Tuesday, October 11, 2011

लॉटरी पार्ट--2



लॉटरी पार्ट--2

गतान्क से आगे...
अब तक भीड़ में ज़्यादातर मर्दो के हाथ में एक पर्ची थी जिसे थामे वो चुप चाप नज़र झुकाए खड़े थे.


"खुदबक्ष, लाल सिंग ......"

"जाओ ना.. खड़े खड़े सोच क्या रहे हो?" शांता बी ने अपने पति को कोहनी मारी तो सब फिर हल्के से हस पड़े.


"आस पास के गाओं में बात चल रही है आजकल" शिवलाल ने अपने पास खड़े शमशेर चाचा से कहा "लॉटरी बंद करने की बात"

"बेवकूफ़ हैं साले" शमशेर ने मुँह बनाते हुए कहा "आजकल की पीढ़ी को जाने क्या हो गया. कुच्छ पूरा नही पड़ता, जितना दो कम है. लॉटरी बंद करेंगे तो उसके बाद क्या करेंगे? पुराने ज़माने की तरह आदि मानव बनेंगे? पहले कहावत होती थी के लॉटरी लगेगी, फसल उगेगी. लॉटरी बंद कर देंगे तो खाएँगे क्या? मिट्टी पत्थर? सालो साल से लॉटरी चलती आ रही है. पहले तो नाम बदला. अँग्रेज़ आए तो नाम बदल कर लॉटरी कर दिया. अँग्रेज़ी नाम ताकि अंग्रेज़ो जैसे बन सकें. अब तो मुझे याद भी नही के इसका असली नाम होता क्या था, बस लॉटरी चढ़ गया ज़ुबान पर. सब बदल डालो, बंद कर दो लॉटरी. बेवकूफ़ साले"


"कुच्छ गाओं में तो उन्होने लॉटरी निकालना बंद कर भी दिया है" शिवलाल ने अपने हाथ में थामे काग़ज़ को घूमते हुए कहा

"बेवकूफ़ हैं साले" शमशेर ने फिर अपनी बात दोहराई.


"हरदयाल, राजन, मुंशी ......"


कुच्छ देर बाद शर्मा जी ने अपना नाम पुकारा और डिब्बे में से एक पर्ची उठा ली. अगला नाम रामदीन काका का था और उन्होने भी एक आगे बढ़कर डिब्बे में हाथ डाला और एक पर्ची निकाली.


"महतो ....."

भीड़ में खड़ा महतो का लड़का आगे आया.

"घबराने की कोई बात नही बेटा. एक पर्ची निकाल लो" रामदीन ने प्यार से उसका कंधा थपथपाया.


"शमशेर ......"

"70 साल" छाती चौड़ी किए बुद्धा शमशेर आगे आया "70 साल आज पूरे हो गये मुझे पर्ची निकालते हुए"


और उसके बाद एक अजीब सी खामोशी च्छा गयी. नाम पुर पढ़े जा चुके थे. सब अपनी अपनी पर्ची निकाल चुके थे.

"सबके नाम पढ़े जा चुके हैं" शर्मा जी ने चिल्ला कर कहा

"अब सब अपनी अपनी पर्ची खोलेंगे" रामदीन काका ने कहा


एक पल के लिए भीड़ में कोई नही हिला और फिर एक एक करके सब मर्दों ने पर्चियाँ खोल कर देखनी शुरू की.


"कौन है?"

"किसका नाम आया?" फ़ौरन ही आपस में लोग पर्ची देखने लगे और चारो तरफ सवाल उठने लगा,

"किसके पास आई काली पर्ची?"

"लाल सिंग?"

"लाल सिंग?"

"लाल सिंग के पास है पर्ची. काला निशान उसकी पर्ची पर है"


सबकी नज़र लाल सिंग और शांता बी पर आकर रुक गयी. लाल सिंग खामोशी से खड़ा अपने हाथ में पकड़े काग़ज़ के टुकड़े को घूर रहा था.


"बे-ईमानी हुई है" अचानक शांता बी चिल्ला पड़ी "आपने इनको अच्छि तरह से देख कर पर्ची नही उठाने दी. देखा था मैने. जल्द-बाज़ी करी थी आपने इनके साथ"

"ऐसा कुच्छ नही हुआ" भीड़ में से एक औरत चिल्लाई "सबको बराबर का वक़्त मिला था चुन कर पर्ची उठाने का"

"चुप हो जा" लाल सिंग अपनी बीवी को घूरते हुए बोला


"लॉटरी का पहला पड़ाव पूरा हुआ" रामदीन काका ने डिब्बा खोलते हुए कहा "अब हमें आगे बढ़ना चाहिए ताकि सब वक़्त रहते दोपहर के खाने तक अपने अपने घर वापिस जा सकें. लाल सिंग, अपने परिवार की तरफ से पर्ची तुम निकलोगे. तुम्हारे परिवार में कुल कितने लोग हैं?


"अनिता और सुनीता अब जवान हो गयी हैं. पर्ची खुद निकाल सकती हैं" शांता बी चिल्लाई "अपनी किस्मत का फ़ैसला उन्हें आप करने दो"

"बेटियाँ अपनी ससुराल की तरफ से पर्ची निकालती हैं शांता बी" शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा "आप ये बात अच्छी तरह जानती हैं. वो तो आपके परिवार में शामिल होंगी ही नही तो उनका तो फिलहाल आपसे कोई लेना देना ही नही"

"बे-ईमानी हुई है" शांता बी ने एक बार फिर मुँह फेरते हुए कहा


"मेरी बेटियाँ अपने पति के परिवार की तरफ से आई हैं" लाल सिंग आगे बढ़ता हुआ बोला "मेरे परिवार में बेटियों को निकाल कर मेरे, मेरी बीवी और बच्चों के सिवा और कोई नही"

"तो ठीक है फिर लाल सिंग. पर्ची अपने परिवार की तरफ से एक बार फिर तुम ही निकलोगे. बच्चे कितने हैं?"

"दोनो बेटियों को निकाल कर 3 नाबालिग लड़के और. अर्जुन, दीपक और मोहित" लाल सिंग ने जवाब दिया

"तो परिवार में कुल 5 हुए. सबके लिए पर्ची तुम निकलोगे" शर्मा जी ने कहा

"लॉटरी फिर से शुरू करनी चाहिए" शांति बी इतने धीरे से बोली जैसे अपने आप से बात कर रही हों "सबसे देखा. जल्दी बाज़ी करती थी. पर्ची चुनने का वक़्त ही नही दिया. सबने देखा था"


शर्मा जी ने 5 पर्चियाँ उठाई और उन्हें डिब्बे में डालकर डिब्बा बंद कर दिया.

"तैइय्यार हो?" रामदीन काका ने लाल सिंग से पुच्छा. जवाब में उसने हां में गर्दन हिला दी.

"ध्यान रहे" शर्मा जी ने चिल्ला कर कहा "आप पाँचो लोग एक एक करके डिब्बे में से पर्ची निकालेंगे और अपने अपने हाथ में तब तक मोड़ कर रखेंगे जब तक के आपको खोलने को ना कहा जाए. ठीक है?"


लाल सिंग और उसके बच्चों ने हां में गर्दन हिला दी. शांता बी अब भी सारी का पल्लू घुमाती अपने आप से कुच्छ बड़बड़ा रही थी.


सबसे पहले लाल सिंग का पहला बेटा आगे आया और डिब्बे में हाथ डाल कर एक पर्ची उठा ली. फिर दूसरा और तीसरा बेटा और तीनो अपने हाथ में पर्ची थामे कुच्छ कदम पिछे होकर खड़े हो गये.


भीड़ में खड़े उनके सब दोस्त साँस थामे गौर से उन्हें देख रहे थे.


"शांता बी" नाम सुनकर वो जैसे नींद से जागी.

"आपकी बारी" रामदीन काका ने कहा तो वो आगे बढ़ी, एक पल के लिए झिझकी और फिर डिब्बे में हाथ डालकर एक पर्ची उठा ली.

"तुम्हारी बारी लाल सिंग" शर्मा जी ने इशारा किया तो लाल सिंग ने डिब्बे में हाथ डालकर आखरी पर्ची उठा ली.


भीड़ में सन्नाटा छा चुका था. सब साँस रोके बीच में खड़े लाल सिंग, शांता बी और उनके बच्चों को देख रहे थे.


"लॉटरी में अब वो मज़ा नही रहा" शमशेर चाचा अपने पास खड़े आदमी से कह रहे थे "लोगों में अब वो जोश नही रहा, वो श्रद्धा नही रही"


"सब पर्चियाँ निकाली जा चुकी हैं" रामदीन काका ने चिल्ला कर कहा "अब आप लोग अपनी अपनी पर्ची खोलें"


पर्चियाँ खोली गयी. शर्मा जी ने आगे बढ़कर पहले बच्चों की पर्चियाँ देखनी शुरू की.


उन्होने पहले बच्चे की पर्ची हाथ में लेकर अपने सर के उपेर उठाई. पर्ची पर कोई निशान नही था.


बाकी दोनो बच्चों ने तब तक अपनी पर्चियाँ खोल ली थी और कोई निशान ना देख कर दोनो आपस में हस पड़े.


"लाल सिंग" रामदीन काका ने कहा तो उसने अपनी पर्ची खोल कर देखी और सर के उपेर उठाकर भीड़ को दिखाई. पर्ची पर कोई निशान नही था.


"शांता बी. निशान वाली पर्ची शांता बी ने उठाई है. पर्ची खोल कर देखी जाए" रामदीन काका ने कहा और शर्मा जी ने आगे बढ़कर पर्ची शांता बी के हाथ से निकली.


"निशान इस पर्ची पर है" उन्होने ज़ोर से कहा और हाथ हवा में उठाकर पर्ची आस पास खड़े लोगों को दिखाई.


लाल सिंग ने आगे बढ़कर पर्ची पर नज़र डाली. पर्ची पर एक काले रंग का निशान था. वो निशान जो रामदीन काका ने कल रात एक काले राग के कलम से बनाया था. थोड़ी देर पहले यही पर्ची उसके हाथ में थी जब उसके परिवार को चुना गया था और अब वो पर्ची उसकी बीवी ने डिब्बे से उठाई थी.


"लॉटरी में नाम चुन लिया गया है. अब लॉटरी का आखरी पड़ाव पूरा करने का वक़्त आ गया है. धूप तेज़ हो गयी है तो जल्दी ये काम भी ख़तम कर लेते हैं ताकि आप लोग अपने अपने घर जा सकें" शर्मा जी ने चिल्ला कर कहा


यूँ तो गाओं वाले पर्ची निकालके के बारे में ज़्यादातर बातें भूल चुके थे, इसका असली नाम भूल चुके थे, सही रिवाज़ भूल चुके थे पर पत्थरों का सही इस्तेमाल वो अब तक नही भूले थे.

लड़को ने पत्थरों का जो टीला बनाया था अब उसे इस्तेमाल करने का वक़्त आ गया था.


"इस बार इतने भारी भारी पत्थर क्यूँ जमा कर लिए इन लड़को ने" एक औरत दूसरी से कह रही थी "इनको उठाऊं कैसे?"

"मैं तो धीरे धीरे ही करूँगी. तुम उठाके चलो, मैं पिछे आ रही हूँ" दूसरी औरत ने जवाब दिया.


बच्चो ने अपनी जेबों से पत्थर पहले ही निकाल लिए थे. कुच्छ ने आगे बढ़कर लाल सिंग के तीनो बेटों के हाथ में भी कुच्छ पत्थर थमा दिए.


शांता बी भीड़ के बीचो बीच खड़ी अपने हाथ उपेर किए चिल्ला रही थी.


"बे-ईमानी हुई है" उन्होने कहा ही था के एक पत्थर उड़ता हुआ आया और उनको माथे पर आकर लगा. वो संभलती उससे पहले ही एक पत्थर और आकर कंधे पर लगा, फिर एक और पेट पर, फिर एक और सर पर .......


"चलो चलो आगे बढ़ो" शमशेर चाचा बच्चो को उकसा रहे थे.


"बे-ईमानी हुई है. लॉटरी सही नही निकली ....." शांता बी चिल्ला रही थी पर उनकी आवाज़ भीड़ के जोश के बीच कहीं खोकर रह गयी थी.........

समाप्त........






LOTTERY paart--2

gataank se aage...
Ab tak bheed mein zyadatar mardon ke haath mein ek parchi thi jise thaame vo chup chap nazar jhukaye khade the.


"Khudabaksh, Laal Singh ......"

"Jao na.. Khade khade soch kya rahe ho?" Shanta bi ne apne pati ko kohni maari toh sab phir halke se has pade.


"Aas paas ke gaon mein baat chal rahi hai aajkal" Shivlal ne apne paas khade Shamsher Chacha se kaha "Lottery band karne ki baat"

"Bevakoof hain saale" Shamsher ne munh banate hue kaha "Aajkal ki peedhi ko jaane kya ho gaya. Kuchh poora nahi padta, jitna do kam hai. Lottery band karenge toh uske baad kya karenge? Purane zamane ki tarah aadi manav banenge? Pehle kahawat hoti thi ke Lottery lagegi, fasal ugegi. Lottery band kar denge toh khayenge kya? Mitthi Patthar? Saalo saal se Lottery chalti aa rahi hai. Pehle toh naam badla. Angrez aaye toh naam badal kar lottery kar diya. Angrezi naam taaki angrezo jaise ban saken. Ab toh mujhe yaad bhi nahi ke iska asli naam hota kya tha, bas lottery chadh gaya zubaan par. Sab badal daalo, band kar do lottery. Bevakoof saale"


"Kuchh gaon mein toh unhone lottery nikalna band kar bhi diya hai" Shivlal ne apne haath mein thaame kagaz ko ghumate hue kaha

"Bevakoof hain saale" Shamsher ne phir apni baat dohrayi.


"Hardyaal, Rajan, Munshi ......"


Kuchh der baad Sharma ji ne apna naam pukara aur dibbe mein se ek parchi utha li. Agla naam Ramdeen Kaka ka tha aur unhone bhi ek aage badhkar dibbe mein haath dala aur ek parchi nikali.


"Mehto ....."

Bheed mein khada Mehto ka ladka aage aaya.

"Ghabrane ki koi baat nahi beta. Ek parchi nikal lo" Ramdeen ne pyaar se uska kandha thapthapaya.


"Shamsher ......"

"70 saal" Chhati chaudi kiye buddha Shamsher aage aaya "70 saal aaj poore ho gaye mujhe parchi nikalte hue"


Aur uske baad ek ajeeb si khamoshi chha gayi. Naam poore padhe ja chuke the. Sab apni apni parchi nikal chuke the.

"Sabke naam padhe ja chuke hain" Sharma ji ne chilla kar kaha

"Ab sab apni apni parchi kholenge" Ramdeen kaka ne kaha


Ek pal ke liye bheed mein koi nahi hila aur phir ek ek karke sab mardon ne parchiyan khol kar dekhni shuru ki.


"Kaun hai?"

"Kiska naam aaya?" Fauran hi aapas mein log parchi dekhne lage aur chaaro taraf sawal uthne laga,

"Kiske paas aayi kaali parchi?"

"Laal Singh?"

"Laal Singh?"

"Laal Singh ke paas hai parchi. Kala nishan uski parchi par hai"


Sabki nazar Laal Singh aur Shanta Bi par aakar ruk gayi. Laal Singh khamoshi se khada apne haath mein pakde kagaz ke tukde ko ghoor raha tha.


"Be-imaani hui hai" Achanak Shanta bi chilla padi "Aapne inko achchhi tarah se dekh kar parchi nahi uthane di. Dekha tha maine. Jald-baazi kari thi aapne inke saaath"

"Aisa kuchh nahi hua" Bheed mein se ek aurat chillayi "Sabko barabar ka waqt mila tha chun kar parchi uthane ka"

"Chup ho ja" Laal Singh apni biwi ko ghoorte hue bola


"Lottery ka pehla padaav poora hua" Ramdeen Kaka ne Dibba kholte hue kaha "Ab hamein aage badhna chahiye taaki sab waqt rehte dopahar ke khaane tak apne apne ghar vaapis ja saken. Laal Singh, apne pariwar ki taraf se parchi tum nikaloge. Tumhare pariwar mein kul kitne log hain?


"Anita aur Sunita ab jawan ho gayi hain. Parchi khud nikal sakti hain" Shanta bi chillayi "Apni kismat ka faisla unhen aap karne do"

"Betiyaan apni sasural ki taraf se parchi nikalti hain Shanta bi" Sharma ji ne muskurate hue kaha "Aap ye baat achhi tarah janti hain. Vo toh aapke pariwar mein shaamil hongi hi nahi toh unka toh filhal aapse koi lena dena hi nahi"

"Be-imaani hui hai" Shanta bi ne ek baar phir munh pherte hue kaha


"Meri betiyaan apne pati ke pariwar ki taraf se aayi hain" Laal Singh aage badhta hua bola "Mere pariwar mein betiyon ko nikal kar Mere, meri biwi aur bachchon ke siwa aur koi nahi"

"Toh theek hai phir Laal Singh. Parchi apne pariwar ki taraf se ek baar phir tum hi nikaloge. Bachche kitne hain?"

"Dono betiyon ko nikal kar 3 nabalig ladke aur. Arjun, Deepak aur Mohit" Laal Singh ne jawab diya

"Toh pariwar mein kul 5 hue. Sabke liye parchi tum nikaloge" Sharma ji ne kaha

"Lottery phir se shuru karni chahiye" Shanti bi itne dheere se boli jaise apne aap se baat kar rahi hon "Sabse dekha. Jaldi baazi karti thi. Parchi chunne ka waqt hi nahi diya. Sabne dekha tha"


Sharma ji ne 5 parchiyan uthayi aur unhen dibbe mein dalkar dibba band kar diya.

"Taiyyar ho?" Ramdeen Kaka ne Laal Singh se puchha. Jawab mein usne haan mein gardan hila di.

"Dhyaan rahe" Sharma ji ne chlla kar kaha "Aap paancho log ek ek karke dibbe mein se parchi nikalenge aur apne apne haath mein tab tak mod kar rakhenge jab tak ke aapko kholne ko na kaha jaaye. Theek hai?"


Laal Singh aur uske bachchon ne haan mein gardan hila di. Shanta bi ab bhi saree ka pallu ghumati apne aap se kuchh badbada rahi thi.


Sabse pehle Laal Singh ka pehla beta aage aaya aur dibbe mein haath daal kar ek parchi utha li. Phir doosra aur teesra beta aur teeno apne haath mein parchi thaame kuchh kadam pichhe hokar khade ho gaye.


Bheed mein khade unke sab dost saans thaame gaur se unhen dekh rahe the.


"Shanta Bi" Naam sunkar vo jaise neend se jaagi.

"Aapki baari" Ramdeen Kaka ne kaha toh vo aage badhi, ek pal ke liye jhijhki aur phir dibbe mein haath dalkar ek parchi utha li.

"Tumhari baari Laal Singh" Sharma ji ne ishara kiya toh Laal Singh ne dibbe mein haath dalkar aakhri parchi utha li.


Bheed mein sannata chha chuka tha. Sab saans roke beech mein khade Laal Singh, Shanta bi aur unke bachchon ko dekh rahe the.


"Lottery mein ab vo maza nahi raha" Shamsher Chacha apne paas khade aadmi se keh rahe the "Logon mein ab vo josh nahi raha, vo shraddha nahi rahi"


"Sab parchiyan nikali ja chuki hain" Ramdeen Kaka ne chilla kar kaha "Ab aap log apni apni parchi kholen"


Parchiyan kholi gayi. Sharma ji ne aage badhkar pehle bachchon ki parchiyan dekhni shuru ki.


Unhone pehle bachche ki parchi haath mein lekar apne sar ke uper uthayi. Parchi par koi nishan nahi tha.


Baaki dono bachchon ne tab tak apni parchiyan khol li thi aur koi nishan na dekh kar dono aapas mein has pade.


"Laal Singh" Ramdeen Kaka ne kaha toh usne apni parchi khol kar dekhi aur sar ke uper uthakar bheed ko dikhayi. Parchi par koi nishan nahi tha.


"Shanta Bi. Nishan wali parchi Shanta bi ne uthayi hai. Parchi khol kar dekhi jaaye" Ramdeen Kaka ne kaha aur Sharma ji ne aage badhkar parchi Shanta bi ke haath se nikali.


"Nishan is parchi par hai" Unhone zor se kaha aur haath hawa mein uthakar parchi aas paas khade logon ko dikhayi.


Laal Singh ne aage badhkar parchi par nazar daali. Parchi par ek kaale rang ka nishan tha. Vo nishan jo Ramdeen Kaka ne kal raat ek kaale rag ke kalam se banaya tha. Thodi der pehle yahi parchi uske haath mein thi jab uske pariwar ko chuna gaya tha aur ab vo parchi uski biwi ne dibbe se uthayi thi.


"Lottery mein naam chun liya gaya hai. Ab Lottery ka aakhri padav poora karne ka waqt aa gaya hai. Dhoop tez ho gayi hai toh jaldi ye kaam bhi khatam kar lete hain taaki aap log apne apne ghar ja saken" Sharma ji ne chilla kar kaha


Yun toh gaon wale Parchi nikalke ke baare mein zyadatar baatein bhool chuke the, iska asli naam bhool chuke the, sahi riwaz bhool chuke the par pattharon ka sahi istemaal vo ab tak nahi bhoole the.

Ladko ne pattharon ka jo teela banaya tha ab use istemaal karne ka waqt aa gaya tha.


"Is baar itne bhaari bhaari patthar kyun jama kar liye in ladko ne" Ek aurat doosri se keh rahi thi "Inko uthaoon kaise?"

"Main toh dheere dheere hi karungi. Tum uthake chalo, main pichhe aa rahi hoon" Doosri aurat ne jawab diya.


Bachcon ne apni jebon se patthar pehle hi nikal liye the. Kuchh ne aage badhkar Laal Singh ke teeno beton ke haath mein bhi kuchh patthar thama diye.


Shanta Bi bheed ke beecho beech khadi apne haath uper kiye chilla rahi thi.


"Be-imaani hui hai" Unhone kaha hi tha ke ek patthar udta hua aaya aur unko maathe par aakar laga. Vo sambhalti usse pehle hi ek patthar aur aakar kandhe par laga, phir ek aur pet par, phir ek aur sar par .......


"Chalo chalo aage badho" Shamsher chacha bachcho ko uksa rahe the.


"Be-imaani hui hai. Lottery sahi nahi nikli ....." Shanta bi chilla rahi thi par unki aawaz bheed ke josh ke beech kahin khokar reh gayi thi.........

samaapt........












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