Tuesday, December 21, 2010

जुस्तजू थी दो पल ज़िन्दगी की,

जुस्तजू थी दो पल ज़िन्दगी की,
ज़िन्दगी को दिल से लगा बैठा
खोज रहा था अपनी पहचान,
आईने को अपना अस्तित्वा बना बैठा
आंखों को मीचे देखा था सूरज को एक दिन,
किरणों को अपना इरादा बना बैठा,
छुप के बादलों से देख रहा था चंदा,
अँधेरी रातों को मैं दुश्मन बना बैठा
नही जाते थे गली के उस मोड़ कभी,
उस मोड़ पर अश्याना बना बैठा,
जिस हवा की ज़रूरत कभी थी होती,
आज उसे चिर मैं ख़ुद की पहचान बना बैठा
आज अपने ही दामान को मैं छोड़,
किसी और के ख्वाब खुदके बना बैठा

क्या कहें उन निगाहों की बात,

क्या कहें उन निगाहों की बात,
चुपके एक पल उन्होंने देखा था जो,
वो शरारत उन आंखों की कहानी,
जुबां खुदके शब्द खोज रहा था जो

वो पलकों का नीचे झुकाना,
वो शर्मा के मंद मुस्काना,
उठती पल भर वो पलकें देखी,
दिल में बस गया खिलता उनका रूप सुहाना

दो निगाहों में गहराई कितनी,
इन्तीहाँ डूबता जा रहा हूँ,
वो मस्ती आंखों में देखी,
अब तो दुनिया जहान सब भूल गया हूँ जो

कौन कहता है ख्वाहिशें बदल गयी,

कौन कहता है ख्वाहिशें बदल गयी,
आज भी मंजिल है वही,
आज भी सुन्दर लगती हो प्रिये,
इन सालों में चेहरा बदल गया है कहीं,
आज भी वो कशिश बिखेरती हो,
दिल में छुपी रहती हो वहीँ.
आँखों में आज भी तुम्हारे है जादू,
आज भी तेरे संग ज़िन्दगी जीने की तम्मना वही।

किसीकी याद मे तड़पता है ये दिल

किसीकी याद मे तड़पता है ये दिल
एक आरजू लिए धड़कता है ये दिल

लाख हो मैखाने इस शहर मे लेकिन
एक तेरे ख़याल से बहकता है ये दिल
किसीकी याद मे ...........

तेरी जुल्फ से गिरा वो फुल,सीने से लगाया मैंने
फुल से जियादा अब महकता है ये दिलकिसीकी याद मे ...........

दिखलाके एक झलक जाने वो कहा खो गए
कहा कहा न जाने अब भटकता है ये दिल
किसीकी याद मे.............

तेरा अहसास ही तो है सनम

तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी 
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की  






नींद खुली जो ख्वाब से,तो हालात ऐसे थे बदले हुवे
नफरत की गर्मी से,उम्मीदों के बरफ थे पिघले हुवे 
कब लगी आग,कब उठा धुवां,इल्म ये भी ना हुवा
बस मिल गये जो राख में,वो अरमा थे मेरे जले हुवे

बात क्या बताये हम इस दिल-ए-बेजार की

बात क्या बताये हम इस दिल-ए-बेजार की
बिताये ना बितती है अब घडी इन्तेजार की

 हसरते सीने में और तस्वीर वो निगाहों में
हाय!रह गयी है अब ये बाते सब बेकार की

गर एक खता है इश्क तो खतावार है हम
फिर कोई फरमाए सजा इस गुनाहगार की

करके दफन अरमा,जाये तो कहाँ जाये हम
बुझाये ना बुझती है शम्मा ये मजार की

जिंदगी बीती गम ना बाटा तेरा किसीने "राज "
अब भी आस है तुम्हे किसी गमगुसार की   

हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है

शरमा के इस तरह मेरी बाहों में आने की अदा ख़ूब है  
बेताब धडकनों को जुल्फोंतले मिलाने की अदा ख़ूब है
थर-थराते लबो से कुछ कहने की वो ना-काम कोशीशे
और गर्म सासों से हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है 


तेरी बाहों के दायरे,अब मेरी जिंदगी के है
इन से आगे अब मेरी,कोई दुनिया नहीं
तेरी जुल्फों  के साये,मुहाफ़िज है ख्वाबो के 
इन के सिवा  अब मेरा,कोई आशियाँ नहीं  

ऊंटनी कै दुध आले ३ थन होवैं सै !

ताऊ किसी काम से शहर गया हुवा था ! वापसी मे बस मे काफ़ी भीड भाड थी !
ताऊ किसी तरह जबरदस्ती करता हुवा अपने लठ्ठ को लेके बस मे चढ तो लिया !
पर बैठण की जगह मिली कोनी ! ताऊ का माथा दिन भर की परेशानी से कुछ गर्म
तो था ही सो चुप चाप बस का डन्डा पकड कै खडा हो गया !

असल मे ताऊ शहर मे अपने लडके की स्कूल मे गया था ! क्योन्की ताऊ के छौरै नै
स्कूल म मास्टरनीजी तै किम्मै उटपटांग हरकत कर दी थी ! सो मास्टरनीजी ताऊ कै
छोरै पै किम्मै ज्यादा ही भडक ली थी और उस बालक नै स्कूल तैं निकालण की
जुगत भिडावै थी ! और इसीलिये ताऊ को स्कूल मे बुलवाया था ! इब ताऊ भी ताऊ
ही था ! वो भी जाकै मास्टरनी जी तैं भिड लिया !

मास्टरनी जी ने ताऊ को अन्ग्रेजी मे कुछ गालियां दे दी ! वो तो गनीमत की ताऊ का
अन्ग्रेजी से कुछ उधार लेना बाकी नही था सो ताऊ कुछ समझा नही ! और ताऊ को
मुर्ख समझ कै मास्टरनी जी किम्मै ज्यादा ही चटर पटर करण लाग री थी !
अब आप तो जानते ही हैं कि अन्ग्रेजी बोलनै वाले को कोई गांव का ताऊ मिल जाये
तो अपनी अन्ग्रेजी का सारा ज्ञान उसी पर उंडेल देते हैं !

तब ताऊ नै भी अपणी देशी जबाण मे किम्मै उलटा सीधा बोल दिया !
तब मास्टरनी जी चिल्लाई - सिक्युरिटी..सिक्युरिटि... असल मै वो सिक्युरिटी वाले को
बुलवा कर ताऊ को बाहर निकलवाना चाहती थी ! जब वो सिक्युरिटी..सिक्युरिटि...
चिल्लावण लाग री थी तब ताऊ नु समझ्या के यो बोल री सै .. सेक रोटी.. सेक रोटी..!
इब ताऊ का तो पारा चढ लिया और ताऊ बोला - अर मास्टरनी मै क्यूं रोटी सेकूं ?
रोटी सेक तू ! हम तो मर्द आदमी सैं ! रोटी नी सेक्या करते ! और मास्टरनी जी नै
ताऊ को बाहर का रास्ता दिखा दिया ! और ताऊ किसी तरह भूखा प्यासा घर आ गया !

घर लौट कर ताऊ की इच्छा हलवा खावण की हो री थी ! और ताई किम्मै
बणा कै देण आली नही थी ! सो ताऊ नै जोगाड लगाते हुये कहा -
अर भागवान सुण .. जरा ! आज त हल्वा बणा तू !
ताई बोली - क्यूं के काम करकै आया सै ? जो तेरे लिये हलवा बणाऊं ?

ताऊ बोल्या - अर मैं रामलाल तैं शर्त जीत कै आया सूं !
ताई बोली - कुण सी शर्त जीती सै तन्नै ! जरा हमनै भी बता !
ताऊ - मैं बोल्या, ऊंटनी कै दुध आले थन होवैं सै ! रामलाल बोल्या
- कि नही होवैं सै !
ताई - तो तू क्यूं कर जीत गया ? सारी दुनियां जानै सै कि ऊंटनी कै ४
ही थण होवैं सै !
ताऊ बोल्या - नही ३ होवैं सै ! तू मान जा !
ताई - मैं मान ही नही सकती ! झूंठी बात किस तरियां मानी ज्यागी !
ताऊ नै पूछी - इब भी सोच ले ! मानैगी या नही ?
ताई बोली - जा जा फ़ालतू बात ना करया करै ?
इब ताऊ नै किम्मै छोह (गुस्सा) सा आग्या घणे दिनों मै ! और राज भाटियाजी
नै ताऊ को कल ही दो लठ्ठ भेजे थे जरमनी तैं ! सो ताऊ नै तो उठा कै
ताई कै मार दिये कई लठ्ठ ! और ताई तो आज ताऊ का रूप देख कै रोती रोती
एक तरफ़ मै बैठगी ! और आज ताऊ कै हाथ मे मेड इन जर्मनी लठ्ठ देखकै
बोली -- हां बिल्कुळ मानगी थारी बात ! ऊंटनी कै दूध आले ही थन होवैं सैं !
ताऊ बोल्या - सही कह री सै ! रामलाल भी इसी तरह लट्ठ खाकै ही मान्या था !

यदि किम्मै उंच नीच हो जाती तो

परसों रात की बात
अकस्मात
एक क्युट सी छोरी ने ताऊ को रोका
हम समझे पहचानने मे हो गया धोखा !
हम ताऊ-सुलभ लज्जा से
नजर झुकाए गुजर गये
छोरी के केश मारे गुस्से के बिखर गये
जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी-
गांव के जवान लोगो, आवो
इस शरीफ़जादे ताऊ से मुझको बचाओ
मैं पलको मे अवध की शाम
होठों पर बनारस की सुबह
बालों मे शबे-मालवा
और चेहरे पर बंगाल का जादू रखती हूं
फ़िर भी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?
ताऊ बोल्यो अरे छोरी बात तो तू सांची कहवै सै
पर मन्नै या बतादे
यदि किम्मै उंच नीच हो जाती
तो ताई लठ्ठ लेकै
के थारै बाप के पास जाती ?

ताऊ ने करवाया ताई और भैंस का बीमा

ताऊ ने करवाया ताई और भैंस का बीमा



बीमा एजेंट बड़ा मायूस हो गया , जब ताऊ से उसका बीमा का काम नही बना ! पर ताऊ के दिमाग म्ह तो खुराफात ही चल री थी ! इब ताऊ उस एजेंट तैं बोल्या   -- अरे तू एक काम कर ! मेरा बीमा करना तो छोड़ और तू मेरी लुगाई का और भैंस का बीमा करदे ! इब एजेंट तो हो गया बिल्कुल खुश ! और जितना भी बड़ा बीमा हो सकता था ! उतना बड़ा बीमा ताई का और ताऊ की भैंस का करके चला गया ! इधर ताऊ ने प्लान बना रक्खा था ! उसी के अनुसार उसने इतने बड़े २ बीमे करवाए थे !



इब ताऊ के चैन तैं बैठण आला था ? दो तीन महीने हुए भी नही थे की ताऊ ने अपनी लुगाई और भैंस को अपनी ससुराल यानी ताई के मायके भेज दिया और ख़ुद पहुँच लिया पुलिस थाने में !



थाने में जाकै ताऊ बोला - थानेदार साब ! मेरी लुगाई और भैंस मर गी सै ! रपोर्ट लिख ल्यो ! इब थानेदार नै पूछी की ताऊ क्यूँकर मर गी ? के बेमारी हुई थी ? ताऊ बोल्या -- जी ये तो मन्नै मालुम नही , पर बस  उनकी उम्र पुरी हो ली थी सो वो दोनु एक ही साथ मर ली !  थानेदार को बड़ा आश्चर्य हुवा और उसको कुछ शक पड़ गया ! इधर ताऊ भी दुनियादारी के धक्के खा खा के होशियार हो चुका था ! सो थानेदार के साथ गाम आली भाषा में तोड़ कर लिया ! यानी दान-दक्षिणा दे के रपोर्ट लिखवा कर आगया ! और बीमा कम्पनी म्ह क्लेम लगा दिया !

थोड़े दिन में ताऊ का क्लेम पास हो गया और ताऊ ने सारे रुपये क्लेम के हथिया लिए ! और थोड़े दिनों बाद ताई को और भैंस को वापस बुलवा लिया !  उसने पहचान छुपाने को भैंस के सींग तोड़ डाले और उसकी पूंछ काट डाली ! लेकिन गाम में ताऊ से जलने वाले भी कई थे ! उनसे ये सहन ही ना हो री थी की ताऊ जिंदा बैठी ताई के नाम से क्लेम लेके मजे करण लाग रया सै !



उन लोगो ने बीमा कम्पनी म्ह जाकै शिकायत दर्ज करवा दी ! और बीमे कम्पनी वालो ने पुलिस थाने में रपोर्ट कर दी ! और वो पुलिस लेके ताऊ के घर तफ्तीश करने आ धमके ! इब पुलिस वालो ने बड़े ध्यान से भैंस को देखा और बोले -- ताऊ ये भैंस तो वो नही सै  जिसका बीमा करवाया था ! सो इसका क्लेम तो ठीक सै ! इब ताई नै बुला !  ताई को देख कर पुलिस आले बोले -- अरे ताऊ ये तो वो की वो ताई सै ! ये तूने बहुत बड़ा जुल्म करया सै !  बोगस क्लेम और धोखाधडी का केस बनेगा !



इब ताऊ बोल्या -- भाई मैं तो थारी ताई को भी इस भैंस जैसी ही बना देता , पर क्या करूँ ? ना तो थारी ताई के सींग सै और ना ही पूंछ सै !

कच्चा-पक्का मकान था अपना

कच्चा-पक्का मकान था अपना
फिर भी कुछ तो निशान था अपना
अपना तुमको समझ लिया हमने
तुम भी लेते समझ हमें अपना
वो भी गैरों‍-सी बात करने लगे
जिनके होंठों पे नाम था अपना
है पीपल ना पेड़ बेरी का
ये शहर है, वो गांव था अपना
इससे आगे तो रास्ता ही नहीं
शायद ये ही मुकाम था अपना

दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए

दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए
चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँवों में काँटे चुभा लिए
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिए
जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी गजल के शेर कहीं गुनगुना लिए
अब भी किसी दराज में मिल जाएँगे तुम्हें
वो खत जो तुम्हें दे न सके लिख लिखा लिए।
- कुँअर बेचैन

आराम करो आराम करो

आराम करो

एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ, है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।

मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ।
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ, सच्चे योगी जो होते हैं,
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।

अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है,
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।

मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

Saturday, December 18, 2010

ताई, छोरी और ट्रेफिक हवलदार

ताई, छोरी और ट्रेफिक हवलदार



ताऊ का शहर के अस्पताल मे आपरेशन हुया था ! सो ताई
को शहर जाणा था ! सो ताई चढ ली शहर जाण आली बस मै !
बस मै घणी ठाडी भीड हो री थी ! बैठण की जगह कितै भी नही थी !
आगे आगे की सब सीटों पै कालेज जाण आले छोरे बैठे थे !
ताई को अनदेखी सी करके सारे छोरे सीटों पै जमे ही रहे !
कोई भी ना उठया ! ताई नै थोडी देर तो इन्तजार किया फिर
वहीं बस के बोनट पर बैठ गई !
थोडी देर बाद दो तीन कालेज जाण आली छोरियां अगले स्टाप
से बस मै चढी ! उन छोरीयां के चढते ही बैठे हुये लडकों ने
उनके लिये सीट खाली कर दी और अपनी सीटों पर उन छोरियों
को बैठा लिया और खुद खडे हो लिये ! ये देख कर ताई को
किम्मै छोह (गुस्सा) सा आगया ! ताई उन लडकों से तो किम्मै
ना बोली पर उन छोरियां तैं बोली - इतना इतराणै (गुरुर) क्युं
लाग री हो ? आज नही तै कल थमनै भी इसी बोनट पै आणा सै !


शहर पहुंच कै ताई बस तै उतर ली और अस्पताल की तरफ़ चाल
पडी ! रास्ते मै चोराहा पार करणा था सो ताई नै लाल पीली
लाइट का किम्मै बेरा था नही सो वो तो चाल पडी मूंह ठा के !
लाल लाइट मै चोराहा पार करते देख कै, ट्रेफ़िक होलदार सीटी
मारण लाग ग्या ! पर ताई तो सीधी ही चाली जावै थी ! फ़िर
दोड कै होलदार साब नै ताई को रोका !
और बोला- क्युं ताई मरण का सोच कै आई सै के ?
ताई- अरे बेटा मैं क्युं मरण लागी ! तैं ढंग सै नही बोल सकदा के ?
या तनै बात करण की तमीज नही सिखाई तेरे घर आला नै ?
होलदार-- ताई मैं इतनी देर तैं सीटी मारण लाग रया सूं अर तैं तो
रुकदी ही नही ?
ताई बोली-- अरे तेरी के अक्ल खराब हो राखी सै ?
इब मेरी या उम्र के तन्नै सीटी पर रुकण की दिखै सै ?
अपनै जमानै मै तो मै एक सीटी पर ही रुक जाया करै थी !
और छोह मै आके ताई नै होलदार के दो कान तले बजा दिये !

Tuesday, December 14, 2010

अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता

मोहन को अपने बाबा से बहुत प्यार है। घर में असके माता-पिता भी हैं, पर मोहन को अपने बाबा के साथ रहना अच्छा लगता है। बाबा मोहन को कहानियाँ सुनाते हैं, उसके साथ गाँव घूमने जाते हैं और कभी भूले से भी उसे डांटते नहीं।


आज बाबा अपने पोते मोहन के लिए टोकरा भर आम लाए हैं। आम देखते ही मोहन खुश हो गया। बाबा ने आम बाल्टी में डालकर धोए। उसके बाद दोनों ने जी भरकर मीठे-मीठे आम खाए।

मोहन ने बाबा से कहा, ”बाबा, अगर हमारे घर में एक आम का पेड़ होता तो कितना अच्छा होता! जब जी चाहता, आम तोड़कर खाते।“

”हाँ, मोहन बेटा, आम का पेड़ फल के अलावा और भी बहुत-सी चीजें हमें देता है।“

”आम का पेड़ और कौन-सी चीजें देता है, बाबा?“

”देखो बेटा, आम का पेड़ जब बड़ा हो जाता है तो ठंडी छाया देता है। आम की पत्तियों से बंदनवार बनाई जाती है।“

”रामू भैया की शादी में इसीलिए उनके घर में बंदनवार और पानी के कलश पर आम की पत्तियाँ लगाई गई थीं!“

”अरे तुम भूल गए, आम की पत्तियों से तुम पीपनी बनाकर बाजा भी तो बजाते हो।“ बाबा ने हॅंसते हुए कहा।

”आम का पेड़ सच में बहुत अच्छा होता है, बाबा। हम अपने घर के आँगन में आम का पेड़ ज़रूर लगाएंगे।“

”ठीक है। मैं कल ही तुम्हारे लिए आम का पौधा ले आऊंगा।“

अगले दिन बाबा सुबह-सुबह आम का पौधा ले आए। बाहर के दरवाजे से ही आवाज दी,

”मोहन, तुम्हारे लिए आम का पौधा ले आया हूँ। जब यह पौधा पेड़ बन जाएगा तो इस पर तोते, कोयल, मैना और न जाने कितने तरह के पक्षी आया करेंगे।“

”वाह! तब तो बड़ा मजा आएगा। कोयल की आवाज कितनी मीठी होती है!“

”हाँ, मोहन, पेड़ इंसान और पक्षियों के सबसे अच्छे दोस्त होते है। पंछी तो पेड़ों पर ही बसेरा करते हैं।“

”बाबा, पेड़ तो बात नहीं करते, फिर वे हमारे दोस्त कैसे बन सकते हैं?“

”देखो बेटा, जिस तरह दोस्त तुम्हारी मदद करते हैं, उसी तरह बिना तुमसे बात किए पेड़ भी तुम्हारी मदद करते हैं।“

”वह कैसे, बाबा?“

”यह बात ठीक से समझ लो। पेड़ वातावरण से जहरीली कार्बन डाईआक्साइड गैस लेते हैं और हमें साफ़ हवा यानी आक्सीजन देते हैं। आक्सीजन न हो तो हम सांस नहीं ले सकते, यानी जिंदा ही नहीं रह सकते।“

”तब तो पेड़ बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन एक बात समझ में नहीं आती। फिर भी लोग पेड़ों को काटते हैं, भला क्यों?“ मोहन ने भोलेपन से पूछा।

”पैसों के लालच में। वे नहीं जानते कि पेड़ों को काटने से हवा में जहरीली गैस बढ़ती जाती है।“

”मैं समझ गया, बाबा। पेड़ हमारे सबसे पक्के दोस्त हैं।“

”ये लो, लगा दिया आम का पोधा,“ बाबा ने इतना कहते हुए पौधे के आसपास थोड़ा पानी डाला।

”बाबा, मैं इस पौधे को रोज पानी दूंगा। जब इसमें आम लगेंगे तो हम दोनों जी भरकर खाएंगे।“

”मेरे बच्चे, हो सकता है, तेरा बाबा आम के फल न खा सके, पर तुझे जरूर मीठे आम मिलेंगे।“

”क्यों बाबा, आप आम क्यों नहीं खाएंगे?“

”अरे, तेरा बाबा बूढ़ा जो हो गया है, पर मेरी सौगात तुझे जरूर मिलती रहेगी।“

”नहीं, बाबा। आप आम जरूर खाएंगे।“ मोहन ने दृढता से कहा।

बाबा ने प्यार से मोहन का सिर सहलाकर उसे आशीर्वाद दिया, और कहा-

”भगवान तुझे खुश रखे। इस पेड़ को अपने बाबा की तरह ही प्यार करना, मोहन!“

समय बीतता गया। मोहन रोज आम के पौधे को पानी देता। पौधा धीरे-धीरे पेड़ का रूप लेकर बड़ा होने लगा। उसके हरे-हरे पत्ते सबको अच्छे लगते। कुछ समय बाद आम के पेड़ में बौर आ गया। कोयल आकर आम के पेड़ पर ‘कू-हू’ ‘कू-हू’ गीत गाने लगी। और भी कई प्रकार के पक्षियों का पेड़ पर जमघट लगा रहता। मोहन बहुत खुश था, पर तभी भगवान ने उसके बाबा को अपने पास बुला लिया।

बाबा की मौत पर मोहन बहुत रोया। तभी उसे याद आया, बाबा ने कहा था ‘आम के इस पेड़ को अपने बाबा की तरह ही प्यार करना!’

मोहन अब आम के पेड़ के नीचे बैठकर पाठ याद करता। उसे लगता यह आम का पेड़ नहीं, उसके सिर पर बाबा का साया है। मोहन जब भी बाबा के लगाए पेड़ के आम खाता, उसे बाबा बहुत याद आते। मोहन की माँ कहती, ”बाबा मोहन को आम खाते देखकर खुश होते होंगे।“

मोहन के पिता को एक परेशानी थी। आम में जब फल लगते, बाहर से बच्चे पत्थर मारकर आम तोड़ने की कोशिश करते। एक दिन घर की खिड़की का शीशा टूट गया। कुछ दिन बाद मोहन की माँ का माथा पत्थर लगने से फट गया। रोज-रोज की इन घटनाओं से तंग आकर मोहन के पिता ने आम का पेड़ कटवाने का निश्चय कर लिया।

माँ ने भी कहा, ”आम की लकड़ी से घर की कई चीजें बन जाएंगी।“

एक दिन पेड़ काटने वाले कुल्हाड़ी लेकर आ गए। मोहन ने पेड़ काटने से मना किया,

”मैं इस पेड़ को नहीं काटने दूंगा। इसे बाबा ने लगाया था।“

मोहन के पिता ने बहुत समझाया कि वह मोहन को बाजार से आम ला देंगे। पेड़ की वजह से खिड़की-दरवाजे के शीशे टूटते हैं। आम तोड़ने के लिए फेंके गए पत्थर से तुम्हारा सिर भी तो एक बार फट चुका है। भूल गए क्या? तुम्हारी माँ का माथा तो अभी उसी दिन फटा है।

मोहन भागकर पेड़ के तने से लिपट गया, और रोते हुए बोला, ”पिताजी, यह आम का पेड़ बाबा की तरह हमें प्यार करता है। इसे मत कटवाओ।“

पिता हॅंस पड़े। भला बेजान पेड़ मोहन के बाबा की तरह प्यार कैसे कर सकता है?

मोहन कहता गया,  ”जब पेड़ की डालियाँ हिलती हैं तो मुझे लगता है जैसे बाबा मेरा सिर सहला रहे हैं। पेड़ की चिड़ियाँ, बाबा की तरह मुझसे बातें करती हैं।“

माँ ने भी मोहन को समझाना चाहा,  ”देखो बेटा, ये बेकार की बातें हैं। तुम पेड़ से अलग हो जाओ।“

”नहीं, माँ। यह पेड़ हमारा दोस्त है। सारी जहरीली गैस लेकर यह हमें साफ़ हवा देता है। ठंडी छाया और मीठे फल देता है। बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेता।“ मोहन ने पेड़ के तने को प्यार से सहलाया और राते-रोते हिचकियाँ लेने लगा।

माँ सोचने लगी - मोहन कहता तो ठीक है। ये पेड़ तो बस हमें देते ही हैं, लेते कुछ नहीं। ये दाता हैं।

फिर क्यों न मोहन की बात मान ली जाए?

तभी पड़ोस की गंगा ताई आई। उनकी बेटी की शादी में आम के पत्तों से बंदनवार बनानी थी। उन्हें आम के पत्ते चाहिए थे।

मोहन ने माँ से कहा, ”देखो माँ, आम के पेड़ की हर चीज काम आती है। लकड़ी से मेज-कुर्सी बनती है, पत्ते खुशी के मोकों पर सजाए जाते हैं। साफ हवा और ठंडी छाया भी हमें आम ही देता है।“

”तुम ठीक कहते हो, मोहन! अब मैं आम का पेड़ नहीं कटने दूंगी। साथ ही, हम अमरूद और लीची के पेड़ भी आँगन में लगवाएंगे।“

”हाँ, बेटा, हम गलती पर थे। पेड़ सचमुच हमारे दोस्त हैं। हमें पेड़ों से प्यार करना चाहिए।“ अब पिता ने भी मोहन की बात मान ली। आम का पेड़ कटवाने की बात सोचने पर उन्हें पछतावा भी हुआ। वैसे, पेड़ कटवाने की बात सोचकर उन्हें भी दुख हुआ था, पर रोज-रोज की घटनाओं से वह तंग आ गए थे।

”हमारी किताब में लिखा है कि पेड़ पानी बरसाने और बाढ़ रोकने में भी हमारी मदद करते हैं। पेड़ काटना ठीक नहीं है।“ माता-पिता को मानते देख मोहन बहुत खुश था।

”किताब में ठीक लिखा हुआ है, मोहन!  अब हम पेड़ काटने की ग़लती नहीं करेंगे। पेड़ों से प्यार का रिश्ता जोड़ना ही ठीक है।“

”तभी तो मैं आम के पेड़ को अपना बाबा मानता हूँ।“

”ठीक कहते हो, मोहन!  तुम्हारे बाबा तुम्हें यह पेड़ सौगात में देकर गए हैं। इसके मीठे फलों में जरूर तुम्हारे बाबा का प्यार छुपा है।“

”मेरी अच्छी माँ,  मेरे अच्छे पिताजी!“ मोहन ने अपनी माँ का हाथ चूमा और आंसू पोंछकर खेलने भाग गया। आम के पेड़ से कोयल ने भी खुशी का गीत गाया-कूहू..........कूहू....।

Thursday, December 2, 2010

पलकों पर किसे बिठाऊं मैं ?

 पलकों पर किसे बिठाऊं मैं ?
मैं बोलो किससे प्रेम करूं,
खुद ही पसंद कर ला दो न !
कैसे उससे व्यवहार करूं,
आता हो तो सिखला दो न !
किस तरह भरी जाती आहें,
किस तरह निगाहें मिलती हैं,
किस तरह भ्रमर मंडराते हैं,
तितली किस तरह मचलती है !
ये जान-बूझकर परवाने,
किस तरह शमा पर जलते हैं ?
क्यों मीठी नींद न सोते हैं,
करवट किसलिए बदलते हैं ?
दिल में परदेसी की कैसे
तसवीर उतारी जाती है ?
किस तरह प्रेम के चक्कर में
ये अक्कल मारी जाती है ?
अब किस 'अनदेखी' को बोलो,
सपनों की राह बुलाऊं मैं ?
सालियां भाभियां सब मोटी,
पलकों पर किसे बिठाऊं मैं ?
तुम जरा चली जाओ मैके,
अंदाज विरह का कर लूं मैं,
तारों से परिचय कर लूं मैं,
ठंडी सांसें कुछ भर लूं मैं !
तुम भी दिन में कुछ सो लेना,
जागेंगे रातों-रात प्रिये !
तारे ही तार बनेंगे तब,
कर लेंगे दो-दो बात प्रिये !


मैं तुम्हें लिखूंगा प्रेमपत्र,
तुम देना नहीं जवाब प्रिये !
दिल थोड़ा पत्थर कर लेना,
पहुंचेगा तुम्हें सबाब प्रिये !
फिर मैं चंदा में आंख फाड़
तेरा ही रूप निहारूंगा,
कोई भी आती-जाती हो,
तुझको ही समझ पुकारूंगा ।
कुछ रोऊंगा, कुछ गाऊंगा,
कुछ जीतूंगा, कुछ हारूंगा।
धीरे-धीरे थोड़े दिन में
मैं अपने कपड़े फाडूंगा।
खादी के ये मोटे कपड़े,
फटते हैं तो फट जाने दो,
आलोचक खाए जाते हैं,
मुझको भी अब 'फ़िट' आने दो।
मैं बहुत हंस चुका हूं संगिनि,
मुझको अब इन पर रोने दो,
बनने दो जरा मुझे भारी,
गंभीर मुझे कुछ होने दो !''
तुम इनकी बातों में आए ?
बकने दो इन बजमारों को !
इस प्रेम-व्रेम के चक्कर में
फंसने दो दाढ़ीजारों को !
ये खोटी नीयत वाले हैं,
इनकी सोहबत मत किया करो !
दफ्तर से छुट्टी होते ही
सीधे घर को चल दिया करो।''
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