Thursday, September 29, 2011

देवी अर्गलास्तोत्रम् (Durga Argala Stotram)

देवी अर्गलास्तोत्रम् (Durga Argala Stotram)

अथ अर्गलास्तोत्रम्
ॐ नमश्वण्डिकायै  -  मार्कण्डेय उवाच ।


ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि । जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ १॥
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ २॥
मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ३॥
महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ४॥
धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ५॥
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ६॥
निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रिलोक्यशुभदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ७॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ८॥
अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ९॥
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १०॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ११॥
चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १२॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १३॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १४॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १५॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १६॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १७॥
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १८॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १९॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंसुते परमेश्वरि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २०॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २१॥
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २२॥
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २३॥
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २४॥
भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २५॥
तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २६॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः । सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ॥ २७॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे अर्गलास्तोत्रं समाप्तम् ॥

श्री दुर्गा अष्टोत्तर शत नामावलि – 108 Names of Maa Durga

ॐ श्रियै नमः
ॐ उमायै नमः
ॐ भारत्यै नमः
ॐ भद्रायै नमः
ॐ शर्वाण्यै नमः
ॐ विजयायै नमः
ॐ जयायै नमः
ॐ वाण्यै नमः
ॐ सर्वगतायै नमः
ॐ गौर्यै नमः 

ॐ वाराह्यै नमः
ॐ कमलप्रियायै नमः
ॐ सरस्वत्यै नमः
ॐ कमलायै नमः
ॐ मायायै नमः
ॐ मातंग्यै नमः
ॐ अपरायै नमः
ॐ अजायै नमः
ॐ शांकभर्यै नमः
ॐ शिवायै नमः 

ॐ चण्डयै नमः
ॐ कुण्डल्यै नमः
ॐ वैष्णव्यै नमः
ॐ क्रियायै नमः
ॐ श्रियै नमः
ॐ ऐन्द्रयै नमः
ॐ मधुमत्यै नमः
ॐ गिरिजायै नमः
ॐ सुभगायै नमः
ॐ अंबिकायै नमः 

ॐ तारायै नमः
ॐ पद्मावत्यै नमः
ॐ हंसायै नमः
ॐ पद्मनाभसहोदर्यै नमः
ॐ अपर्णायै नमः
ॐ ललितायै नमः
ॐ धात्र्यै नमः
ॐ कुमार्यै नमः
ॐ शिखवाहिन्यै नमः
ॐ शांभव्यै नमः 

ॐ सुमुख्यै नमः
ॐ मैत्र्यै नमः
ॐ त्रिनेत्रायै नमः
ॐ विश्वरूपिण्यै नमः
ॐ आर्यायै नमः
ॐ मृडान्यै नमः
ॐ हींकार्यै नमः
ॐ क्रोधिन्यै नमः
ॐ सुदिनायै नमः
ॐ अचलायै नमः 

ॐ सूक्ष्मायै नमः
ॐ परात्परायै नमः
ॐ शोभायै नमः
ॐ सर्ववर्णायै नमः
ॐ हरप्रियायै नमः
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
ॐ महासिद्धयै नमः
ॐ स्वधायै नमः
ॐ स्वाहायै नमः
ॐ मनोन्मन्यै नमः 

ॐ त्रिलोकपालिन्यै नमः
ॐ उद्भूतायै नमः
ॐ त्रिसन्ध्यायै नमः
ॐ त्रिपुरान्तक्यै नमः
ॐ त्रिशक्त्यै नमः
ॐ त्रिपदायै नमः
ॐ दुर्गायै नमः
ॐ ब्राह्मयै नमः
ॐ त्रैलोक्यवासिन्यै नमः
ॐ पुष्करायै नमः 

ॐ अत्रिसुतायै नमः
ॐ गूढ़ायै नमः
ॐ त्रिवर्णायै नमः
ॐ त्रिस्वरायै नमः
ॐ त्रिगुणायै नमः
ॐ निर्गुणायै नमः
ॐ सत्यायै नमः
ॐ निर्विकल्पायै नमः
ॐ निरंजिन्यै नमः
ॐ ज्वालिन्यै नमः 

ॐ मालिन्यै नमः
ॐ चर्चायै नमः
ॐ क्रव्यादोप निबर्हिण्यै नमः
ॐ कामाक्ष्यै नमः
ॐ कामिन्यै नमः
ॐ कान्तायै नमः
ॐ कामदायै नमः
ॐ कलहंसिन्यै नमः
ॐ सलज्जायै नमः
ॐ कुलजायै नमः 

ॐ प्राज्ञ्यै नमः
ॐ प्रभायै नमः
ॐ मदनसुन्दर्यै नमः
ॐ वागीश्वर्यै नमः
ॐ विशालाक्ष्यै नमः
ॐ सुमंगल्यै नमः
ॐ काल्यै नमः
ॐ महेश्वर्यै नमः
ॐ चण्ड्यै नमः
ॐ भैरव्यै नमः 

ॐ भुवनेश्वर्यै नमः
ॐ नित्यायै नमः
ॐ सानन्दविभवायै नमः
ॐ सत्यज्ञानायै नमः
ॐ तमोपहायै नमः
ॐ महेश्वरप्रियंकर्यै नमः
ॐ महात्रिपुरसुन्दर्यै नमः
ॐ दुर्गापरमेश्वर्यै नमः 

  इति श्री दुर्गाष्टोत्तरशत नामावलिः



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