एक कहानी -आठ दिन--पार्ट-1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी एक ऐसे इंसान की है
जो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता है जब उसकी पत्नी उसे छोड़ कर चली जाती है तो वह आत्महत्या कर
लेता है
बेबस निगाहों में है तबाही का मंज़र,
और टपकते अश्क़ की हर बूँद,
वफ़ा का इज़हार करती है,
डूबा है दिल में बेवफ़ाई का खंजर,
लम्हा-ए-बेकसि में तसावुर की दुनिया,
मौत का दीदार करती है,
आए हवा उनको कर्दे खबर मेरी मौत की,
और कहना,
के कफ़न की ख्वाहिश में मेरी लाश,
उनके आँचल का इंतेज़ार करती है......
मेरा अंदाज़ा आठ दिन का है. पूरे आठ दिन.
मैं कोई साइंटिस्ट या पथोलोगिस्त नही हूँ और ना ही कोई ज्योतिषी. मैं तो यूनिवर्सिटी में एकनॉमिक्स पढ़ाता हूँ. पर थोड़ी बहुत रिसर्च, थोड़ी किताबों की खाक छान कर मुझे पूरा यकीन है के देल्ही की गर्मी में मेरा आठ दिन का अंदाज़ा बिल्कुल ठीक बैठेगा.
क्यूंकी मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और हमेशा करता भी रहूँगा. और तुम ये बात भी बहुत अच्छी तरह जानती हो के बदलाव मुझे पसंद नही. किसी भी तरह का कोई भी बदलाव. फेरे लेते हुए जब तुमने मेरी पत्नी होने का वचन लिया था, उसी वक़्त मैने भी तुम्हारा पति होने और रहने की कसम उठाई थी.
इस कसम को तोड़ा नही जा सकता, ना बदला जा सकता, ये तुम जानती हो.
तुम घर वापिस आओगी. तुम एक बार फिर हमारे बेडरूम में कदम रखोगी. जिस वक़्त का मैने अंदाज़ा लगाया है, उस वक़्त तुम अंदर कदम रखोगी. जिस हिसाब से मैने अंदाज़ा लगाया है, उसी हिसाब से तुम मेरे नज़दीक आओगी. और फिर तुम हिसाब लगओगि के मेरा अंदाज़ा ठीक था या नही.
आठ दिन मेरी जान, आठ दिन.
शायद ये भी हक़ीकत ही है के मोहब्बत एक ज़िंदा चीज़ की तरह है और जिस तरह हर ज़िंदा चीज़ को एक दिन मरना होता है, उसी तरह से मोहब्बत भी एक दिन दम तोड़ देती है. कभी कभी अचानक और कभी धीरे धीरे, तड़प तड़प कर.
आज से आठवे दिन हमारी आठवी अन्नीवेरसरी है और इस अन्नीवेरसरी पर मैने तुम्हारे लिए एक ख़ास तोहफा तैय्यार किया है.
तुम घर पर अकेली ही आओगी, जैसा के तुमने मुझसे वादा किया है. वैसे तो तुम्हारे मुताबिक अब तुम्हारे दिल में मेरे लिए पहले वाली जगह नही रही पर फिर भी इतनी उम्मीद तो मैं तुमसे कर ही सकता हूँ के तुम मुझसे किया अपना वादा तो निभओगि ही. तुम पर मैने हमेशा यकीन किया था, तुम्हारी हर बात पे
आँख बंद करके भरोसा. कोई सवाल नही किया था मैने उस दिन जब तुमने मुझसे कहा था के तुम्हारी ज़िंदगी में और कोई दूसरा आदमी नही. ठीक उसी तरह मुझे आज भी यकीन है के तुम घर पर अकेली ही आओगी.
मुंबई से तुम्हारी फ्लाइट देल्ही एरपोर्ट पर दोपहर 3:22 पर लॅंड होगी. तुमने मुझे एरपोर्ट से तुम्हें पिक करने के लिए मैने मना किया है और मैं तुम्हारी बात को पूरी इज़्ज़त दूँगा. तुम एरपोर्ट से जनकपुरी के लिए एक टॅक्सी करोगी. तुम चाहती हो के तुम घर आओ, अपना सब समान लो और उसी टॅक्सी में बैठ कर वो रात किसी होटेल में गुज़ारो क्यूंकी मुंबई की अगली फ्लाइट अगले दिन ही है.
तुम टॅक्सी को हमारे घर के बाहर पेड़ के नीचे रुकवाओगी. टॅक्सी में बैठी कुच्छ देर तक तुम नज़र जमाए घर की तरफ खामोशी से देखती रहोगी. तुम काफ़ी थॅकी हुई होगी. उस वक़्त तुम्हें समझ नही आ रहा होगा के क्या करू. झिझक, अफ़सोस, दुख, गिल्ट की एक अजीब मिली जुली सी फीलिंग्स से तुम कुच्छ देर तक वहीं बैठी गुज़ारती रहोगी.
या शायद तुम वहाँ बैठी सिर्फ़ ये सोचो के अगले एक घंटे में सब ख़तम हो जाएगा. और आख़िर तुम्हें तुम्हारी आज़ादी मिल ही जाएगी.
अगर तुम्हारी फ्लाइट डेले नही हुई तो तुम तकरीबन 4 बजे तक घर पहुँचोगी. गर्मी उस वक़्त भी बहुत ज़्यादा होगी और टॅक्सी के ए.सी. से तुम्हारा बाहर निकलने का दिल नही कर रहा होगा. तुम्हें गये हुए 5 हफ्ते हो चुके होंगे और बाहर सड़क पर टॅक्सी में बैठी तुम घर को देखोगी और ये सोचोगी के कुच्छ भी तो नही बदला.
तुम इस बात को बिल्कुल नज़र अंदाज़ कर दोगि के हमारे लिविंग रूम के पर्दे ज़िंदगी में पहली बार तुम्हें बंद मिलेंगे. तुम इस बात को भी नज़र अंदाज़ कर दोगि के हमारे घर के बाहर बने लॉन में घास बहुर ज़्यादा बढ़ चुकी है और पानी ना मिलने की वजह से गर्मी में झुलस कर जल चुकी है.
कितने बदल गये हैं वो हालत की तरह,
अब मिलते हैं पहली मुलाक़ात की तरह,
हम क्या किसी के हुस्न का सदक़ा उतारते,
कुच्छ दिन का साथ मिला तो खैरात की तरह....
घर के बाहर न्यूसपेपर्स बिखरे पड़े होंगे. मेलबॉक्स में पिच्छले कयि दिन के लेटर पड़े होंगे. ये सब देख कर शायद तुम्हे कुच्छ अजीब लगे. और शायद तुम्हें थोड़ी बेचैनी हो, या थोड़ा गिल्टी भी फील हो. क्यूंकी तुम जानती हो के घर इन सब चीज़ों को लेकर तुम्हारा पति कितना पर्टिक्युलर था.
तुम्हारा वही पति जिसके लिए घर की सॉफ सफाई कितना मतलब रखती थी. और सिर्फ़ घर के अंदर की ही नही बल्कि घर के बाहर की भी सफाई.
और आज सोचता हूँ तो शायद हसी भी आती है के कभी मेरी यही बातें तुम्हें कितनी ज़्यादा पसंद थी. कितनी मोहब्बत करती थी तुम मेरी इन्ही आदतों से जो बाद में तुम्हें परेशान करने लगी थी, कैसे पहली बार जब तुमने मेरा कमरा देखा तो ये कहा था के ये दूसरे लड़को के कमरो जैसा गंदा नही बल्कि बहुत सॉफ है.
और बाद में तुम्हें मेरी यही आदत और सफाई पर तुम्हें टोकना कितना बुरा लगने लगा था.
तो तुम बाहर बैठी घर के गंदी हालत को देखोगी और दिल ही दिल में अपने आप से कहोगी के तुम इसके लिए ज़िम्मेदार नही हो. पाँच हफ्ते हो जाएँगे तुम्हें गये हुए और इन पाँच हफ़्तो में सिर्फ़ 2 बार तुमने मुझसे फोन किया और हर बार मुझे बस यही कहा के मैं तुम्हें जाने दूँ.
कहा क्या बल्कि तुमने तो मुझसे हाथ जोड़कर भीख ही माँग ली के मैं तुम्हें भूल जाऊं और जाने दो. जैसे तुम्हें मुझसे भीख माँगने की कोई भी ज़रूरत थी.
घर के बाहर मेरी कार देख कर तुम समझ जाओगी के मैं घर पर ही हूँ और शायद इस बात का तुम्हें अफ़सोस भी हो क्यूंकी सारे रास्ते तुम यही उम्मीद और दुआ करती आई होगी के मैं तुम्हें घर पर ना मिलूं और तुम चुप चाप अपना समान लेकर निकल जाओ.
के तुम्हें मेरा सामना ना करना पड़े.
पर शायद तुम ये भूल चुकी होगी के मैने तुमसे ये वादा किया था के मैं तुम्हें उस वक़्त घर पर ही मिलूँगा ताकि हम एक आखरी बार मिल सकें और अपने डाइवोर्स पेपर्स पर साइन कर सके. ताकि हम सारे सेटल्मेंट्स निपटा सकें.
हैरत की बात है के साथ जीने मरने की कस्में अब सेटल्मेंट जैसे एक शब्द में सिमट गयी.
घर के बाहर खड़ी कार हमारी कार है, ये घर हमारा घर है. क्यूंकी ये सारी प्रॉपर्टीस में तुम बराबर की हिस्सेदार हो. यूँ तो तुम एक हाउसवाइफ थी और घर का सारा खर्चा मेरे ज़िम्मे था, ये सब चीज़ें मैने खुद खरीदी थी पर फिर भी मैने इन सब चीज़ों के तुम्हें भी बराबर मालिक बनाया है क्यूंकी तुम मेरी बीवी हो, मेरी हमराज़ हो, मेरी हम-सफ़र हो, मेरी अर्धांगिनी हो, मेरी बेटर हाफ हो.
क्यूंकी मैं तुमसे बे-इंतेहाँ मोहब्बत करता हूँ.
एरपोर्ट से घर तक तुम पूरे रास्ते सोचती हुई आई होंगी. मुझसे क्या कहना है, क्या बात करनी है, सारी लाइन्स तुमने एक बार फिर रिहर्स की होंगी. तुम जानती हो के मैं तुमसे कहूँगा के तुम अपना इरादा बदल दो और सब भूल कर एक बार फिर घर आ जाओ और तुम जवाब में अपनी लाइन रिहर्स करती आओगी. के मुझे कैसे समझा है के अब सब ख़तम हो चला है. के अब तुम वापिस कभी नही आ सकती सिवाय इस एक घंटे के जबके तुम अपना समान लेने आओगी.
सिवाय एक घंटे के जब तुम आओगी भी तो वापिस चले जाने के लिए.
तुम मुझसे कहोगी के मैं तुम्हें माफ़ कर दूँ और के तुम बहुत शर्मिंदा हो. के तुम्हें बहुत अफ़सोस है.
हैरत की बात है के सॉफ जीने मरने की कस्में शर्मिंदगी और अफ़सोस जैसे लफ़्ज़ों में सिमट जाएँगी.
वफ़ा की आखरी हद से गुज़ार लिया जाए,
सितमगरो के मोहल्ले में घर लिया जाए,
जिधर निगाह उठे आप ही के जलवे हों,
जिए तो ऐसे जिएं वरना मर लिया जाए.....
क्रमशः..............
AATH DIN--1
Bebas nigaahon mein hai tabaahi ka manzar,
Aur tapakate ashq ki har boond,
Wafa ka izhaar karti hai,
Dooba hai dil mein Bewafai ka khanjar,
Lamha-e-bekasi mein tasaavur ki duniya,
Maut ka deedar karti hai,
Aey hawa unko karde khabar meri maut ki,
Aur kehna,
Ke kafan ki khwahish mein meri laash,
Unke aanchal ka intezaar karti hai......
Mera andaza aath din ka hai. Poore aath din.
Main koi scientist ya pathologist nahi hoon aur na hi koi jyotishi. Main toh university mein economics padhata hoon. Par thodi bahut research, thoid kitabon ki khaak chhan kar mujhe poora yakeen hai ke Delhi ki garmi mein mera aath din ka andaza bilkul theek bethega.
Kyunki main tumse bahut pyaar karta hoon aur hamesha karta bhi rahunga. Aur tum ye baat bhi bahut achhi tarah janti ho ke badlav mujhe pasand nahi. Kisi bhi tarah ka koi bhi badlav. Phere lete hue jab tumne meri patni hone ka vachan liya tha, usi waqt maine bhi tumhara pati hone aur rehne ki kasam uthayi thi.
Is kasam ko toda nahi ja sakta, na badla ja sakta, ye tum jaanti ho.
Tum ghar vaapis aaogi. Tum ek baar phir hamare bedroom mein kadam rakhogi. Jis waqt ka maine andaza lagaya hai, us waqt tum andar kadam rakhogi. Jis hisaab se maine andaza lagaya hai, usi hisaab se tum mere nazdeek aaogi. Aur phir tum hisaab lagaogi ke mera andaza theek tha ya nahi.
Aath din meri jaan, Aath din.
Shayad ye bhi haqeeat hi hai ke mohabbat ek zinda cheez ki tarah hai aur jis tarah har zinda cheez ko ek din marna hota hai, usi tarah se mohabbat bhi ek din dam tod deti hai. Kabhi kabhi achanak aur kabhi dheere dheere, tadap tadap kar.
Aaj se aathve din hamari aathvi anniversary hai aur is anniversary par maine tumhare liye ek khaas tohfa taiyyar kiya hai.
Tum ghar par akeli hi aaogi, jaisa ke tumne mujhse wada kiya hai. Vaise toh tumhare mutaabik ab tumhare dil mein mere liye pehle wali jagah nahi rahi par phir bhi itni ummeed toh main tumse kar hi sakta hoon ke tum mujhse kiya apna wada toh nibhaogi hi. Tum par maine hamesha yakeen kiya tha, tumhari har baat pe
aankh band karke bharosa. Koi sawal nahi kiya tha maine us din jab tumne mujhse kaha tha ke tumhari zindagi mein aur koi doosra aadmi nahi. Theek usi tarah mujhe aaj bhi yakeen hai ke tum ghar par akeli hi aaogi.
Mumbai se tumhari flight Delhi Airport par dopahar 3:22 par land hogi. Tumne mujhe airport se tumhein pick karne ke liuye maine mana kiya hai aur main tumhari baat ko poori izzat doonga. Tum airport se Janakpuri ke liye ek Taxi karogi. Tum chahti ho ke tum ghar aao, apna sab saman lo aur usi taxi mein bethkar vo raat kisi hotel mein guzaro kyunki Mumbai ki agli flight agle din hi hai.
Tum taxi ko hamare ghar ke bahar ped ke neeche rukvaogi. Taxi mein bethi kuchh der tak tum nazar jamaye ghar ki taraf khamoshi se dekhti rahogi. Tum kaafi thaki hui hogi. Us waqt tumhein samajh nahi aa raha hoga ke kya karo. Jhijhak, afsos, dukh, guilt ki ek ajeeb mili juli si feelings se tum kuchh der tak vahin bethi guzarti rahogi.
Ya shayad tum vahan bethi sirf ye socho ke agle ek ghante mein sab khatam ho jaayega. Aur aakhir tumhein tumhari aazadi mil hi jaayegi.
Agar tumhari flight delay nahi hui toh tum takreeban 4 baje tak ghar pahunchogi. Garmi us waqt bhi bahut zyada hogi aur Taxi ke A.C. se tumhara bahar nikalne ka dil nahi kar raha hoga. Tumhein gaye hue 5 hafte ho chuke honge aur bahar sadak par taxi mein bethi tum ghar ko dekhogi aur ye sochogi ke kuchh bhi toh nahi badla.
Tum is baat ko bilkul nazar andaz kar dogi ke hamare living room ke parde zindagi mein pehli baar tumhein band milenge. Tum is baat ko bhi nazar andaaz kar dogi ke hamare ghar ke bahar bane lawn mein ghaas bahur zyada badh chuki hai aur pani na milne ki vajah se garmi mein jhulas kar jal chuki hai.
Kitne badal gaye hain vo halat ki tarah,
Ab milte hain pehli mulaqat ki tarah,
Ham kya kisi ke husn ka sadqa utarte,
Kuchh din ka saath mila toh khairat ki tarah....
Ghar ke bahar newspapers bikhre pade honge. Mailbox mein pichhle kayi din ke letter pade honge. Ye sab dekh kar shayad tumhien kuchh ajeeb lage. Aur shayad tumhein thodi bechaini ho, ya thoda guilty bhi feel ho. Kyunki tum jaanti ho ke ghar in sab cheezon ko lekar tumhara pati ki particular tha.
Tumhara vahi pati jiske liye ghar ki saaf safai kitna matlab rakhti thi. Aur sirf ghar ke andar ki hi nahi balki ghar ke bahar ki bhi safayi.
Aur aaj sochta hoon toh shayad hasi bhi aati hai ke kabhi meri yahi baaten tumhein kitni zyada pasand thi. Kitni mohabbar karti thi tum meri inhi aadaton se jo baad mein tumhein pareshan karne lagi thi, Kaise pehli baar jab tumne mera kamra dekha toh ye kaha tha ke ye doosre ladko ke kamro jaisa ganda nahi balki bahut saaf hai.
Aur baad mein tumhein meri yahi aadat aur safai par tumhein tokna kitna bura lagne laga tha.
Toh tum bahar bethi ghar ke gandi halat ko dekhogi aur dil hi dil mein apne aap se kahogi ke tum iske liye zimmedar nahi ho. Paanch hafte ho jaayenge tumhein gaye hue aur in paanch hafto mein sirf 2 baar tumne mujhse phone kiya aur har baar mujhe bas yahi kaha ke main tumhein jaane doon.
Kaha kya balki tumne toh mujhse haath jodkar bheekh hi maang li ke main tumhein bhool jaaoon aur jaane do. Jaise tumhein mujhse bheekh maangne ki koi bhi zaroorat thi.
Ghar ke bahar meri car dekh kar tum samajh jaogi ke main ghar par hi hoon aur shayad is baat ka tumhein afsos bhi ho kyunki saare raste tum yahi ummeed aur dua karti aayi hogi ke main tumhein ghar par na milun aur tum chup chap apna saman lekar nikal jao.
Ke tumhein mera samna na karna pade.
Par shayad tum ye bhool chuki hogi ke maine tumse ye wada kiya tha ke main tumhein us waqt ghar par hi milunga taaki ham ek aakhri baar mil saken aur apne divorce papers par sign kar sake. Taaki ham saare settlements nipta saken.
Hairat ki baat hai ke saath jeene marne ki kasmen ab settlement jaise ek shabd mein simat gayi.
Ghar ke bahar khadi car HAMARI car hai, ye ghar HAMARA ghar hai. Kyunki ye saari properties mein tum barabar ki hissedar ho. Yun toh tum ek housewife thi aur ghar ka sara kharcha mere zimme tha, ye sab cheezen maine khud kharidi thi par phir bhi maine in sab cheezon ke tumhein bhi barabar maalik banaya hai kyunki tum meri biwi ho, meri hamraaz ho, meri ham-safar ho, meri ardhangini ho, meri better half ho.
Kyunki main tumse be-intehaan mohabbat karta hoon.
Airport se ghar tak tum poore raaste sochti hui aayi hongi. Mujhse kya kehna hai, kya baat karni hai, saari lines tumne ek baar phir rehearse ki hongi. Tum jaanti ho ke main tumse kahunga ke tum apna irada badal do aur sab bhool kar ek baar phir ghar aa jao aur tum jawab mein apni line rehearse karti aaogi. Ke mujhe kaise samjha hai ke ab sab khatam ho chala hai. Ke ab tum vaapis kabhi nahi aa sakti sivaay is ek ghante ke jabke tum apna saman lene aaogi.
Sivay ek ghante ke jab tum aaogi bhi toh vaapis chale jaane ke liye.
Tum mujhse kahogi ke main tumhein maaf kar doon aur ke tum bahut sharminda ho. Ke tumhein bahut afsos hai.
Hairat ki baat hai ke saaf jeene marne ki kasmein sharmindagi aur afsos jaise lafzon mein simat jaayengi.
Wafa ki aakhri hadh se guzar liya jaaye,
Sitamgaro ke mohalle mein ghar liya jaaye,
Jidhar nigah uthe aap hi ke jalwe hon,
Jiye toh aise jiyen warna mar liya jaaye.....
kramashah..............
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