Sunday, April 6, 2008

कौन मानेगा कि हम में बेवफा कोई नहीं

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा कि हम में बेवफा कोई नहीं

हम बा-वफा थे इसलिए नजरों से गिर गये
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी

बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफा का अहद-ए-वफा याद आ गया

फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही जिंदगी हमारी है

हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया

इन्सान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफा अफसोस मत करो

तुम भी मजबूर हो हम भी मजबूर हैं
बे-वफा कौन है, बा-वफा कौन है

पी शौक से वाइज अरे क्या बात है डर की
दोजख तिरे कब्जे में है जन्नत तेरे घर की

मैं मैकदे की राह से होकर गुजर गया
वरना सफर हयात का काफी तबील था

कुछ सागरों में जहर है कुछ में शराब है
ये मसअला है तश्नगी किससे बुझाई जाय

दुख्तरे-रज ने उठा रक्खी है आफत सर पर
खैरियत गुजरी कि अंगूर के बेटा न हुआ

रिन्दे-खराब-हाल को जाहिद न छेड़ तू
तुझको पराई क्या पड़ी अपनी निबेड़ तू

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