लॉटरी पार्ट--1
जुलाइ के महीने के बाकी दिनो की तरह भी उस दिन भी दोपहर की गर्मी की तपिश सुबह से ही हवा में महसूस होने लगी थी. आसमान सॉफ था और सूरज अपने आने वाले 12 घंटो के सफ़र पर निकल चुके थे.
गाओं के चारो और फसल हरी भरी थी. पिच्छले हफ्ते हुई लगातार बारिश की वजह से ज़मीन पर हरी घास की एक चादर सी फेली हुई थी. आज का दिन ख़ास था, बहुत ख़ास.
गाओं के सभी लोग स्कूल के सामने मैदान में जमा होने शुरू हो गये थे. यूँ तो रोज़ाना इस वक़्त ये मैदान स्कूल में पढ़ने वाले बच्चो से भरा होता था पर आज स्कूल की छुट्टी थी. आस पास के कुच्छ गाओं में तो लॉटरी ख़तम होने में कभी कभी 2 से 3 दिन लग जाते थे पर इस गाओं की आबादी ज़्यादा ना होने की वजह से ये काम 2 घंटे में निपट जाता था.
सबकी कोशिश यही थी के जितनी जल्दी हो सके लॉटरी शुरू की जाए ताकि दोपहर की गर्मी बढ़ने से पहले पहले सब खाने के वक़्त तक आराम से वापिस अपने घरों में जा सके.
हमेशा की तरह इस बार भी सबसे पहले बच्चे ही जमा हुए. स्कूल से छुट्टी होने का उत्साह सब में नज़र आ रहा था. सब अलग अलग झुंड बनाए मैदान में बिखरे हुए थे. कोई स्कूल की बातें कर रहा था, कोई अपने टीचर्स की, कोई किसी किताब की किसी कहानी की तो कोई आज लॉटरी के बाद शाम को खेलने की बातें.
"आज पित्ठू खेलेंगे" अनिल अपने साथ खड़े दोस्तों से कह रहा था. उसकी दोनो जेबों में पत्थर भरे हुए थे और उसकी देखा देखी उसके बाकी दोस्तों ने भी यही किया था. पास की नदी से वो गोल चिकने पत्थर उठाकर लाए थे. अनिल, रोहित और हिमांशु ने मिलकर मैदान के एक कोने में पत्थरों का एक टीला सा बना लिया था और वो उसके पास खड़े उसकी रखवाली कर रहे थे के कहीं गाओं के दूसरे लड़के वहाँ से पत्थर ना उठा ले जाएँ.
लड़को की तरह ही गाओं की सबल लड़कियाँ भी एक साथ ही खड़ी हुई थी और उनमें भी आपस में तरह तरह की बातें चल रही थी.
थोड़ी ही देर बाद गाओं के मर्द उस साल की फसलों, ट्रॅक्टर्स, खेतों और बारिश के बारे में बात करते हुए मैदान में जमा होने शुरू हो गये. वो सब भी एक साथ ही खड़े हुए थे और खामोशी से आपस में बात करते मुस्कुरा रहे थे. उनकी हसी और थोड़ी दूर पत्थर के टीले के पास खड़े लड़को की हसी में ज़मीन आसमान का फरक था. जहाँ वो लड़के हर बात पर दिल खोल कर हस रहे थे, वहीं सब मर्द धीरे से मुस्कुराते हुए बात कर रहे थे.
थोड़ी देर बाद ही गाओं की औरतो ने भी आना शुरू कर दिए. सारी, सलवार कमीज़, घाघरा चोली पहने सब औरतें इधर उधर की बातें करती अपने अपने घरवालो के पास जाकर खड़ी होने लगी. कुच्छ देर बाद ही बच्चों को आवाज़ देकर अपने पास बुलाया जाने लगा और पहले जो झुंड आदमी, औरतों और बच्चों में बाते हुए थे, अब परिवार के हिसाब से बट गये.
अनिल को भी आवाज़ देकर उसकी माँ ने अपने पास बुला लिया था. वो कुच्छ पल तो शांति से अपने परिवार के साथ खड़ा रहा पर एक बार फिर नज़र बचाकर पत्थर के टीले के पास पहुँच गया. जब उसके पिता ने एक बार फिर चिल्ला कर उसका नाम पुकारा, तो वो गर्दन लटकाए फिर अपने परिवार के पास आकर खड़ा हो
गया.
हमेशा की तरह इस बार भी लॉटरी का आयोजन गाओं के सरपंच रामदीन काका ही कर रहे थे. वो उमर में कोई 60 साल के थे और उनका चीनी का कारोबार था. उनके मुँह पर तो कोई नही कहता था पर गाओं में हर किसी को उनसे हमदर्दी थी क्यूंकी उनकी कोई औलाद नही थी और उनकी बीवी की ज़ुबान तो आस पास के 10 गाओं में मश-हूर थी. सब उन्हें पीठ पिछे जोरू का ग्युलम कह कर बुलाते थे. कहते थे के गाओं का सरपंच जो सबसे सामने शेर बना फिरता था वो घर की चार-दीवारी में अपनी बीवी के इशारों पर नाचता है.
हाथ में काले रंग का डिब्बा उठाए जब रामदीन काका मैदान में आए तो हर तरफ एक ख़ुसर फुसर सी होने लगी. सब नीची आवाज़ में आपस में बातें करने लगे..
"माफ़ कीजिएगा आज थोड़ी देर हो गयी" रामदीन ने हस्ते हुए चिल्ला कर कहा.
उनके पिछे पीछे ही पोस्ट-मास्टर शर्मा जी भी 3 पैरों वाला स्टूल उठाए आ गये. स्टूल को मैदान के बीच रख दिया गया और डब्बा उसके उपेर. गाओं वाले अब भी थोड़ा दूर ही खड़े थे, स्टूल और काले रंग के उस डिब्बे से थोड़ा फासला बनाए.
"मदद के लिए कोई आगे आए" रामदीन ने चिल्ला कर कहा तो गाओं वाले सब एक दूसरे का मुँह देखने लग गये जैसे फ़ैसला कर रहे हों के मदद के लिए आगे कौन बढ़ेगा. कुच्छ पल बाद शर्मा जी के दोनो बेटे आगे बढ़े और काग़ज़ के टुकड़ो को डब्बे के अंदर रखने में मदद करने लगे.
लॉटरी निकालने का पुराना और असली तरीका वक़्त के साथ धीरे धीरे ख़तम हो गया था. स्टूल के उपेर रखा काले रंग का डिब्बा शमशेर चाचा जो की उमर में गाओं में सबसे बड़े थे, उनके पैदा होने से पहले से इस्तेमाल किया जा रहा था.
रामदीन काका अक्सर गाओं में एक नया डिब्बा बनाने की बात करते थे
पर गाओं में कोई भी पुराने रिवाज़ के खिलाफ नही जाना चाहता था. माना जाता था के स्टूल के उपेर रखे उस काले डिब्बे में लॉटरी के लिए इस्तेमाल किए गये सबसे पहले डिब्बे के टुकड़े लगे थे. हर साल लॉटरी के बाद रामदीन काका एक नया डिब्बा बनाने की बात करते थे पर हमेशा इस बात को बातों बातों में टाल दिया जया करता था.
हर साल डिब्बा घिसता जा रहा था और अब तो ऐसी हालत हो गयी थी के उसपर से काला रंग उड़कर नीचे से लकड़ी का रंग नज़र आने लगा था.
शर्मा जी और उनके सबसे बड़े बेटे ने स्टूल और डिब्बे को कसकर पकड़ रखा था और सब काग़ज़ के टुकड़ो को उसमें डालकर अच्छि तरह से मिला दिया गया.
पहले काग़ज़ की जगह लकड़ी के टुकड़ो पर नाम लिख कर डिब्बे में डाला जाया करता था पर धीरे धीरे वक़्त के साथ वो भी बदल गया.
"अब गाओं की आबादी इतनी ज़्यादा हो गयी है" रामदीन काका ने काग़ज़ डालने के पक्ष में कहा था "इतने सारे नाम लकड़ी के टुकड़ो पर लिखेंगे तो डिब्बे में सब नाम समाएँगे कैसे? और जिस हिसाब से गाओं की आबादी बढ़ रही है, आने वाले कुच्छ सालों में दुगुनी हो जाएगी"
लॉटरी से एक रात पहले शर्मा जी और रामदीन काका ने मिलकर सब लोगों के नाम काग़ज़ के टुकड़ो पर लिखे थे और फिर उन्हें डिब्बे में डालकर पोस्ट ऑफीस में एक ताले में रख दिया गया जहाँ से फिर अगली सुबह उन्हें मैदान में लाया गया. हमेशा लॉटरी होने के बाद डिब्बे को एक बार फिर एक साल के लिए पोस्ट ऑफीस की ही एक अलमारी में ताले में बंद करके रख दिया जाता था.
सब लोग जमा हुए बेसब्री से लॉटरी शुरू होने का इंतेज़ार कर रहे थे पर अब भी कई सारे काम बाकी थे. एक पूरी लिस्ट अभी बनाई जानी बाकी थी. एक ऐसी लिस्ट जिसमें हर कुनबे और खानदान के मुखिया का नाम होता था, उस खानदान में कितने परिवार थे और हर परिवार में कितने लोग थे. और फिर लॉटरी शुरू होने से पहले पूजा होनी थी. पहले कहा जाता था के पहले लॉटरी शुरू होने से पहले एक हफ्ते तक पूजा रखी जाती थी पर धीरे धीरे वक़्त के साथ ये भी ख़तम हो गया.
अब लॉटरी होने से पहले ही पूजा होती थी और उसमें भी लोग बस यही इंतेज़ार करते थे के कब पूजा ख़तम हो और लॉटरी शुरू की जाए.
शर्मा जी खड़े गाओं वालो के हिसाब करते लिस्ट बना ही रहे थे के एक और से हाँफती हुई शांता बी चलती नज़र आई. नीले रंग की सारी में कभी वो घुटनो से अपनी सारी को पकड़ कर उपेर करती तो कभी अपना पल्लू संभालती.
"मैं तो भूल ही गयी थी के आज लॉटरी है" आते हुए वो शर्मा जी को देख कर बोली "मुझे लगा मेरा मरद खेतों में गया है पर जब मैने खिड़की से बाहर देखा तो एक भी बच्चा नज़र नही आया. तब मेरे ध्यान में बात आई के आज तो लॉटरी है"
तेज़ कदमों से चलती शांता बी अपने पति के पास जाकर खड़ी हो गयी.
"ले आ गयी तेरी घरवाली" रामदीन काका ने उनके पति की ओर देखते हुए कहा
"हमें तो लगा था के आज आपके बिना ही शुरू करना पड़ेगा शांता बी" पीछे से शर्मा जी भी बोले
"मैं यहाँ आ जाती अगर तो घर का काम क्या आपकी घरवाली आकर निपटाती" शांता बी ने जवाब में कहा तो सब उनकी बात पर हस्ने लगे.
"तो शुरू किया जाए?" थोड़ी देर बाद रामदीन काका चिल्ला कर बोले "कोई है जो यहाँ नही है?"
सबने अपने आस पास देखना शुरू कर दिया.
"रहमत" थोड़ी देर बाद भीड़ में से किसी की आवाज़ आई
"रहमत?" शर्मा जी ने अपनी लिस्ट पर नज़र डाली और फिर रामदीन काका की तरफ देख कर बोले "बेचारा रहमत. टाँग तुडा ली थी उसने अपनी पिच्छले हफ्ते बारिश में फिसल कर"
"रहमत की जगह पर्ची कौन निकालेगा?" रामदीन काका ने चिल्ला कर कहा
"मैं" एक औरत की आवाज़ आई
"आदमी की जगह एक औरत पर्ची निकालेगी? तेरे घर में और कोई मर्द नही है क्या?"
यूँ तो इस सवाल का जवाब रामदीन काका के साथ साथ पूरे गाओं को पता था पर लॉटरी के तरीके के हिसाब से लॉटरी निकालने वाले को सब बातें सॉफ रखने के लिए इस तरह से पुच्छना ज़रूरी था.
"युसुफ तो अभी बच्चा है. 15 का हुआ है पिच्छले महीने" रहमत की बीवी ने जवाब दिया "तो मैं ही निकालूंगी पर्ची इस बार"
"ठीक है" शर्मा जी ने अपनी लिस्ट में कुच्छ लिखते हुए कहा और फिर चिल्ला कर कहा "महतो का लड़का उठाएगा ना इस बार पर्ची?"
"हां" भीड़ में खड़े एक लड़के ने जवाब दिया "अपनी माँ और अपने लिए खुद मैं पर्ची उठाऊँगा"
"शाबाश बेटा. खुशी है के तुम्हारे पिता के बाद घर की देख-भाल के लिए उस बुद्धि औरत के पास तुम हो. शमशेर भाई भी आ गये?"
"हाज़िर हूँ जनाब" भीड़ में खड़े शमशेर चाचा ने हाथ उठाते हुए कहा और सब फिर हस पड़े
"तो शुरू करते हैं" रामदीन काका ने चिल्ला कर कहा और भीड़ में खामोशी च्छा गयी.
"अब मैं सबके नाम पुकारूँगा" रामदीन काका ने बोलना शुरू किया "नाम बुलाए जाने पर हर परिवार का मुखिया आगे आएगा और डिब्बे में से पर्ची उठाएगा. पर्ची को अपने अपने हाथ में रखें और तब तक ना खोलें जब तक सब लोग अपनी अपनी पर्ची ना निकाल लें. ठीक है?"
सब लोगों ने ये कोई नयी बात नही थी. हर साल लॉटरी इसी तरह होती थी इसलिए आधे लोग ही रामदीन काका की बात को ध्यान से सुन रहे थे.
"संतोष" रामदीन काका ने पहला नाम पुकारा.
भीड़ में से एक आदमी निकल कर बाहर आया और डिब्बे में हाथ डालकर एक पर्ची निकाली.
"कैसे हो काका?" उसने रामदीन से कहा और बिना जवाब का इंतेज़ार किए पर्ची हाथ में थामे फिर अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो गया.
"इल्यास" रामदीन काका ने लिस्ट में देख कर बुलाना शुरू किया "महेंडी, ललचंद, हीर सिंग ......"
"वक़्त कैसे निकल जाता है पता ही नही चलता" शांता बी के पास खड़ी एक औरत ने धीरे से उनसे कहा
"हां" शांता बी ने अपनी सारी का पल्लू अंगुली में घूमाते हुए कहा "लगता है के अभी पिच्छले हफ्ते ही तो लॉत्त्री की थी. एक साल कैसे निकल गया खबर ही नही हुई"
"पठान, मीरपुरी, शिवलाल ........"
"तेरा होने वाला मर्द ....." शिवलाल को जाते देख शांता बी ने अपने पास खड़ी औरत के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा
"रहमत ....."
"आओ आओ आगे आओ" रामदीन काका ने रहमत की बीवी से कहा
क्रमशः...
LOTTERY paart--1
July ke mahine ke baaki dino ki tarah bhi us din bhi dopahar ki garmi ki tapish subah se hi hawa mein mehsoos hone lagi thi. Aasman saaf tha aur sooraj apne aane wale 12 ghanto ke safar par nikal chuke the.
Gaon ke chaaro aur fasal hari bhari thi. Pichhle hafte hui lagatar barish ki vajah se zameen par hari ghaas ki ek chadar si pheli hui thi. Aaj ka din khaas tha, bahut khaas.
Gaon ke sabhi log school ke saamne maidan mein jama hone shuru ho gaye the. Yun toh rozana is waqt ye maidan school mein padhne wale bachcho se bhara hota tha par aaj school ki chhutti thi. Aas paas ke kuchh gaon mein toh Lottery khatam hone mein kabhi kabhi 2 se 3 din lag jaate the par is gaon ki aabadi zyada na hone ki vajah se ye kaam 2 ghante mein nipat jata tha.
Sabki koshish yahi thi ke jitni jaldi ho sake lottery shuru ki jaaye taaki dopahar ki garmi badhne se pehle pehle sab khane ke waqt tak aaram se vaapis apne gharon mein ja sake.
Hamesha ki tarah is baar bhi sabse pehle bachche hi jama hue. School se chhutti hone ka utsaah sab mein nazar aa raha tha. Sab alag alag jhund banaye maidan mein bikhre hue the. Koi school ki baaten kar raha tha, koi apne teachers ki, koi kisi kitab ki kisi kahani ki toh koi aaj lottery ke baad shaam ko khelne ki baatein.
"Aaj pitthu khelenge" Anil apne saath khade doston se keh raha tha. Uski dono jebon mein patthar bhare hue the aur uski dekha dekhi uske baaki doston ne bhi yahi kiya tha. Paas ki nadi se vo gol chikne patthar uthakar laaye the. Anil, Rohit aur Himanshu ne milkar maidan ke ek kone mein pattharon ka ek teela sa bana liya tha aur vo uske paas khade uski rakhwali kar rahe the ke kahin gaon ke doosre ladke vahan se patthar na utha le jaayen.
Ladko ki tarah hi gaon ki sabl ladkiyan bhi ek saath hi khadi hui thi aur unmein bhi aapas mein tarah tarah ki baatein chal rahi thi.
Thodi hi der baad gaon ke mard us saal ki faslon, tractors, kheton aur baarish ke baare mein baat karte hue maidan mein jama hone shuru ho gaye. Vo sab bhi ek saath hi khade hue the aur khamoshi se aapas mein baat karte muskura rahe the. Unki hasi aur thodi door patthar ke teele ke paas khade ladko ki hasi mein zameen aasman ka farak tha. Jahan vo ladke har baat par dil khol kar has rahe the, vahin sab mard dheere se muskurate hue baat kar rahe the.
Thodi der baad hi gaon ki auraten ne bhi aana shuru kar diye. Saree, salwar kamiz, ghaghra choli pehne sab auraten idhar udhar ki baatein karti apne apne gharwalo ke paas jakar khadi hone lagi. Kuchh der baad hi bachchon ko aawaz dekar apne paas bulaya jaane laga aur pehle jo jhund aadmi, auraton aur bachchon mein bate hue the, ab pariwar ke hisaab se bat gaye.
Anil ko bhi aawaz dekar uski maan ne apne paas bula liya tha. Vo kuchh pal toh shanti se apne pariwar ke saath khada raha par ek baar phir nazar bachakar patthar ke teele ke paas pahunch gaya. Jab uske pita ne ek baar phir chilla kar uska naam pukara, toh vo gardan latkaye phir apne pariwar ke paas aakar khada ho
gaya.
Hamesha ki tarah is baar bhi Lottey ka aayojan gaon ke sarpanch Ramdeen Kaka hi kar rahe the. Vo umar mein koi 60 saal ke the aur unka cheeni ka karobar tha. Unke munh par toh koi nahi kehta tha par gaon mein har kisi ko unse hamdardi thi kyunki unki koi aulaad nahi thi aur unki biwi ki zubaan toh aas paas ke 10 gaon mein mash-hoor thi. Sab unhein peeth pichhe joru ka ghulam keh kar bulate the. Kehte the ke gaon ka sarpanch jo sabse saamne sher bana phirta tha vo ghar ki chaar-diwari mein apni biwi ke isharon par nachta hai.
Haath mein kale rang ka dibba uthaye jab Ramdeen Kaka maidan mein aaye toh har taraf ek khusar phusar si hone lagi. Sab nichi aawaz mein aapas mein baaten karne lage..
"Maaf kijiyega aaj thodi der ho gayi" Ramdeen ne haste hue chilla kar kaha.
Unke pichhe picche hi post-master Sharma ji bhi 3 pairon wala stool uthaye aa gaye. stool ko maidan ke beech rakh diya gaya aur dabba uske uper. Gaon wale ab bhi thoda door hi khade the, Stool aur kaale rang ke us dibbe se thoda fasla banaye.
"Madad ke liye koi aage aaye" Ramdeen ne chilla kar kaha toh gaon wale sab ek doosre ka munh dekhne lag gaye jaise faisla kar rahe hon ke madad ke liye aage kaun badhega. Kuchh pal baad Sharma ji ke dono bete aage badhe aur kagaz ke tukdo ko dabbe ke andar rakhne mein madad karne lage.
Lottery nikalne ka purana aur asli tarika waqt ke saath dheere dheere khatam ho gaya tha. Stool ke uper rakha kaale rang ka dibba Shamsher Chacha jo ki umar mein gaon mein sabse bade the, unke paida hone se pehle se istemaal kiya ja raha tha.
Ramdeen Kaka aksar gaon mein ek naya dibba banane ki baat karte the
par gaon mein koi bhi purane riwaz ke khilaff nahi jana chahta tha. Mana jata tha ke stool ke uper rakhe us kaale dibbe mein lottery ke liye istemaal kiye gaye sabse pehle dibbe ke tukde lage the. Har saal lottery ke baad Ramdeen Kaka ek naya dibba banane ki baat karte the par hamesha is baat ko baaton baaton mein taal diya jaya karta tha.
Har saal dibba ghista ja raha tha aur ab toh aisi halat ho gayi thi ke uspar se kala rang udkar neeche se lakdi ka rang nazar aane laga tha.
Sharma ji aur unke sabse bade bete ne stool aur dibbe ko kaskar pakad rakha tha aur sab kagaz ke tukdo ko usmein dalkar achchhi tarah se mila diya gaya.
Pehle kagaz ki jagah lakdi ke tukdo par naam likh kar dibbe mein dala jaya karta tha par dheere dheere waqt ke saath vo bhi badal gaya.
"Ab gaon ki aabadi itni zyada ho gayi hai" Ramdeen Kaka ne kagaz daalne ke paksh mein kaha tha "Itne saare naam lakdi ke tukdo par likhenge toh dibbe mein sab naam samayenge kaise? Aur jis hisaab se gaon ki aabadi badh rahi hai, aane wale kuchh saalon mein duguni ho jaayegi"
Lottery se ek raat pehle Sharma ji aur Ramdeen Kaka ne milkar sab logon ke naam kagaz ke tukdo par likhe the aur phir unhein dibbe mein dalkar Post Office mein ek taale mein rakh diya gaya jahan se phir agli subah unhein maidan mein laya gaya. Hamesha lottery hone ke baad dibbe ko ek baar phir ek saal ke liye Post office ki hi ek almari mein taale mein band karke rakh diya jata tha.
Sab log jama hue besabri se lottery shuru hone ka intezaar kar rahe the par ab bhi kai saare kaam baaki the. Ek poori list abhi banayi jaani baaki thi. Ek aisi list jismein har kunbe aur khandaan ke mukhiya ka naam hote tha, us khandaan mein kitne pariwar the aur har pariwar mein kitne log the. Aur phir Lottery shuru hone se pehle Puja honi thi. Pehle kaha jata tha ke pehle lottery shuru hone se pehle ek hafte tak pooja rakhi jaati thi par dheere dheere waqt ke saath ye bhi khatam ho gaya.
Ab lottery hone se pehle hi pooja hoti thi aur usmein bhi log bas yahi intezaar karte the ke kab Pooja khatam ho aur lottery shuru ki jaaye.
Sharma ji khade gaon walo ke hisaab karte list bana hi rahe the ke ek aur se haanfti hui Shanta Bi chalti nazar aayi. Neele rang ki saree mein kabhi vo ghutno se apni saree ko pakad kar uper karti toh kabhi apna pallu sambhalti.
"Main toh bhool hi gayi thi ke aaj lottery hai" Aate hue vo Sharma ji ko dekh kar boli "Mujhe laga mera marad kheton mein gaya hai par jab maine khidki se bahar dekha toh ek bhi bachcha nazar nahi aaya. Tab mere dhyaan mein baat aayi ke aaj toh lottery hai"
Tez kadmon se chalti Shanta Bi apne pati ke paas jakar khadi ho gayi.
"Le Aa gayi teri gharwali" Ramdeen Kaka ne unke pati ki aur dekhte hue kaha
"Hamein toh laga tha ke aaj aapke bina hi shuru karna padega Shanta Bi" Pichhe se Sharma ji bhi bole
"Main yahan aa jaati agar toh ghar ka kaam kya aapki gharwali aakar niptati" Shanta Bi ne jawab mein kaha toh sab unki baat par hasne lage.
"Toh shuru kiya jaaye?" Thodi der baad Ramdeen Kaka chilla kar bole "Koi hai jo yahan nahi hai?"
Sabne apne aas paas dekhna shuru kar diya.
"Rehmat" Thodi der baad bheed mein se kisi ki aawaz aayi
"Rehmat?" Sharma ji ne apni list par nazar daali aur phir Ramdeen Kaka ki taraf dekh kar bole "Bechara Rehmat. Taang tuda li thi usne apni pichhle hafte baarish mein phisal kar"
"Rehmat ki jagah parchi kaun nikalega?" Ramdeen Kaka ne chilla kar kaha
"Main" Ek aurat ki aawaz aayi
"Aadmi ki jagah ek aurat parchi nikalegi? Tere ghar mein aur koi mard nahi hai kya?"
Yun toh is sawal ka jawab Ramdeen Kaka ke saath saath poore gaon ko pata tha par Lottery ke tarike ke hisaab se lottery nikalne wale ko sab baaten saaf rakhne ke liye is tarah se puchhna zaroori tha.
"Yusuf toh abhi bachcha hai. 15 ka hua hai pichhle mahine" Rehmat ki biwi ne jawab diya "Toh main hi nikalungi parchi is baar"
"Theek hai" Sharma ji ne apni list mein kuchh likhte hue kaha aur phir chilla kar kaha "Mehto ka ladka uthayega na is baar parchi?"
"Haan" Bheed mein khade ek ladke ne jawab diya "Apni maan aur apne liye khud main parchi uthaoonga"
"Shabash beta. Khushi hai ke tumhare pita ke baad ghar ki dekh-bhaal ke liye us buddhi aurat ke paas tum ho. Shamsher Bhai bhi aa gaye?"
"Haazir hoon janab" Bheed mein khade Shamsher chacha ne haath uthate hue kaha aur sab phir has pade
"Toh shuru karte hain" Ramdeen kaka ne chilla kar kaha aur bheed mein khamoshi chha gayi.
"Ab main sabke naam pukarunga" Ramdeen Kaka ne bolna shuru kiya "Naam bulaye jaane par har pariwar ka mukhiya aage aayega aur dibbe mein se parchi uthayega. Parchi ko apne apne haath mein rakhen aur tab tak na kholen jab tak sab log apni apni parchi na nikal lein. Theek hai?"
Sab logon ne ye koi nayi baat nahi thi. Har saal Lottery isi tarah hoti thi isliye aadhe log hi Ramdeen Kaka ki baat ko dhyaan se sun rahe the.
"Santosh" Ramdeen Kaka ne pehla naam pukara.
Bheed mein se ek aadmi nikal kar bahar aaya aur dibbe mein haath dalkar ek parchi nikali.
"Kaise ho kaka?" Usne Ramdeen se kaha aur bina jawab ka intezaar kiye parchi haath mein thaame phir apni jagah par jakar khada ho gaya.
"Ilyaas" Ramdeen kaka ne list mein dekh kar bulana shuru kiya "Mehendi, Lalchand, Heer Singh ......"
"Waqt kaise nikal jata hai pata hi nahi chalta" Shanta bi ke paas khadi ek aurat ne dheere se unse kaha
"Haan" Shanta bi ne apni saree ka pallu anguli mein ghumate hue kaha "Lagta hai ke abhi pichhle hafte hi toh lotter ki thi. Ek saal kaise nikal gaya khabar hi nahi hui"
"Pathan, Meerpuri, Shivlal ........"
"Tera hone wala mard ....." Shivlal ko jaate dekh Shanta bi ne apne paas khadi aurat ke kandhe par haath marte hue kaha
"Rehmat ....."
"Aao aao aage aao" Ramdeen Kaka ne Rehmat ki biwi se kaha
kramashah...
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