, behal bhi gaya.


Hai na kamal ki baat? Par aisa hota hai. Jab insaan gehre sadme mein ho, bahut bada jhatka khaya ho, jab kuchh aisa hua ho jo kabhi pehle nahi hua tha, jab apni jaan par ban aayi ho toh kya dekha tha, kya suna tha, kya sahi tha aur kya galat tha, iska faisla karna bahut mushkil ho jata hai.

Aur shayad meri aankh lag bhi jaati, shayad main har baat se anjaan hokar so bhi jata agar meri darwaze par aahat na hui hoti.


Mere kamre mein poori tarah andhera tha aur bahar drawing room mein jal rahe night bulb ki halki si light aa rahi thi. Aahar par maine apni aankhen kholi toh mujhe 4 baaton ka ehsaas ek saath hua.


Pehli toh ye kere mere kamre ke darwaze par koi khada tha jisko main andhera hone ki vajah se dekh nahi paya. Bas andhere mein ek saya nazar aa raha tha.


Doosri baat ye ke jo kuchh bhi main apne aapko ek sapna, ek khwaab, ek khyaal bata raha tha, sab sach tha. Main sach mein khoon dekha tha aur bahut mumkin tha ke doosre kamre mein ab tak mere maan baap mar chuke hon.


Teesri baat ye ke main aaya toh deewar ki taraf karwat lekar leta tha par ab meri karwat darwaze ki taraf thi. Ye kab hua tha mujhe yaad nahi tha matlab ke main sach mein apne aapko sapne ka bahana dekar so gaya tha. Shayad iski vajah cough syrup tha jise pine ke baad main bin piye sharabi ho jata tha aur neend mein toolta rehta tha.


Aur chauthi sabse zaroori baat ye ke shayad ab meri jaan bhi khatre mein thi.
Vo jo koi bhi tha ab mere kamre mein tha. Uske kadmon ke chalne ki aawaz se main andaza laga raha tha ke vo mere kamre mein idhar udhar chal raha tha. Main zehni taur par apne aapko is baat ke liye taiyyar kar raha tha ke kisi bhi pal mujhe bistar se neeche khinch kar gira diya jaayega, mara pita jaayega ya aawaz dekar jagaya jaayega.


Dimag ne ek baar phir kabaddi khelni shuru kar di thi. Mujhe samajh nahi aa raha tha ke kya karun. Kya uthkar ekdam se bahar darwaze ke taraf daud laga doon ya uthkar zor zor se chillana shuru kar doon.


Chillana, cheekh aur tabhi mujhe dhyaan aaya ke meri maan ne bhi toh zor se cheekh maari thi. Vo kaafi zor se chillayi thi toh ab tak koi sun kar aaya kyun nahi tha? Mujhe ek ek karke apne padosiyon ke naam yaad aa rahe the. Apne ghar ke bagal mein rehne walo ko yaad kar raha tha aur ummeed kar raha tha ke koi toh uthega, koi toh aayega.


Mujhe cheekh par itna dhyaan isliye bhi tha kyunki is par meri jaan tiki hui thi. Mujhe bahut ummeed thi ke koi sunega aur aayega. Aur mujhe bachayega.


Par meri soch galat saabit ho rahi thi. Na toh kisi ke aane ki aawaz sunai de rahi thi aur na hi mujhe aawaz dekar uthaya gaya ya bistar se neeche khincha gaya. Bas uski aahat ki aawaz aa rahi thi. Main janta tha ke vo mere kamre mein hai, kuchh kar raha hai par kya, ye samajh nahi aa raha tha.
kramashah....................................................






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एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-1


एक कहानी ख़ौफ़--पार्ट-1


मुझे वक़्त का कोई अंदाज़ा नही था.


रात के बारे में जो बात मेरे ख्याल से सबसे ज़्यादा क़ाबिल-ए-गौर है वो ये है के रात में हर छ्होटी से छ्होटी आवाज़ सुनाई देती है. आइ मीन दिन में आपके पड़ोसी जितना भी लड़ें झगड़े, चाहे जितना चिल्लाएँ आपको सुनाई नही देगा पर रात में हर कोई ज़रा संभाल कर बोलता है क्यूंकी यहाँ आवाज़ थोड़ी ऊँची हुई नही के
पूरे मोहल्ले को पता चल जाएगा के आपके घर में लड़ाई हो रही है.

शायद इसी वजह से घरेलू झगड़े ज़्यादातर शायद दिन में ही होते होंगे.


पर अपने मोम डॅड को तो मैने कभी दिन में भी लड़ते नही सुना?

शायद वो बहुत हल्की आवाज़ में झगड़ते होंगे ताके मैं सुन ना सकूँ. और मेरा कमरा भी तो उनके कमरे से थोड़ा हटके था इसलिए लड़ते भी होंगे तो उनकी आवाज़ मुझे कहाँ सुनाई देती होगी?


पर आज रात तो दी थी.

हां तो आज रात वो लड़ थोड़े ही रहे थे. जो मुझे सुनाई दी वो तो चीखने की आवाज़ थी.मेरी माँ की चीख.


क़ाबिल-ए-गौर बात ये भी है के ये चीख मेरे अलावा और किसी ने नही सुनी. रात को आपके अगले घर में कोई औरत चीखे और आप उठकर देखने ना जाएँ? ऐसा कैसे हो सकता है.


पर ऐसा हुआ. मेरा माँ पूरे ज़ोर से चिल्लाई थी पर फिर भी अब तक कोई आया नही था.

क्या किसी ने चीख सुनी नही?

नही नही ऐसा कैसे हो सकता है. रात के सन्नाटे में शर्तिया वो चीख तो पूरे मोहल्ले में सुनाई दी होगी.

तो कोई आया क्यूँ नही फिर अब तक?


चीख किसी ने सुनी नही या कोई सुनना नही चाहता था? वैसे भी आजकल मदद किसी की करना कौन चाहता है? वो तो पुराने ज़माने की बातें हैं के पड़ोसी पड़ोसी के काम आता था, हर कोई हर किसी के गम और खुशी में शरीक होता था. अब कौन ऐसा करता है. अब तो हर किसी के अपने सर पे इतनी मुसीबत पड़ी रहती है के दूसरे
की मुसीबत को देख कर भी अनदेखा कर दिया जाता है.

कहाँ गयी इंसानियत?


मुझे अब भी वक़्त का कोई अंदाज़ा नही था. आँखें बंद किए, साँस रोके मैं एक ही करवट पर कब्से पड़ा था मैं नही जानता था. रात का सन्नाटा अपने पूरे शबाब पर था और हर बारीक से बारीक आवाज़ भी सुनाई दे रही थी.


या शायद उस वक़्त, उस सिचुयेशन में होने की वजह से मेरे सेन्सस मुझे धोखा दे रहे थे.

शायद मुझे ही उस वक़्त हर आवाज़ सुनाई दे रही थी. जो भी था, उस वक़्त तो ऐसा लग रहा था जैसे अपने दिल की धड़कन भी एक शोर है.


साला अगर मुझे पता होता के आज रात ऐसा कुच्छ होने वाला है तो मैं सुनील की बात मान लेता. कहा था उसने के रुक जा आज रात मेरे ही घर पर, मज़े करेंगे. पर नही, मुझे तो अपने ही घर आना था. अब भुग्तो.


कमरे में अब भी मुझे सिर्फ़ 4 आवाज़ें सुनाई दे रही थी.

एक अपनी साँस की आवाज़, अपने दिल की धड़कन, उसकी साँस की आवाज़ और कुच्छ रगड़ने या घिसटने जैसी आवाज़.

ड्रॉयिंग रूम से हमारी बाबा आदम के ज़माने की आंटीक घाटे की टिक टोक टिक टोक की आवाज़ सुनाई दे रही थी.

मेरा कोशिश पूरी तरह से यही थी के मैं अपनी आँखों को ज़्यादा ना हिलाओं. आप किसी की आँख देख कर बता सकते हैं के वो सो रहा है या सोने का नाटक कर रहा है. आइ मीन अगर बंद पलकों के नीचे पुतलियाँ हिल रही हों तो इसका मतलब के इंसास सिर्फ़ सोने का नाटक कर रहा है क्यूंकी जो इंसान हक़ीआत में सो रहा होगा उसकी पुतलियाँ आराम से रुकी होगी, पलकों के नीचे हिल रही नही होंगी.


या अगर किसी ने अपनी पलकों को कस कर या ज़्यादा ज़ोर से बंद कर रखा हो तब भी आप देख कर बता सकते हैं के वो सिर्फ़ सोने का नाटक कर रहा है. क्यूंकी जो असल में सो रहा होगा, उसकी पलकें आराम से बंद होगी. उसकी आँखें एकदम शांत होगी जैसे किसी शांत झील का ठहरा हुआ पानी.


इसलिए ही मैने ना तो अपनी पल्को को ज़्यादा ज़ोर से बंद कर रखा था ना अपनी आँखों को पलकों के नीचे ज़्यादा हिला रहा था ताकि उसे ऐसा ही लगे के मैं सो रहा हूँ.


तभी ड्रॉयिंग रूम से टन टन टन की आवाज़ आई. आंटीक घंटे ने रात के 3 बजाए.


यानी मुझे साँस थामे एक ही करवट पर पड़े पड़े 2 घंटे से ज़्यादा हो चुके थे.


ख़ौफ़ भी एक अजीब चीज़ होती है. एक अजीब सा एमोशन. मैने कहीं पढ़ा था के 3 चीज़ें इंसान के अंदर के जानवर को बाहर ले आती हैं. सेक्स, गुस्सा और ख़ौफ्फ यानी के डर. इंसान अपने असली चेहरे पर चाहे कितने नक़ाब लगा ले, कितना भी दिखावे के चादर में अपनी हक़ीकत को च्छूपा ले ये 3 चीज़ें उसकी हक़ीकत को बाहर ले आती हैं.


बेडरूम में कपड़े उतारने के बाद इंसान सिर्फ़ बाहरी तौर पर नंगा नही होता. वो असल में नंगा हो जाता है.


शरम के पर्दे हटाने के बाद जब दो जिस्म आपस में वासना का नंगा नाच खेलते हैं तब उन कुच्छ पल के लिए चेहरे पर कोई नक़ाब नही होता. वासना के तपिश में तपते हुआ वो चेहरा असली होता है. वहाँ उन कुच्छ पलों के बर्ताव से आप इंसान की असलियत का बहुत हद तक अंदाज़ा लगा सकते हैं. उस वक़्त बाहर आता है अंदर का जानवर.


ऐसा ही कुच्छ हाल तब होता है जब इंसान के सर पर गुस्सा सवार हो. विनाश काले विपरीत बुद्धि जिसने भी कहा है सही है. गुस्से में सबसे पहले दिमाग़ काम करना बंद कर देता है और उसके बाद इंसान जो कदम बिना सोचे समझे उठता है वो उसका असली चेहरा होता है. समझदार, डरपोक, क़ायर, बुद्धिजीवी, हत्यारा या वो जो कुच्छ भी हो, गुस्से में वो बिना सोचे समझे अपने प्रकरातिक व्यवहार यानी नॅचुरल इन्स्टिंक्ट्स को ही फॉलो करेगा.


और ऐसा ही कुच्छ मेरे साथ हुआ था. बस फरक इतना था के मैं वासना या गुस्से के बजाय तीसरी भावना का शिकार था. आ विक्टिम ऑफ दा थर्ड एमोशन. ख़ौफ़, डर, फियर. पिच्छले कुच्छ घंटो में मैने पहचाना था के बाहर से मैं जो कुच्छ भी था, चाहे कितनी भी बड़ी बातें करता था पर अंदर से एक डरपोक था. इस वक़्त बिस्तर पर पड़े हुए, आँखें बंद किए मुझे अपना असली चेहरा दिखाई दे गया था, एक कायर का चेहरा.


और यही था मेरे अंदर का जानवर, एक डरपोक चूहा जो हल्की सी आहट पर अपनी जान बचा कर भाग लेता है.


ऐसा नही है के मैने कुच्छ सोचा नही था. मैने बहुत दिमाग़ लगाया था ये सोचते हुए के मैं क्या करूँ, या मैं क्या कर सकता हूँ पर कुच्छ समझ आया ही नही. और वैसे भी आँखें बंद किए पड़ा, सोने का नाटक करता हुआ डरा सहमा इंसान बिना सोचे कर भी क्या सकता है.


और अब मेरा सोचना समझना मेरे सिवा शायद और किसी के काम आ भी नही सकता था. मैं एक डरपोक कायर हूँ ये मैं समझ गया था. 3 घंटे पहले जब मैं उठकर अपने कमरे से बाहर निकला था अगर मैं उस वक़्त कुच्छ करता तो मैं कायर ना होता पर मैने कुच्छ भी नही किया था.


मैं रात में काई बार उठता था. ये मेरे बचपन की आदत थी. एक रात में कम से कम 3 बार तो मैं पेशाब करने के लिए उठता ही था. काई बार मुझे लगता था के ये एक बीमारी है जिसके लिए मुझे डॉक्टर को दिखाना चाहिए पर फिर सोचा तो समझ आया के बीमारी इसकी वजह नही थी. वजह थी मेरा हद से ज़्यादा चाइ पीना. एक ज़िम्मेदार हिन्दुस्तानी होते हुए मैं बखुबी ये फ़र्ज़ निभाता था के हर घंटे में कम से कम एक कप चाइ तो पीता ही था.


यानी मेरे दिन के 12-13 कप तो पक्के थे. और हद तो ये थी के मैं रात को सोने से पहले भी चाइ पीता था बल्कि बिना चाइ पिए तो मुझे नींद ही नही आती थी. है ना कमाल की बात? जहाँ लोग जागते रहने के लिए चाइ कॉफी पीते हैं, मुझे सोने के लिए एक कप चाइ चाहिए होता था.


दूसरी ज़रूरी बात ये के उस रात में कॉफ सरप पीकर सोया था. शराब पीने की मुझे आदत नही थी पर कॉफ सरप मुझ पर शराब जैसा काम करता था. एक घूंठ कॉफ सरप पीने के बाद मैं घंटो तक आराम से सो सकता था. और अगर 4-5 घूँट पी लूँ तो मुझ पर सोकर उठने के बाद भी ऐसा खुमार छाया रहता था जैसे मैने सोने से पहले जम कर शराब पी हो.


उस रात मुझे खाँसी चैन से सोने नही दे रही थी इसलिए मैने कॉफ सरप के लंबे लंबे 5-6 घूंठ पिए और घोड़े बेच कर सो गया.

खैर, आदत के मुताबिक इस रात भी जब मैं उठा तो मुझे लगा के मेरी आँख किसी आवाज़ की वजह से खुली ना कि पेशाब करने की ज़रूरत की वजह से. पर रात का 1 बज रहा था और मैं नींद में डूबा हुआ था. पेशाब करने के लिए मैं अपने कमरे से बाहर निकल कर आँखें आधी बंद किए दीवार के सहारे लड़खदाता हुआ बाथरूम की तरफ चला.

क्रमशः....................................................





KHAUFF--1




Mujhe waqt ka koi andaza nahi tha.


Raat ke baare mein jo baat mere khyaal se sabse zyada qabil-e-gaur hai vo ye hai ke raat mein har chhoti se chhoti aawaz sunai deti hai. I mean din mein aapke padosi jitna bhi lade jhagde, chahe jitna chillayen aapko sunai nahi dega par raat mein har koi zara sambhal kar bolta hai kyunki yahan aawaz thodi oonchi hui nahi ke
poore mohalle ko pata chal jaayega ke aapke ghar mein ladai ho rahi hai.

Shayad isi vajah se gharelu jhagde zyadatar shayad din mein hi hote honge.


Par apne Mom Dad ko toh maine kabhi din mein bhi ladte nahi suna?

Shayad vo bahut halki aawaz mein jhagadte honge taake main sun na sakoon. Aur mera kamra bhi toh unke kamre se thoda hatke tha isliye ladte bhi honge toh unki aawaz mujhe kahan sunai deti hogi?


Par aaj raat toh di thi.

Haan toh aaj raat vo lad thode hi rahe the. Jo mujhe sunai di vo toh cheekhne ki aawaz thi.Meri maan ki cheekh.


Qabil-e-gaur baat ye bhi hai ke ye cheekh mere alawa aur kisi ne nahi suni. Raat ko aapke agle ghar mein koi aurat cheekhe aur aap uthkar dekhne na jaayen? Aisa kaise ho sakta hai.


Par aisa hua. Mera maan poore zor se chillayi thi par phir bhi ab tak koi aaya nahi tha.

Kya kisi ne cheekh suni nahi?

Nahi nahi aisa kaise ho sakta hai. Raat ke sannate mein shartiya vo cheekh toh poore mohalle mein sunai di hogi.

Toh koi aaya kyun nahi phir ab tak?


Cheekh kisi ne suni nahi ya koi sunna nahi chahta tha? Vaise bhi aajkal madad kisi ki karna kaun chahta hai? Vo toh purane zamane ki baaten hain ke padosi padosi ke kaam aata tha, har koi har kisi ke gham aur khushi mein shareek hota tha. Ab kaun aisa karta hai. Ab toh har kisi ke apne sar pe itni museebat padi rehti hai ke doosre
ki museebat ko dekh kar bhi andekha kar diya jata hai.

Kahan gayi insaaniyat?


Mujhe ab bhi waqt ka koi andaza nahi tha. Aankhen band kiye, saans roke main ek hi karwat par kabse pada tha main nahi janta tha. Raat ka sannata apne poore shabab par tha aur har baareek se baareek aawaz bhi sunai de rahi thi.


Ya shayad us waqt, us situation mein hone ki vajah se mere senses mujhe dhokha de rahe the.

Shayad mujhe hi us waqt har aawaz sunai de rahi thi. Jo bhi tha, us waqt toh aisa lag raha tha jaise apne dil ki dhadkan bhi ek shor hai.


Sala agar mujhe pata hota ke aaj raat aisa kuchh hone wala hai toh main Sunil ki baat maan leta. Kaha tha usne ke ruk ja aaj raat mere hi ghar par, maze karenge. Par nahi, mujhe toh apne hi ghar aana tha. Ab bhugto.


Kamre mein ab bhi mujhe sirf 4 aawazen sunai de rahi thi.

Ek apni saans ki aawaz, apne dil ki dhadkan, uski saans ki aawaz aur kuchh ragadne ya ghisatne jaisi aawaz.

Drawing room se hamari Baba Aadam ke zamane ki antique ghate ki tik tok tik tok ki aawaz sunai de rahi thi.

Mera koshish poori tarah se yahi thi ke main apni aankhon ko zyada na hilaaon. Aap kisi ki aankh dekh kar bata sakte hain ke vo so raha hai ya sone ka natak kar raha hai. I mean agar band palkon ke neeche putliyan hil rahi hon toh iska matlab ke insaas sirf sone ka natak kar raha hai kyunki jo insaas haqeeat mein so raha hoga uski putliyan aaram se ruki hogi, palkon ke neeche hil rahi nahi hongi.


Ya agar kisi ne apni palkon ko kas kar ya zyada zor se band kar rakha ho tab bhi aap dekh kar bata sakte hain ke vo sirf sone ka natak kar raha hai. Kyunki jo asal mein so raha hoga, uski palken aaram se band hogi. Uski aankhen ekdam shaant hogi jaise kisi shaant jheel ka thehra hua pani.


Isliye hi maine na toh apni palon ko zyada zor se band kar rakha tha na apni aankhon ko palkon ke neeche zyada hila raha tha taaki use aisa hi lage ke main so raha hoon.


Tabhi Drawing room se tan tan tan ki aawaz aayi. Antique ghante ne raat ke 3 bajaye.


Yaani mujhe saans thaame ek hi karwat par pade pade 2 ghante se zyada ho chuke the.


Khauff bhi ek ajeeb cheez hoti hai. Ek ajeeb sa emotion. Maine kahin pada tha ke 3 cheezen insaan ke andar ke janwar ko bahar le aati hain. Sex, Gussa aur Khauff yaani ke darr. Insaan apne asli chehre par chaahe kitne naqab laga le, kitna bhi dikhave ke chadar mein apni haqeeat ko chhupa le ye 3 cheezen uski haqeeat ko bahar le aati hain.


Bedroom mein kapde utarne ke baad insaan sirf bahari taur par nanga nahi hota. Vo asal mein nanga ho jata hai.


Sharam ke parde hatane ke baad jab do jism aapas mein vasna ka nanga naach khelte hain tab un kuchh pal ke liye chehre par koi naqab nahi hota. Vasna ke tapish mein tapte hua vo chehra asli hota hai. Vahan un kuchh palon ke bartav se aap insaan ki asliyat ka bahut hadh tak andaza laga sakte hain. Us waqt bahar aata hai andar ka janwar.


Aisa hi kuchh haal tab hota hai jab insaan ke sar par gussa sawar ho. Vinash kaale vipreet buddhi jisne bhi kaha hai sahi hai. Gusse mein sabse pehle dimag kaam karna band kar deta hai aur uske baad insaan jo kadam bina soche samjhe uthata hai vo uska asli chehra hota hai. Samajhdar, Darpok, Qayar, Buddhijeevi, Hatyara ya vo jo kuchh bhi ho, gusse mein vo bina soche samjhe apne prakratik vyavhaar yaani natural instincts ko hi follow karega.


Aur aisa hi kuchh mere saath hua tha. Bas farak itna tha ke main vasna ya gusse ke bajay teesri bhavna ka shikar tha. A victim of the third emotion. Khauff, Darr, Fear. Pichhle kuchh ghanto mein maine pehchana tha ke bahar se main jo kuchh bhi tha, chahe kitni bhi badi baaten karta tha par andar se ek darpok tha. Is waqt bistar par pade hue, aankhen band kiye mujhe apna asli chehra dikhayi de gaya tha, ek kaayar ka chehra.


Aur yahi tha mere andar ka janwar, ek darpok chooha jo halki si aahat par apni jaan bacha kar bhag leta hai.


Aisa nahi hai ke maine kuchh socha nahi tha. Maine bahut dimag lagaya tha ye sochte hue ke main kya karun, ya main kya kar sakta hoon par kuchh samajh aaya hi nahi. Aur vaise bhi aankhen band kiye pada, sone ka natak karta hua dara sehma insaan bina soche kar bhi kya sakta hai.


Aur ab mera sochna samajhna mere siva shayad aur kisi ke kaam aa bhi nahi sakta tha. Main ek darpok kayar hoon ye main samajh gaya tha. 3 ghante pehle jab main uthkar apne kamre se bahar nikla tha agar main us waqt kuchh karta toh main kaayar na hota par maine kuchh bhi nahi kiya tha.


Main raat mein kayi baar uthta tha. Ye mere bachpan ki aadat thi. Ek raat mein kam se kam 3 baar toh main peshab karne ke liye uthta hi tha. Kayi baar mujhe lagta tha ke ye ek bimari hai jiske liye mujhe doctor ko dikhana chahiye par phir socha toh samajh aaya ke bimari iski vajah nahi thi. Vajah thi mera hadh se zyada chaai pina. Ek zimmedar hindustani hote hue main bakhubhi ye farz nibhata tha ke har ghante mein kam se kam ek cup chaai toh pita hi tha.


Yaani mere din ke 12-13 cup toh pakke the. Aur hadh toh ye thi ke main raat ko sone se pehle bhi chaai pita tha balki bina chaai piye toh mujhe neend hi nahi aati thi. Hai na kamal ki baat? Jahan log jaagte rehne ke liye chaai coffee pite hain, mujhe sone ke liye ek cup chaai chahiye hota tha.


Doosri zaroori baat ye ke us raat mein cough syrup pikar soya tha. Sharab pine ki mujhe aadat nahi thi par cough syrup mujh par sharab jaisa kaam karta tha. Ek ghoonth cough syrup peene ke baad main ghanto tak aaram se so sakta tha. Aur agar 4-5 ghoont pi loon toh mujh par sokar uthne ke baad bhi aisa khumaar chhaya rehta tha jaise maine sone se pehle jam kar sharab pi ho.


Us raat mujhe khaansi chain se sone nahi de rahi thi isliye maine cough syrup ke lame lambe 5-6 ghoonth piye aur ghode bech kar so gaya.

Khair, aadat ke mutaabik is raat bhi jab main utha toh mujhe laga ke meri aankh kisi aawaz ki vajah se khuli na ki peshab karne ki zaroorat ki vajah se. Par raat ka 1 baj raha tha aur main neend mein dooba hua tha. Peshab karne ke liye main apne kamre se bahar nikal kar aankhen aadhi band kiye deewar ke sahare ladkhadata hua bathroom ki taraf chala.

kramashah....................................................







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एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-3 Hindi Love Story

  एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-3



गतान्क से आगे..............

पर नही. ऐसा कुच्छ नही होगा. लॉक्स अब भी वही हैं और चाभी भी. तुम चाभी घूमाओगी और दरवाज़ा खुल जाएगा.


तुम घर के बड़े से भारी दरवाज़े को खोल कर अंदर आओगी. पुशिंग ओपन दा डोर. बड़ा भारी सा दरवाज़ा जिस पर काले रंग का पैंट है और तुम्हारे पंजे का निशान छपा हुआ है.

अंदर आते हुए तुम यही उम्मीद करोगी के घर के अंदर वैसी ही स्मेल होगी जैसे तब होती थी जब ये घर तुम्हारा था. तुम उम्मीद कर रही होगी के अंदर ए.सी. ऑन होगा और एक ठंडी हवा तुम्हारे चेहरे पर लगेगी जो तुम्हें बाहर की गर्मी से बचाएगी. पर नही. ना तो ठंडी हवा होगी और ना ही वो खुश्बू जो इस घर
में तुम्हारे होने से होती थी.


घर के अंदर की हवा गरम होगी वैसी ही जैसी के बाहर की हवा है. बल्कि उससे भी बुरी क्यूंकी अंदर की बंद हवा में एक अजीब सी बदबू होगी हो घर में घुसते ही तुम्हारे चेहरे पर थप्पड़ की तरह लगेगी.


घबरा कर तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकरोगी.


तुम्हारी आवाज़ खुद तुम्हारे ही कानो को कितनी कमज़ोर और परेशान सी लगेगी. और तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल की वजह से फिर एक बार अपनी नाक सिकोड लॉगी. ठीक उसी तरह जो मुझे बहुत पसंद आया करता था.


परेशान होकर तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल से बचने के लिए लिविंग रूम की खिड़की खोलने की कोशिश करोगी.


मुझे माफ़ कर दो प्लीज़.

मैं अब एक घंटे से ज़्यादा के लिए वापिस नही आ सकती. कभी नहीं.

ये शायद मेरी ही ग़लती थी. मुझे तुमसे शादी नही करनी चाहिए थी

मुझे पता होना चाहिए था के हम दोनो ग़लती कर रहे हैं.

हां मैने अपने घरवालो के कहने पर तुमसे शादी की थी.

उनके दबाव में आकर.

वो कहते थे के तुम एक बहुत बड़े प्रोफेसर हो और तुम्हारे साथ मेरा फ्यूचर सेफ आंड सेक्यूर होगा.

मैने तुम्हें प्यार करने की बहुत कोशिश की. बहुत चाहा के तुम्हारी बीवी बन सकूँ, सिर्फ़ जिस्म से नही बल्कि दिल से भी.

मैं सिर्फ़ अपना समान लेने आऊँगी. और जो मैं नही ले जा सकती वो तो किसी को दे देना या फेंक देना.

तुम मेरी ज़िंदगी में पहले लड़के थे. तुमसे पहले मैं किसी लड़के को नही जानती थी. अगर जानती होती तो शायद .....

नही मैने तुमसे कभी प्यार नही किया, कभी कर ही नही पाई. अपना जिस्म तो तुम्हें दे दिया पर दिल नही दे पाई और कभी दे भी नही पाऊँगी.


तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकरोगी. पूछोगी के क्या मैं उपेर के कमरे में हूँ? तुम्हारा दिल तुम्हें फ़ौरन पलट जाने को कह रहा होगा. भाग जाने को कह रहा होगा.


फिर भी तुम अपने दिल की बात ना सुनते हुए सीढ़ियाँ चढ़ती उपेर के कमरे की तरफ आओगी.



तेरी यादों के जो आखरी थे निशान,
दिल तड़प्ता रहा, हम मिटाते रहे.

खत लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,
उनको पढ़ते रहे और जलाते रहे.....

धड़कते दिल के साथ तुम सीढ़ियाँ चढ़ती उपेर आओगी. सीढ़ियों पर अब भी वही कार्पेट होगा जो तुम पसंद करके लाई थी. जिसके रंग को लेकर हम दोनो में काफ़ी बहस हुई थी. सीढ़ियों के साथ बनी रेलिंग का सहर लिए तुम उपेर को चढ़ती आओगी, जैसे कोई नीद में चल रहा हो.


उपेर आते हुए पता नही तुम्हारे दिल में कौन सी फीलिंग होगी? गिल्ट? अफ़सोस? दुख? डर? आज़ादी?

या तुम सिर्फ़ ये सोच रही होगी के उपेर तुम्हें क्या मिलने वाला है? या ये के क्यूंकी तुम अब तक मेरी बीवी हो तो तुम्हारा फ़र्ज़ बनता है के एक बार उपेर आकर देखो?
तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी वो क्यूट सी स्माइल होगी इस बात का मुझे पूरा यकीन है. वही स्माइल जिसका मैं आज भी दीवाना हूँ पर फ़र्क सिर्फ़ इतना होगा के तब वो स्माइल नकली होगी, ये सोचकर के अगर मैं तुम्हें उपेर मिला तो तुम मुस्कुरा कर मुझे देखो.


तुम घबरा रही होंगी. शायद तुम्हें हल्के से चक्कर भी आ रहे हों. दिल ज़ोर से धड़क रहा होगा और खून का बहाव दिमाग़ की तरफ ज़्यादा बढ़ जाएगा. जैसे जैसे डरते हुए तुम सीढ़ियाँ चढ़ोगी वैसे वैसे कभी तुम्हारी आँखों के आगे रोशनी होगी तो कभी अंधेरा सा.


सीढ़ियाँ चढ़ कर तुम एक पल के लिए रुकोगी और एक गहरी साँस लॉगी. पर साँस ज़्यादा लंबी और गहरी ले नही पओगि. क्यूँ घर में नीचे आ रही स्मेल यहाँ और भी ज़्यादा तेज़ होगी. गर्मी की घुटन से भरी एक अजीब से तेज़ स्मेल. तुम्हारा दम घुटने लगेगा और शायद तुम्हें उल्टी भी आने को हो पर तुम पलट नही सकती. वापिस नही जा सकती. तुम्हें बेडरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर देखना ही पड़ेगा.



इश्क़ को दर्द-ए-सर कहने वालो सुनो,
कुच्छ भी हो हमने ये दर्द-ए-सर ले लिया,
वो निगाहों से बचकर कहाँ जाएँगे,
अब तो उनके मोहल्ले में घर ले लिया.

आए बन ठनके शहर-ए-खामोशी में वो,
कब्र देखी जो मेरी तो कहने लगे,
अर्रे आज इतनी तो इसकी तरक्की हुई,
एक बेघर ने अच्छा सा घर ले लिया.



और हमारे बेडरूम तक आने से पहले तुम्हें उस छ्होटे से कमरे के आगे से गुज़रना होगा, वो कमरा जो तुमने हमारे बच्चे के लिए बनवाया था. वो बच्चा जो कभी हुआ ही नही.


बेडरूम का दरवाज़ा बंद होगा. तुम अपना हाथ दरवाज़े पर रख कर धकेलना चाहोगी और तुम्हें दरवाज़े की गर्मी महसूस होगी. और अब भी तुम्हारे दिमाग़ में ये चल रहा होगा के तुम दरवाज़ा खोल कर अंदर नही देखना चाहती पर फिर भी तुम ऐसा कर रही हो. तुम दरवाज़े के बाहर बने नॉब को अपने हाथ से पकड़ कर घूमाओगी और हिम्मत करते हुए धीरे से दरवाज़ा खॉलॉगी.


भिन-भीनाहट के आवाज़ कितनी तेज़ होगी. इस क़दर तेज़ जैसे कहीं आग लगी हो. और उसके उपेर से कमरे में उठ रही बदबू जैसे कहीं कुच्छ सड़ रहा हो. भिंन-भीनाहट और बदबू दोनो मिलकर ऐसा आलम बना रही होंगी जिसका तुम यूँ अचानक सामना नही कर पावगी.


कोई चीज़ तुम्हारे चेहरे को च्छुकर गुज़र जाएगी, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को. घबरा कर तुम 2 कदम पिछे हो जाओगी और फिर मेरे नाम लेकर पुकरोगी.


कमरे में कोई हलचल नही होगी. पर्दे गिरे हुए होंगे और लाइट्स ऑफ होंगी. उस हल्की सी रोशनी में तुम्हारी आँखों को अड्जस्ट होने में थोड़ा वक़्त लगेगा. और जब दिखाई देना शुरू होगा तब तुम्हें कमरे में भरी मक्खियों का एहसास होगा.

वो भिंन-भिनाने की आवाज़ इन्ही मक्खियो की होगी.


हज़ारों? लाखों? छत से लेकर दीवारों तक, हर चीज़ पर मक्खियाँ.

और नीचे कार्पेट पर भी. उसी कार्पेट पर जिसपे की चीज़ का गाढ़ा सा दाग है.

और बिस्तर पर भी मक्खियाँ. हां वही महेंगा सा बेड जो हम दोनो अपने लिए पसंद करके लाए थे. जिसपर मैने जाने कितनी बार तुमसे मोहब्बत की. जिसपर तुम हर रात मेरी बीवी बनकर मेरे साथ सोई.

क्या ये? कौन है ये?

ये चेहरा या जो कुच्छ भी चेहरे का बचा है अब पहचान में नही आ रहा.
चमड़ी सूज कर इस हद तक पहुँच चुकी है के अब तो बुलबुले से उठ रहे हैं जैसे चूल्‍हे पर रखा कुच्छ गाढ़ा सा पक रहा हो.


चमड़ी अब चमड़ी बची नही. ये तो अब एक कुच्छ काली सी चीज़ बन चुकी है जो धीरे धीरे गल कर जैसे नीचे बिस्तर पर बह रही है, जैसे नीचे ज़मीन पर बह रही है. चमड़ी जो अब धीरे धीरे उस जिस्म से अलग हो रही है जिस जिस्म को ढकना उसका काम था.


जिस्म भी इस तरह से फूल सा गया है जैसे अंदर हवा भर दी गयी हो. धीरे धीरे सड़ रहा जिस्म जिसपर मक्खियाँ जैसे दावत मनाने आई हों.


और यहाँ वहाँ टुकड़ो में है जो कभी मुँह था, जो कभी नाक थी, जो कभी कान थे.


उस इंसान शरीर जैसी चीज़ की कलाईयों पर काटने का निशान है. खून से सना चाकू अब भी वहीं पड़ा होगा जहाँ वो हाथ से छूट कर गिरा था


दोनो हाथ और बाहें जो मक्खियों से पूरी तरह ढके हुए होंगे इस तरह फैले हैं जैसे किसी को गले लगा लेना चाहते हों.


हर तरफ और हर जगह गाढ़े काले पड़ चुके खून के धब्बे हैं. लाश के कपड़ो, चादर और नीचे कार्पेट पर.

बदबू बहुत ज़्यादा है. सड़ने की बदबू जो कमरे की हवा को पूरी तरह गंदा कर चुकी है पर फिर भी तुम पलट नही पओगि. जिस चीज़ ने तुम्हें पकड़ कर कमरे में थाम रखा होगा वो तुम्हें इतनी आसानी से छ्चोड़ेगी नही.


पूरा कमरा उस वक़्त जैसे एक खुला पड़ा ज़ख़्म होगा. तुम्हारा पति मरा नही है बस एक दूसरी दुनिया में चला गया है जहाँ से वो हमेशा तुम्हें देख सकेगा, अपनी बीवी की तरह. क्यूंकी वो अपनी ज़िंदगी में तुमसे कभी अलग हुआ ही नही, उसने कभी तुमसे अपना रिश्ता तोड़ा ही नही. वो तो जिया भी तुम्हारे इश्क़ में, तुम्हारा पति बनकर और मरा भी तुम्हारे इश्क़ में तुम्हारा पति कहलाते हुए.


हवा में उड़ रही हज़ारों लाखों आँखें तुम्हारे पति की ही हैं जो तुम्हें देख रही है, ये हवा में फेली अजीब सी भिन्न भिन्न की आवाज़ तुम्हारे पति की ही है जो तुमसे बात करना चाह रही है, कुच्छ गिला कोई शिकवा करना चाह रही है.


मक्खियाँ तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को च्छुकर गुज़र रही है जैसे आखरी बार तुम्हारा पति तुम्हें छुना चाह रहा हो. तुम हाथ हिलाती उन्हें अपने सामने से हटाओगी और धीमे कदमों से बिस्तर पर पड़ी लाश की तरफ बढ़ोगी. लाश के पास बिस्तर पर एक काग़ज़ का टुकड़ा पड़ा होगा जो तुम उठाकर पढ़ोगी.



गम मौत का नही है,
गम ये है के आखरी वक़्त भी,
तू मेरे घर नही है....

निचोड़ अपनी आँखों को,
के दो आँसू टपकें,
और कुच्छ तो मेरी लाश को हुस्न मिले,

डाल दे अपने आँचल का टुकड़ा,
के मेरी मय्यत पर चादर नही है .......
दोस्तो कैसी लगी एक प्यार करने वाले पति की कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त





AATH DIN--3

gataank se aage..............

Par nahi. Aisa kuchh nahi hoga. Locks ab bhi vahi hain aur chaabhi bhi. Tum chaabhi ghumaogi aur darwaza khul jaayega.


Tum ghar ke bade se bhaari darwaze ko khol kar andar aaogi. Pushing open the door. Bada bhaari sa darwaza jis par kaale rang ka paint hai aur tumhare panje ka nishan chhapa hua hai.

Andar aate hue tum yahi ummeed karogi ke ghar ke andar vaisi hi smell hogi jaise tab hoti thi jab ye ghar tumhara tha. Tum ummeed kar rahi hogi ke andar A.C. on hoga aur ek thandi hawa tumhare chehre par lagegi jo tumhein bahar ki garmi se bachayegi. Par nahi. Na toh thandi hawa hogi aur na hi vo khushbu jo is ghar
mein tumhare hone se hoti thi.


Ghar ke andar ki hawal garam hogi vaisi hi jaisi ke bahar ki hawa hai. Balki usse bhi buri kyunki andar ki band hawa mein ek ajeeb si badbu hogi ho ghar mein ghuste hi tumhare chehre par thappad ki tarah lagegi.


Ghabra kar tum ek baar phir mera naam pukarogi.


Tumhari aawaz khud tumhare hi kaano ko kitni kamzor aur pareshan si lagegi. Aur tum ghar ke andar se uth rahi smell ki vajah se phir ek baar apni naak sikod logi. Theek usi tarah jo mujhe bahut pasand aaya karta tha.


Pareshan hokar tum ghar ke andar se uth rahi smell se bachne ke liye living room ki khidki kholne ki koshish karogi.


Mujhe maaf kar do please.

Main ab ek ghante se zyada ke liye vaapis nahi aa sakti. Kabhi nahin.

Ye shayad meri hi galti thi. Mujhe tumse shaadi nahi karni chahiye thi

Mujhe pata hona chahiye tha ke ham dono galti kar rahe hain.

Haan maine apne gharwalo ke kehne par tumse shaadi ki thi.

Unke dabav mein aakar.

Vo kehte the ke tum ek bahut bade professor ho aur tumhare saath mera future safe and secure hoga.

Maine tumhein pyaar karne ki bahut koshish ki. Bahut chaha ke tumhari biwi ban sakun, sirf jism se nahi balki dil se bhi.

Main sirf apna saman lene aaoongi. Aur jo main nahi le ja sakti vo toh kisi ko de dena ya phenk dena.

Tum meri zindagi mein pehle ladke the. Tumse pehle main kisi ladke ko nahi jaanti thi. Agar jaanti hoti toh shayad .....

Nahi maine tumse kabhi pyaar nahi kiya, kabhi kar hi nahi paayi. Apna jism toh tumhein de diya par dil nahi de paayi aur kabhi de bhi nahi paoongi.


Tum ek baar phir mera naam pukarogi. Puchhogi ke kya main uper ke kamre mein hoon? Tumhara dil tumhein fauran palat jaane ko keh raha hoga. Bhaag jaane ko keh raha hoga.


Phir bhi tum apne dil ki baat na sunte hue sidhiyan chadhti uper ke kamre ki taraf aaogi.



Teri yaadon ke jo aakhri the nishan,
Dil tadapta raha, ham mitate rahe.

Khat likhe the jo tumne kabhi pyaar mein,
Unko padhte rahe aur jalate rahe.....

Dhadakte dil ke saath tum sidhiyan chadhti uper aaogi. Sidhiyon par ab bhi vahi carpet hoga jo tum pasand karke laayi thi. Jiske rang ko lekar ham dono mein kaafi behas hui thi. Sidhiyon ke saath bani railing ka sahar liye tum uper ko chadhti aaogi, jaise koi need mein chal raha ho.


Uper aate hue pata nahi tumhare dil mein kaun si feeling hogi? Guilt? Afsos? Dukh? Darr? Aazadi?

Ya tum sirf ye soch rahi hogi ke uper tumhein kya milne wala hai? Ya ye ke kyunki tum ab tak meri biwi ho toh tumhara farz banta hai ke ek baar uper aakar dekho?
Tumhare chehre par tumhari vo cute si smile hogi is baat ka mujhe poora yakeen hai. Vahi smile jiska main aaj bhi deewana hoon par fark sirf itna hoga ke tab vo smile nakli hogi, ye sochkar ke agar main tumhein uper mila toh tum muskura kar mujhe dekho.


Tum ghabra rahi hongi. Shayad tumhein halke se chakkar bhi aa rahe hon. Dil zor se dhadak raha hoga aur khoon ka bahav dimaag ki taraf zyada badh jaayega. Jaise jaise darte hue tum seedhiyan chadhogi vaise vaise kabhi tumhari aankhon ke aage roshni hogi toh kabhi andhera sa.


Sidhiyan chadkar tum ek pal ke liye rukogi aur ek gehri saans logi. Par saans zyada lambi aur gehri le nahi paogi. Kyun ghar mein neeche aa rahi smell yahan aur bhi zyada tez hogi. Garmi ki ghutan se bhari ek ajeeb se tez smell. Tumhara dam ghutne lagega aur shayad tumhein ulti bhi aane ko ho par tum palat nahi sakti. Vaapis nahi ja sakti. Tumhein bedroom ka darwaza khol kar andar dekhna hi padega.



Ishq ko dard-e-sar kehne walo suno,
Kuchh bhi ho hamne ye dard-e-sar le liya,
Vo nigahon se bachkar kahan jaayenge,
Ab toh unke mohalle mein ghar le liya.

Aaye ban thanke shehar-e-khamoshi mein vo,
Kabr dekhi jo meri toh kehne lage,
Arrey aaj itni toh iski tarakki hui,
Ek beghar ne achha sa ghar le liya.



Aur hamare bedroom tak aane se pehle tumhein us chhote se kamre ke aage se guzarne hoga, vo kamra jo tumne hamare bachche ke liye banvaya tha. Vo bachcha jo kabhi hua hi nahi.


Bedroom ka darwaza band hoga. Tum apna haath darwaze par rakh kar dhakelna chahogi aur tumhein darwaze ki garmi mehsoos hogi. Aur ab bhi tumhare dimag mein ye chal raha hoga ke tum darwaza khol kar andar nahi dekhna chahti par phir bhi tum aisa kar rahi ho. Tum darwaze ke bahar bane knob ko apne haath se pakad kar ghumaogi aur himmat karte hue dheere se darwaza khologi.


Bhin-bhinahat ke aawaz kitni tez hogi. Is qadar tez jaise kahin aag lagi ho. Aur uske uper se kamre mein uth rahi badbu jaise kahin kuchh sad raha ho. Bhin-bhinahat aur badbu dono milkar aisa aalam bana rahi hongi jiska tum yun achanak samna nahi kar paogi.


Koi cheez tumhare chehre ko chhukar guzar jaayegi, tumhari aankhon ko, tumhare honthon ko. Ghabra kar tum 2 kadam pichhe ho jaogi aur phir mere naam lekar pukarogi.


Kamre mein koi halchal nahi hogi. Parde gire hue honge aur lights off hongi. Us halki si roshni mein tumhari aankhon ko adjust hone mein thoda waqt lagega. Aur jal dikhai dena shuru hoga tab tumhein kamre mein bhari makkhiyon ka ehsaas hoga.

Vo bhin-bhinane ki aawaz inhi makkhiyn ki hogi.


Hazaron? Lakhon? Chhat se lekar deewaron tak, har cheez par makkhiyan.

Aur neeche carpet par bhi. Usi carpet par jispe ki cheez ka gadha sa daagh hai.

Aur bistar par bhi makkhiyan. Haan vahi mehenga sa bed jo ham dono apne liye pasand karke laaye the. Jispar maine jaane kitni baar tumse mohabbat ki. Jispar tum har raat meri biwi bankar mere saath soyi.

Kya ye? Kaun hai ye?

Ye chehra ya jo kuchh bhi chehre ka bacha hai ab pehchan mein nahi aa raha.
Chamdi sooj kar is hadh tak pahunch chuki hai ke ab toh bulbule se uth rahe hain jaise chulhe par rakha kuchh gaadha sa pak raha ho.


Chamdi ab chamdi bachi nahi. Ye toh ab ek kuchh kaali si cheez ban chuki hai jo dheere dheere gal kar jaise neeche bistar par beh rahi hai, jaise neeche zameen par beh rahi hai. Chamdi jo ab dheere dheere us jism se alag ho rahi hai jis jism ko dhaka uska kaam tha.


Jism bhi is tarah se phool sa gaya hai jaise andar hawa bhar di gayi ho. Dheere dheere sad raha jism jispar makkhiyan jaise dawat manane aayi hon.


Aur yahan vahan tukdo mein hai jo kabhi munh tha, jo kabhi naak thi, jo kabhi kaan the.


Us insaan shareer jaisi cheez ki kalaiyon par katne ka nishan hai. Khoon se sana chaaku ab bhi vahin pada hoga jahan vo haath se chhut kar gira tha


Dono haath aur baahen jo makkhiyon se poori tarah dhake hue honge is tarah phele hain jaise kisi ko gale laga lena chahte hon.


Har taraf aur har jagah gaadhe kaale pad chuke khoon ke dhabbe hain. Laash ke kapdo, chadar aur neeche carpet par.

Badbu bahut zyada hai. Sadne ki badbu jo kamre ki hawa ko poori tarah ganda kar chuki hai par phir bhi tum palat nahi paogi. Jis cheez ne tumhein pakad kar kamre mein thaam rakha hoga vo tumhein itni aasani se chhodegi nahi.


Poora kamra us waqt jaise ek khula pada zakhm hoga. Tumhara pati mara nahi hai bas ek doosri duniya mein chala gaya hai jahan se vo hamesha tumhein dekh sakega, apni biwi ki tarah. Kyunki vo apni zindagi mein tumse kabhi alag hua hi nahi, usne kabhi tumse apna rishta toda hi nahi. Vo toh jiya bhi tumhare ishq mein, tumara pati bankar aur mara bhi tumhara ishq mein tumhara pati kehlate hue.


Hawa mein ud rahi hazaron lakhon aankhen tumhare pati ki hi hain jo tumhein dekh rahi hai, ye hawa mein pheli ajeeb si bhinn bhinn ki aawaz tumhare pati ki hi hai jo tumse baat karna chah rahi hai, kuchh gila koi shikva karna chah rahi hai.


Makkhiyan tumhare chehre ko, tumhari aankhon ko, tumhare honthon ko chhukar guzar rahi hai jaise aakhri baar tumhara pati tumhein chhuna chah raha ho. Tum haath hilati unhein apne saamne se hataogi aur dheeme kadmon se bistar par padi laash ki taraf badhogi. Laash ke paas bistar par ek kagaz ka tukda pada hoga jo tum uthakar padhogi.



Gham maut ka nahi hai,
Gham ye hai ke aakhri waqt bhi,
Tu mere ghar nahi hai....

Nichod apni aankhon ko,
Ke do aansoo tapken,
Aur kuchh toh meri laash ko husn mile,

Daal de apne aanchal ka tukda,
Ke meri mayyat par chadar nahi hai .......

samaapt




हिन्दी फ्रेंडशिप , एस.एम.एस , होली एस एम् एस, हिन्दी एस एम् एस, वेलेंटाइन SMS ,लव शायरी ,रहीम दास के दोहें , मजेदार चुटकुले, बेवफाई शेरो – शायरी, बुद्धि परीक्षा , बाल साहित्य , रोचक कहानियाँ , फनी हिन्दी एस एम् एस , फनी शायरी , प्यारे बच्चे , नये साल के एस एम एस , ताऊ और ताई के मजेदार चुटकुले , ग़ज़लें. , कबीर के अनमोल बोल , एक नजर इधर भी , एक छोटी सी कहानी , अनमोल बोल , wolliwood Wall paper , Romantic SMS , BEAUTI FULL ROSES , cool picture , cute animal , funny video , HoLi SMS , NEW YEAR SMS साबर मन्त्र , पूजन विधि , गणेश साधना , शिव साधना ,लक्ष्मी साधना , भाग्योदय साधना , यन्त्र तंत्र मंत्र ,

एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-2 Hindi Love Story

 एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-2



गतान्क से आगे..............
ये घर, हमारा घर. 2 साल पहले जब हमने ये घर बनवाया था तो कितने शौक से बनवाया था. किस तरह से तुमने घर की हर एक चीज़ को बड़े देखभाल से खुद डिज़ाइन किया था. कैसे कौन सा कमरा कहाँ बनेगा, किस तरह बनेगा, कितने कमरे होंगे, कौन सा पैंट होगा, कौन से पर्दे, हर चीज़ को तुमने खुद अपने आप शौक से पसंद किया था.


और क्यूँ ना करती, कब्से हम इस घर की आस लगाए बैठे थे. काब्से तुम दिन रात बस अपने घर की बातें किया करती थी. कैसे तुम कहा करती थी के जब अपना घर होगा तो तुम ऐसे सजाओगी, वैसे सजाओगी.


कैसे तुमने पुर घर को ये ध्यान में रख कर बनवाया था के हमारे 2 बच्चे होंगे.


शादी के 6 साल हो जाने के बाद भी तुम बच्चा नही चाहती थी क्यूंकी तुम्हें इस बात की ज़िद थी के तुम अपने बच्चे को जनम अपने घर में दोगि जहाँ वो पल बढ़कर बड़ा होगा.


और हैरत की बात है के कैसे तुमने मुझे फोन पर आखरी बार बात करते हुए कहा था "थॅंक गॉड हमारा कोई बच्चा नही है"


तुम्हें कार में बैठे बैठे थोड़ी देर हो चुकी होगी. टॅक्सी ड्राइवर ने कार का एंजिन और ए.सी. दोनो बंद कर दिए होंगे और तुम्हें अब हल्की हल्की गर्मी महसूस होनी शुरू हो चुकी होगी.


तुम हमेशा बहुत सुंदर थी. बेहद खूबसूरत. इतनी खूबसूरत के कभी कभी मुझे लगता था के तुमने क्यूँ मुझे अपना पति चुना. शकल सूरत में मैं कहीं से भी तुम्हारी मुक़ाबले नही था और कई बार अंजाने में तुमने मुझे इस बात का एहसास कराया भी था.


कैसे तुम हस्ते हस्ते मज़ाक में कह जाती थी के तुम चाहती तो तुम्हें एक से एक खूबसूरत लड़के मिल जाते. कैसे तुम अक्सर मासूमियत से मुझे मेरे चेहरे का एहसास करा देती थी.


पर मैने कभी तुमसे कोई शिकायत नही की. हां मुझ में शायद कमी थी पर किस में नही होती. भगवान ने हर इंसान में अच्छे और बुरे का सही मिश्रण बनाया है. गुण अवगुण सब में होते हैं. मुझ में भी थे.


तुम में भी थे पर कभी मैने तुम्हें उसका कोई एहसास नही कराया. मैं शायद तुम्हारी वो अच्छी साइड ही देखता रहा जिससे मुझे बेन्तेहाँ मोहब्बत था. जिस पर मैं दिल-ओ-जान से मरता था.


कार से बाहर निकल कर अपने आपको धूप से बचाती तुम घर की तरफ बढ़ोगी और दिल ही दिल में सख़्त धूप और गर्मी की अपने आप से शिकायत करोगी. 5 हफ्ते देल्ही से बाहर रह कर तुम भूल चुकी होगी के इन दिनो देल्ही का मौसम कैसा रहता है.


गरम, बहुत गरम.


और ऐसे ही कुच्छ गर्मी शायद मेरी आत्मा के अंदर भी है, मेरी रूह और मेरे दिल में भी जा बसी है. तुम मेरी बीवी हो और मैने कभी तुम्हारे साथ कोई ज़्यादती नही की. कभी अपनी आवाज़ तक तुम्हारे सामने ऊँची नही की. उस वक़्त भी नही जब तुम मेरे सामने पागलों की तरह चिल्ला रही थी के तुम तलाक़ चाहती हो. के तुम मुझसे प्याद नही करती, कभी किया ही नही.


और तब पहली बार मैने तुम्हारी नज़र में सच्चाई देखी थी. अब तक जो मोहब्बत मैं तुम्हारे चेहरे में देखता था वो तो सब धोखा था. तब पहले बार मैने तुम्हारी नज़र में अपने लिए घ्रना देखी थी.


वो पल मैं कभी चाह कर भी भूल नही सकता.

बर्क़ नज़रों को,
बाद-ए-सबा चाल को,
और ज़ुलफ को काली घटा कह दिया,
मेरी आँखों में सावन की रुत आई,
जब दीदा-ए-यार को मैक़दा कह दिया.


मैं कहाँ,
जुर्रत-ए-लाबकूशाई कहाँ,
तौबा तौबा जुनून की ये बेताबियाँ,
रूबरू जिनके नज़रें भी कभी उठती ना थी,
उनके मुँह पर आज उन्हें बेवफा कह दिया.



उस वक़्त मुझे एहसास हुआ था के शादी के 7 साल तक तुम जो दिखा रही थी वो सिर्फ़ एक भ्रम था. तुम्हारी असलियत तो जैसे एक पर्दे की पिछे थी और तुम सिर्फ़ बीवी होने का अपना रोल प्ले कर रही थी. और अब अचानक वो रोल ख़तम करते हुए जब शायद तुम्हें समझ नही आया के क्या कहा जाए, जब तुम्हारे पास अल्फ़ाज़ की कमी हो गयी तो तुम गुस्से में चिल्लाने लगी थी.


कैसे तुमने चिल्ला चिल्ला कर अपने चेहरे से नकाब हटा दिया था. कैसे तुमने वो परदा फाड़ दिया था जिसके पिछे तुम सात साल तक छुपि रही.


मैं तुमसे प्यार नही करती. तुमसे शादी करना एक बहुत बड़ी ग़लती थी. प्लीज़ मुझे जाने दो. मैं यहाँ नही रह सकती. दम घुटने लगा है मेरा यहाँ.


और मैं किसी पागल गूंगे की तरह खड़ा तुम्हें देख रहा था. सदमे में सिर्फ़ तुम्हारे मुँह को हिलता हुआ देख रहा था पर उससे निकलते शब्द नही सुन रहा था. मैं तुम्हारी तरफ बढ़ा तो तुम फ़ौरन पिछे हट गयी थी, जैसे मुझसे कोई बदबू आ रही हो.


और तब मैने तुमसे कहा था के मैं तुम्हें जाने नही दे सकता और ना ही जाने दूँगा क्यूंकी तुम मेरी बीवी हो.


याद है कैसे तुम सर्दी के दिनो में चुप चाप मेरे पिछे से आकर ठंडे हाथ मेरी कमीज़ के अंदर डाल देती थी.


तुम अक्सर ऐसे बच्चों जैसी हरकतें करती थी.


याद है एक बार तुम मेरे लिए वॅलिंटाइन'स दे पर गिफ्ट लेकर आई थी और खामोशी से मुझे बिना बताए मेरी डेस्क पर रख दिया था. और मैं अपने काम में इतना मगन रहता था के उसी समय डेस्क पर बैठे होने के बावजूद हफ्तों तक मुझे वो गिफ्ट नज़र नही आया. तुम इंतेज़ार करती रही और फिर तक कर तुमने खुद मुझे उस गिफ्ट के बारे में बताया और मुझे खोल कर दिखाया.


तुम्हारे प्यार से भरे उस सर्प्राइज़ को मैने पूरी तरह खराब कर दिया था पर शायद तुम्हें चोट मैने उस वक़्त पहुँचाई जब तुम्हारे गिफ्ट खोलने के बाद मेरे चेहरे पर ज़रा भी खुशी तुम्हें दिखाई नही दी और मैं एक बार फिर अपने काम में लग गया.


शायद यही सब बातें थी जिन्होने तुम्हें मुझसे इतनी दूर कर दिया. शायद.
पर शादी के वक़्त तुमने मुझसे वादा किया था के तुम कभी मेरी किसी बात का बुरा नही मनोगी. के तुम्हें कभी मेरे काम को लेकर किसी बात से कोई तकलीफ़ नही होगी. मैने तुम्हें बताया था के मेरा काम मेरे लिए सबसे पहले है और मेरी पर्सनल लाइफ पर शायद इसका थोड़ा बहुत फरक भी पड़े.


और तुमने फ़ौरन मुझसे वादा किया था के मेरे काम को लेकर तुम्हें कोई परेशानी नही होगी, तुम कभी बुरा नही मनोगी. के तुम हमेशा मुझसे प्यार करती रहोगी.


क्या झूठ बोला था तुमने? या जल्दबाज़ी में बिना सोचे समझे एक वादा कर दिया था जो अब तोड़ रही हो?

उनका कोई पेगाम ना आया,
दिल का तड़पना काम ना आया,
तू ना मिला तो दर्द मिला है,
दर से मगर तेरे नाकाम ना आया.

हुस्न ने की जी भर के जफाएँ,
उसपे मगर इल्ज़ाम ना आया,
तेरे बाघैर आए जान-ए-तमन्ना,
दिल को कहीं आराम ना आया.




और अब तो हम दोनो ही शायद उन टूटे हुए वादों से कहीं आगे निकल चुके हैं.

अगर ये सच है के मोहब्बत एक ज़िंडाई चीज़ है और हर ज़िंदा चीज़ की तरह ये भी एक दिन मर जाती है तो क्या ऐसा हो सकता है के मरी हुई मोहब्बत में फिर से जान आ जाए?


घर के बाहर पहुच कर तुम बेल बज़ाओगी. वही बेल जो एक दिन तुम खुद पसंद करके खरीद कर लाई थी. पूरे 4 दिन दिन मार्केट में भटकने के बाद तुम्हें ये डोरबेल पसंद आई थी. तुम्हें कोई ऐसी बेल चाहिए थी जो थोड़ी म्यूज़िकल हो और जिसका म्यूज़िक हम दोनो की पर्सनॅलिटी से मॅच करे.


बाहर खड़ी तुम कुच्छ देर तक बेल बजाती रहोगी. किसी बाहर के आदमी की तरह तुम अपनी चाबी से डोर खोल कर अंदर नही आना चाहोगी जो की तुम तब किया करती जब तुम इस घर में रहती थी. जब तुम इस घर को अपना समझती थी.


और जब दरवाज़ा नही खुलेगा तो तुम मेरा नाम लेकर मुझे पुकरोगी.


कोई जवाब नही आएगा. तुम एक बार फिर घंटी बज़ाओगी और फिर मेरा नाम पुकरोगी.

इतनी खामोशी. एक पल के लिए तो तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे के घर पर कोई है ही नही.

और फिर आख़िर में तुम आख़िर में अपने पर्स में रखी घर की चाबी निकालगी और दरवाज़ा खॉलॉगी.

चाबी डालते हुए तुम्हारा दिल एक पल के लिए धड़केगा और तुम शायद ये उम्मीद भी करोगी के चाबी फिट ना हो. के तुम्हारे पागल पति ने तुम्हारे जाने के बाद घर के लॉक्स चेंज कर दिए हों और तुम्हें अपनी ज़िंदगी और घर से हमेशा के लिए निकाल दिया हो.
क्रमशः..............








AATH DIN--2

gataank se aage..............
Ye ghar, hamara ghar. 2 saal pehle jab hamne ye ghar banvaya tha toh kitne shauk se banvaya tha. Kis tarah se tumne ghar ki har ek cheez ko bade dekhbhal se khud design kiya tha. Kaise kaun sa kamra kahan banega, kis tarah banega, kitne kamre honge, kaun sa paint hoga, kaun se parde, har cheez ko tumne khud apne aap shauk se pasand kiya tha.


Aur kyun na karti, kabse ham is ghar ki aas lagaye bethe the. Kabse tum din raat bas apne ghar ki baaten kiya karti thi. Kaise tum kaha karti thi ke jab apna ghar hoga toh tum aise sajaogi, vaise sajaogi.


Kaise tumne poore ghar ko ye dhyaan mein rakh kar banvaya tha ke hamare 2 bachche honge.


Shaadi ke 6 saal ho jaane ke baad bhi tum bachcha nahi chahti thi kyunki tumhein is baat ki zid thi ke tum apne bachche ko janam apne ghar mein dogi jahan vo pal badhka bada hoga.


Aur hairat ki baat hai ke kaise tumne mujhe phone par aakhri baar baat karte hue kaha tha "Thank god hamara koi bachcha nahi hai"


Tumhein car mein bethe behte thodi der ho chuki hogi. Taxi driver ne car ka engine aur A.C. dono band kar diye honge aur tumhein ab halki halki garmi mehsoos honi shuru ho chuki hogi.


Tum hamesha bahut sundar thi. Behad khoobsurat. Itni khoobsurat ke kabhi kabhi mujhe lagta tha ke tumne kyun mujhe apna pati chuna. Shakal soorat mein main kahin se bhi tumhari mukaable nahi tha aur kai baar anjane mein tumne mujhe is baat ka ehsaas karaya bhi tha.


Kaise tum haste haste mazak mein keh jaati thi ke tum chahti toh tumhein ek se ek khoobsurat ladke mil jaate. Kaise tum aksar masoomiyat se mujhe mere chehre ka ehsaas kara deti thi.


Par maine kabhi tumse koi shikayat nahi ki. Haan mujh mein shayad kami thi par kis mein nahi hoti. Bhagwan ne har insaan mein achhe aur bure ka sahi mishran banaya hai. Gun avgun sab mein hote hain. Mujh mein bhi the.


Tum mein bhi the par kabhi maine tumhein uska koi ehsaas nahi karaya. Main shayad tumhari vo achhi side hi dekhta raha jisse mujhe beintehaan mohabbat tha. Jis par main dil-o-jaan se marta tha.


Car se bahar nikal kar apne aapko dhoop se bachati tum ghar ki taraf badhogi aur dil hi dil mein sakht dhoop aur garmi ki apne aap se shikayat karogi. 5 hafte Delhi se bahar reh kar tum bhool chuki hogi ke in dino Delhi ka mausam kaisa rehta hai.


Garam, bahut garam.


Aur aise hi kuchh garmi shayad meri aatma ke andar bhi hai, meri rooh aur mere dil mein bhi ja basi hai. Tum meri biwi ho aur maine kabhi tumhare saath koi zyadti nahi ki. Kabhi apni aawaz tak tumhare saamne oonchi nahi ki. Us waqt bhi nahi jab tum mere saamne pagalon ki tarah chilla rahi thi ke tum talak chahti ho. Ke tum mujhse pyaad nahi karti, kabhi kiya hi nahi.


Aur tab pehli baar maine tumhari nazar mein sachchayi dekhi thi. Ab tak jo mohabbat main tumhare chehre mein dekhta tha vo toh sab dhokha tha. Tab pehle baar maine tumhari nazar mein apne liye ghrana dekhi thi.


Vo pal main kabhi chah kar bhi bhool nahi sakta.

Barq nazron ko,
Baad-e-saba chaal ko,
Aur zulf ko kaali ghata keh diya,
Meri aankhon mein sawan ki rut aayi,
Jab deeda-e-yaar ko maiqada keh diya.


Main kahan,
Jurrat-e-labkushai kahan,
Tauba tauba junoon ki ye betabiyan,
Rubaru jinke nazren bhi kabhi uthti na thi,
Unke munh par aaj unhen bewafa keh diya.



Us waqt mujhe ehsaas hua tha ke shaadi ke 7 saal tak tum jo dikha rahi thi vo sirf ek bhram tha. Tumhari asliyat toh jaise ek parde ki pichhe thi aur tum sirf biwi hone ka apna role play kar rahi thi. Aur ab achanak vo role khatam karte hue jab shayad tumhein samajh nahi aaya ke kya kaha jaaye, jab tumhare paas alfaaz ki kami ho gayi toh tum gusse mein chillane lagi thi.


Kaise tumne chilla chilla kar apne chehre se nakaab hata diya tha. Kaise tumne vo parda phaad diya tha jiske pichhe tum saat saal tak chhupi rahi.


Main tumse pyaar nahi karti. Tumse shaadi karna ek bahut badi galti thi. Please mujhe jaane do. Main yahan nahi reh sakti. Dam ghutne laga hai mera yahan.


Aur main kisi pagal goonge ki tarah khada tumhein dekh raha tha. Sadme mein sirf tumhare munh ko hilta hua dekh raha tha par usse nikalte shabd nahi sun raha tha. Main tumhari taraf badha toh tum fauran pichhe hat gayi thi, jaise mujhse koi badbu aa rahi ho.


Aur tab maine tumse kaha tha ke main tumhein jaane nahi de sakta aur na hi jaane doonga kyunki tum meri biwi ho.


Yaad hai kaise tum sardi ke dino mein chup chap mere pichhe se aakar thande haath meri kameez ke andar daal deti thi.


Tum aksar aise bachchon jaisi harkaten karti thi.


Yaad hai ek baar tum mere liye valentine's day par gift lekar aayi thi aur khamoshi se mujhe bina bataye meri desk par rakh diya tha. Aur main apne kaam mein itna magan rehta tha ke usi same desk par bethe hone ke bavajood hafton tak mujhe vo gift nazar nahi aaya. Tum intezaar karti rahi aur phir thak kar tumne khud mujhe us gift ke baare mein bataya aur mujhe khol kar dikhaya.


Tumhare pyaar se bhare us surprise ko maine poori tarah kharab kar diya tha par shayad tumhein chot maine us waqt pahunchayi jab tumhare gift kholne ke baad mere chehre par zara bhi khushi tumhein dikhayi nahi di aur main ek baar phir apne kaam mein lag gaya.


Shayad yahi sab baaten thi jinhone tumhein mujhse itni door kar diya. Shayad.
Par shaadi ke waqt tumne mujhse wada kiya tha ke tum kabhi meri kisi baat ka bura nahi manogi. Ke tumhein kabhi mere kaam ko lekar kisi baat se koi takleef nahi hogi. Maine tumhein bataya tha ke mera kaam mere liye sabse pehle hai aur meri personal life par shayad iska thoda bahut farak bhi pade.


Aur tumne fauran mujhse wada kiya tha ke mere kaam ko lekar tumhein koi pareshani nahi hogi, tum kabhi bura nahi manogi. Ke tum hamesha mujhse pyaar karti rahogi.


Kya jhooth bola tha tumne? Ya jaldbaazi mein bina soche samjhe ek wada kar diya tha jo ab tod rahi ho?

Unka koi pegham na aaya,
Dil ka tadapna kaam na aaya,
Tu na mila toh dard mila hai,
Dar se magar tere nakam na aaya.

Husn ne ki ji bhar ke jafayen,
Uspe magar ilzaam na aaya,
Tere baghair aey jaan-e-tamanna,
Dil ko kahin aaram na aaya.




Aur ab toh ham dono hi shayad un toote hue wadon se kahin aage nikal chuke hain.

Agar ye sach hai ke mohabbat ek zindai cheez hai aur har zinda cheez ki tarah ye bhi ek din mar jaati hai toh kya aisa ho sakta hai ke mari hui mohabbat mein phir se jaan aa jaaye?


Ghar ke bahar pachunch kar tum bell bajaogi. Vahi bell jo ek din tum khud pasand karke kharid kar laayi thi. Poore 4 din din market mein bhatakne ke baad tumhein ye doorbell pasand aayi thi. Tumhein koi aisi bell chahiye thi jo thodi musical ho aur jiska music ham dono ki personality se match kare.


Bahar khadi tum kuchh der tak bell bajati rahogi. Kisi bahar ke aadmi ki tarah tum apni chaabi se door khol kar andar nahi aana chahogi jo ki tum tab kiya karti jab tum is ghar mein rehti thi. Jab tum is ghar ko apna samajhti thi.


Aur jab darwaza nahi khulega toh tum mera naam lekar mujhe pukarogi.


Koi jawab nahi aayega. Tum ek baar phir ghanti bajaogi aur phir mera naam pukarogi.

Itni khamoshi. Ek pal ke liye toh tumhein aisa lagega jaise ke ghar par koi hai hi nahi.

Aur phir aakhir mein tum aakhir mein apne purse mein rakhi ghar ki chaabi nikalogi aur darwaza khologi.

Chaabi daalte hue tumhara dil ek pal ke liye dhadkega aur tum shayad ye ummeed bhi karogi ke chaabi fit na ho. Ke tumhare pagal pati ne tumhare jaane ke baad ghar ke locks change kar diye hon aur tumhein apni zindagi aur ghar se hamesha ke liye nikal diya ho.
kramashah..............








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एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-1 Hindi Love Story



एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-1


दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी एक ऐसे इंसान की है
जो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता है जब उसकी पत्नी उसे छोड़ कर चली जाती है तो वह आत्महत्या कर
लेता है

बेबस निगाहों में है तबाही का मंज़र,
और टपकते अश्क़ की हर बूँद,
वफ़ा का इज़हार करती है,

डूबा है दिल में बेवफ़ाई का खंजर,
लम्हा-ए-बेकसि में तसावुर की दुनिया,
मौत का दीदार करती है,

आए हवा उनको कर्दे खबर मेरी मौत की,
और कहना,
के कफ़न की ख्वाहिश में मेरी लाश,
उनके आँचल का इंतेज़ार करती है......




मेरा अंदाज़ा आठ दिन का है. पूरे आठ दिन.


मैं कोई साइंटिस्ट या पथोलोगिस्त नही हूँ और ना ही कोई ज्योतिषी. मैं तो यूनिवर्सिटी में एकनॉमिक्स पढ़ाता हूँ. पर थोड़ी बहुत रिसर्च, थोड़ी किताबों की खाक छान कर मुझे पूरा यकीन है के देल्ही की गर्मी में मेरा आठ दिन का अंदाज़ा बिल्कुल ठीक बैठेगा.


क्यूंकी मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और हमेशा करता भी रहूँगा. और तुम ये बात भी बहुत अच्छी तरह जानती हो के बदलाव मुझे पसंद नही. किसी भी तरह का कोई भी बदलाव. फेरे लेते हुए जब तुमने मेरी पत्नी होने का वचन लिया था, उसी वक़्त मैने भी तुम्हारा पति होने और रहने की कसम उठाई थी.

इस कसम को तोड़ा नही जा सकता, ना बदला जा सकता, ये तुम जानती हो.


तुम घर वापिस आओगी. तुम एक बार फिर हमारे बेडरूम में कदम रखोगी. जिस वक़्त का मैने अंदाज़ा लगाया है, उस वक़्त तुम अंदर कदम रखोगी. जिस हिसाब से मैने अंदाज़ा लगाया है, उसी हिसाब से तुम मेरे नज़दीक आओगी. और फिर तुम हिसाब लगओगि के मेरा अंदाज़ा ठीक था या नही.


आठ दिन मेरी जान, आठ दिन.


शायद ये भी हक़ीकत ही है के मोहब्बत एक ज़िंदा चीज़ की तरह है और जिस तरह हर ज़िंदा चीज़ को एक दिन मरना होता है, उसी तरह से मोहब्बत भी एक दिन दम तोड़ देती है. कभी कभी अचानक और कभी धीरे धीरे, तड़प तड़प कर.


आज से आठवे दिन हमारी आठवी अन्नीवेरसरी है और इस अन्नीवेरसरी पर मैने तुम्हारे लिए एक ख़ास तोहफा तैय्यार किया है.


तुम घर पर अकेली ही आओगी, जैसा के तुमने मुझसे वादा किया है. वैसे तो तुम्हारे मुताबिक अब तुम्हारे दिल में मेरे लिए पहले वाली जगह नही रही पर फिर भी इतनी उम्मीद तो मैं तुमसे कर ही सकता हूँ के तुम मुझसे किया अपना वादा तो निभओगि ही. तुम पर मैने हमेशा यकीन किया था, तुम्हारी हर बात पे
आँख बंद करके भरोसा. कोई सवाल नही किया था मैने उस दिन जब तुमने मुझसे कहा था के तुम्हारी ज़िंदगी में और कोई दूसरा आदमी नही. ठीक उसी तरह मुझे आज भी यकीन है के तुम घर पर अकेली ही आओगी.


मुंबई से तुम्हारी फ्लाइट देल्ही एरपोर्ट पर दोपहर 3:22 पर लॅंड होगी. तुमने मुझे एरपोर्ट से तुम्हें पिक करने के लिए मैने मना किया है और मैं तुम्हारी बात को पूरी इज़्ज़त दूँगा. तुम एरपोर्ट से जनकपुरी के लिए एक टॅक्सी करोगी. तुम चाहती हो के तुम घर आओ, अपना सब समान लो और उसी टॅक्सी में बैठ कर वो रात किसी होटेल में गुज़ारो क्यूंकी मुंबई की अगली फ्लाइट अगले दिन ही है.


तुम टॅक्सी को हमारे घर के बाहर पेड़ के नीचे रुकवाओगी. टॅक्सी में बैठी कुच्छ देर तक तुम नज़र जमाए घर की तरफ खामोशी से देखती रहोगी. तुम काफ़ी थॅकी हुई होगी. उस वक़्त तुम्हें समझ नही आ रहा होगा के क्या करू. झिझक, अफ़सोस, दुख, गिल्ट की एक अजीब मिली जुली सी फीलिंग्स से तुम कुच्छ देर तक वहीं बैठी गुज़ारती रहोगी.


या शायद तुम वहाँ बैठी सिर्फ़ ये सोचो के अगले एक घंटे में सब ख़तम हो जाएगा. और आख़िर तुम्हें तुम्हारी आज़ादी मिल ही जाएगी.


अगर तुम्हारी फ्लाइट डेले नही हुई तो तुम तकरीबन 4 बजे तक घर पहुँचोगी. गर्मी उस वक़्त भी बहुत ज़्यादा होगी और टॅक्सी के ए.सी. से तुम्हारा बाहर निकलने का दिल नही कर रहा होगा. तुम्हें गये हुए 5 हफ्ते हो चुके होंगे और बाहर सड़क पर टॅक्सी में बैठी तुम घर को देखोगी और ये सोचोगी के कुच्छ भी तो नही बदला.


तुम इस बात को बिल्कुल नज़र अंदाज़ कर दोगि के हमारे लिविंग रूम के पर्दे ज़िंदगी में पहली बार तुम्हें बंद मिलेंगे. तुम इस बात को भी नज़र अंदाज़ कर दोगि के हमारे घर के बाहर बने लॉन में घास बहुर ज़्यादा बढ़ चुकी है और पानी ना मिलने की वजह से गर्मी में झुलस कर जल चुकी है.

कितने बदल गये हैं वो हालत की तरह,
अब मिलते हैं पहली मुलाक़ात की तरह,
हम क्या किसी के हुस्न का सदक़ा उतारते,
कुच्छ दिन का साथ मिला तो खैरात की तरह....


घर के बाहर न्यूसपेपर्स बिखरे पड़े होंगे. मेलबॉक्स में पिच्छले कयि दिन के लेटर पड़े होंगे. ये सब देख कर शायद तुम्हे कुच्छ अजीब लगे. और शायद तुम्हें थोड़ी बेचैनी हो, या थोड़ा गिल्टी भी फील हो. क्यूंकी तुम जानती हो के घर इन सब चीज़ों को लेकर तुम्हारा पति कितना पर्टिक्युलर था.


तुम्हारा वही पति जिसके लिए घर की सॉफ सफाई कितना मतलब रखती थी. और सिर्फ़ घर के अंदर की ही नही बल्कि घर के बाहर की भी सफाई.


और आज सोचता हूँ तो शायद हसी भी आती है के कभी मेरी यही बातें तुम्हें कितनी ज़्यादा पसंद थी. कितनी मोहब्बत करती थी तुम मेरी इन्ही आदतों से जो बाद में तुम्हें परेशान करने लगी थी, कैसे पहली बार जब तुमने मेरा कमरा देखा तो ये कहा था के ये दूसरे लड़को के कमरो जैसा गंदा नही बल्कि बहुत सॉफ है.


और बाद में तुम्हें मेरी यही आदत और सफाई पर तुम्हें टोकना कितना बुरा लगने लगा था.


तो तुम बाहर बैठी घर के गंदी हालत को देखोगी और दिल ही दिल में अपने आप से कहोगी के तुम इसके लिए ज़िम्मेदार नही हो. पाँच हफ्ते हो जाएँगे तुम्हें गये हुए और इन पाँच हफ़्तो में सिर्फ़ 2 बार तुमने मुझसे फोन किया और हर बार मुझे बस यही कहा के मैं तुम्हें जाने दूँ.

कहा क्या बल्कि तुमने तो मुझसे हाथ जोड़कर भीख ही माँग ली के मैं तुम्हें भूल जाऊं और जाने दो. जैसे तुम्हें मुझसे भीख माँगने की कोई भी ज़रूरत थी.


घर के बाहर मेरी कार देख कर तुम समझ जाओगी के मैं घर पर ही हूँ और शायद इस बात का तुम्हें अफ़सोस भी हो क्यूंकी सारे रास्ते तुम यही उम्मीद और दुआ करती आई होगी के मैं तुम्हें घर पर ना मिलूं और तुम चुप चाप अपना समान लेकर निकल जाओ.


के तुम्हें मेरा सामना ना करना पड़े.


पर शायद तुम ये भूल चुकी होगी के मैने तुमसे ये वादा किया था के मैं तुम्हें उस वक़्त घर पर ही मिलूँगा ताकि हम एक आखरी बार मिल सकें और अपने डाइवोर्स पेपर्स पर साइन कर सके. ताकि हम सारे सेटल्मेंट्स निपटा सकें.


हैरत की बात है के साथ जीने मरने की कस्में अब सेटल्मेंट जैसे एक शब्द में सिमट गयी.

घर के बाहर खड़ी कार हमारी कार है, ये घर हमारा घर है. क्यूंकी ये सारी प्रॉपर्टीस में तुम बराबर की हिस्सेदार हो. यूँ तो तुम एक हाउसवाइफ थी और घर का सारा खर्चा मेरे ज़िम्मे था, ये सब चीज़ें मैने खुद खरीदी थी पर फिर भी मैने इन सब चीज़ों के तुम्हें भी बराबर मालिक बनाया है क्यूंकी तुम मेरी बीवी हो, मेरी हमराज़ हो, मेरी हम-सफ़र हो, मेरी अर्धांगिनी हो, मेरी बेटर हाफ हो.


क्यूंकी मैं तुमसे बे-इंतेहाँ मोहब्बत करता हूँ.


एरपोर्ट से घर तक तुम पूरे रास्ते सोचती हुई आई होंगी. मुझसे क्या कहना है, क्या बात करनी है, सारी लाइन्स तुमने एक बार फिर रिहर्स की होंगी. तुम जानती हो के मैं तुमसे कहूँगा के तुम अपना इरादा बदल दो और सब भूल कर एक बार फिर घर आ जाओ और तुम जवाब में अपनी लाइन रिहर्स करती आओगी. के मुझे कैसे समझा है के अब सब ख़तम हो चला है. के अब तुम वापिस कभी नही आ सकती सिवाय इस एक घंटे के जबके तुम अपना समान लेने आओगी.


सिवाय एक घंटे के जब तुम आओगी भी तो वापिस चले जाने के लिए.


तुम मुझसे कहोगी के मैं तुम्हें माफ़ कर दूँ और के तुम बहुत शर्मिंदा हो. के तुम्हें बहुत अफ़सोस है.


हैरत की बात है के सॉफ जीने मरने की कस्में शर्मिंदगी और अफ़सोस जैसे लफ़्ज़ों में सिमट जाएँगी.


वफ़ा की आखरी हद से गुज़ार लिया जाए,
सितमगरो के मोहल्ले में घर लिया जाए,

जिधर निगाह उठे आप ही के जलवे हों,
जिए तो ऐसे जिएं वरना मर लिया जाए.....

क्रमशः..............





AATH DIN--1




Bebas nigaahon mein hai tabaahi ka manzar,
Aur tapakate ashq ki har boond,
Wafa ka izhaar karti hai,

Dooba hai dil mein Bewafai ka khanjar,
Lamha-e-bekasi mein tasaavur ki duniya,
Maut ka deedar karti hai,

Aey hawa unko karde khabar meri maut ki,
Aur kehna,
Ke kafan ki khwahish mein meri laash,
Unke aanchal ka intezaar karti hai......




Mera andaza aath din ka hai. Poore aath din.


Main koi scientist ya pathologist nahi hoon aur na hi koi jyotishi. Main toh university mein economics padhata hoon. Par thodi bahut research, thoid kitabon ki khaak chhan kar mujhe poora yakeen hai ke Delhi ki garmi mein mera aath din ka andaza bilkul theek bethega.


Kyunki main tumse bahut pyaar karta hoon aur hamesha karta bhi rahunga. Aur tum ye baat bhi bahut achhi tarah janti ho ke badlav mujhe pasand nahi. Kisi bhi tarah ka koi bhi badlav. Phere lete hue jab tumne meri patni hone ka vachan liya tha, usi waqt maine bhi tumhara pati hone aur rehne ki kasam uthayi thi.

Is kasam ko toda nahi ja sakta, na badla ja sakta, ye tum jaanti ho.


Tum ghar vaapis aaogi. Tum ek baar phir hamare bedroom mein kadam rakhogi. Jis waqt ka maine andaza lagaya hai, us waqt tum andar kadam rakhogi. Jis hisaab se maine andaza lagaya hai, usi hisaab se tum mere nazdeek aaogi. Aur phir tum hisaab lagaogi ke mera andaza theek tha ya nahi.


Aath din meri jaan, Aath din.


Shayad ye bhi haqeeat hi hai ke mohabbat ek zinda cheez ki tarah hai aur jis tarah har zinda cheez ko ek din marna hota hai, usi tarah se mohabbat bhi ek din dam tod deti hai. Kabhi kabhi achanak aur kabhi dheere dheere, tadap tadap kar.


Aaj se aathve din hamari aathvi anniversary hai aur is anniversary par maine tumhare liye ek khaas tohfa taiyyar kiya hai.


Tum ghar par akeli hi aaogi, jaisa ke tumne mujhse wada kiya hai. Vaise toh tumhare mutaabik ab tumhare dil mein mere liye pehle wali jagah nahi rahi par phir bhi itni ummeed toh main tumse kar hi sakta hoon ke tum mujhse kiya apna wada toh nibhaogi hi. Tum par maine hamesha yakeen kiya tha, tumhari har baat pe
aankh band karke bharosa. Koi sawal nahi kiya tha maine us din jab tumne mujhse kaha tha ke tumhari zindagi mein aur koi doosra aadmi nahi. Theek usi tarah mujhe aaj bhi yakeen hai ke tum ghar par akeli hi aaogi.


Mumbai se tumhari flight Delhi Airport par dopahar 3:22 par land hogi. Tumne mujhe airport se tumhein pick karne ke liuye maine mana kiya hai aur main tumhari baat ko poori izzat doonga. Tum airport se Janakpuri ke liye ek Taxi karogi. Tum chahti ho ke tum ghar aao, apna sab saman lo aur usi taxi mein bethkar vo raat kisi hotel mein guzaro kyunki Mumbai ki agli flight agle din hi hai.


Tum taxi ko hamare ghar ke bahar ped ke neeche rukvaogi. Taxi mein bethi kuchh der tak tum nazar jamaye ghar ki taraf khamoshi se dekhti rahogi. Tum kaafi thaki hui hogi. Us waqt tumhein samajh nahi aa raha hoga ke kya karo. Jhijhak, afsos, dukh, guilt ki ek ajeeb mili juli si feelings se tum kuchh der tak vahin bethi guzarti rahogi.


Ya shayad tum vahan bethi sirf ye socho ke agle ek ghante mein sab khatam ho jaayega. Aur aakhir tumhein tumhari aazadi mil hi jaayegi.


Agar tumhari flight delay nahi hui toh tum takreeban 4 baje tak ghar pahunchogi. Garmi us waqt bhi bahut zyada hogi aur Taxi ke A.C. se tumhara bahar nikalne ka dil nahi kar raha hoga. Tumhein gaye hue 5 hafte ho chuke honge aur bahar sadak par taxi mein bethi tum ghar ko dekhogi aur ye sochogi ke kuchh bhi toh nahi badla.


Tum is baat ko bilkul nazar andaz kar dogi ke hamare living room ke parde zindagi mein pehli baar tumhein band milenge. Tum is baat ko bhi nazar andaaz kar dogi ke hamare ghar ke bahar bane lawn mein ghaas bahur zyada badh chuki hai aur pani na milne ki vajah se garmi mein jhulas kar jal chuki hai.

Kitne badal gaye hain vo halat ki tarah,
Ab milte hain pehli mulaqat ki tarah,
Ham kya kisi ke husn ka sadqa utarte,
Kuchh din ka saath mila toh khairat ki tarah....


Ghar ke bahar newspapers bikhre pade honge. Mailbox mein pichhle kayi din ke letter pade honge. Ye sab dekh kar shayad tumhien kuchh ajeeb lage. Aur shayad tumhein thodi bechaini ho, ya thoda guilty bhi feel ho. Kyunki tum jaanti ho ke ghar in sab cheezon ko lekar tumhara pati ki particular tha.


Tumhara vahi pati jiske liye ghar ki saaf safai kitna matlab rakhti thi. Aur sirf ghar ke andar ki hi nahi balki ghar ke bahar ki bhi safayi.


Aur aaj sochta hoon toh shayad hasi bhi aati hai ke kabhi meri yahi baaten tumhein kitni zyada pasand thi. Kitni mohabbar karti thi tum meri inhi aadaton se jo baad mein tumhein pareshan karne lagi thi, Kaise pehli baar jab tumne mera kamra dekha toh ye kaha tha ke ye doosre ladko ke kamro jaisa ganda nahi balki bahut saaf hai.


Aur baad mein tumhein meri yahi aadat aur safai par tumhein tokna kitna bura lagne laga tha.


Toh tum bahar bethi ghar ke gandi halat ko dekhogi aur dil hi dil mein apne aap se kahogi ke tum iske liye zimmedar nahi ho. Paanch hafte ho jaayenge tumhein gaye hue aur in paanch hafto mein sirf 2 baar tumne mujhse phone kiya aur har baar mujhe bas yahi kaha ke main tumhein jaane doon.

Kaha kya balki tumne toh mujhse haath jodkar bheekh hi maang li ke main tumhein bhool jaaoon aur jaane do. Jaise tumhein mujhse bheekh maangne ki koi bhi zaroorat thi.


Ghar ke bahar meri car dekh kar tum samajh jaogi ke main ghar par hi hoon aur shayad is baat ka tumhein afsos bhi ho kyunki saare raste tum yahi ummeed aur dua karti aayi hogi ke main tumhein ghar par na milun aur tum chup chap apna saman lekar nikal jao.


Ke tumhein mera samna na karna pade.


Par shayad tum ye bhool chuki hogi ke maine tumse ye wada kiya tha ke main tumhein us waqt ghar par hi milunga taaki ham ek aakhri baar mil saken aur apne divorce papers par sign kar sake. Taaki ham saare settlements nipta saken.


Hairat ki baat hai ke saath jeene marne ki kasmen ab settlement jaise ek shabd mein simat gayi.

Ghar ke bahar khadi car HAMARI car hai, ye ghar HAMARA ghar hai. Kyunki ye saari properties mein tum barabar ki hissedar ho. Yun toh tum ek housewife thi aur ghar ka sara kharcha mere zimme tha, ye sab cheezen maine khud kharidi thi par phir bhi maine in sab cheezon ke tumhein bhi barabar maalik banaya hai kyunki tum meri biwi ho, meri hamraaz ho, meri ham-safar ho, meri ardhangini ho, meri better half ho.


Kyunki main tumse be-intehaan mohabbat karta hoon.


Airport se ghar tak tum poore raaste sochti hui aayi hongi. Mujhse kya kehna hai, kya baat karni hai, saari lines tumne ek baar phir rehearse ki hongi. Tum jaanti ho ke main tumse kahunga ke tum apna irada badal do aur sab bhool kar ek baar phir ghar aa jao aur tum jawab mein apni line rehearse karti aaogi. Ke mujhe kaise samjha hai ke ab sab khatam ho chala hai. Ke ab tum vaapis kabhi nahi aa sakti sivaay is ek ghante ke jabke tum apna saman lene aaogi.


Sivay ek ghante ke jab tum aaogi bhi toh vaapis chale jaane ke liye.


Tum mujhse kahogi ke main tumhein maaf kar doon aur ke tum bahut sharminda ho. Ke tumhein bahut afsos hai.


Hairat ki baat hai ke saaf jeene marne ki kasmein sharmindagi aur afsos jaise lafzon mein simat jaayengi.


Wafa ki aakhri hadh se guzar liya jaaye,
Sitamgaro ke mohalle mein ghar liya jaaye,

Jidhar nigah uthe aap hi ke jalwe hon,
Jiye toh aise jiyen warna mar liya jaaye.....

kramashah..............















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